रविवार, 9 अक्टूबर 2016

नव आशा (मैथिली कथा)

मीरा आई पहिल बेर हवाई जहाज के यात्रा  रहल छलीहपटना सं बैंगलोर वाया दिल्ली  पटना सं   दिल्ली पहूंच गेल छलीह  मुदा दिल्ली से बैंगलुरू  फ़्लाईट दू घंटा बाद छल  मीरा इंदिरा गांधी हवाई अड्डा के प्रतीक्षालय में बैसल इंतजार  रहल छलीह । दरअसल बात  छल जे  अपन एकटा छात्रा आशा  विवाह में शामिल होई खातिर बैंगलुरू जा रहल छलीह  मीरा के विशेष रूप सं आशा न्योत देने छल  हिनका लेल न्योत के संगहि हवाई-जहाजक टिकट पठौने छल   सब सं विशेष गप्प  जेजै फ़्लाईट सं मीरा दिल्ली सं बैंगलोर जाई बला छैथ ओकर पाईलट आर कियौ नै बल्कि आशा  होमय बला वर आकाश कुमार छैथ  बैसल बैसल मीरा  मोन अतीत  यात्रा करय लागलैन। 

मीरा गामक मध्य विद्यालय में शिक्षिका छथिन  एकटा निक शिक्षिकाजे धिया-पुता के खुब मानै वाली  बात किछु १५ – १६ बरष पहिले के आछि  मीरा शिक्षिका के व्यवसाय के अपनौने छलिह   मूल-मंत्र के संगे जे "सब बच्चा भगवतीक संतान थीक  ओकरा लाड-दुलार केनाई मनुक्खक कर्तव्य किन्तु हुनकर कक्षा में एकटा बचिया आबै छल जेकर नाम छल "आशा आन बच्चा सब  ठिक-ठाक सं रहै छल  मुदा आशा नै ढंग सं स्कूलड्रेस पहिरै छलनै ओकर किताब-बस्ता ओरियाईल रहैत छल  नै माथ मे तेल देने नै ठिक सं केस थकरने। मैल-कुचैल में लपटायल सब देख मीरा के ओकरा  घीन आबै छल    चाहितो ओकरा नै ठीक सं पढा पाबै छलिह  नै ओकरा सं दुलार  पाबै छलिहअपितु यदा-कदा ओकरा दुत्काइरियो दै छलखिन  मुदा मीरा के अपन  व्यवहार पर कखनो काल आत्मग्लानियो होई छलैन  एक दिन अपन  समस्या मीरा विद्यालयक हेड-मास्टर साहब सं साझा केलैन  "सर अहां कहै छी जे सब बच्चा भगवतीक संतान थीक  ओकरा लाड-दुलार केनाई मनुक्खक कर्तव्य।हम  विचार के मानै छी  मुदा अही कहु जे औइ बच्ची सं हम कोना  दुलार  सकै छि जे नै ढंग से कपडा पहिरै अछि  नै जेकरा साफ़-सफ़ाई के कोनो लिहाज अछि विद्यालयक हेड-मास्टर श्री शशिभुषण झा बड्ड सौम्य व्यक्तित्वक इंसान छालाह   मीरा  सभटा बात सुनि  कहलैथ : "मीरा अहां ओई बचिया  समस्या देखलौं मुदा की अहां औई समस्या  कारण बुझबा  चेस्टा केलहुंअहां  बुझबा  प्रयत्न केने रहितौं  अहांक  आई  बातक असोकर्ज नै रहत छल जे अहां अपन कर्तव्य  पालन निक सं नै  पाबि रहल छी   बच्ची एकटा दुखियारी बच्ची अछि जेकर बाबू दिहाडी मजदूर अछि  माई कैंसर सं पीडीतआब अहां कहू जे एहन स्थिति में ओकर ठीक सं परिचर्या के करत  सब मे  बच्ची के कोन दोष ? मीरा ! चिक्कन-चुनमुन  सुन्नैर नेना सब के  सभ केयौ दुलार  लै अछि मुदा आशा सन जे इश्वरक संतान अछि ओकरा जे दुलार  पाबै अछि वैह इश्वरक सच्चा सेवक होई अछि  कीअहांक अखनो कोनो आशंका या असोकर्ज अछि? " मीरा  अपन सभटा प्रश्नक जवाब भेट गेल छल    अपन कमीयो के चिन्ह लेलखिन   आब समय छल ओई कमी सं पार पाबैक  मीरा आब अपन सभटा ज्ञान  दुलार आशा पर उझैल देलखिन  ओकर पढाई-लिखाईकपडा-लत्तातेल-कूड सबहक ध्यान  राखय लागलखिन  कालान्तर में आशा  माई  देहांत  गेल छल   आशा सेहो मीरा  छत्रछाया में बरहैत मैट्रीक  नेने छलीह।  मैट्रीक  परीक्षा में सम्म्पूर्ण जिला में टा̆ केने छलीह  डीएम साहब आशा के एहि उपलब्धि लेल अपन हाथ सं सम्मनित केने छलथिन  मुदा   कामयाबी  पहिल सीढी छल। अखन  आगा कामयाबीक अनेको पिहानी लिखेनाई बांकिए छल 

मैट्रीक के बाद आशा के पोस्ट मैट्रीक स्कालरशीप सेहो भेंट लागलमुदा आब हुनक बाबूजी हुनक विवाह  सुर-सार में लागि गेलाह ।  बात कनैत-कनैत आशा मीरा के बतौने छल  मीरा ओकरा ओहि दिन बड्ड मोश्किल सं चुप्प करेने छलीह  " ऐंगे एहि लेल तो एना कनै किएक छैं  हम बुझैबैन ने तोरा बाबू के   बुझियो जेथुन। हम मस्टरनी जे बनलहुं से कथि लेलएं हमर  काजे अछि लोक के निक-बेजाय बुझेनाइ।  हम केह्न-केहन के  बुझा  पटरी पर आनने छी  अहां  बड्ड होशियार नेना छि आहां  आगा बड्ड परहब  पैघ डा̆क्टर बनब।मीरा के द्वारा सान्त्वना के लेल कहल गेल  वाक्य सब आशा  मोन मे घर  गेल छल 

मीरा आशा  बाबूजी के बजौली  हुनका कहल्थिन  जी अहांक भगवत्ती ̨पा केने छैथ जे एत्तेक निक बेटी देलीह जे मैट्रीक परीक्षा में समुचा जिला में प्रथम आबि अहांक संगहि गाम-समाजक सेहो नाम केलक अछि   अहां एकरा पैर में विवाहक सीकडी बान्हय चाहै छी ! आशा  बाबू कहलखिन "देवीजी अहां कहै  ठीके छि मुदा हम गरीब अनपढ लोक छी दिहाडी मजूरी पर जिबय बला  आगा-पाछा कियौ अछियो नै सम्हारै बलामाय एकर पहिनहि छोडि  चल गेल अछि। एना में अहीं कहू जे बेटी  बाप होमय के नाते हम एकर विवाह कय एकर घर बसा देबाक विषय में सोचै छि से कि गलत करै छिमीरा कहलखिन अहां अपन सक भैर  निके सोचै छी मुदा एहि सं आगा बरहु। आशा कोनो साधारण बालिका नै अछि। ओकरा में समाज के आगां बढाबै के सामर्थ अखने सं देखबा में आबि रहल अछि  ताहि लेल अहां  निजी समस्या से आगा सोचबा के प्रयत्न करू  एखन ओकरा पढाई के समर्थन लेल एकटा छात्रव̨त्ति भेलट अछिआगा आर कैयेक टा भेटत जै के बल पर  आगा अपन पढाई  जिनगी में स्वाबलंबी  जेतिह  तहु सं जौं अहां के भरोस नै अछि  अहां के हम वचन दै छि जे आइ सं आशा  सभटा भार हम उठब लेल तैयार छी  एहि प्रकारे येन-केन दलील सं मीरा आशा  बाबू के राजी  नेने छलिह  आब आशा के नाम इंटर में लिखा गेल छल  दरिभंगा में रहि   सी एम साइंस कालेज सं इंटर  पढाई कर लागलीह  संगहि मेडिकल प्रवेश परीक्षा  तैयारी सेहो  अपन खर्च निकाल लेल  ट्यूशन पढेनाई सेहो शुरू  देने छलि  संगही जरूरत पडला पर मीरा  मार्गदर्शन  सहयोग सेहो भेट जाई छलैन  एही प्रकारे मीरा  मार्गदर्शनआशीर्वाद  अपन मेहनत-लगन के फ़ल आशा   भेटलैन जे  इंटर के संग बीसीईसीई परीक्षा सेहो पास  गेल छलिह  दरभंगा मेडिकल कालेज में हुनका एमबीबीएस पाठ्यक्रम में प्रवेश भेंट गेल छल  आब आशा नव पंख लगा  सफ़लता  नव ’आकाश’ में उड लेल तैयार छलिह  

दिन बितैत गेल  क्रमशआशा एमबीबीएस कय  डाक्टरी के प्राथमिक डिग्री प्राप्त  लेलीह संगहि पीजी चिकित्सा प्रवेश परीक्षा में निक रैंक आनि   जीपमर में एमडी मेडीसीन के पाठ्यक्रम में सेहो प्रवेश पाबि गेलीह  एहि प्रकारे पीजी केलीह  आई नरायणा ह्रुदयालया बैंगलुरू में डीएनबी(कार्डियोलोजी) क टैनिंग के संग सिनियर रेसीडेंसी क रहल छैथ  समय के एहि कालक्रम में आशा  संपर्क मीरा सं धीरे धीरे कम होइत चल गेल छल  मुदा आशा अपन मूल्य  संसकार के सम्हारने छलिह  सफ़लता  एहि आकाश पर चढला के बावजूद  अपन वजूद  ओकरा बनब वाली अपन गुरूआई के नै बिसरल छलिह  स्वाईत  बातचित के क्रम में अक्सर आकाशजी से मीरा दीदी के चर्चा केने नै थाकै छलिह   अक्सर कहै छलि जे हमर विवाह में क्यों आबै कि नै आबै मीरा दीदी के  बजेबे करबै   आकाश मजाक में उत्तर दै छलखिन जे अहां चिंता जुनि करू अहांक मीरा दीदी के  हम अपने जहाज पर चढा  नेने चलि आयब नै  अहांक कोन ठेकान जे बियाहे करैसं मना  दी !

 सब सोचैत सोचैत अचानक माईक पर विमानक अनांसमेंट सुनि  मीरा  भक खुजलैन   अपन समान उठा  चेकईन के ले विदा  गेली 

शनिवार, 8 अक्टूबर 2016

सर्जिकल स्ट्राइक


सिंधु तट पर शेर की हुंकार है यह
दुश्मनों पर वज्र का प्रहार है यह
सुनो सुनो आतंक को ओ पालनेवालों
वीरों का है देश भारत, ना समझो लाचार है यह

अब टूटा है बांध संयम का कदाचित
आक्रमण ही है श्रेष्ठ और है उचित
वीर वो क्या जो बिना लडे. ही मरे
वीरता का है सम्मान, विजय या वीरगति

थी मिली हमको स्वतंत्रता साथ ही अभिशाप यह
रह सका न छोटे भाई की तरह मिल साथ वह
नित नई साजिश रची जिसने हमारे देश में
हो सफ़ल पाया नहीं कभी भी अपने उद्देश्य में

चंद आतंकी पाल कर जो हमें डराने चला
मान उसको नादान हमने फ़िर भी किया उसका भला
मरूभूमि के तूफ़ान का अब रूख बदलना चाहिए
                                चाहे जो हमें बर्बाद करना उनको सबक मिलना चाहिए

शनिवार, 1 अक्टूबर 2016

अलर - बलर (मैथिलि बाल-कविता)

 
 
 
 मालिक – नौकर हम नै बुझी
आटा चोकर हम नै बुझी
खेल – बुझौअल में छी पारंगत
अपन – अनकर हम नै  बुझी

आमक गाछी दौड़बे करब
खेतक छिमि तोड़बे करब
कब्बै – मांगुर के लालच में
बंसी ल क बैसबे करब

बाबा गेलखिन हरवाही पर
कक्का गेलखिन सुनवाही पर
गर्मी छुट्टी में आम क गाछी में
बैसल छी हम ओगरवाही पर

बाबू के नै पसिन्द छैन लालू
कहै छैथ ओ अछि बड्ड चालू
आंगन में मां बडी काल सं
पका रहल अछि सहजन-आलू

हरवाहा सब हर जोतै अछि
चरवाहा सब मुंह दूसै अछि
बैट-बा̆ल ल क छौंडा सब
चौका-छक्का खूब जड़ई अछि ।

कंसार क भूंजा फ़ांक़बे करब
एम्हर-आमहर झांक़बे करब
दाय-माय के डेरबय खातिर 
कुकूर जेकाँ भुंकबे करब

माँ के बात सेहो बुझब
सोझा इस्कूल जेबे करब
पानि पीब लेल मुदा दू मिनट 
चापा कल पर रुकबे करब 

कोठा पर हम सुतबे करब
मना करय पर रूसबे करब
इस्कूल क सबक याद कर लेल
भोरका पहर उठबे करब

पीसा कहै छैथ पायलट बनिह
मामा कहै छथि डा̆क्टर बनिह
जिनका जे कहबा क कहौथ ग
हम जे चाहै छि से बनबे करब
आर किछु बनी वा नै बनी
निक मनुख हम बनबे करब

शनिवार, 2 जुलाई 2016

एकटा भगवती गीत (भास : जुदा हो के भी तू मुझमे कहीं बाँकी है - फिल्म कलयुग)

निरीह माँ हम, अहिंक बाट ताकै छी
जीवन में बनिक सुख-शांति
किये नै अहाँ आबै छी. निरीह माँ हम

जी रहल छी माँ हम एतय, आहिं भरोसे
भय आ कष्ट भ रहल अछि ह्रदय में
माँ चरण में अहिंक जीवन अर्पण केने छी
अम्ब अहिं छी भयहारिणी भवतारिणी
निरीह माँ हम, अहिंक बाट ताकै छी
जीवन में बनिक सुख-शांति
किये नै अहाँ आबै छी. निरीह माँ हम

छी बसल अम्ब अहाँ हमर ह्रदय में
मनोरम अहाँक छवि हमर नयन में
पुत्र छी माँ हम अहिंक जुनि बिसरियौ
अम्ब अहिं छी भयहारिणी भवतारिणी
निरीह माँ हम
माँ ..........श्यामा काली माँ-२ सुनु विनती माँ
उबारो हे माँ -२ बचाउ हे माँ .......
अम्ब अहिं छी भयहारिणी भवतारिणी
निरीह माँ हम

शुक्रवार, 17 जून 2016

Ram Vs Gangaram (राम बनाम गंगाराम)

यह वाकया मेरे बचपन की है जब मेरे बाबा (दादाजी) गुजर गए थे । उनके श्राद्धकर्म के दौरान गांव के प्रतिष्ठित रामनंदन पंडितजी रोजाना संध्याकाल गरूड पुरान की कथा बा̐चते थे । ये कथाएं काफ़ी रोचक और विस्मय से भरे हुआ करते थे ।  अत: मैं इन्हे खूब दिलचस्पी लेकर सुना करता था । इन्ही कथाओं के दौरान एक दिलचस्प प्रसंग आया जिसका सार निम्नानुसार था :

एक नगर में गंगाराम नाम का एक धनी सेठ रहा करता था । धर्म-कर्म में उसका कितना विश्वास था ये कह नहीं सकते किन्तु उसे अपना गुणगान सुनना एवं चाटुकारी  बहुत पसंद था । यह बात नगर के लोगों को मालूम था । एक बार उस नगर में कहीं से दो साधू आए । उन्होने कुछ दिन उस नगर में बिताने का निश्चय किया था । रोजाना लोगों से भिक्षा मांगकर लाते और जो रूखा-सूखा मिल जाता उससे अपना काम चलाते । इसी क्रम में उन्हे लोगों से ये मालूम हुआ की सेठ गंगाराम से उन्हे बहुत कुछ भिक्षा में मिल सकता है, किन्तु उन्हे इसके लिए उसका गुणगान एवं चापलूसी करना पर सकता है । पहला साधू सच्चे मन से साधू था अत: उसका मन ईश्वर में ही रमा रहता था जबकी दूसरे साधू को सांसारिक विषय-मोह ने घेर रखा था, अत: उसने निर्णय किया कि आगे वो भिक्षागमन के समय सेठ गंगाराम का गुणगान किया करेगा । अत: आगे से वो भिक्षागमन के समय गाता फ़िरता था कि "जिसको देगा गंगाराम उसको क्या देगा राम !" उसको इसका फ़ल भी मिला कि उसे गंगाराम एवं उसके चाटुकारों से अच्छी-खासी भिक्षा मिलने लगी और उसके दिन मजे में कटने लगे । किन्तु पहले साधू का मन राम में ही रमा रहा और वो गाता फ़िरता "जिसको देगा राम उसको क्या देगा गंगाराम!", भले ही उसे भिक्षा में रूखा-सूखा ही मिल रहा था । एक दिन गंगाराम ने सोचा कि ये दूसरा साधू सारे नगर में घूमघूम कर मेरा बहुत गुणगाण कर रहा है, जबकि पहलेवाला रामनाम की धुनी ही रमाता रहता है । इसलिए क्यों न इस दूसरेवाले साधू को मालामाल कर दिया जाए और पहले वाले को सबक सिखाया जाए । अत; उसने एक बडा सा तरबूजा मंगवाया और उसके अंदर ढेरसारी असर्फ़ी भरवा दी । फ़िर उसने दूसरे साधू को बुलवाया और उसे भिक्षा में वो तरबूजा दे दिया । यह देखकर दूसरे साधू को बहुत क्रोध आया कि मैने इसका इतना गुणगान किया और ये इसके बदले मुझे बस एक तरबूजा दे रह है ! ’खैर’ उसने वो तरबूजा एक फ़लवाले को दो रूपए में बेच दिए । संयोग से उस दिन पहले साधू का उपवास था । फ़लाहार के लिए वो फ़लवाले के पास गया और पांच रूपए देकर वही तरबूजा उसने खरीद लिया । आश्रम पहूंचकर जब उसने तरबूजे को काटा तो उसकी आ̐खें फ़टी रह गई । वो यह देखकर हैरान रह गया कि तरबूजे के अंदर स्वर्ण अशर्फ़ियां भरी हुई थी । इस प्रकार ’रामजी’ की क̨पा से पहला साधू धन-धान्य संपन्न हो गया था ।


आज भी मेरे मन:स्थल के समरक्षेत्र में राम और गंगाराम का संघर्ष जारी है और फ़िलहाल गंगाराम का पलडा भारी लग रहा है, किंतु ह̨दय क्षेत्र में कहीं राम के विजय की उम्मीद जगी हुई है ।  

सोमवार, 13 जून 2016

बुभुक्षा – लघु व्यंग कथा

एक सज्ज्न अक्सर एक ऐसे पथ से गुजरते थे जहां उन्हे बुभुक्षित मिल जाते थे । सज्जन व्यक्ति होने के नाते वो हमेशा ही उन्हे खाने को कुछ न कुछ दे दिया करते थे । एक दिन उनके साथ एक मित्र था जिसने उन्हे भुखों को खाना देते देखा । देखते ही मित्र ने सज्जन का हाथ पकडा और कहा "ये आप क्या कर रहे हैं!" सज्ज्न ने मित्र से कहा कि ये बेचारे भुखे हैं और खाना खाने से इन्हे त्रिप्ति मिलेगी , अत: सक्षम होने के नाते यह मेरा कर्तव्य है कि इन्हे खाना दूं । इस पर मित्र ने कहा कि इससे तो केवल इसके शरीर को त्रिप्ति मिलेगी जो की क्षणिक है । इससे अच्छा है कि इन्हे अच्छे भाषण सुनाओ, दिवास्वप्न दिखाओ जिससे इसके तन को नहीं बल्कि इनकी आत्मा को त्रिप्ति मिलेगी । सज्जन ने मित्र की बात को हल्के में लिया तो मित्र ने कहा रूको मैं दिखाता हूं । ऐसा कहकर मित्र ने उनलोगों को एक जबर्दस्त भाषण सुनाया जिससे उन भुखों के रोम रोम पुलकित हो उठे और उनके रूह तक उत्साहित हो उठे । जिससे वो अपनी भुख-प्यास तक भुल बैठे । अब मित्र अक्सर ही उन भुखों की आत्मा को अपने रसीले भाषण और दिवास्वप्न से नहलाने लगा था । किन्तु दिन बदिन उन बुभुक्षितों की क्षुधा बढती ही जा रही थी और एक दिन उनके धैर्य ने जवाब दे दिया और तब जब मित्र उनके आत्मा की क्षुधा मिटाने आए तो भुखे से रहा नहीं गया और उन्होने उचक कर मित्र की दाढी नोच ली ।

रविवार, 12 जून 2016

देखो एनबीई ने कायम की मिसाल रसीया

आया साल ७५,
भारत में स्वास्थ्य सेवाओं का हाल हुआ था बद्तर
खाली पडे. थे अस्पताल और
मिलते नही थे डाक्टर

तब श्रीमती इंदिरा गांधी
ने एक समिति बनाया
जिसकी अनुसंशा पर
एनबीई का गठन करवाया

करने स्नातकोत्तर डाक्टरों की
फ़ौज तैयार रसिया
देखो एनबीई ने कायम की मिसाल रसीया
जोरदार रसिया, बेमिसाल रसिया

विदेशी चिकित्सा स्नातक
बनने लगे थे घातक
बिना ग्यान की डिग्री भाई
कामयाब हो कहां तक ?

तब सुप्रीमकोर्ट आगे आया
स्क्रीनिंग टेस्ट रेग्युलेशन लाया
एमसीआई में पंजीकरण के
नए नियम बनाया

बनाया एनबीई को एफ़एमजी
करवाने का जिम्मेवार रसिया
देखो एनबीई ने कायम की मिसाल रसीया
जोरदार रसिया, बेमिसाल रसिया


डीएनबी एडमिशन
होता था बिना परमिशन
भाई-भतीजे से भरने लगे थे
अस्पताल और इंस्टीच्युशन

एनबीई ने तब सोचा
कुछ तो है भाई लोचा
पारदर्शिता लाकर क्यूं न
बंद करें ये सिस्टम ओछा

बनाया केंद्रिक्रित कांउसेलिंग को
प्रवेश का आधार रसिया
देखो एनबीई ने कायम की मिसाल रसीया
जोरदार रसिया, बेमिसाल रसिया


हमने भलीभांति ये जाना
अगर है ग्यान बढाना
बडे. शोधकर्ताओं को होगा
आपस में मिलवाना

इसीलिए तो हाए
एनबीई ने किए उपाय
बडी संस्थाओं में जाकर कितने ही
सीएमई और कान्फ़्रेंस कराए

बढाया डीएनबी ट्रेनी और शिक्षकों
का ग्यान रसिया
देखो एनबीई ने कायम की मिसाल रसीया
जोरदार रसिया, बेमिसाल रसिया


वर्ष २०१२ आया
एनबीई ने परीक्षाओं में
नए तकनीकि अपनाया
एमसीक्यू परीक्षाओं को
पेपरलेस बनाया
प्रोमेट्रीक से करार करके
सीबीटी ले आया

करने झटपट रिजल्ट तैयार रसिया
देखो एनबीई ने कायम की मिसाल रसीया
जोरदार रसिया, बेमिसाल रसिया


पोस्टग्रेजुएट एडमिशन
बन गया था टेंशन
नए छात्रों के प्रवेश में कैसे
खतम करें करप्शन!
एनबीई तब आगे आया
नई योजना लाया
सरकारी तंत्र से मिलकर
नया समीकरण बनाया

लेकर आया तब एआईपीजीएमई
की सौगात रसिया
देखो एनबीई ने कायम की मिसाल रसीया
जोरदार रसिया, बेमिसाल रसिया


रुका यहीं नही भाया
एनबीई ने देश-विदेश में
अपना लोहा मनवाया
अंतर्रष्ट्रीय मंच पर भी
अपने कदम बढाया
मोरिसस में जाकर
डेंटल का एक्जाम कराया

किया सीजीएचएस भर्ती भी
कामयाब रसिया
देखो एनबीई ने कायम की मिसाल रसीया
जोरदार रसिया, बेमिसाल रसिया



ऐसा समय भी आया
डीएनबी ने देश विदेश में
ऐसा नाम कमाया
बनाया डीएनबी को तब
बराबरी का हकदार रसिया
देखो एनबीई ने कायम की मिसाल रसीया
जोरदार रसिया, बेमिसाल रसिया

मनाया एनबीई ने अपना ३४वां साल रसिया
जोरदार रसिया, बेमिसाल रसिया

(२९.०२.२०१६)