गुरुवार, 24 अप्रैल 2014

अपना अपना धर्म

यह वाकया 15 जनवरी 2014 का है जब मैं अपने माता-पिता के साथ गंगा सागर (सागर आइलेंड) से लौट रहा था. जब हम बस मे बैठे जेटी घाट की ओर जा रहे थे तभी कुछ नवयुवक-युवतियों ने बस रोका. यहां मैं यह बताना चाहुंगा की मकर संक्रांति के समय सागर दीप पर यातायात की असुविधा ही दिखी थी. पर मुझे यह देखकर आश्चर्य हुआ कि इस असुविधा में भी इस हिन्दू तीर्थस्थल पर ये युवक युवतीयां क्रिस्चैनिटी के प्रचार के लिए आए थे. मुझे लगा कि शायद ऐसा इसलिए है कि इस दुर्गम और अनमार्केटाइज्ड अनब्रान्डेड तीर्थस्थल पर अधिकांश मध्यमवार्गीय एवं निम्नवर्गीय तीर्थयात्री आते हैं जो इनके प्रमुख टारगेट ग्रुप होते हैं कनवर्जन की . खैर, मैं यह कह रहा था कि, ये युवा एक सुंदर डायरीनुमा किताब बांट रहे थे मुफ़्त में जो हिन्दी अंग्रेजी और बांग्ला में उपलब्ध थे. मेरी मां को लगा कि कोई धार्मिक किताब बंट रहा है तो उन्होने ले लिया. भारत में यदि कुछ मुफ़्त में बंट रहा हो तो कोई भी उसे लेने से चुकना नहीं चाहता, शायद पापा ने भी इसीलिए एक ले लिया. आगे बढने पर मां के पुछने पर मैने उन्हे बताया कि यह क्रिस्टैनिटी (दुसरे धर्म) का धर्म ग्रंथ है और ये युवा इन किताबों के जरिए अपने धर्म का प्रचार कर रहे थे. इसपर मेरे पिताजी ने इन किताबों को फ़ेंक देने का प्रस्ताव रखा. इसपर मेरी मां ने जो पढी-लिखी नहीं हैं और एक धार्मिक ब्राम्हिण महिला हैं उन्होने कहा “नहीं, यह एक धार्मिक ग्रंथ है (यद्यपि किसी और धर्म का है), अत: इसे इधर उधर फ़ेंकना सही नही है, और इसे हम रास्ते में गंगाजी में बहा देंगे (जैसा कि हम अपने भी धार्मिक अवशेषों के साथ करते हैं).” और हमने उन किताबों को गंगा में बहा दिया था.

उपरोक्त घटना के बाद मैं सोचने लगा कि मेरी मां का भी एक धर्म हैं जो सनातन है, जो स्वयं में खुद को सास्वत रखते हुए भी सभी धर्म का सम्मान करना सीखाता है (जैसा कि गीता में स्वयं गोविंद ने भी कहा है).

दूसरी ओर उन युवाओं का भी एक धर्म है जो उन्हे अपना श्रम और धन खर्च कर अपने धर्म का प्रचार करेन को प्रेरित करता है. और देश और दुनियां में कुछ ऐसे भी समूह हैं जो धर्म के नाम पर अलगाववाद और आतंकवाद जैसे घ्रिणित कार्य को अंजाम देते हैं और धर्म और कौम को ही बदनाम करते हैं. तो कुछ लोग ऐसे भी हैं जो जबर्दस्ती में अपने-अपने धर्म के ठेकेदार बन जाते हैं और जिनके लिए धर्म का मतलब केवल दुसरे धर्म के लोगों की निंदा करना और उनके प्रति घ्रिणा फ़ैलाना मात्र होता है. 

फ़िलहाल तो बस इतना ही. नमस्कार.

प्रणव कुमार

शनिवार, 19 अप्रैल 2014

चुनाव: मेरी प्रतिक्रियाएं

चुनाव: मेरी प्रतिक्रियाएं
आज जब २०१४ के आम चुनावों का सुरूर चरम पर है और इसके लिए सभी अपनी अपनी प्रतिक्रियाएं दे रहे हैं, तो सोचा क्यों न मैं भी अपनी प्रतिक्रिया रखुं । चुनाव से जुडी मेरी कुछ प्रतिक्रियएं हैं:

चुनाव सुधार:
१.      आनुपातिक प्रतिनिधित्व (Proportional Representation): यह एक ऐसा मसला है जिसपर कहीं अधिक चर्चा होते नहीं सुना है पर मेरा यह मानना है कि इसपर ध्यान दिया जाना चाहिए । भारत में बहुदलिय व्यवस्था है जहां अधिकांशत: त्रिकोणिय या चतुष्कोणिय मुकाबले होते हैं । ऐसे में औशतन लगभग ३०% मत लेकर उम्मीदवार चुनाव जीत जाते हैं जो कि बांकि ७०% लोगों की नुमाईन्दगी करते ही नहीं हैं ।जबकि लोकतंत्र में बहुमत का अर्थ कम से कम ५१% से तो होना ही चहिए । अत: मेरा मानना है कि एक क्षेत्र से एक की जगह अनुपातिक रूप से प्रथम दो सर्वाधिक मत पाने वाले उम्मीदवारों को विजयी घोषित करना चाहिए ताकि औशतन ५१% की नुमाइंदगी सुनिश्चित हो सके । अब इसके लिए निर्वाचन क्षेत्रों को मर्ज करें अथवा सीटों को दोगुनी किया जाए यह तो एक्सपर्ट बेहतर बता सकते हैं ।
२.      State Funding of Election: चुनाव में धन-बल के अनुचित प्रयोग को रोकने के लिए इंद्रजीत सिंह कमेटी के रिपोर्ट से बहुत हद तक मैं सहमत हूं । चुनाव में धन-बल के खर्च को इस तरह से सीमित रखा जाना चाहिए कि उम्मीदवार अपने अपने क्षेत्रों में घर-घर जाकर सरलता से प्रचार मात्र कर सके । स्टेट इलेक्शन फ़ंड में टैक्स के पैसों की बजाए राजनैतिक दलों/प्रतिनिधियों से उनके सीटों के अनुपात में अनुदान राशि जमा करवायी जा सकती है तथा चंदा दाताओं को भी किसी पार्टी की बजाए सीधे स्टेट इलेक्शन फ़ंड में अनुदान देने के लिए प्रोत्साहित किया जा सकता है । इस प्रकार से चुनाव में जहां धन-बल के अधिकाधिक प्रयोग पर अंकुश लगेगा वहीं काले धन के प्रयोग पर भी अंकुश लग सकता है  तथा कम पैसे वाले उम्मीदवार केवल इस बात से चुनाव लडने से नहीं डरेगा कि उसके पास पर्याप्त धन नहीं है ।
३.      Right to recall: विभिन्न सामाजिक संगठनों और ’आप’ द्वारा उठाए गए इस मांग से मैं इत्तेफ़ाक नहीं रखता, क्योंकि यह व्यवस्था मुझे व्यवहारिक (Feasible) नहीं लगता । हमे अपने प्रतिनिधि सोच समझ कर चुनना चाहिए और फ़िर भी यदि गलती हो गई हो तो अगले चुनाव में इसे ठीक किया जा सकता है ।

चुनावी भ्रांतियां:
पता नहीं क्यों ऐसा भ्रम पैदा कर दिया गया है कि यदि आप जीतने वाले उम्मीदवार को वोट नहीं देते हैं तो आपका वोट बर्बाद हो जाता है । किन्तु मैं ऐसा नहीं मानता। मेरा मानना है कि चुनाव प्रत्यासी लडते हैं नागरीक तो अपना मत देते हैं । अत: कोई यदि हारने वाले (जैसा कि बताया जाता है ) अथवा नोटा () को भी मत देता है तो वो व्यर्थ नहीं होता । अत: हमे उस प्रत्यासी को चुनने का प्रयत्न करना चाहिए जो देश और नागरीक के लिए बेहतर हो ।

एक और भ्रांति यह है कि हमे प्रत्यासी को नहीं देखना चाहिए, बल्कि देखना चाहिए पार्टी और उसका चेहरा । किन्तु मैं सोचता हूं कि हमें पार्टी और उसका चेहरा अवश्य देखना चाहिए किंतु हमे प्रत्यासी को भी अवश्य देखना चाहिए । हमे अपराधी या अयोग्य/भ्रष्टाचारी प्रत्यासी नहीं चुनना चाहिए चाहे वो जिस किसी भी पार्टी का हो । उसी प्रकार जाति, धर्म, वंशवाद या क्षेत्रवाद भी प्रत्यासी चुनने का पैमाना नहीं होना चाहिए ।

मुद्दे:
वैसे तो इस बार चुनाव में अधिकांश मिडिया और नेताओं द्वारा वास्तविक मुद्दों को हासिए पर ही रखा गया है, मेरे हिसाब से जो कुछ प्रमुख चुनावी मुद्दे होना चाहिए वो हैं:
१.      भ्रष्टाचार
२.      महंगाई
३.      सरकारी विद्यालयों/महाविद्यालयों/प्रोफ़ेशनल इंस्टिच्युट आदि में मूल्य और रोजगारोन्मुखी शिक्षा का विकास
४.      महिला सुरक्षा एवं सशक्तिकरण
५.      लघु एवं कुटीर उद्योगों में निवेश एवं उसका विकास । कोपरेटिव सोसाइटियों का विकास
६.      किसानों के विकास के लिए बेहतर नीति एवं उसका कार्यान्वयन ।
७.      संसाधन प्रबंधन एवं इनका सतत विकास के लिए सदुपयोग()
८.      मजबूत विदेश एवं रक्षा निति । आतंकवाद एवं नक्सलवाद से लडने के बेहतर प्रयास।
९.      कमजोर तबके (प्रवासी कामगार एवं गरीब आदि) के शिक्षा स्वास्थ्य, आवास आदि व्यवस्था को बेहतर करना
१०.  देश को आर्थिक सामरिक, राजनैतिक और सामाजिक रूप से अधिकाधिक सुद्रिढ करना ।

ये तो मोटामोटी मुद्दे हैं जो मेरे जेहन में चल रहे हैं इसके अलावा और भी मुद्दे हो सकते हैं जिस पर चर्चा होनी चाहिए, और अलग अलग लोगों के अलग-अलग वर्गों के इन मुद्दों पर किस प्रकार कार्यान्वयन किया जा सकता है इसपर एक्सपर्ट राय ली जा सकती है । कहने को तो बहुत कुछ है पर लेखनी की मजबूरी है, बांकि जो है सो तो हैये है। जिंदाबाद मुर्दाबाद करते रहिए पर सिकंजी और जूस पीते रहिएगा । नमस्कार ।


प्रणव कुमार

शुक्रवार, 18 अप्रैल 2014

रात तुम फिर आ गई मुझको चिढाने


रात तुम फिर आ गई मुझको चिढाने
सारी अंधियारी खुद में समेटे हुई हो
चांदनी ने मुझसे हँस कर कहा है
क्यों नादाँ तुम अँधेरे से डरे हुए हो
मैं खड़ी हूँ बांह अपनी फैलाए
सो जाओ मेरी आगोश में हर एक डर को भुलाकर
हर तिमिर से मैं तुमको बचाकर
पहुंचाउंगी वहा जहां खडा है सवेरा
मैं न बोला किन्तु मेरी उलझने बोली
चाँदनी   मेरा कहाँ तक साथ तुम दोगी
आएगी  अमावस छुपोगी बेवफा बनाकर
रात तो उस दिन भी आएगी मुझको चिढाने को
तब मैं पाउँगा तुझको कहाँ पर?
इसलिए नियति को मुझे खुद है बताना
बंद कर दो इस तरह मुझ को चिढाना
बंद कर दो इस तरह मुझको चिढाना ।