मंगलवार, 26 जुलाई 2022

बादल आज फ़िर तुम आये थे मेरे आंगन

बादल आज फ़िर तुम आये थे मेरे आंगन,

और बरस कर चले गये;

मै तेरा धन्यवाद भी ना कर सका !

 

शायद तुम बहुत व्यस्त थे सबकि प्यास बुझाने मे।

पर कल तुम फ़िर आना,

बांहें खोल करना है तुम्हारा स्वागत,

और भिंगोना है तेरी बुन्दों से अपना दामन।

बंद कर लेना है तेरी बूंदों को अपने मुट्ठी मे

और झूम कर करना है प्रेम से तेरा अभिवादन।

 

पूछना है यह प्रश्न तेरी काली लटों से

सुन रहे हो ना ऐ बदरी काली ?

कैसे ले आती हो तुम मरुभूमि मे भी हरियाली !

क्या बुझा सकती हो प्यास उन अभागों की भी

सूखे हैं कंठ जिनकी सदियों से, कई जन्मों से। 

 

क्या मिल सकेगा तेरी बूंदों का हिस्सा सबको कभी

पा सकेगा क्या  हर मानव जीवन की खुशहाली!

कौन है जो हर बार चुरा लेता है तेरे मेघों को ?

इन्द्र हैं, या कोई और देवता या कोई दानव

या कि इस पाप के भागी भी हैं हम मानव !

 

सुनो ना, तुम आना, फिर आना मेरे आँगन

अपनी बूंदों से भिगो देना हम सब का दामन।

शनिवार, 23 जुलाई 2022

विभीषण के चरित्र चित्रण (मैथिली गल्प)

 

किछ आमभावना(perception) लोक सब के बीच अनेरे प्रचलित रहई छैक जेना नरेंद्र मोदी के बात बात पर कोसनाई, राहुल गांधी के बिना सुनने, ओकर बात के बिना बुझने ओकरा पप्पू कहनाई, अरविंद केजरीवाल के बिना बात के एना गरिएनाई जेना कि ओ हिनकर पाहून होय। एहने ट्रेंड मे से एकटा ट्रेंड छैक विभीषण जी के देशद्रोही आ गद्दार कहनाई। जे कि हमरा लेखे एकदम अनुचित आ अदूरदर्शी सोच छैक। जे लोक सियावर रामचन्द्र जी के नै मानई छैक हुनका सब के त खैर किछ नै कहल जा सकई अछि मुदा जे लोक जानकीरमण राजा राम के मानई छैथ, हुनकर अनुव्रती आ उपासक छईथ (किछु शिकायत के संगो) ओ सब  ओय विभीषण पर कोना के आंगुर उठाबै छईथ से नै जानि जिनका साक्षात भगवान राम आपन मित्र आ बराबरी के दर्जा देने छलाह! आ वास्तविकतो यैह थीक नै त लोक मेघनाद आ कुम्हकर्ण के बजाय विभीषने के ने पुतला जराबथिन। लेकिन एहन बात नै छैक। वास्तविकता त ई छैक जे रामेश्वरम मे विभीषण जी के मंदिरो छैक।

विभीषण जी सदिखन देश आ न्याय के पक्ष मे छलाह। एकरा किछ उद्धरण से बुझल जा सकई अछि:

जखन सूर्पनखा अपन निजी स्वार्थ आ प्रतिशोध लेल रावण के दरबार मे ओकरा एकटा अनावश्यक युद्ध के लेल भड़काब आयल छलीह आ अपन डाह के शांत कर लेल हुनका मोन मे सीता के लेल लालसा आ मोह भरि रहल छलीह तखन विभीषण रावण के सलाह दैने छलाह जे मामिला के बिना ठीक-ठीक बुझने एकटा प्रबल योद्धा से बैर ठानब राज्य के हित मे नै थीक, किए त रामजी के लंका पर चढ़ाई के कोनो इरादा नै छल।

जखन रावण सीताजी के हरि के ल आनलक तखनो विभीषण जी एकटा सच्चा हितैषी मंत्री के रूप मे रावण के स्त्री मर्यादा के पाठ पढ़बैत चेतेलखिन जे परदारा हरण अधर्म थीक, पाप थीक। ई कुल आ देश दुनू के कलंकित करे बला कृत्य अछि। तै रावण के सीताजी के ससम्मान वापस राम जी लग पहुंचा देबा के चाहिए।  मुदा अपन स्वार्थ आ सत्ता आ शक्ति के अहंकार मे डूबल रावण के मति मे कहाँ ई सब बात ढुकलय!

जखन रामजी के सेना लंका पहुँच गेल छल तखनो विभीषण देशाहित मे रावण के बुझेलखिन जे राजा के निजी हित आ इच्छा के पूर्ति के लेल देश के अनावश्यक युद्ध मे झोंकनाई आ ओई कारण होमय बला नुकसान के खतरा मे ठेलनाई सर्वथा अनुचित थीक। तै, देश के बिनमतलब के नुकसान से बचाब लेल आ स्त्री मर्यादा के रक्षार्थ रामजी से संधि क लिय। मुदा ऐ पर रावण हुनका तिरस्कृत क के देशनिकाला द देलक।

राजा आ पईघ भाय से तिरस्कृत भेला आ देशनिकाला के सजा पाबय के बादो विभीषण जी अपन देश के विषय मे चिंतित रहलाह आ अपन हितैषी के सलाह पर रामजी से संधि कर लेल पहुँच जाय छईथ जे हे मर्यादापुरषोत्तम अहाँ के बैर त रावण से थीक ने, तै कृपा क के ओकरे से युद्ध कैल जाय आ लंकावासी के अनावश्यक नुकसान जुनि करबई। विभीषण जी के लेल देश से मतलब देश के भूमि, देश के लोक, देश के संसाधन छल नै की राजा के निजी स्वार्थ आ निजी सोच। रावण के मृत्यु के बाद ओ रामजी के संधि अनुसार लंका के राजा बनय छईथ आ लंबा समय तक ओत सुशासन के संग राज केलाह।

दोसर विश्व युद्ध के समय भारत के ब्रिटिश राज के खिलाफ नेताजी सुभाष चंद्र बोस सेहो एहिना आजाद हिन्द फौज ठाढ़ केने छलाह आ लड़ल छलाह जै से भारत देश आ भारतक लोक के अङ्ग्रेज़ी राज से मुक्ति भेटय आ कुनु बेहतर लोकतान्त्रिक व्यवस्था एत बनी सकय।

ऐ से ई प्रमाणित होय छैक जे विभीषण जी एकटा देशभक्त आ मर्यादाप्रिय व्यक्ति छलाह। आ राजा के आलोचना से ल क राजा के प्रति विद्रोह सब के पाछू हुनकर मंशा देशहित आ मर्यादा से जुडल छल। हाँ मुदा ई त छैहे ने जे कलंक से कियौ नै बचल अछि जखन मर्यादापुरुषोत्तम स्वयं नै बचि सकलाह त हुनकर मित्र कत से बचताह, स्वाईत विभीषण जी पर देशद्रोह आ कुलद्रोह के कलंक लगायल गेल। तै भेड़चाल मे या कोनो प्रोपगेंडा के तहत केकरो गद्दार या देशद्रोही कहबा से पहिने दू मिनट रुकि के अवश्य सोचबाक चाहिए जे जेकरा पर आरोप लगा रहल छी ओकर कृत्य की थीक आ ओकरा पाछाँ मंशा की थीक।

देशद्रोह के आरोप केहन खोखला थीक से देखला के बाद आब कुलद्रोह पर चर्चा क ली। निश्चित रुपे ओ अपन कुल के लोक (भाई, भतीजा) सब के नाश के एकटा पईघ कारक बनलाह। मुदा किए? किएकि नारी तर्जन आ स्त्री मर्यादा के विरुद्ध आचरण कर बला अपन समांग सब के सेहो विरोध करबाक साहस हुनका मे छलईन्ह। सामाजिक आ मानवीय मर्यादा के विरुद्ध आचरण करई बला अपन समांग के प्रति ओ पक्षपात नै करे छथीन अपितु पहिने ओ हुनका सब के बुझेबाक प्रयत्न करे छईथ, हुनका सन्मार्ग पर लाब के प्रयत्न करे छईथ। आ नै मानला पर अपन समांग के भी पाप के समुचित सजा दियाबई छथीन। आई हम देखई छी जे अक्सर देश मे नारी के विरुद्ध होय बला अपराध मे अपराधी के घरक लोक, रिस्तेदार, पार्टी के लोक सब ओकर अपराध के जानितो ओकरा संगे ठाढ़ भ क ओकरा बचाबई छैक। वर्तमान मे देश आ समाज मे नारी के प्रति बढ़इत अपराध के ई एकटा प्रमुख कारण थीक। सेंगर, चिन्मयनन्द, आशाराम, रामरहिम, आदि एहेन सैकड़ो उदाहरण थीक। स्वाईत आई समाज मे विभीषण सन उदाहरण के आवश्यकता थीक कि यदि समाज मे एहेन अपराध आ कुकृत्य आहाके अपन परिवार के लोक भी करय छईथ त हुनको विरूद्ध अहाँ ठाढ़ भ सकि से साहस अहाँ मे होय। आब अहिं बताऊ जे एहन साहस के काज सराहनीय थीक कि निंदनीय!

ओना त पूर्वानुमान यैह छल जे युद्ध मे राम जी के विजय हेतई, एना मे हुनका से संधि क के एक तरहे देखल जाय त विभीषण जी महर्षि पुलत्स्य के कुल के नाश हेबा से सेहो बचा नेने छलाह। किछ लोक लांक्षण लगाब के क्रम मे कहय छईथ जे कियौ विभीषण नामो नै राखय छै। से हे आदरणीय लोक सब से त लोक सुग्रीव आ जामवंत सेहो नाम नै राखय छैक। नाम त एकटा चलन छैक जे जुग अनुसार प्रचालन मे रहे छय। एक समय मे सबसे प्रचलित रामे नाम आब कतेक लोक अपन बालक के राखय य?

अंतिम बात मुहावरा पर आबाय छी। “घरक भेदी लंका डाहई” मुहावरा के अर्थ भेल कि यदि अंदरे के आदमी भेदी निकलि जाय त लंका सन शक्तिशाली राज सेहो ढहि जाय छैक। तै शासक के अंदर के लोक मे एतेक असंतोष नै पनप देबाके चाहिए जे ओ शत्रु के अहाँक भेद बता दै।