रविवार, 22 अप्रैल 2018

एकटा जन्मेजय कथा (व्यंग) - Ek Janmejay Katha(Maithili)

ओना महाभारतs सबटा कथा सब युग के लेल प्रासंगिक रहल अछि, एहि क्रम में राजा जन्मेजयक एकटा कथा सेहो आजुक समय के हिसाब सं खूब प्रासंगिक अछि.

राजा जन्मेजय अर्जुन के पोता राजा परीक्षित के बेटा उत्तराधिकारी छलाह. एक बेर राजा परीक्षित कलयुगक प्रभाव सं ग्रस्त s मरल सांप केर माला बनाय ऋषि शमीक के गर में s हुनकर अपमान देलखिन. अपमान सं ऋषि के बेटा श्रृंगी पित्तिया गेलाह. पित्ते आमिल पिने छलाह अपन बाबू के अपमानक बदला लेबय के ठानि नेने छलाह. एहि के लेल नागराज तक्षक के बजाय, राजा परीक्षित के ठिकाना लगाबय के सुपारी देलखिन. बस तखन की अर्जुन सं पराजित अपमानित तक्षक एहने मौक़ा के बाट जोहैत छलाह, स्वाइत सुपारी उठब में कोनो कौताही नै रखलाह सही मौक़ा पाबि परीक्षित के 'मर्डर' देलाह. परीक्षित केर मर्डर के बाद हुनकर बेटा जन्मेजय गद्दी पर बैसलाह. बापक ह्त्या के सभटा पिहानी जानलाक बाद हिनका मोन  में बदलाक भावना प्रज्ज्वलित गेलैन तक्षक सहित सभटा नाग के समूल नष्ट करै के ठानि लेलैथ के लेल सर्प यज्ञ करेलैथ मुदा 'मर्डर' के मास्टरमाइंड यानी ऋषि श्रृंगी के छोड़ि देलखिन.

"आब एकटा 'बाबा' से के पंगा लै! बदले लै के छैक तक्षके सं लैत छी ओकर समूल नाश दैत छी." ( सकै अछि एहने किछु विचार हुनका मोन में आयल हेतैन, यद्यपि तरहक बात महाभारत में आधिकारिक रूप सं कतौ ने देखलहुँ पढ़लहुँ अछि).

हं भेल एना की सर्प यज्ञ में एक-एक के सभटा निर्दोष सांप सब खासि खसि भस्म होमय लागल. ओकरा सब के पतो नै छल जे ओकर सब के दोष की छैक जेकर सजा ओकरा सब के भेंट रहल छल. खैर. हजारो-लाख सांप के मुइला के बाद जखन तक्षक केर पारि एलै तखन पता नै कुन देवता-पित्तर से सेटिंग के आस्तिक नामक एकटा ब्राम्हण के भेज के सर्प यज्ञ रुकवा देलक तक्षक केर जान बचि गेल. कहल जाय छैक जे एकर बाद जन्मेजय तक्षक दुनू बर्षो-बरख जिबैत रहलाह अपन-अपन राज-पाट के भोग केलाह. कहाँदैन कहल जायछि जे तक्षक केर बाद में इन्द्रक दरबार में सेहो बड्ड निक पैठ बनि गेल छल. तरहे देखल जाय मास्टरमाइंड ऋषि श्रृंगी, एक्सीक्यूटर तक्षक बदला लै पर उतारू जन्मेजय के किछु नै भेल मुदा सब प्रक्रिया में मारल गेल बेचारा हजारो-लाख निर्दोष सांप सभ जेकर एकमात्र अपराध जे तक्षक के समुदाय से छलाह.

उपसंहार: आजुक समय में एहि कथा के प्रासंगिता चिन्हियौ विचार करियौ, अहाँ बुद्धिजीवी छी

बुधवार, 7 मार्च 2018

तृषा (मैथिली खिस्सा)


हेलो! हँ, की हाल छै? फोन पर दोसर दिस तृषाsक मधुर आवाज छल
'ठीक छी. अहाँ कहु' अविनाश प्रतिउत्तर में बाजल छलाह.
"अच्छा सुनु ने, अहाँ जे कहने छलौं जे रवि दिन हमरा जीआईपी घुमाब ल जाय चाहैत छी से हम नै आबि सकब. से की अहाँ हमरा काल्हिखन लाजपत नगर मार्केट ल क चलि सके छी? " कुशल-क्षेम क औपचारिकता के बाद तृषा बजलीह.
"मुदा अहाँक बर्थडे त रवि दिन अछि की ने! आ हमर छुट्टियों. काल्हि त हमर ऑफिस रहत. "
"नै नै, रवि दिन हमर घर में पाहुन सब औथिन तैं हम नै आबि सकब. अहाँक ऑफिस त नेहरूए प्लेस में अछि, कनि काल के लेल छुट्टी ल क त आबिए सके छी." तृषा प्रतिउत्तर में बाजल छलीह.
"चलु ठीक छैक, हम आबि जायब." अविनाश तृषा सँ भेंट करै के इ अवसर छोड़ै नै चाहै छलाह तैं अनमनायल  मोनसँ इ बजलाह.
"चलु तखन डन रहलै काल्हि एगारह बजे हँ, राखै छी बाय." इ कहैत ओम्हर सँ फोन काटि देल गेल छल.
आ अविनाश काल्हिखन ऑफिस में की बहाना बनायब, तृषा संगे कत कत घुमब की की कीनब, की की खायब, की की गप्प करब, ओछाओन पर पड़ल-पड़ल यैह सब सोचैत नींद परि गेल छलाह.
अगिला दिन ओ ऑफिस सँ जल्दिए बंक मारि क लाजपत नगर बस स्टॉप पर पहुँच गेल छलाह. ओत्त आशा-बेरिया तकैत तकैत दू बार फोन क चुकल छलाह तृषा के आ ओ सब खन एक्कैटा जवाब देने छलीह जे हैया दू मिनट में पहुँच रहल छी.
ओह! सॉरी सॉरी, बेसी काल इंतज़ार त नै कर पड़ल ने? उफ्फ! कत्तेक कड़गर रौद छैक, हमरा त आबहो के मोन नै होय छल, अब चलु झट द रिक्शा क लिय...बस सँ उतरैत देरी तृषा मुंह बनबैत एक सांस में इ सब बाजि गेली.
'ठीक..इ बजैत अविनाश ठामे ठाढ़ एकटा रिक्शा केलाह आ दुनू गोटे ओय पर चढ़ि के विदा भेलाह.

"चलु पहिने कत्तौ चलि के किछु खाय छी" खेबा-पियबा के क्रम में किछु गप्प-सरक्का हेतै इ सोचैत अविनाश इ बाजल छलाह. मुदा तृषा बात कटैत बजलीह.. "अरे नै हम घर सँ जलखै क के चलल छी. पहिने चलु चलि क हमर गिफ्ट दियाउ."
ठीक छै चलु तखन पहिने सैह सही...अविनाश मोन मारैत बजलाह.
"चलु ओय दोकान में चलै छी, ओ लहंगा चुनरी के स्पेशलिस्ट दोकान अछि...इ कहैत तृषा अविनाश के हाथ  पकड़ने एकटा दोकान दिस झटैक के जाय लागल छलीह.
तृषा के हाथsक स्पर्श सँ अविनाश केर रोम रोम स्फुरदीप्त भ गेल छल.
दोकान में पहुंचला पर तृषा एकटा सेल्समेन के कहली जे भैया एकटा निम्मन सूट देखाउ.
"इ देखु अनारकली, इ पटियाला सूट, इ हिना सूट, इ चूड़ीदार, इ फ्रॉक सूट ....." सेल्समैन हिनका दुनू के भाँती भाँती के सूट देखाबय लगलैन.
"इ दिवागर अछि, अहाँ के केहन लगै य ?" एकटा सूट छाँटि क तृषा अविनाश के पुछलखिन.
"अहाँके पसिन्न परल त नीके हेतैक" अविनाश एक नजैर सूट दिस दैत सर्द आवाज में बाजल छल.
"इ पर्पल बला सेहो बड्ड दिवगर लगै अछि, मोर्डर्न स्टाइल में छैक. की हम इहो ल ली?" बिहुँसैत तृषा अविनाश से बजली.
"ठीक छै, ल लिए" अविनाश भावुक स्वरे बजलाह.
"देख लिए फेर इ नै कहब जे मुंहझौसी खर्चा करा देलक" उतराचौरि करैत तृषा बजली
"ईह भायजी के करेज बड्ड नम्हगर छैन, मैडम अहाँ पाईsक फिकिर किएक करै छी, सेल्समैन सह दैत आ खरीदारी के लेल प्रेरित करैत बाजल छल.

"अरे कोनो बात नै छैक अहाँ ल लिए ने. श्रीमान इ कतेक टाका के छैक? दुनू केसंयुक्त रुपे सम्बोधित करैत अविनाश बाजल छलाह.
"इ अनारकली बला आठ हजार के आ इ पर्पल वाला मोर्डर्न सेट मात्र चारि हजार टाका के अछि" सेल्समैन दामक हिसाब लगबैत बाजल.
"हौ भाय डिस्काउंट कतेक देबहक?" तृषा मोल-जॉल करैत बजलीह
सेल्समैन बाजल जे डिस्काउंट कैये के बजलहुँ अछि मैडम जी. एम्हर तृषा ओ सेल्समैन से मोलजोल करय लगली आ ओम्हर अविनाश मोने मोन पाईsक हिसाब लगाबय लागल छल - जेबी में मिला जुला के चारि हजार टाका छल आ डेबिट कार्ड में तेरह हजार! चलु डेबिट कार्ड से लाज त बाँचि जायत. बांकी आगा कोना के गुजारा कैल जेतै से बाद में सोचल जेतैक.
डेबिट कार्ड से पेमेंट क के दुनू कपड़ा पैक कराक दुनू गोटे ओतय स बहरायत गेलाह. आगा बाजार में घुमैत तृषा बजली जे सुनु अविनाश एकटा बात कही?
दू टा ने कहु हम त यैह चाहै छी जे अहाँ बजैत रही आ हम सुनैत रही.
"अच्छा सुनु ने अगिला मास में हमर भाय के बर्थडे छैक ओकरा लेल एकटा शर्ट लेबाक अछि"
त ल लिए ने अविनाश धखायत बाजल.फेर एकटा दोकान में जा ओ एकटा शर्ट पसंद केलीह. अविनाश दुकानदार से पुछलक  यौ सर इ शर्ट कतेक के भेल.. ओ कहलक पांच सै टाका के.
"ठीक छै एकरा पैक क दियौ" दुकानदार के एकटा पांच सैया नमरी दैत अविनाश बाजल.
"एकटा अहुँ अपना लेल ल ने लिए" तृषा आवेश देखबैत अविनाश से बजलीह.
अरे नै नै हम पछुलके मास में दू टा शर्ट किनने रही (अपन हिल गेल बजट के अनुमान लगबैत अविनाश इ बहाना बनौने छलाह)
'ठीके छै जेहन अहाँक इच्छा तृषा इ कहैत शर्ट के पैकेट ल बिदा भेलीह.
आगा एकटा चश्मा बला धुप चश्मा बेच रहल छल.
 "हेरे इ कतेक पाई में देबहिक" तृषा एकटा गॉगल्स उठबैत ओय छौड़ा से पुछलक.
"सात सै के माल मात्र तीन सै में ल लिए ने दीदी" छौड़ा बाजल
"ईह! डेढ़ सै में देबहिक त बाज" तृषा ढीठियाबैत बजलीह.
नै दीदी अहाँ लेल दू सै लगा देब.
"अरे छोरु ने रह दियौ ..बीच में अविनाश बाजल
अच्छा चलु ल लिए ड़ेढे सै में ... चश्मा बला छौड़ा धकमकायत बाजल आ चश्मा पैक क के देबय लागल. अविनाश जानै छलाह जे ऐ चश्मा के औकाइत सै टको नै छैक, मुदा ऐ समय में ओ अपन हिनस्ताय नै चाहै छलाह स्वाइत ओ चुपचाप चश्मा बला के डेढ़ सै टका थम्हा देलाह.
अब अविनाश के बड्ड जोरsक भूख लागि गेल छल. आई ओ घर से जलखैयो क के नै चलल छलाह, आ खरीदारी के चक्कर में तृषा से फुर्सत से किछु बतिआयलो नै छलाह, तै ओ तृषा के कहलखिन जे "तृषा चलु अब कतौ बैस के किछु खाय छी"
"अरे नै नै माँ बाट जोहैत हेथिन. हम दुइए घंटा में घुरि आयब कही के चलल रही. हमरा भूखो नै लागल अछि, आ गप्प सरक्का त बादो में होइते रहत. तैं आब अपना सब के चलबा के चाहि." तृषा प्रतिउत्तर में बजैत बाहरक रस्ता दिश घुमय लगली.
"अच्छा ठीक छै, जौं अहाँsक यैह इच्छा अछि त यैह सही" मिझायल मोन सँ अपन भूख आ इच्छा के जाँतैत अविनाश बाजल.
"हौ टेम्पू बला भैया, गणेश नगर चलबहक की?..हं हं अक्षरधाम मंदिर के बगले में छैक."...अरहाई सै टका लागत मैडम....ईह! दू सै टाका में १३ टा टेम्पू बला रेडी भ जायत चलय लेल. दू सै टाका देबह चलह बुझलाहक ने... टेम्पोबला के लगभग धकियाबैत आ अधिकार देखबैत तृषा ओकर टेम्पू में बैसय लगली.

"अरे अविनाश, सुनु ने अहाँके संग में दू हजार के खुदरा अछि की, हमरा लग खाली दू हजारी के नोट अछि"
"कोनो बात नै छैक हम पाई द दैत छियै, इ कहैत अविनाश टेम्पोबला के अपन पर्स से दू टा नमरी निकाली के थम्हा देलक. फेर तृषा दिस ताकि के बाजल जे सुनु तृषा अपन सब के बिआहsक गप्प घरबइया सब से कहिया करबै?

"उँह. ऐ विषय में बाद में बात करै छी ने, अहाँ एतेक ओगताई किएक छी!" इ कहैत तृषा टेम्पू में बैस गेली आ टेम्पू आगाँ बढ़ि गेल. अविनाश ओय टेम्पू के जाइत एक टक्क निहाइर रहल छलाह, जे धीरे-धीरे धुंधला होइत किछ काल में आँखि से ओझल भ गेल छल..!

गुरुवार, 21 दिसंबर 2017

फेसबुक केर चक्कर (मैथिली खिस्सा) - "Facebook ker chakkar" (Maithili Kahani)

कुशल जी, नोयडा के एकटा बहुराष्ट्रीय कंपनी में मैनेजर छलाह। जहिना नाम कुशल तहिना ओ अपन पेशा आ बेक्तिगत जिनगी के सब कार्य में कुशल छलाह। समाजिकता सेहो छलैन्ह आ समाज सं जुडल रह के शौख सेहो। महानगरिय जिनगी के एकटा साईड इफ़ेक्ट इ अछि जे एतुका जिनगी के भागाभागी में अहां नहियो चाहैत समाज से कटि जायत छि!

आधुनिक काल में मनुक्खक जिनगीशैली मे तकनिकि के बड्ड योगदान अछि। एहि क्रम में तकनिकि, भागादौरी में व्यस्त मनुख के समाज सं जोडै में सेहो मददगार साबित भऽ रहल अछि । जतय एक तरफ़ नेता से लऽ के अभिनेता सब भरि दिन ट्वीटर पर टिटियाइत रहै अछि ओतै आनो आन लोक सभ फ़ेसबुक आ व्हाट्सएप के मदैद स अपन बिछुडल समाज-समांग आ संगी सब स̐ जुडल रह के नया प्रयोग में लागल छैथ। एहन लोक में कुशलजी के नाम अग्रणी श्रेणी मे राखल जा सकै अछि कियेक त हुनका फ़ेसबुकिया कीडा खुब कटलकैन अछि। दिन भरि में देखल जाय त २४ घंटा में ओ १८ घंटा त निश्चिते फ़ेसबुक पर ओनलाईन भेट जेताह। नाना प्रकार के पोस्ट करैत रहताह – राजनीति स ल के समाज तक आ फ़ूल-पत्ति से ल के जंगल-झाड तक । हुनका अंदर दिनोदिन ई फ़ेसबुकिया कीडा के संक्रमण बढैत जा रहल छलैन्ह जेकर परिणाम ई भेल छल जे हुनकर कनियाँ के आब ई आदैत से किछु असोकर्ज जेना होमय लागल छल । दोसर गप्प जे ई किछु समाजिक आ क्षेत्रिय समस्या पर सेहो अपन प्रतिक्रिया ठांय पर ठांय दैत छलाह, जे किछु गोटे के अनसोहाँत बुझना जाय छल। ऐ बातक शिकायत सेहो इनबोक्स में खूब भेटय छलैन्ह । चलु जे से मुदा दोसर गप्प के गैण बुझि पहिल गप्प के प्रमुख मानल जाय।

अहिना एक दिन घर में ऐ फ़ेसबुकिया रोग के ल के खुब महाभारत मचल। कनियाँ हिनका खुब सुनौली। विवाह स ल के आई धरि के जतेक उपराग छल सभटा मोन पारि पारि के ओय सभसं कनियाँ हिनका पुन: अलंक्रित केलिह।

उपरागक एहन दमसगर डोज स कुशलजी के मोन अजीर्णता के शिकार भ गेल। हुनका अतेक रास गप्प पचलैन नै। ओ अपन मोबाईल में से फ़ेसबुक के अनइंस्टल करै के कठोर फ़ैसला लेलाह। हुनका लेल ई फ़ैसला लेनाई नोटबंदी के फ़ैसला से कम कठोर नै छल मुदा जेना सरकार के नोटबंदी में देश कऽ हित बुझना गेल छल तहिना हिनको अखुनका परिस्थिति में फ़ेसबुक बंदी में अपन हित बुझना गेल छल । तथापि फ़ेसबुकिया कीडा के असर अतेक जल्दि कोना जा सकै छल से ओ फ़टाफ़ट अपन मोबाईल निकाललाह आ लगलाह अपन फ़ेसबुक स्टेसस अपडेट में – "पब्लिकक भारी डिमांड पर हम काल्हि सौं फ़ेसबुक छोडि रहल छी, ताहि लेल जिनका जे किछु कहबा-सुनबा के होइन से आई अधरतिया धरि कहि सकै छी ! "

तकरा बाद त अधरतिया तक पोस्टऽक जेना ’बाढि’ आबि गेल होय। आ तहिना ’गिदरऽक हुआ-हुआ’ जेना ओय पोस्ट सभ पर कमेंटऽक हुलकार होमय लागल छल। जौं जौं समय बितल जाय छल कुशल जी के मोन कोना दैन करय लागल छल । मुदा एहि बेर फ़ेसबुक बंद करय के प्रण ओ कदाचित भीष्म पितामह के साक्षी मानि के लेने छलाह आ कि कनियाँ के शब्द वाण हुनका तहिना घायल केने छलैन जेना अर्जुन के वाण कुरुक्षेत्र में भीष्म पितामह के । परिणाम ई भेल जे अंतत: ओ फ़ेसबुक बंद क देलाह।

मुदा ककरो एने-गेने की जिनगी क चक्र रूकल अछि! एहिना फ़ेसबुको के चक्र हिनका अनुपस्थितियों में अपन गति से चलिते रहल। यद्यपि किछु निकटवर्ती सर-समांग सब से वाया व्हाट्सएप विमर्श क सिलसिला चालुए छल। 

ऐ घटना के किछु दिन बितल हैत की एक दिन कुशलजी के एकटा फ़ोन आयल।  ’हेल्लो!’
"हें..हें…हें…मनेजर साहब यौ….नमस्कार"
"नमस्कार। अहां के?" प्रतिउत्तर में कुशल जी बजलाह।
" हें..हें…हें…नै चिन्हलौं? आह! चिन्ह्बो कोना के करब, पहिने कतौ भेंट भेल हैब तखन की ने। हम अहांक फ़ेसबंधु छी। नाम अछि पुष्पेन्द्रनाथ चौधरी। पुष्पेन्द्रनाथक अर्थ भेल पुष्प क राजा अर्थात कमल आ हुनकर नाथ अर्थात कमलपति भगवान विष्णु । हें..हें…हें…" अपन साहित्यिक परिचय दैत ओ फ़ेर स̐ बलह̐सी ह̐सय लगलाह ।

कुशलजी किछु याद करबाक चेष्टा करैत फ़ेर बजलाह "ओह। अच्छा। कहु की समाचार।"

" हें..हें…हें… हमहु अत्तै सोनीपत में रहै छी। अहाँक फ़ेसबुक पोस्ट सब स̐ बहुत प्रभावित छी। समाज में अहाँ सन लोक सब के बड्ड आवश्यकता अछि। अतएव अहाँके फ़ेसबुक छोडला से हम बहुत दुखित छी। अहाँ के अंतिम पोस्ट सब हम देखने छलहु । हम जनैत छी जे अहाँक बात सब किछु गोटे के लोंगिया मिर्चाई सन लगै छलैन । आ एहने लोक सब के धमकी के कारणे अहाँ फ़ेसबुक छोडलहु अछि। मुदा जहिया तक हमरा सन लोक जीवित अछि अहाँ के डराय के कोनो आवश्यकता नै अछि। एहि संबंध में हम अहाँ से भेंट क के विमर्श करै चाहै छि। बड्ड तिकरम से अहाँ के नंबर उपलब्ध भेल अछि। आई हम नोयडा आबि रहल छि आ अहाँ से भेंट करै के अभिलाषी छी ।"

"मुदा हम आफ़िस क काज में कनि व्यस्त छी" कुशल जी बजलाह

"आहि आहि आहि। बस किछु मिनट के भेंट चाहै छी। हम बस एक घंटा में पहुँच रहल छी।" ई बजैत उत्तर के प्रतिक्षा केने बिना ओम्हर से फ़ोन राखि देल गेल ।

फ़ोन राखि के कुशलजी पुन: अपन कार्य में व्यस्त भ गेलाह। करीब डेढ घंटा के बाद रिसेप्शन से फ़ोन आयल "सर कोई पुष्पेंद्रनाथ चौधरी आपसे मिलने आए हैं ।"
"ठीक है भेज दो" कहि कुशलजी फ़ेर अपन काज में व्यस्त भ गेल छलाह।
दू मिनट बाद अर्दली एकटा थुलथुल काय व्यक्ति के संग नेने हाजिर भेल। उजरा धोती, ताहि पर से घाम में लभरायल सिल्क के कुर्ता, लंबा टा चानन केने ई व्यक्तित्व भीडो में आराम स̐ चिन्ह में आबि सकै छैथ से इ कियौ मैथिल थिकाह।

"आउ बैसु" अतिथि के स्वागत करैत कुशलजी बजलाह।

आह मैनेजर साहेब आइ अहाँ स भेट भेने हमर जिनगी धन्य भ गेल। कहिया से नियारने छलहु, आइ जा के अहा पकड में एलहु अछि। अच्छा से सब जाय दिय, पहिने ई बताउ जे अहाँ फ़ेसबुक किये छोडलहु अछि? अहाँके भाषा बचाउ आन्दोलन बला किछ कहलक अछि आ कि शिथिला राज्य बला धमकेलक अछि, आ कि शिथिला हुरदंगिया सेना बला सब घुरकेलक अछि? अहाँ बस एक बेर नाँ लिय बाँकि हम देख लेब। हम सभटा बुझै छि एकर सब के खेल-बेल। यौ महराज हमहु बीस बरख स एम्हरे रहै छी आ दिल्ली के गोट-गोट कालोनी सब जै में मैथिल-बिहारी सब बसल अछि,में पैठ बनौने छि इलाका के छा̐टल बदमाश सब हमरा ना̐ से धोती…धोती त खैर पहिरैत नै जाय अछी धरि पैजामा में लघी क दैत अछि। एहि प्रकारे चौधरी जी आधा-पौना घंटा तक खूब हवा-बिहारि देलखिन ।

जखन हवा-बिहारि के क्रम किछु रुकले तखन गप्पक दिशा मोड़ैत चौधरीजी बजलाह: “हें..हें…हें… अहां भोजन त कैये नेने हैबैक?”

आब चरबजिया बेरा में एहन प्रश्न के की उत्तर देल जाय! अस्तु कुशलजी एहि प्रश्नक उत्तर एकटा प्रश्ने से देलाह "कि अहां भोजन नै केने छी की?"

"आह। हम त घरे सं भोजन क के विदा भेल रही। आब त जे हतै से नस्ते-पानी हेतै की। हमर घरनी त जलखै संगे बांन्है छलखिन । मुदा हम मना करैत कहलियैन जे मनेजर साहेब बिना नस्ता करेने मानथिन्ह थोरेक ने। से अनेरहे हमरा ई सब फ़ेर घुरा क नेने आबय परत।"

चौधरी जी के आशय बुझ में कुशलजी के कोनो भांगट नै रहैन। तथापि ओ मोने मोन किछ राहत अनुभव करैत सोचय लगलाह जे हाथ एहिना टाईट अछि, एहन में यदि जलखै भरि कराक हिनका स̐ पिंड छूटै त सौदा महरग नै अछि।

एहि निर्णय पर पहुँचैत ओ चौधरीजी से बजलाह। जे चलु तखन किछु जलपाने क लेल जाय। हुनका संग नेने कुशलजी बगल क एकटा रेस्टोरेंट में पहुँचलाह।

ओतय बैरा के बजाय ओकरा दू टा सिंहारा, दू टा लालमोहन आ दू टा चाह क आर्डर दैते छलाह आ की चौधरी जी बीच में कूदैत बजलाह " इह! एकटा जमाना छल जे एक प्लेट सिंहारा माने दू टा सिंहारा बुझल जाय छल। आ ताहि पर से उप्पर से परसन जतेक लेल जाए तकर हिसाब नै। आ आब त एकटा सिंहारा के फ़ैशल आयल अछि। जे कहु, हमरा सन लोक के त एकटा सिंहारा से मोन छुछुआएले रहि जाय अछि। आ लालमोहन के की पुछल जाए। बरियाति सब में त गिनती के कोनो हिसाबे नै रहै छल। खौकार सब के बाजी लागय त सै, डेढ सै, दू सै टिका दैत छल। मुदा आबक जुग के की कही!"

ई बजैत ओ बैरा के चारि टा सिंहारा, २० टा लालमोहन आ दू कप चाह क आर्डर क देलखिन, आ व्यापार कुशल बैरा सेहो कुशलजी द्वारा कोनो संशोधन के इंतजार केने बिना आर्डर ल के निकलि गेल। पाँच मिनट बाद हिनकर सभक मेज पर सिंहारा आ लालमोहन के पथार लागि गेल छल।

कुशल जी नहु नहु चम्मच काँटा स तोरि तोरि सिन्हारा आ लालमोहन खाय लगलाह आ ओम्हर चौधरीजी बुलेट क गति से सिन्हारा आ लालमोहन के सद्गति देबय लगलाह। जा कुशलजी संग दैत २ टा सिन्हारा आ  २ टा लालमोहन खेलथिन्ह टा बचलाहा सबटा माल चौधरीजी के पेट में अपन जगह पाबि गेल छल। चाह क अंतिम चुस्की लैत चौधरीजी बजलाह "ईह! इ नास्ता की भेल बुझू जे भोजन भ गेल।"

"बेस तखन आज्ञा देल जाउ।" बैरा के बिल के बदला में पांच सौ के नोट पकराबैत कुशल जी बजलाह।
"हें.. हें ..हें ... हें आब त अपने घरे निकलबै की ने। हम सोचै छलहुँ जे एतेक दूर आयल छी आ आई संजोग बनल अछि त भौजियो से एकरत्ती भेंट भैये जैतै त ...हें.. हें ..हें ... हें।" इ बजैत चौधरीजी फेर सं बलहँसी हँसय लगलाह। आब ऐ ढिठाई पर कुशलजी की कहि सकै छलाह! तिरहुत्ताम के रक्ष रखैत मौन स्वीकृत्ति दैत चौधरी जी के संग क लेलैथ आ गाड़ी में बैस घरक बाट धेलाह।

घर पहुंचला पर चौधरीजी कुशलजी के कनियाँ 'चँदा दाई'  आ बुतरू सब के बीच रैम गेलाह आ तुरत्ते हुनका बीच में अपन वाक्-कुशलता के धाक जमा देलखिन।

गप्प-सप्प  एम्हर आम्हार से होयत माँछ क गप्प पर पहुँचल। चौधरीजी बजलाह "ईह! अहाँक  बगले में त छलेरा गाँव में बड़का मछहट्टा लगै अछि. बड़का-बड़का जिबैत रहु भेटै छै. चलु घुरि क अबैछि।" ई बजैत ओ कुशल जी के हाथ धेने बाहर जाय के उपक्रम करय लगलाह।

आब आगाँ के खिस्सा अहाँ अपनहुँ सोची सकै छि। अस्तु रात्रि पहर दिवगर माँछ-भात-दही-पापड के भोजन भेलै। भोरे कुशलजी के छए बजे से एकटा मीटिंग छल बिदेशी क्लाइंट संगे वीडियो कांफ्रेंसिंग पर। ओ पँचबज्जी भोरे ऑफिस निकली गेलाह आ एम्हर चौधरी जी आठ बजे तक चद्दर तानि क फोंफ कटैत रहलाह।

उठला पर चाह-चुक्का संगे फेर सं दमसगर नस्तो भेलै। चलै काल ओ कुशलजी के कनियाँ के कल जोरि के क्षमायाचना के भांगट पसारैत बजलाह "हें ..हें...हें... भौजी तखन आब आज्ञा देल जाउ। हमारा कारणे जे अहाँ सब के कष्ट भेल होयत तकरा लेल क्षमाप्रार्थी छि हें ..हें...हें..."

"नै नै ऐ में कष्ट के कोन गप्प छै। अतिथि सत्कार त हमर सबहक परम कर्तव्य थीक" ई बाजि चँदा दाई हिनका जेबाक आशा में केबार लग ठाढ़ भ गेल छलीह मुदा चौधरीजी एक बेर फेर किछु संकोच करैत आ बलहँसी हँसैत बजलाह "हें ..हें...हें...जै काज से नोयडा आयल रही तै में किछु पाई के खगता भ गेल। मैनेजर साहब अपनहि रहितैथ तखन त किछु बाते नै रहितै जतेक कहतियन पुराइये दितथिन मुदा ओ त भोरे भोर मीटिंग के लेल निकली गेल छैथ। से दूओ हजार टका जौं भ जैतै त ...."

चँदा दाई किछु धकमकाइत चौधरी जी के हाथ में एकटा दू हजरिया के नोट थम्हा देलीह।

सांझ में कुशलजी जखन आफिस से घुरलाह त चँदा दाई हिनका हाथ से मोबाइल छीन किछ करै लगलीह। कुशलजी के भेलैन जे हौब्बा! आब कोन काण्ड भ गेलै। कनिके काल में कनियाँ हिनका हाथ में मोबाइल दैत बजलीह "लिय अहाँक मोबाइल में फेसबुक इंस्टॉल क देलौं अछि ... आब अहि पर करैत रहु सोशल  नेटवर्किंग।"


इति श्री !
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