शुक्रवार, 13 जून 2014

तेसर प्रण (कहानी)

 

आइ राघव के सिविल सेवा के फ़ाइनल रिजल्ट आब बला छैन एहि लेल काल्हि रातिये सं हुनकर मोन अकसक्क भेल छैन। एक्को क्षण के लेल निन्द हुनकर आँखि में नहि आबि सकलैन। किये नै होयन, कैयेक बरष सं जे हुनकर आँखि में स्वप्न छल से आब हुनका सं मात्र एक क्लिक के दूरी पर छल। कांपैत हाथ सं ओ रिजल्ट के लेल क्लिक केलाह आ…।
Raghav Jha: All India Rank 24 : Got Selected for Indian Administrative Service.
इ देख हुनकर मन:स्थिति जे भेलैन तेकर व्याख्या नै कैल जा सकै अछि। हुनका भेलैन जेना हुनका पाईंख लाइग गेल होइन आ ओ दूर आकाश में उड़ल जाइ छैथ। परंच स्वयं के बिट्ठू काटि क ओ स्वयं के सचेत केलाह। फ़ेर बरबस हुनका नौ बरष पुराण ओ घटना मोन पैर गेलैन, आजुक स्थिति के जेकर प्रतिफ़ल कहल जा सकै अछि।

तखन राघव दसवीं में गेल छलाह। बाबूजी एकटा सामान्य सरकारी कर्मचारी छलाह। घर में सबटा मौलिक सुविधा उपलब्ध छल किंतु भोग-विलासिता सं दूरी बनल छल। राघव के दू टा बाल सखा छलाह – बंटी आ मोंटी। बंटी के पिताजी सेहो सरकारी कर्मचारिये छलाह, आ मोंटी के पिताजी व्यापारी छलैथ। मोंटी के पिताजी ओकरा एकटा बढिया विडियो गेम खरीद के देलखिन जकरा देखा देखी बंटी सेहो अपन बाबू सं कहि क ओहने विडियो गेम खरीदबा लेलक। आब दुनू संगी राघव के खिसियाब
लागलैन जे हमरा सब लग एत्ते निक विडियो गेम अछि आ अहां लग नै अछि। इ सुनि-सुनि राघव बड्ड दुखी भ गेल छलाह। ओ बाबूजी लग जिद्द क देलखिन जे बाबूजी हमरो लेल अहां ओहने विडियोगेम मंगा दिय। बाबूजी हुनका बुझेलखिन जे बौआ ओ विडियोगेम बड्ड महरग अछि आ एखन किननाइ अनावश्यक अछि, एखन बहिन जी के इंजिनियरिंग मे एडमिशन कराब के अछि ताहि में खर्च हेतै। आर काज सब अछि। किन्तु राघव कत्त मानय बला छलाह। ओ कहलाह जे मोंटी आ बंटी के पप्पो त दियेलखिनये कि नै। एहि पर बाबूजी बाजलाह जे मोंटी के पापा अमीर व्यापारी छैथ आ बंटी के पापा घुसखोर। हुनका सं आंहा अपन परितर किये करै छी? एही पर राघव तुनैक क बजलाह जे एहेन इमानदारी के ल क कि करब जे बेटा के सौखो  नै पूरा क सकि! एते बाजि ओ मुंह फ़ुला क ओत से चैल गेलाह। मुदा हुनका आँखि में अखनो विडियो गेमे नाचि रहल छल।

 

राति में ओ तामसे खानो नै खेने छलाह। सुतलि राति में हुनका विचार एलैन जे किये नै बाबूजी के पर्स चोरा ली आ ओहि में जे पैसा हेतै तहि से विडियो गेम खरीद लेब संगी संगे जा क । इ सोचिते ओ उठलाह आ चुप चाप सं बाबूजी के कुर्ता सं हुनकर पर्स निकाइल लेलैथ। भोरे बाबूजी के इलेक्शन ड्यूटी में जेबा के छलैन। एहि लेल ओ भोरे अन्हौरके पहर निकैल गेलखिन। हरबरी में ओ अपन कुर्ता के जेबीयो नै चेक केलखिन जै में हुनकर पर्स छलैन आ पर्स में पाई-कौरी के संग संग हुनकर आई-कार्ड बस पास आदि सेहो छलैन। बस में बैसल बाबूजी जाय छलाह कि तखने टिकट चेकर सब पहूंचल। बाबूजी सं टिकट मांगला पर ओ जखने पास निकाल लेल जेब में हाथ दै छैथ त... आहि रे बा पर्स त अछिये नै! आब हुनका भेलैन जे कि करी नै करी। ओ टिकट चेकर के बात बुझाब के प्रयत्न कर लगलाह मुदा ओ मान लेल तैयार नै भेल। हिनका लग जुर्मानो भर के लेल पाई नै छल। ताहि समय में मोबाईल फ़ोन के ओहन चलन सेहो नै छल। टीसी हुनका बस सं उतारि क जिरह कर लागल। अस्तु ई मामिला के कहुना सल्टिया क कहुना कहुना बाबूजी ड्यूटी पर पहूंचला। मुदा समय पर इलेक्शन ड्यूटी पर नहीं पहूंच के कारण अधिकारी हुनका पर काज में लापरवाही के चार्ज लगा हुनका सस्पेंड क देलकैन। दुखी मन सं बाबूजी घर पहूचलाह आ मां के सबटा बात बता क पुक्कि पारि क कानय लगलाह। एहि बीच राघव सेहो कत्तौ सं खेलैत-कुदैत घर पहूचलैथ। पहिने त हुनका माजरा किछु बुझना में नै एलैन, मुदा बात बुझला उत्तर त जेना हुनका काटु त खून नै। आत्मग्लानी सं ओ डूबल जा रहल छलाह। होय छलैन जे धरती फ़ाईट जाय आ हम ऐ में समा जाय। सोचय लगलाह जे आइ हमरा कारण से बाबूजी के सस्पेंड होब परलैन आ बदनामी से अलग। किछु क्षण त हुनका अपना आप सं, जिनगी सं घृणा होमय लगलैन, रंग रंग के नाकारात्मक खयाल आब लागलैन। खन होइन जे फंसरी लगा ली। खन होइन जे नदी मे जा डूबी। मुदा फ़ेर ओ अपना आप के सम्हारलैथ आ अपना आप सं कहलखिन जे हमरा सं आई बड्ड पैघ अपराध भेल अछि जेकर भोग बाबूजी के आ पूरा घर के भोगऽ पड़त। मुदा हम डरपोक नै छी। हम एहि अपराध के प्रायश्चित करब। मुदा राघव के इ हिम्मत नै भेलैन जे ओ सबटा सच्चाई बाबूजी के जा क बता दितेथ। तथापि राघव तत्क्षण तीन टा प्रण लेलैन:
1. जिनगी में कखनो कोनो प्रकार के चोरी नै करब।

2. कखनो कोनो अनावश्यक मांग नै करब।

3. बाबूजी के आई.ए.एस बनि क देखायब आ तखन एहि अपराध के लेले क्षमा मांगब।

तखन फ़ेर राघव बाबूजी के पर्स के अति गोपनिय रूप सं राखि देलैथ। ओ दिन अछि आ आइ के दिन अछि, राघव सदिखन अपन दुनू प्रण के पालन केलैथ अछि आ प्रतिपल अपन तेसर प्रण के पालन करै के लेल प्रयत्नशील रहलैथ अछि। आ आई ओ दिन आबिये गेल, जखन हुनक टेसर प्राण पूर्ण होमय जा रहल छल।

इ सब सोचैत सोचैत राघव के आँखि सं खुशी के नोर बह
लागलैन।

ओ ओत स सीधे बाबूजी के पर्स निकाल गेलैथ। आ फ़ेर गेलाह बाबूजी के इ खबर सुनाब। आइ-काल्हि इंटरनेट के जमाना अछि आ कोनो न्यूज फ़ैलबा में मिनटो कत्त लागै अछी। बाबूजी के आन लोक सब सं खबर भेट गेलैन जे हुनकर बेटा गाम-समाज के नाक उपर केलैथ अछि आ मिथिला के नाम आर रौशन। बाबूजी खुशी में झुमैत राघव के सामने एलैथ। आब राघव के अपना आप के रोकनाइ भारि मुश्किल भ गेल छल। ओ बाबूजी सं लिपैट क जोर जोर सं कान लागलैथ। हुनका आँखि सं गंगा-यमुना बहय लागलैन। बाबूजी कहलखिन दुर बताह तों गाम-समाज के एते नाम केलैं आ एना बताह जेकां कानि किये रहल छैं! आब राघव कानैत कानैत नौ बरष पहिने के सबटा घटना सुनाब लगलाह। आ अंत में बाबूजी के ओ पर्स निकालि क देलखिन। आब सभटा ग्लानि सभटा अपराध बोध समाप्त भ गेल छल। नोरक बसात में सब साफ़ भ गेल छल। जेना लागै छल जे घनघोर घटाटोप के बाद फ़रिच्छ भ गेल छल।

 

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