शुक्रवार, 3 फ़रवरी 2012

तुझे पुजूं मैं मां शारदे

तुझे पुजूं मैं मां शारदे, चरणों में शीश नवाउं -२
तेरी स्तुति गाउं, गा के मां मैं सुनाउ
तुझे पुजूं मैं मां शारदे, चरणों में शीश नवाउं-२

मुझे ग्यान का वर देकर मेरी आरजू कर पूरी -२
... तेरे ग्यान की ये ज्योति, सारे जग में मैं फ़ैलाउं-२
तुझे पुजूं मैं मां शारदे, चरणों में शीश नवाउं-२
तेरी स्तुति गाउं, गा के मां मैं सुनाउ
तुझे पुजूं मैं मां शारदे, चरणों में शीश नवाउं-२

बैठ जिह्वा पे कुम्भकर्ण के इंद्रासन को बचाया-२
तेरी स्तुति को मैया मैं शब्द कहां से लाउ ! -२
तेरी स्तुति गाउं, गा के मां मैं सुनाउ
तुझे पुजूं मैं मां शारदे, चरणों में शीश नवाउं-२
(Music: Mere dil me aaj kyaa hai...) - प्रणव झा 'सूरज का सातवाँ घोड़ा

सोमवार, 16 जनवरी 2012

’एकलव्य’


सफ़लता के नये आयाम लिखने
चलें हम हर कदम आगे बढाकर ।

गुणों का अपने नित विकास करने
बढें ’एकलव्य’ का पथ अपनाकर ॥

नहीं हम स्वप्न का आकार करते
दिलासे का नया व्यापार करते ।
सफ़लता एक बस प्रिया है हमारी
तभी तो बस उसी का ध्यान करते॥

कठिन निर्घोष जीवन के सफ़र में
विजय के नित्य नये अध्याय लिखने।
समर में कुछ नये करतब दिखाते
निरंतर हम नये संधान करते॥

नये युग में नया संघर्ष करते
युवाओं के नये आधार हैं हम।
न चूके लक्ष्य से शर जिसका कभी भी
वही शर-चाप धर ’एकलव्य’ हैं हम॥

     -प्रणव झा "सुरज का सातवां घोडा."

सोमवार, 3 अक्टूबर 2011

हे 'मिथिलानी' आब जागु अहूँ


 

हे 'मिथिलानी' आब जागु अहूँ
बढ़ू जग के संग आब आगू अहूँ
तोरि कुंठित समाज क कुंठित बंधन
प्रगति मार्ग पर चालू दन-दन
अहूँ क सकै छि दुष्ट क मर्दन
पर लेबय परत संकल्प एकर
दहेज़-उत्पीडन के विरोध करू
एहि दानव के निषेध करू
नहीं आवश्यक विवाहक बंधन
बस अपन पैर पर ठाढ़ रहू
हे 'मिथिलानी' आब जागु अहूँ
आब हटा दियौ लाज क पर्दा
आ आँखिक नोर अंहा पोछि लिय
नहीं दुर्बल बनी रहू जग में
युग के बदल के ठानि लिय
आब राजनीति में अहूँ उतरु
पायलट, आफिसर अंहा सेहो बनु
हे 'मिथिलानी' आब जागु अहूँ
आई.ए.एस या आई.पि.एस या
एहि देश क अंहा भविष्य बनु
अछि गौरवशाली मिथिला क इतिहास
अंहा मिथिलानी क इतिहास गढ़ु
हे 'मिथिलानी' आब जागु अहूँ
            -
प्रणव झा 'सूरज का सातवाँ घोड़ा'

बुधवार, 18 मई 2011

अश्क बन कर जो छलकती रही मिट्टी मेरी

अश्क बन कर जो छलकती रही मिट्टी मेरी
शोले कुछ यूँ भी उगलती रही मिट्टी मेरी

मेरे होने का सबब मुझको बताकर यारो
मेरे सीने में धड़कती रही मिट्टी मेरी

लोकनृत्यों के कई ताल सुहाने बनकर
मेरे पैरों में थिरकती रही मिट्टी मेरी

कुछ तो बाकी था मेरी मिट्टी से रिश्ता मेरा
मेरी मिट्टी को तरसती रही मिट्टी मेरी

दूर परदेस के सहरा में भी शबनम की तरह
मेरी आँखों में चमकती रही मिट्टी मेरी

सिर्फ़ रोटी के लिए दूर वतन से अपने
दर-ब-दर यूँ ही भटकती रही मिट्टी मेरी

मैं जहाँ भी था मेरा साथ न छोड़ा उसने
ज़ेह्न में मेरे महकती रही मिट्टी मेरी

कोशिशें जितनी बचाने की उसे कीं मैंने
और उतनी ही दरकती रही मिट्टी मेरी.