रविवार, 29 मार्च 2020

की छै 'डीएनबी' आ की लाभ छै "डीएनबी इन डिस्ट्रिक्ट हॉस्पिटल प्रोग्राम" के



एकबेर एकटा मैथिल सज्जन, जे पेशा से पत्रकार छैथ, कोनो वाद-विवाद के क्रम में हमरा कहलैथ जे, जे विभाग में अहाँ कार्यरत छी ओत प्रयास किएक नै करैत छी मैथिली के विकास के लेल। ई सुनि हमरा मोने मोन हँसियो लागल आ ई भान भेल जे जखन पत्रकार भ क हिनका डीएनबी के विषय मे जानकारी नै छईन्ह त बहुतो गोटे हेथिन जिनका एनबीई आ डीएनबी के विषय मे जनतब नै हेतइन।

किएकि ई समय सूचना के छियइ आ चिकित्सा शिक्षा के संबंध मे सेहो लोक सब मे जागरूकता आ जनतब हेबाक चाहिए अस्तु मोन मे आयल की किएक नै ऐ विषय मे किछु मौलिक जानकारी पर किछ लिखल जाय, दसो टा नव लोक के त ऐ से जनतब हेबे करत!

1975 के साल मे तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी देश मे स्वास्थ्य व्यवस्था मे सुधार आ विशेषज्ञ चिकित्सक के कमी कोना दूर होय ऐ लेल एकटा कमिटी के गठन केने छलीह। कमिटी अध्ययन क के रिपोर्ट देने छलईय जे जै संख्या मे देश मे विशेषज्ञ चिकित्सक के आवश्यकता छैक तकर पूर्ति खाली मेडिकल कॉलेज से केनाइ मुश्किल। ताहि लेल जौं देश मे स्थित बहुत रास सरकारी आ प्राइवेट अस्पताल आ चिकित्सा संस्थान जै मे पीजी विशेषज्ञ प्रशिक्षण लेल आवश्यक इन्फ्रा आ विशेषज्ञ सलाहकार डॉक्टर मौजूद होय ओहो सब ठाम किएक नै ट्रेनिंग शुरू क के पीजी विशेषज्ञ डॉक्टर तैयार कैल जाय। मुदा एहेन सक्षम अस्पताल/चिकित्सा संस्थान के चिन्हइ, ओकरा मान्यता दै, ओतय के ट्रेनिंग व्यवस्था के लेल मानक तय करई एवं देख रेख करई के आ देशभरि मे एकटा उच्च आ समान स्तर के परीक्षा लेबै के लेल एकटा संस्थान के आवश्यकता छल। एही रिपोर्ट के आधार पर तत्कालीन सरकार द्वारा ई सब काज के लेल राष्ट्रीय परीक्षा बोर्ड(एनबीई) के गठन कैल गेल छल जे 1982 मे स्वतंत्र रूप से भारत सरकार के स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय के अंतर्गत एकटा स्वायत्त संस्थान के रूप मे अस्तित्व मे आयल।

एनबीई सक्षम अस्पताल/चिकित्सा संस्थान सब के चिन्हित क के ओकरा विभिन्न विशिष्टता मे पीजी ट्रेनिंग के लेल मान्यता देबय लागलई आ 3 वर्ष के ट्रेनिंग के उपरांत राष्ट्रीय स्तर पर आयोजित विविध परीक्षा पास करई बला डाक्टर सब के डीएनबी(डिप्लोमैट ऑफ नैशनल बोर्ड) के डिग्री देबई लगलई। डीएनबी डिग्री भारतीय चिकित्सा अधिनियम 1956 (आईएमसी एक्ट 1956) के प्रथम अनुसूची मे स्थित भारत सरकार द्वारा मान्यताप्राप्त स्नातकोत्तर/पोस्ट डॉक्टरल डिग्री छैक, जे चिकित्सा विश्वविद्यालय द्वारा समकक्ष विशिष्टता मे प्रदान एमडी/एमएस/डीएम/एमसीएच डिग्री के समकक्ष छैक। डीएनबी नाम अमेरिका मे देल जाय बला डिप्लोमैट ऑफ अमेरिकन बोर्ड के तर्ज पर राखल गेल छैक।

लेहमेन के भाषा मे जौं एकरा बुझई के प्रयत्न करी त एकरा एनाहु बुझल जा सकई अछि जे जेना एमबीए(फायनेंस) आ सीए/सीडबल्यूए लेखा/वित्त के क्षेत्र मे समकक्ष डिग्री छैक , जेना बीई/बीटेक आ एएमआईईटीई इंजीनियरिंग के क्षेत्र मे समकक्ष डिग्री छैक तहिना आधुनिक चिकित्सा विज्ञान के क्षेत्र मे देश मे एमडी/एमएस आ डीएम/एमसीएच के समकक्ष डीएनबी(ब्रॉड स्पेशल्टी) आ डीएनबी(सुपर स्पेशल्टी डिग्री) छैक। एमबीए, बीई/बीटेक, एमडी/एमएस/डीएम/एमसीएच आदि डिग्री यूनिवर्सिटी सिस्टम के द्वारा देल जाइत छैक त सीए आ डीएनबी डिग्री भारत सरकार के अंतर्गत स्वायत्त संस्थान अर्थात क्रमशः आईसीएआई आ एनबीई द्वारा देल जाइत छैक। अहुमे अहांके समनता देख लेल भेंटत। जेना देखईत हेबई जे देश मे अलग अलग यूनिवर्सिटी मे पढ़ाई के स्तर अलग अलग होइत छैक आ परिणामस्वरूप कोनो एमबीए त बहुत तेज होइत छैक आ कोनो कोनो बज्र ढ़ोल, नाम के डिग्री बला मुदा सीए जे कियौ केने होइत छै तकरा लग विषय के एकटा स्तरीय ज्ञान रहिते छैक किए त सीए अखिल भारतीय स्तर पर एकटा उच्च आ समान स्तर के परीक्षा पास केला के बाद बनैत छैक। तहिना स्नातकोत्तर मेडिकल डिग्री के क्षेत्र मे अलग अलग यूनिवर्सिटी/कॉलेज से पास एमडी/एमएस डॉक्टर मे कियौ बहुत जानकारो डॉक्टर भेट सकईअछि आ कियौ बाज्र भकलोल सेहो, मुदा डीएनबी बला मे एकटा स्तरीय क्लीनिकल स्किल भेटबे करत किएकि डीएनबी डिग्री अखिल भारतीय स्तर के उच्च मानक बला परीक्षा पास केला के  बाद भेटई छैक आ सीए हे जेकाँ एकरो पास केनाइ एमडी/एमएस से बेसी कठिन होइत छै।

वर्तमान मे एनबीई 83 टा ब्रॉड आ सुपर स्पेशल्टी विषय मे डीएनबी आ एफ़एनबी कोर्स चला रहल अछि जे देश भरि के 500 से बेसी अस्पताल आ चिकित्सा संस्थान मे चलि रहल अछि।

की छै “डीएनबी इन डिस्ट्रिक्ट हॉस्पिटल” कार्यक्रम
 देश के बहुते राज्य सब मे स्तानकोत्तर मेडिकल स्पेशलिष्ट आ ओकर पढ़ाई लेल सीट के कमी दूर करय खातिर आ विशेषज्ञ डॉक्टर के क्षेत्रीय स्तर पर एकटा  पूल बनाब खातिर केंद्र सरकार राष्ट्रीय परीक्षा बोर्ड के संग मिल के ई कार्यक्रम 2013 मे शुरू केलक आ वर्तमान सरकार एकरा आगा बढ़ाब के लेल कृतसंकल्प अछि। ऐ कार्यक्रम के तहत राज्य सरकार, केंद्र सरकार, लोकल सरकार के अंतर्गत आबय बला 200 बेड से बेसी बिस्तर बला टर्सरी केयर अस्पताल मे डीएनबी पाठ्यक्रम शुरू कैल जा रहल छैक। ऐ योजना के प्रमुख ध्येय छैक:
o   जिला अस्पताल में उपलब्ध इन्फ़्रास्ट्रक्चर एवं क्लिनिकल संसाधनों के  उपयोग स्नातकोत्तर विशेषज्ञता के प्रशिक्षण में करैत विशेषज्ञ के नव पूल तैयार केनाइ जे क्षेत्रीय स्वास्थ्य व्यवस्था के लेल उपयोगी होय, क्षेत्र के परिस्थिति के अनुसार प्रशिक्षित होय, आ क्षेत्र विशेष के मरीज आ बीमारी के बेसी निक से बूझि सकई।
o   ऐ प्रकार के पीजी पाठ्यक्रम चलेला से ऐ तरहक सरकारी टर्सरी केयर अस्पताल सब मे इन्फ्रास्ट्रक्चर आ क्लीनिकल संसाधन के गुणवत्ता मे सुधार हेतई।
o   ऐ योजना से राज्य स्तर पर कम खर्च मे स्नातकोत्तर चिकित्सा विशेषज्ञ के प्रशिक्षण के संभावना बनैत छैक आ ऐ प्रकारे चिकित्सक के कार्यकौशल के सेहो विकास के संभावना बढ़इत छै।
o   अकादमिक प्रशिक्षण व्यवस्था से ऐ प्रकार के अस्पताल सब मे चिकित्सक सब के भर्ती आ ओकरा सब से सेवा लेबे के प्रक्रिया सेहो सरल भ जाइत छैक किएकि प्रशिक्षण के लोभे कनिष्ठ चिकित्सक सब अस्पताल मे उपलब्ध रहईत छै।
o   ऐ प्रयास से ऐ अस्पताल सब मे चिकित्सक आ हुनकर सेवा के एकीकृत कर मे सेहो सुविधा भेटई छै।
o   नव आ पुरान (इन-सर्विस) एमबीबीएस चिकित्सक सब के सेहो(जिंका आन ठाम सीट नै भेंट पाबि रहल छै) पीजी करय के अवसर उपलब्ध होई छैक।
o   पीजी प्रशिक्षण के लेल माइग्रेट होमय बला चिकित्सक सब के क्षेत्र मे घूरय के संभावना कम रहई छैक मुदा क्षेत्रीय अस्पताल मे प्रशिक्षण प्राप्त चिकित्सक के क्षेत्र मे सेवा दै के संभावना बेसी। अस्तु ऐ प्रकार के कार्यक्रम से बिहार सन राज्य मे विशेषज्ञ चिकित्सक के कमी दूर करय मे सहायता भेटय के संभावना देखल जा सकई अछि।
  
ऐ क्रायक्रम के सबसे पहिने लाभ उठाबय बला राज्य पश्चिम बंगाल छल, तदुपरान्त कर्नाटक आ तमिलनाडु आ धीरे-धीरे देश के अन्य कईएक राज्य मे ई कार्यक्रम पसरि रहल अछि। अफसोस कि ऐ योजना के लाभ लेबे मे सेहो आपण बिहार पछुआयल छल, आ एनबीई के कतेक प्रयास, बिहार सरकार के संग कतेक वर्कशॉप के बाद बिहार सरकार अपन किछ अस्पताल/मेडिकल कॉलेज  मे ई पाठ्यक्रम शुरू करय के आवेदन केलक य जे एखन मान्यता भेटे के प्रक्रिया मे अछि। आशा कैल जा सकई अछि जे जल्दीए ई परियोजना राज्य मे विकसित होय आ क्षेत्र के स्वास्थ्य व्यवस्था के सुधार मे सहायक होय। 

जय जानकी जय भारत। 🙏

रविवार, 22 दिसंबर 2019

एआईआईएसएच मैसूर की यात्रा (A tour to AIISH Mysore)


नमस्कार दोस्तों। क्या आपको पता है की डबल्यूएचओ के द्वारा सान 2018 मे जारी एक रिपोर्ट के अनुसार भारत मे करीब 6.3% लोग श्रवण संबंधी अक्षमताओं से ग्रसित हैं। पिछले जनगणना के अनुसार देश मे श्रवण अक्षमता(हियरिंग डिसाइबिलिटी) मे 5.8% की दर से एवं वाक अक्षमता (स्पीच डिसेबिलिटी) मे 7.5% की दर से वृद्धि हो रही है। देश के विभिन्न क्षेत्रों मे जिस प्रकार से ध्वनि प्रदूषण का स्तर बढ़ता जा रहा है, और जिस प्रकार की जीवनचर्या(लाइफ स्टाइल) लोग अपना रहे हैं(उच्च शोर वाले संगीत सुनना, ईयर फोन का अत्यधिक उपयोग आदि), निकट भविष्य मे श्रवण संबंधी समस्याओं के और अधिक बढ़ने की संभावना भी है। उपरोक्त आँकड़े यह इंगित करते हैं की देश मे वर्तमान और भविष्य मे औडियोलोजिस्ट एवं स्पीच लैंगवेज़ पैथोलोजिस्ट की जरूरत अच्छी ख़ासी होगी, अतः इस क्षेत्र मे करियर की अच्छी संभावना दिखती है। खासकर उन छत्रों के लिए जिनमे मानव सेवा को करियर के रूप मे चुनने की प्रबल इच्छा हो और जो किसी कारण वश मॉडर्न मेडिसिन या आल्टर्नेट मेडिसिन के किसी अन्य विधा मे प्रवेश नहीं पा रहे हों। यद्यपि वर्तमान मे लोगों मे इस तरह के विकारों के प्रति बहुत अधिक जागरूकता नहीं है, पर क्योंकि मामला व्यक्ति के संवाद कौशल से जुड़ा है, इसपर जागरूकता की आवश्यकता तो है ही। इस विषय पर मेरे पहले के लेख का भी संदर्भ ले सकते हैं। (ऑडियोलॉजी एवं स्पीच लेंग्वेज पैथोलॉजी: बारहवीं के बाद जीवविज्ञान के छात्रों के लिए करियर विकल्प )।

आज हम एआईआईएसएच मैसूर के विषय मे कुछ चर्चा करेंगे, जो वाक एवं श्रवण संबंधी विकारो के निदान के लिए दक्षिण एशिया की नंबर 1 एवं विश्व के शीर्षस्थ 10 संस्थानों मे शामिल है। भारत सरकार की यह संस्थान, सांसकृतिक महत्ता वाले शहर मैसूर मे स्थित है।

संचार विकारों के क्षेत्र में प्रमुखता रकनेवाले इस संस्थान की स्थापना 9 अगस्त, 1965 को अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान के रूप में की गई थी।
डॉ. मार्टिन एफ. पामर, निदेशक, इंस्टीट्यूट ऑफ लोगोपेडिक्स, विचिटा, कंसास, यूएसए ने 1963 में भारत का दौरा किया था और मैसूर में लॉगोपेडिक्स का एक संस्थान स्थापित करने की सिफारिश की थी।

ऑल इंडिया इंस्टीट्यूट ऑफ लोगोपेडिक्स की शुरुआत 9 अगस्त, 1965 को हुआ था और यह पहले कर्मचारी के रूप में डॉ एन रथना के साथ राम मंदिर (एक किराए की इमारत) में काम करना शुरू किया था। डॉ. बी.एम. राव को बाद में इसके पहले निर्देशक के रूप में नियुक्त किया गया था।

भारत के तत्कालीन राष्ट्रपति डॉ० एस० राधाकृष्णन ने 25 जुलाई, 1966 को मैसूर के महाराजा द्वारा दान मे लिए गए २२ एकड़ भूमि पर संस्थान के भवन का शिलान्यास किया था।

मैसूर विश्वविद्यालय से संबद्धता प्राप्त करने के बाद, संस्थान ने एम.एससी (वाक एवं श्रवण) पाठ्यक्रम 2 अक्टूबर, 1966 को शुरू किया जो देश में अपनी तरह का पहला पाठ्यक्रम था। इस संस्थान को 10 अक्टूबर, 1966 को "ऑल इंडिया इंस्टीट्यूट ऑफ स्पीच एंड हियरिंग" नाम से पंजीकृत किया गया था।


संस्थान मे डिप्लोमा, स्नातक, स्नातकोत्तर एवं पीएचडी स्तर के कुल 16 पाठ्यक्रम संचालित किए जाते हैं जो वाक(स्पीच), श्रवण(हियरिंग) एवं विशिष्ट शिक्षा (स्पेशल एडुकेशन) के डोमैन के पाठ्यक्रम हैं। 

भारत मे वाक एवं श्रवण संबंधी मरीजों के पुनर्वास मे इस संस्थान का योगदान अग्रणी रहा है। यहाँ से प्रशिक्षित विशेषज्ञों (अलूमनाई) आज देश के विभिन्न भाग मे क्लीनिक्स और अस्पतालों मे अपनी सेवा दे रहे हैं। देश के विभिन्न भागों मे वाक एवं श्रवण निदान के लिए कई शिक्षण एवं चिकित्सा संस्थान यहाँ से प्रशिक्षित छत्रों द्वारा स्थापित किए गए हैं तथा वहाँ पर यहा के अलूमनाई प्रशिक्षण एवं चिकित्सा का कार्य कर रहे हैं।

संस्थान मे अकादमिक विंग एवं नैदानिक(क्लीनिकल) विंग दो अलग अलग खंडों, क्रमाश: नैमिषम खंड एवं जयचामराजा खंड मे स्थापित हैं। पूरा कैंपस साफ़सुथरा, एवं पेड़ पौधों से भरा है जो यहा आनेवाले आगंतुकों को एक सुखद वातावरण का अनुभव देता है। लाल लेटेराइट मिट्टी पर संस्थान के मालियों ने अच्छा प्रयोग किया है और सुंदर सुंदर फूलों और सजावटी पौधो के अलावा आपको यहाँ विभिन्न फलों और औषधीय गुणो वाले पेड़-पौधे जैसे कटहल, नींबू, डाभ, चीकू, कालीमिर्च, शंखपुष्पी आदि देखने को मिल जाएंगे। कलम विधि द्वारा कटहल और चीकू के छोटे-छोटे पौधों मे भी फल देखने को मिल जाएगा।

क्लीनिकल विंग बहुत ही बेहतर तरीके से स्थापित हैं एवं मरीजों, खसकर छोटे बच्चों के सुविधाओं एवं उन्हे खुशनुमा माहौल देने को ध्यान मे रखकर बनाया गया है। क्लीनिकल वार्ड मे एक बोर्ड पर नजर परने पर हमारा ध्यान ठिठका था जिसमे बेस्ट मदर के नाम अंकित थे। डॉ० प्रवीण ने हमारी जिज्ञासा को शांत करते हुये  बताया कि बच्चो मे वाक एवं श्रवण संबंधी विकार को दूर करने के लिए एक लंबा ट्रीटमेंट देना होता है जिसमे चिकित्सक एवं अभिभावक दोनों को ही धैर्य, सूझबूझ और आत्मविश्वास दिखाने कि जरूरत होती है। मरीजों के ठीक होने मे उनके अभिभावकों की भूमिका महत्वपूर्ण होती है। अत: संस्थान हर वर्ष अपने बच्चे को सबसे बेहतर तरीके से देखभाल करनेवाली माँ को बेस्ट मदर का इनाम देती है जिससे अभिभावकों मे मरीज के देखभाल के प्रति प्रेरणा एवं सकारात्मकता जागृत हो। यह प्रयोग हमे बहुत ही अनूठा और अच्छा लगा था।

औडियोलोजी विभाग मे विचरते हुए हमे कई अनुभव हुए। श्रवण संबंधी दिक्कतों को डायगनोज करने के कई टेस्ट एवं मशीनों की जानकारी मिली साथ ही इन विकारों को दूर करने हेतु लगाए जानेवाले छोटे छोटे यंत्र भी देखने को मिला। प्रो० नागरकर सर ने बताया की ये डिवाइस काफी महंगे हैं और इसलिए बहुत से गरीब मरीज इन्हे नहीं खरीद पाते। अत: कुछ सरकारें(उदाहरण के लिए केरल सरकार) गरीब मरीजों को यह उपलब्ध करवा रहे हैं, पर फिर भी दिक्कत यह है की ऐसे मरीज से यदि ये गलती से गुम हो जाए, या इसमे कुछ खराबी आ जाए तो फिर मरीज इनका उपयोग छोड़ देते हैं और उनकी समस्या पुनः यथावत हो जाती है। सर ने यह भी बताया की डीआरडीओ ने इन डिवाइस के सस्ते विकल्प बनाए हैं पर उनकी तकनीकी पुरानी होने की वजह से वो इतना रेलेवेंट नहीं हो पाए हैं।

स्पीच पैथोलॉजी विभाग मे कई चिकित्सकों और मरीजों से मुलाक़ात हुई। चिकित्सकों ने प्रो० नागरकर सर को ट्रीटमेंट मैथोडोलोजी एवं मरीजो मे होनेवाले सुधार के बारे मे ब्रीफ़ किया। संस्थान मे छोटा सा ईएनटी विभाग भी है ताकि ईएनटी विशेषज्ञ से मरीजों के लिए संबन्धित परामर्श लिया जा सके। यद्यपि यहा पर सर्जरी की व्यवस्था नहीं हैं तथा यहाँ के ईएनटी विशेषज्ञों को ओटी के लिए मैसूर मेडिकल कॉलेज से एमओयू हो रखा है।

स्पेशल एजुकेशन वार्ड मे जाकर हम सभी को एक सुखद और खुशनुमा अनुभव मिला। पूरे वार्ड के फर्श पर यत्र तत्र अङ्ग्रेज़ी हिन्दी और कन्नड भाषा के अक्षरों और शब्दों को उकेड़ा गया था, जिससे बच्चे उन अक्षरों को बोलना और पहचानना सीख सके। बच्चो के खेल कूद के लिए खिलौने और झूलों आदि की अच्छी व्यवस्था थी। 



वहाँ की शिक्षिका ने हमे बताया की बच्चो के साथ साथ ही अभिभावकों को भी यहाँ छोटे छोटे हस्तकलावाले काम सिखाए जाते हैं तथा उनसे यहा ठहरने के दौरान ये कार्य कराये जाते हैं। इस तरह के साकारात्मक प्रयोगों का काफी प्रभाव बच्चों के सुधार मे पड़ता है। उन्होने यह भी बताया की हमे भेंट मे दिये गए नोटबुक, कागज के पेन, कागज के गुलदस्ता आदि इन्ही बच्चो एवं अभिभावकों द्वारा बनाया गया था। उन्होने यह भी बताया की संस्थान पर्यावरण और प्रदूषण को लेकर भी गंभीर है और एकबार प्रयोग मे आनेवाले प्लास्टिक के वस्तुओं का का प्रयोग यहाँ ना के बराबर होता है।

संस्थान मे एक बड़ी सी लाइब्रेरी भी है जिसमे वाक एवं श्रवण विज्ञान सहित ईएनटी सर्जर, मनोविज्ञान आदि विषयों के बहुत से पुस्तक, पत्रिकाएँ एवं एजरनल आदि उपलब्ध हैं। बताया गया की इस लाइब्रेरी की शुरुआत अमेरिकन प्रोफेसर डॉ. मार्टिन एफ. पामर द्वारा दान मे दीगई किताबों से की गई थी। 

संस्थान मे प्रवास के दौरान कर्नाटक के कई पारंपरिक भोजन को खाने का अवसर मिला ही साथ मे खाने के बाद दिया जानेवाला पान-खजूर तो अद्भुत था।

इस संस्थान के बारे मे थोड़ा-बहुत लिखने का मेरा मूल उद्देश्य वाक एवं श्रवण संबंधी परेशानियों के विषय मे थोड़ी-बहुत जागरूकता फैलाना तथा जीवविज्ञान पढ़नेवाले बच्चे जो मानव सेवा/चिकित्सा के क्षेत्र मे अपना करियर बनाना चाहते हैं को करियर विकल्प के रूप इस विधा के बारे मे जानकारी देना है। अतः आप के आस-पास यदि वाक या श्रवण संबधि व्याधि से ग्रसित बच्चे हों जिनका कहीं इलाज चल रहा हो तो उन्हे ऐसे संस्थान (और भी कई हैं) से इलाज के लिए प्रेरित कर सकते हैं, साथ ही जिन बच्चों का एडमिशन एमबीबीएस जैसे कोर्स मे किसी वजह से नहीं हो पा रहा हो उन्हे करियर के इन विकल्पो के विषय मे बता सकते हैं। वैसे ये बताता चलूँ की इस संस्थान मे विभिन्न पाठ्यक्रमों मे प्रवेश, प्रवेश परीक्षा के आधार पर होता है जिसके लिए आवेदन फरवरी-मार्च मे महीने मे किया जाता है।

फिलहाल बस इतना ही। आशा करता हूँ की आपको यह विवरण रोचक और उपयोगी लगा हो। धन्यवाद!