मंगलवार, 24 मार्च 2015
सोमवार, 29 दिसंबर 2014
माँ वीणापाणी वर दे (लय: इस मोड़ से जाते हैं -फ़िल्म -आंधी)
मां वीणापाणी वर दे, संगीतमई वर दे, मंजूज्ञान वर दे
मां वीणापाणी वर दे
अज्ञान अंधेरे में, विभत्स पशुनर में, अबोध अवचेतन मन तक
नवचेतना तू भर दे . . . मां वीणापाणी वर दे
पीड़ाएं सभी हर कर, उल्लास जो भरती है
वो नैसर्गिक झंकार, तेरी वीणा से निकलती है
मेरी लेखनी में भी मां,वो रौशनी तू भर दे, जन जन तक जो पहूंचती है
मां वीणापाणी वर दे
मां वीणापाणी वर दे, संगीतमई वर दे, मंजूज्ञान वर दे
मां वीणापाणी वर दे
अज्ञान अंधेरे में, विभत्स पशुनर में, अबोध अवचेतन मन तक
नवचेतना तू भर दे . . . मां वीणापाणी वर दे
मां वीणापाणी वर दे
तेरे ज्ञान की ज्योति से मां इंसान प्रबुद्ध हुए
विज्ञान के बल से मां विकसित और बुद्ध हुए
इंसानी अंतर्मन को अंतर तक शुद्ध करो
ये प्रणव वन्दना माँ अब तो स्वीकार कर लो
मां वीणापाणी वर दे, संगीतमई वर दे, मंजूज्ञान वर दे
आज्ञान अंधेरे में, विभत्स पशुनर में, अबोध अवचेतन मन तक
नवचेतना तू भर दे . . . मां वीणापाणी वर दे
मां वीणापाणी वर दे
२८.१२.२०१४
अतीत के आईने से कुछ मुक्तक
हमे तो इंतजार है उस सवेरे का
सुबह जो आए मेरे लिए दुआ बनकर
२७/०४/२०१४
दर्द के परछाई से पीछा छुड़Éना है
आशा की किरण तु ऐसी रौशनी कर दे
या कि न देख सकूं खुद को भी मैं
मेरी जिंदगी में ऐसी अंधियाली भर दे
०९/०५/२०१४
तेरे सजदे में गुजारी है ये जिंदगी सारी
मेरी जद से तु परे हुआ, जबसे तु खुदा हो गया
१४.०५.२०१४
कभी मिट्टी की खुशबू में मुझे ढूंढकर देखो
इसके हर कण में सना मैं तुझे मिल जाउंगा
२८.०५.२०१४
तुम क्या हो और मैं तुम्हे क्या कहूं
बस चाहत है की सदा तेरी नजरों में रहूं
२८.०५.१४
मेरा मिट्टी है जो कि हर बार बिखर जाता है
ख्वाब बनकर हवा, हर बार हाथों से निकल जाता है
२८.०५.२०१४
हजारों ख्वाब ऐसे हैं, जो टूटे अब तलक मेरे;
निगाहें फ़िर भी जुट जाती है इक और ख्वाब बुनने मे
३१.०५.२०१४
कुछ इस तरह भरमाया जिंदगी तुने;
अब तो आदत सी हो गई है, भ्रम पालने की मुझको
११.०६.२०१४
कहीं इक राह की साहिल पे बैठा था सदा ले के
खुदाया काश ! की तुम इक बार वहां भी देख तो लेते
२१.१२.२०१४
तसव्वुर में समाए हो कभी तो रूबरू आओ
हमारे रूह में बसकर, वहां पर घर बना जाओ
२१.१२.२०१४
पंछी बनकर उड़ नहीं पाया
पंख कटवाए बैंठा हूं;
अपाहिज सी जिंदगी हो गई
और आप पुछते हो कैसा हूं !!
व्योम का विस्तार देख
मैं डर गया या हार गया !
दुविधा के भंवर में फ़सकर,
इसपार ना उसपार गया !!
जूलाई २०१०
बेबस हैं हम, हमें यूं न आजमाया करो;
दोस्ती की है तो, कभी दोस्ती का फ़र्ज भी निभाया करो !
कभी खुद रोते हो, कभी हमे रूला जाते हो
क्या इसी तरह दोस्ती का फ़र्ज निभाते हो !!
०२.०७.२०११
कुछ लोग साथी की चाहत में फ़ना हुए
कुछ लोग साथी की हिफ़ाजत में फ़ना हुए
तुम बात करते हो अकेले चलने की
हम तो अकेलेपन के इनायत में फ़ना हुए
०२.०७.२०११
तेरे प्रीत से आलोकित है जिंदगी मेरी
तेरे चेहरे का अवलंबन है जिंदगी मेरी
तुम कौन हो और क्या पहचान है तुम्हारी?
जिसके होने के गुमान से है हर खुशी मेरी
०२.०७.२०११
इक बादल है जो मिटकर भी
दो बूंद खुशी के दे जाए
इक हम इंसान हैं,
जो जीकर भी
मानवता के न काम आए
०२.०७.२०११
बादल के गरज से सीखा है
राहत की बूंदे बरसाना
सीखा है हमने मिटकर भी
मानवता के न काम आना
०२.०७.२०११
कुछ तो बात है तुझमें मेरी नजरों के लिए
कि तेरे दीदार को ये मेरे दिल में भी झांक लेती है
होठों पर लग जाते हैं ताले खामोशी के
पर ये उंगलियां सारे जज्बात कह देती है
०२.०७.२०११
न आए तुम मेरी गलियों में और न ये बादल
प्यास बढाती रही मेरे रूह की पल-पल
सजी है हर राह यूं तो बाजारी खुशबूओं से
महक मिट्टी की मिली ना मिली तेरे रूख्सारों की इक पल
जूलाई २०१२
खामोशी से सो गए आज फ़िर ओढकर रात की चादर
सोचा था थाम्होगे तुम मेरा दामन ख्वाबों में आकर
पर हासिल तेरा यहां भी मुकम्मल न रहा
ख्वाब में भी मैं अक्सर तन्हा ही रहा
जूलाई २०१३
बादल आज फ़िर आए थे तुम मेरे आंगन
और बरस कर चले गए
मैं तेरा धन्यवाद भी न कर सका
शायद तुम व्यस्त थे सबकी प्यास बुझाने में
पर कल तुम फ़िर आना
बांहें खोलकर करना है तुम्हारा स्वागत
और भिंगोना है तेरी बूंदों से अपना दामन !
जून २०११
शुक्रवार, 13 जून 2014
तेसर प्रण (कहानी)
आइ
राघव के सिविल सेवा के फ़ाइनल रिजल्ट आबऽ बला छैन एहि लेल काल्हि रातिये सं
हुनकर मोन अकसक्क भेल छैन। एक्को क्षण के लेल निन्द हुनकर आँखि में नहि आबि सकलैन।
किये नै होयन, कैयेक बरष सं जे हुनकर आँखि में
स्वप्न छल से आब हुनका सं मात्र एक क्लिक के दूरी पर छल। कांपैत हाथ सं ओ रिजल्ट
के लेल क्लिक केलाह आ…।
Raghav Jha: All India Rank 24 : Got Selected for Indian Administrative Service.
इ देख हुनकर मन:स्थिति जे भेलैन तेकर व्याख्या नै कैल जा सकै अछि।
हुनका भेलैन जेना हुनका पाईंख लाइग गेल होइन आ ओ दूर आकाश में उड़ल जाइ छैथ। परंच स्वयं
के बिट्ठू काटि क ओ स्वयं के सचेत केलाह। फ़ेर बरबस हुनका नौ बरष पुराण ओ घटना मोन
पैर गेलैन, आजुक स्थिति के जेकर प्रतिफ़ल कहल जा सकै अछि।
तखन राघव दसवीं में गेल छलाह। बाबूजी एकटा सामान्य सरकारी कर्मचारी
छलाह। घर में सबटा मौलिक सुविधा उपलब्ध छल किंतु भोग-विलासिता सं दूरी बनल छल। राघव
के दू टा बाल सखा छलाह – बंटी आ मोंटी। बंटी के पिताजी सेहो सरकारी कर्मचारिये
छलाह, आ मोंटी के पिताजी व्यापारी छलैथ। मोंटी के पिताजी
ओकरा एकटा बढिया विडियो गेम खरीद के देलखिन जकरा देखा देखी बंटी सेहो अपन बाबू सं
कहि क ओहने विडियो गेम खरीदबा लेलक। आब दुनू संगी राघव के खिसियाबऽ लागलैन जे हमरा सब
लग एत्ते निक विडियो गेम अछि आ अहां लग नै अछि। इ सुनि-सुनि राघव बड्ड दुखी भऽ गेल छलाह। ओ बाबूजी
लग जिद्द कऽ
देलखिन जे बाबूजी हमरो लेल अहां ओहने विडियोगेम मंगा दियऽ। बाबूजी हुनका बुझेलखिन
जे बौआ ओ विडियोगेम बड्ड महरग अछि आ एखन किननाइ अनावश्यक अछि,
एखन बहिन जी के इंजिनियरिंग मे एडमिशन कराबऽ के अछि ताहि में
खर्च हेतै। आर काज सब अछि। किन्तु राघव कत्तऽ मानय बला छलाह। ओ
कहलाह जे मोंटी आ बंटी के पप्पो त दियेलखिनये कि नै। एहि पर बाबूजी बाजलाह जे
मोंटी के पापा अमीर व्यापारी छैथ आ बंटी के पापा घुसखोर। हुनका सं आंहा अपन परितर
किये करै छी? एही पर राघव तुनैक क बजलाह जे
एहेन इमानदारी के ल क कि करब जे बेटा के सौखो नै पूरा क सकि! एते बाजि ओ मुंह फ़ुला क ओत से चैल गेलाह। मुदा हुनका आँखि में अखनो
विडियो गेमे नाचि रहल छल।
राति
में ओ तामसे खानो नै खेने छलाह। सुतलि राति में हुनका विचार एलैन जे किये नै
बाबूजी के पर्स चोरा ली आ ओहि में जे पैसा हेतै तहि से विडियो गेम खरीद लेब संगी
संगे जा कऽ
। इ सोचिते ओ उठलाह आ चुप चाप सं बाबूजी के कुर्ता सं हुनकर पर्स निकाइल लेलैथ।
भोरे बाबूजी के इलेक्शन ड्यूटी में जेबा के छलैन। एहि लेल ओ भोरे अन्हौरके पहर
निकैल गेलखिन। हरबरी में ओ अपन कुर्ता के जेबीयो नै चेक केलखिन जै में हुनकर पर्स छलैन
आ पर्स में पाई-कौरी के संग संग हुनकर आई-कार्ड बस पास आदि सेहो छलैन। बस में बैसल
बाबूजी जाय छलाह कि तखने टिकट चेकर सब पहूंचल। बाबूजी सं टिकट मांगला पर ओ जखने
पास निकालऽ
लेल जेब में हाथ दै छैथ त... आहि रे बा पर्स त अछिये नै! आब हुनका भेलैन जे कि करी
नै करी। ओ टिकट चेकर के बात बुझाबऽ के प्रयत्न करऽ लगलाह मुदा ओ मानऽ लेल तैयार नै भेल।
हिनका लग जुर्मानो भरऽ
के लेल पाई नै छल। ताहि समय में मोबाईल फ़ोन के ओहन चलन सेहो नै छल। टीसी हुनका बस
सं उतारि क जिरह करऽ
लागल। अस्तु ई मामिला के कहुना सल्टिया कऽ कहुना कहुना बाबूजी ड्यूटी पर
पहूंचला। मुदा समय पर इलेक्शन ड्यूटी पर नहीं पहूंचऽ के कारण अधिकारी
हुनका पर काज में लापरवाही के चार्ज लगा हुनका सस्पेंड क देलकैन। दुखी मन सं
बाबूजी घर पहूचलाह आ मां के सबटा बात बता क पुक्कि पारि क कानय लगलाह। एहि बीच
राघव सेहो कत्तौ संऽ
खेलैत-कुदैत घर पहूचलैथ। पहिने त हुनका माजरा किछु बुझना में नै एलैन,
मुदा बात बुझला उत्तर त जेना हुनका काटु त खून नै। आत्मग्लानी सं ओ
डूबल जा रहल छलाह। होय छलैन जे धरती फ़ाईट जाय आ हम ऐ में समा जाय। सोचय लगलाह जे
आइ हमरा कारण से बाबूजी के सस्पेंड होबऽ परलैन आ बदनामी से
अलग। किछु क्षण त हुनका अपना आप सं, जिनगी
सं घृणा होमय लगलैन, रंग रंग के नाकारात्मक खयाल आब लागलैन। खन
होइन जे फंसरी लगा ली। खन होइन जे नदी मे जा डूबी। मुदा फ़ेर ओ अपना आप के
सम्हारलैथ आ अपना आप सं कहलखिन जे हमरा सं आई बड्ड पैघ अपराध भेल अछि जेकर भोग बाबूजी
के आ पूरा घर के भोगऽ पड़त। मुदा हम डरपोक नै छी। हम एहि अपराध के प्रायश्चित करब।
मुदा राघव के इ हिम्मत नै भेलैन जे ओ सबटा सच्चाई बाबूजी के जा कऽ बता दितेथ। तथापि
राघव तत्क्षण तीन टा प्रण लेलैन:
1. जिनगी में कखनो कोनो प्रकार के चोरी नै करब।
2. कखनो कोनो अनावश्यक मांग नै करब।
3.
बाबूजी के आई.ए.एस बनि क देखायब आ तखन एहि अपराध के लेले क्षमा मांगब।
तखन
फ़ेर राघव बाबूजी के पर्स के अति गोपनिय रूप सं राखि देलैथ। ओ दिन अछि आ आइ के दिन
अछि,
राघव सदिखन अपन दुनू प्रण के पालन केलैथ अछि आ प्रतिपल अपन तेसर
प्रण के पालन करै के लेल प्रयत्नशील रहलैथ अछि। आ आई ओ दिन आबिये गेल, जखन हुनक ‘टेसर प्राण’ पूर्ण होमय
जा रहल छल।
इ सब सोचैत सोचैत राघव के आँखि सं खुशी के नोर बहऽ लागलैन।
ओ ओत स सीधे बाबूजी के पर्स निकालऽ गेलैथ। आ फ़ेर गेलाह बाबूजी के इ खबर सुनाबऽ। आइ-काल्हि इंटरनेट के जमाना अछि आ कोनो न्यूज फ़ैलबा में मिनटो कत्तऽ लागै अछी। बाबूजी के आन लोक सब सं खबर भेट गेलैन जे हुनकर बेटा गाम-समाज के नाक उपर केलैथ अछि आ मिथिला के नाम आर रौशन। बाबूजी खुशी में झुमैत राघव के सामने एलैथ। आब राघव के अपना आप के रोकनाइ भारि मुश्किल भऽ गेल छल। ओ बाबूजी सं लिपैट कऽ जोर जोर सं कानऽ लागलैथ। हुनका आँखि सं गंगा-यमुना बहय लागलैन। बाबूजी कहलखिन दुर बताह तों गाम-समाज के एते नाम केलैं आ एना बताह जेकां कानि किये रहल छैं! आब राघव कानैत कानैत नौ बरष पहिने के सबटा घटना सुनाबऽ लगलाह। आ अंत में बाबूजी के ओ पर्स निकालि क देलखिन। आब सभटा ग्लानि सभटा अपराध बोध समाप्त भऽ गेल छल। नोरक बसात में सब साफ़ भऽ गेल छल। जेना लागै छल जे घनघोर घटाटोप के बाद फ़रिच्छ भऽ गेल छल।