शनिवार, 8 अक्टूबर 2016

सर्जिकल स्ट्राइक


सिंधु तट पर शेर की हुंकार है यह
दुश्मनों पर वज्र का प्रहार है यह
सुनो सुनो आतंक को ओ पालनेवालों
वीरों का है देश भारत, ना समझो लाचार है यह

अब टूटा है बांध संयम का कदाचित
आक्रमण ही है श्रेष्ठ और है उचित
वीर वो क्या जो बिना लडे. ही मरे
वीरता का है सम्मान, विजय या वीरगति

थी मिली हमको स्वतंत्रता साथ ही अभिशाप यह
रह सका न छोटे भाई की तरह मिल साथ वह
नित नई साजिश रची जिसने हमारे देश में
हो सफ़ल पाया नहीं कभी भी अपने उद्देश्य में

चंद आतंकी पाल कर जो हमें डराने चला
मान उसको नादान हमने फ़िर भी किया उसका भला
मरूभूमि के तूफ़ान का अब रूख बदलना चाहिए
                                चाहे जो हमें बर्बाद करना उनको सबक मिलना चाहिए

शनिवार, 1 अक्टूबर 2016

अलर - बलर (मैथिलि बाल-कविता)

 
 
 
 मालिक – नौकर हम नै बुझी
आटा चोकर हम नै बुझी
खेल – बुझौअल में छी पारंगत
अपन – अनकर हम नै  बुझी

आमक गाछी दौड़बे करब
खेतक छिमि तोड़बे करब
कब्बै – मांगुर के लालच में
बंसी ल क बैसबे करब

बाबा गेलखिन हरवाही पर
कक्का गेलखिन सुनवाही पर
गर्मी छुट्टी में आम क गाछी में
बैसल छी हम ओगरवाही पर

बाबू के नै पसिन्द छैन लालू
कहै छैथ ओ अछि बड्ड चालू
आंगन में मां बडी काल सं
पका रहल अछि सहजन-आलू

हरवाहा सब हर जोतै अछि
चरवाहा सब मुंह दूसै अछि
बैट-बा̆ल ल क छौंडा सब
चौका-छक्का खूब जड़ई अछि ।

कंसार क भूंजा फ़ांक़बे करब
एम्हर-आमहर झांक़बे करब
दाय-माय के डेरबय खातिर 
कुकूर जेकाँ भुंकबे करब

माँ के बात सेहो बुझब
सोझा इस्कूल जेबे करब
पानि पीब लेल मुदा दू मिनट 
चापा कल पर रुकबे करब 

कोठा पर हम सुतबे करब
मना करय पर रूसबे करब
इस्कूल क सबक याद कर लेल
भोरका पहर उठबे करब

पीसा कहै छैथ पायलट बनिह
मामा कहै छथि डा̆क्टर बनिह
जिनका जे कहबा क कहौथ ग
हम जे चाहै छि से बनबे करब
आर किछु बनी वा नै बनी
निक मनुख हम बनबे करब

शनिवार, 2 जुलाई 2016

एकटा भगवती गीत (भास : जुदा हो के भी तू मुझमे कहीं बाँकी है - फिल्म कलयुग)

निरीह माँ हम, अहिंक बाट ताकै छी
जीवन में बनिक सुख-शांति
किये नै अहाँ आबै छी. निरीह माँ हम

जी रहल छी माँ हम एतय, आहिं भरोसे
भय आ कष्ट भ रहल अछि ह्रदय में
माँ चरण में अहिंक जीवन अर्पण केने छी
अम्ब अहिं छी भयहारिणी भवतारिणी
निरीह माँ हम, अहिंक बाट ताकै छी
जीवन में बनिक सुख-शांति
किये नै अहाँ आबै छी. निरीह माँ हम

छी बसल अम्ब अहाँ हमर ह्रदय में
मनोरम अहाँक छवि हमर नयन में
पुत्र छी माँ हम अहिंक जुनि बिसरियौ
अम्ब अहिं छी भयहारिणी भवतारिणी
निरीह माँ हम
माँ ..........श्यामा काली माँ-२ सुनु विनती माँ
उबारो हे माँ -२ बचाउ हे माँ .......
अम्ब अहिं छी भयहारिणी भवतारिणी
निरीह माँ हम

शुक्रवार, 17 जून 2016

Ram Vs Gangaram (राम बनाम गंगाराम)

यह वाकया मेरे बचपन की है जब मेरे बाबा (दादाजी) गुजर गए थे । उनके श्राद्धकर्म के दौरान गांव के प्रतिष्ठित रामनंदन पंडितजी रोजाना संध्याकाल गरूड पुरान की कथा बा̐चते थे । ये कथाएं काफ़ी रोचक और विस्मय से भरे हुआ करते थे ।  अत: मैं इन्हे खूब दिलचस्पी लेकर सुना करता था । इन्ही कथाओं के दौरान एक दिलचस्प प्रसंग आया जिसका सार निम्नानुसार था :

एक नगर में गंगाराम नाम का एक धनी सेठ रहा करता था । धर्म-कर्म में उसका कितना विश्वास था ये कह नहीं सकते किन्तु उसे अपना गुणगान सुनना एवं चाटुकारी  बहुत पसंद था । यह बात नगर के लोगों को मालूम था । एक बार उस नगर में कहीं से दो साधू आए । उन्होने कुछ दिन उस नगर में बिताने का निश्चय किया था । रोजाना लोगों से भिक्षा मांगकर लाते और जो रूखा-सूखा मिल जाता उससे अपना काम चलाते । इसी क्रम में उन्हे लोगों से ये मालूम हुआ की सेठ गंगाराम से उन्हे बहुत कुछ भिक्षा में मिल सकता है, किन्तु उन्हे इसके लिए उसका गुणगान एवं चापलूसी करना पर सकता है । पहला साधू सच्चे मन से साधू था अत: उसका मन ईश्वर में ही रमा रहता था जबकी दूसरे साधू को सांसारिक विषय-मोह ने घेर रखा था, अत: उसने निर्णय किया कि आगे वो भिक्षागमन के समय सेठ गंगाराम का गुणगान किया करेगा । अत: आगे से वो भिक्षागमन के समय गाता फ़िरता था कि "जिसको देगा गंगाराम उसको क्या देगा राम !" उसको इसका फ़ल भी मिला कि उसे गंगाराम एवं उसके चाटुकारों से अच्छी-खासी भिक्षा मिलने लगी और उसके दिन मजे में कटने लगे । किन्तु पहले साधू का मन राम में ही रमा रहा और वो गाता फ़िरता "जिसको देगा राम उसको क्या देगा गंगाराम!", भले ही उसे भिक्षा में रूखा-सूखा ही मिल रहा था । एक दिन गंगाराम ने सोचा कि ये दूसरा साधू सारे नगर में घूमघूम कर मेरा बहुत गुणगाण कर रहा है, जबकि पहलेवाला रामनाम की धुनी ही रमाता रहता है । इसलिए क्यों न इस दूसरेवाले साधू को मालामाल कर दिया जाए और पहले वाले को सबक सिखाया जाए । अत; उसने एक बडा सा तरबूजा मंगवाया और उसके अंदर ढेरसारी असर्फ़ी भरवा दी । फ़िर उसने दूसरे साधू को बुलवाया और उसे भिक्षा में वो तरबूजा दे दिया । यह देखकर दूसरे साधू को बहुत क्रोध आया कि मैने इसका इतना गुणगान किया और ये इसके बदले मुझे बस एक तरबूजा दे रह है ! ’खैर’ उसने वो तरबूजा एक फ़लवाले को दो रूपए में बेच दिए । संयोग से उस दिन पहले साधू का उपवास था । फ़लाहार के लिए वो फ़लवाले के पास गया और पांच रूपए देकर वही तरबूजा उसने खरीद लिया । आश्रम पहूंचकर जब उसने तरबूजे को काटा तो उसकी आ̐खें फ़टी रह गई । वो यह देखकर हैरान रह गया कि तरबूजे के अंदर स्वर्ण अशर्फ़ियां भरी हुई थी । इस प्रकार ’रामजी’ की क̨पा से पहला साधू धन-धान्य संपन्न हो गया था ।


आज भी मेरे मन:स्थल के समरक्षेत्र में राम और गंगाराम का संघर्ष जारी है और फ़िलहाल गंगाराम का पलडा भारी लग रहा है, किंतु ह̨दय क्षेत्र में कहीं राम के विजय की उम्मीद जगी हुई है ।  

सोमवार, 13 जून 2016

बुभुक्षा – लघु व्यंग कथा

एक सज्ज्न अक्सर एक ऐसे पथ से गुजरते थे जहां उन्हे बुभुक्षित मिल जाते थे । सज्जन व्यक्ति होने के नाते वो हमेशा ही उन्हे खाने को कुछ न कुछ दे दिया करते थे । एक दिन उनके साथ एक मित्र था जिसने उन्हे भुखों को खाना देते देखा । देखते ही मित्र ने सज्जन का हाथ पकडा और कहा "ये आप क्या कर रहे हैं!" सज्ज्न ने मित्र से कहा कि ये बेचारे भुखे हैं और खाना खाने से इन्हे त्रिप्ति मिलेगी , अत: सक्षम होने के नाते यह मेरा कर्तव्य है कि इन्हे खाना दूं । इस पर मित्र ने कहा कि इससे तो केवल इसके शरीर को त्रिप्ति मिलेगी जो की क्षणिक है । इससे अच्छा है कि इन्हे अच्छे भाषण सुनाओ, दिवास्वप्न दिखाओ जिससे इसके तन को नहीं बल्कि इनकी आत्मा को त्रिप्ति मिलेगी । सज्जन ने मित्र की बात को हल्के में लिया तो मित्र ने कहा रूको मैं दिखाता हूं । ऐसा कहकर मित्र ने उनलोगों को एक जबर्दस्त भाषण सुनाया जिससे उन भुखों के रोम रोम पुलकित हो उठे और उनके रूह तक उत्साहित हो उठे । जिससे वो अपनी भुख-प्यास तक भुल बैठे । अब मित्र अक्सर ही उन भुखों की आत्मा को अपने रसीले भाषण और दिवास्वप्न से नहलाने लगा था । किन्तु दिन बदिन उन बुभुक्षितों की क्षुधा बढती ही जा रही थी और एक दिन उनके धैर्य ने जवाब दे दिया और तब जब मित्र उनके आत्मा की क्षुधा मिटाने आए तो भुखे से रहा नहीं गया और उन्होने उचक कर मित्र की दाढी नोच ली ।

रविवार, 12 जून 2016

देखो एनबीई ने कायम की मिसाल रसीया

आया साल ७५,
भारत में स्वास्थ्य सेवाओं का हाल हुआ था बद्तर
खाली पडे. थे अस्पताल और
मिलते नही थे डाक्टर

तब श्रीमती इंदिरा गांधी
ने एक समिति बनाया
जिसकी अनुसंशा पर
एनबीई का गठन करवाया

करने स्नातकोत्तर डाक्टरों की
फ़ौज तैयार रसिया
देखो एनबीई ने कायम की मिसाल रसीया
जोरदार रसिया, बेमिसाल रसिया

विदेशी चिकित्सा स्नातक
बनने लगे थे घातक
बिना ग्यान की डिग्री भाई
कामयाब हो कहां तक ?

तब सुप्रीमकोर्ट आगे आया
स्क्रीनिंग टेस्ट रेग्युलेशन लाया
एमसीआई में पंजीकरण के
नए नियम बनाया

बनाया एनबीई को एफ़एमजी
करवाने का जिम्मेवार रसिया
देखो एनबीई ने कायम की मिसाल रसीया
जोरदार रसिया, बेमिसाल रसिया


डीएनबी एडमिशन
होता था बिना परमिशन
भाई-भतीजे से भरने लगे थे
अस्पताल और इंस्टीच्युशन

एनबीई ने तब सोचा
कुछ तो है भाई लोचा
पारदर्शिता लाकर क्यूं न
बंद करें ये सिस्टम ओछा

बनाया केंद्रिक्रित कांउसेलिंग को
प्रवेश का आधार रसिया
देखो एनबीई ने कायम की मिसाल रसीया
जोरदार रसिया, बेमिसाल रसिया


हमने भलीभांति ये जाना
अगर है ग्यान बढाना
बडे. शोधकर्ताओं को होगा
आपस में मिलवाना

इसीलिए तो हाए
एनबीई ने किए उपाय
बडी संस्थाओं में जाकर कितने ही
सीएमई और कान्फ़्रेंस कराए

बढाया डीएनबी ट्रेनी और शिक्षकों
का ग्यान रसिया
देखो एनबीई ने कायम की मिसाल रसीया
जोरदार रसिया, बेमिसाल रसिया


वर्ष २०१२ आया
एनबीई ने परीक्षाओं में
नए तकनीकि अपनाया
एमसीक्यू परीक्षाओं को
पेपरलेस बनाया
प्रोमेट्रीक से करार करके
सीबीटी ले आया

करने झटपट रिजल्ट तैयार रसिया
देखो एनबीई ने कायम की मिसाल रसीया
जोरदार रसिया, बेमिसाल रसिया


पोस्टग्रेजुएट एडमिशन
बन गया था टेंशन
नए छात्रों के प्रवेश में कैसे
खतम करें करप्शन!
एनबीई तब आगे आया
नई योजना लाया
सरकारी तंत्र से मिलकर
नया समीकरण बनाया

लेकर आया तब एआईपीजीएमई
की सौगात रसिया
देखो एनबीई ने कायम की मिसाल रसीया
जोरदार रसिया, बेमिसाल रसिया


रुका यहीं नही भाया
एनबीई ने देश-विदेश में
अपना लोहा मनवाया
अंतर्रष्ट्रीय मंच पर भी
अपने कदम बढाया
मोरिसस में जाकर
डेंटल का एक्जाम कराया

किया सीजीएचएस भर्ती भी
कामयाब रसिया
देखो एनबीई ने कायम की मिसाल रसीया
जोरदार रसिया, बेमिसाल रसिया



ऐसा समय भी आया
डीएनबी ने देश विदेश में
ऐसा नाम कमाया
बनाया डीएनबी को तब
बराबरी का हकदार रसिया
देखो एनबीई ने कायम की मिसाल रसीया
जोरदार रसिया, बेमिसाल रसिया

मनाया एनबीई ने अपना ३४वां साल रसिया
जोरदार रसिया, बेमिसाल रसिया

(२९.०२.२०१६) 

शनिवार, 26 सितंबर 2015

पढने की बेचैनी




बिहार विधानसभा का चुनाव जबकि सर पर है, सभी प्रमुख और छोटे दाल विकास के नाम पर जातिगत समीकरण बनाने में पसीना बहा रहे हैं | मुद्दे के नाम पर इन नेताओं और दलों के पास जिंदाबाद-मुर्दाबाद, तू-तू-मैं-मैं, एक दूसरे को अनाप-शनाप गाली और आरोप के तौफे देने और चुनावी जुमलेबाजी के शिवाय कुछ है नहीं | और ऐसा शायद इस लिए है की जनता इनको वास्तविक मुद्दों पर घेरना ही नहीं चाहती है, चाहे वो फेसबुक-ट्विटर पर हों या वास्तविक धरातल पर ! 
मैं बिहार का वोटर नहीं हूँ, किन्तु बिहार मेरा गृह राज्य है इस नाते बिहार के विकास और इससे जुड़े मुद्दों के प्रति मैं उत्सुक भी रहता हूँ और उत्साहित भी | मेरी नजर में धरातलीय कई मुद्दे हैं जिन्हे बिहार के विकास के सम्बन्ध में अमल में लाया जाना चाहिए | इनमे से एक प्रमुख मुद्दा शिक्षा तथा शैक्षणिक संस्थानों के विकास का है | 

इस मुद्दे पर मैंने २००९-१० के समय भी नीतिश कुमार के कार्य से असंतुष्टि जताई थी और उसकी आलोचना की थी जिस वक्त आज नीतिश को गाली देनेवाले और उन्हें आतंकवादी का साथी तक करार देनेवाले भाजपाई भक्त ने सर पर बिठा रखा था | और आज भी इस दिशा में उल्लेखनीय परिणाम नहीं दीखता है | 


२३ सितम्बर के टाइम्स ऑफ़ इंडिया में इस मुद्दे पर सुपर ३० के आनंद सर और अभयानंद सर के हवाले से छपी एक खबर को पढने के बाद मैं एकबार फिर इस मुद्दे को उत्साह से देख रहा हूँ |


वर्ष २००० में झारखंड के अलग हो जाने के बाद बिहार के हिस्से में बाढ़ और सुखार के अलावा कुछ ख़ास नहीं आया, खासकर के उत्तर बिहार (मिथिला) के क्षेत्र में | इस क्षेत्र का एक मात्र संसाधन शिक्षा है | आज भी इस क्षेत्र के सुदूर इलाकों में आप ८-१० बच्चों को एक ही लालटेन या बल्ब के रौशनी में बैठकर पढ़ते देख सकते है | अत: बिहार के विकास के लिए आवश्यक है की राज्य में अधिक से अधिक स्मार्ट विद्यालयों का विकास हो | यद्यपि इस मामले में यह तर्क दिया जा सकता है कि नीतिश कुमार के पिछले ९-१० वर्षों के शासन काल में बहुत से विद्यालयों का निर्माण एवं शिक्षकों की भर्ती हुई है | किन्तु स्मार्ट विद्यालय उसे नहीं कहा जा सकता है जहां मध्याह्न भोजन, कुछ कल्याणकारी योजना और शिक्षकों का संख्या बल हो | स्मार्ट विद्यालय बनाता है स्मार्ट शिक्षकों से जिनमे पढ़ाने की काबिलियत और जज्बा दोनों हो | लालू-राबड़ी और उनके पूर्ववर्ती कालों में जहां शिक्षा एवं शिक्षण संस्थान ध्वस्त होते गए थे वहीँ नीतिश कुमार के शासन काल में इन्हे मजबूत करने के प्रयास तो हुए किन्तु ये प्रयास परिणामोन्मुखी न होकर लीपा-पोती ज्यादा रहे | शिक्षकों के भर्ती का पैमाना पढ़ाने के प्रति उनकी क्षमता और लगन को न बनाकर भिन्न-भिन्न कालखंडों में उनकेद्वारा प्राप्त डिग्री एवं अंक(मार्क्स) को बनाया गया | परिणामस्वरूप शिक्षकों के नाम पर गदहों की फ़ौज ठेल दिया गया इन विद्यालयों में (क्षमा करें यही शब्द मिला मुझे इनके सम्बोधन के लिए) | यही कारण हुआ की कल्याणकारी योजनाओं का लाभ लेने के लिए इन विद्यालयों में नामांकन में तो लगातार वृद्धि हुई किन्तु यहाँ पंजीकृत आर्थिक रूप से सक्षम छात्र जहां निजी विद्यालयों में शिक्षा ले रहे हैं वहीँ कामजोर वर्ग के छात्र इन अक्षम शिक्षकों से अतिनिम्नस्तरीय शिक्षा लेने को अभिशप्त है और परीक्षाओं में उत्तीर्ण होने के लिए इन्हे कदाचार का सहारा लेना पर रहा है | 

वर्ष २०१३ में दस हजार से अधिक शिक्षामित्र राज्य सरकार द्वारा लिए गए योग्यता परीक्षा में असफल रहे थे | सफल रहे शिक्षकों में भी एक बड़ी संख्या नक़ल और जुगाड़ से सफल रहे लोगों की रही होगी इस संभावना से इंकार नहीं किया जा सकता है | 

तब इस समस्या का हल क्या हो ? इसका हल यह हो सकता है सरकार इन शिक्षकों को समय-समय पर और व्यापक रूप से प्रशिक्षण दे एवं इनके समुचित वेतन की व्यवस्था करे| अच्छे शिक्षकों को सम्मानित एवं पुरस्कृत किया जाना चाहिए |  यद्यपि इनके वेतन को नियमित कर के सरकार ने एक हल तो दे ही दिया है | अत: सरकार से अब व्यापक स्टार पर यह मांग होनी चाहिए की इन शिक्षकों को शिक्षण तकनीक एवं जिम्मेदारी की पेशेवर समझ स्थापित करने के लिए व्यापक स्टार पर प्रशिक्षित किया जाए | इसके लिए राज्य सरकार केंद्रीय विद्यालय संगठन, नवोदय विद्यालय समिति, विश्वविद्यालय स्तरीय शिक्षण संगठनो आदि से सहयोग मांग सकती है | एक अन्य समस्या इन शिक्षकों के चुनाव, सर्वे, पंचायत एवं प्रखंड स्तरीय कार्यों में लगाने तथा इनमेसे बहुतों का अपने निजी व्यवसाय में जुड़े होने से है | अत: इस सम्बन्ध में आनेवाली सरकार से उम्मीद करनी चाहिए की वो इन शिक्षकों को शिक्षण के अलावा अन्य कार्यों में काम से काम लगाएगी तथा विद्यालय में इनके समुचित उपस्थिति को सुनिश्चित करेगी और इस सम्बन्ध में कठोर कार्यवाही करने से नहीं चूकेगी | 

दूसरा मुद्दा उच्च एवं तकनीकी शिक्षा का है | बिहार में जहां आनंद सर और अभयानंद सर जैसे शिक्षक उपस्थित हैं जिनके सुपर ३० के ३० के ३० छात्र आईआईटी या अन्य बड़े अभियांत्रिकी संस्थानों में हर साल प्रवेश पा रहे हैं, बिहार, जहां के एक ही गाॉव से १८ बच्चे आईआईटी जी (एडवांस) उत्तीर्ण कर लेते हैं, जहां के बच्चे कर्नाटक, तमिलनाडु, बंगाल, उड़ीसा, एमपी, यूपी हर जगह के इंजीनियरिंग और मेडिकल कालेजों की शोभा बढ़ा रहे हैं वहां उच्च गुणवत्ता वाले उच्च एवं तकनीकी शिक्षण संस्थानों का सुखा पड़ा है | नीतिश कुमार के १० वर्षों के शासन काल को इस कसौटी पर भी कसना चाहिए |, जिस समयावधि में मेरे जानकारी में राज्य सरकार ने कोई बड़ा इंजीनियरिंग/मैडिकल या प्रबंधकीय संस्थान स्थापित नहीं किया है | इस दौरान राज्य में निजी संस्थानों की स्थापना भी कोई उल्लेखनीय नहीं रहा है | न ही इस सम्बन्ध में मैंने कभी राज्य सरकार को कोई उत्साहवर्धक कार्य का घोषणा करते देखा-सुना है | 

अत: जनता यदि विकास को सचमुच में मुद्दा बना रही है तो इन पार्टियों/उम्मीदवारों से यह आस्वासन अवश्य ही मांगनी चाहिए कि आनेवाली सरकार इन मुद्दो को प्राथमिकता देगी और अधिक से अधिक स्मार्ट विद्यालयों एवं उच्च शिक्षण संस्थानों के विकास के लिए साकारात्मक एवं परिनामोनमुखी प्रयास करेगी ताकि बिहार के अधिक से अधिक छात्रों के "पढने की बेचैनी" मिट सके और उनका मेहनत पर विशवास कायम रह सके | यदि ऐसा होता है तो बिहार का समृद्ध मानव संसाधन निश्चित ही बिहार को विकास के पटरी पर दूर तक ले के जाएगा | बाँकी तो जो है सो हैए है | 
नमस्कार

गुरुवार, 10 सितंबर 2015

कागज़ को जलते देखा है ।

बस स्टॉप के कोने में
कूड़े की एक ढेर पर
कागज़ को जलते देखा है |

जीवन के आपाधापी में
खबरें बनते हैं खो जाते हैं
ऐसे ही कुछ खबरों को
कागज़ संग जलते देखा हैं
कागज़ को जलते देखा है |

यहाँ कर्ज में डूबे किसान नए हैं
आरक्षण के मांग नए हैं
कार्यकर्ता संग नेताओं को
धरने पर बैठे देखा हैं
कागज़ को जलते देखा है |

यहाँ विज्ञापन के शान नए हैं
थाली में सजे पकवान नए हैं
पर ऐसे भी कुछ बच्चे हैं जिन्हे
रोटी को मचलते देखा हैं
कागज़ को जलते देखा है |

यहां माया भी हैं, आध्यात्म भी हैं
उपहारों की सौगात भी हैं
झूठी दौलत शोहरत के लिए
रिश्तों को मरते देखा हैं
कागज़ को जलते देखा है |

यहां खेल भी हैं, व्यापार भी हैं
पेज-३ के कागज़ चार भी हैं
भावनाहीन बाजार तो हैं
पर शेयर के कुछ भाव भी हैं
सोने-चाँदी के कीमत को
चढ़ाते और गिरते देखा हैं
कागज़ को जलते देखा है |

शहर गाँव गली घुमा
हर ओर नजर को फेर लिया
इनकी तस्वीर नहीं बदली पर
बड़े रंगीन विज्ञापन में, मंत्री के
तस्वीरों को बदलते देखा हैं
कागज़ को जलते देखा है |

यहाँ रिक्तियां हैं, निविदा भी हैं
विज्ञापन की सुविधा भी हैं
महाजनो के साक्षात्कार भी हैं
पाठकों के कुछ सवाल भी हैं
प्रतिदिन कुछ नौनिहालों को
सूरज सा चढ़ता देखा हैं
कागज़ को जलते देखा है |
10.09.2015

रविवार, 23 अगस्त 2015

सदाचार क तावीज (मैथिली लघु नाटिका)

पात्र: 
१. राजा (भानु प्रताप सकरवार)
२. सूचना एवं प्रसारण मंत्री (महिला)
३.वित्त मंत्री 
४. गृह मंत्री 
5. महामंत्री 
6. विशेषज्ञ (खट्टर झा)
7. शिष्य विशेषज्ञ-१
8. शिष्य विशेषज्ञ-२
9. साधू 
१०. शिष्य साधू -१
११. शिष्य साधू -२
12. कर्मचारी 

दृश्य - १
पृष्ठभूमि : (निगम देश में हल्ला मचल छल जे भ्रष्टाचार अनहद रुपे पसरि गेल अछि | ) राजा दरबार में चिंता के माहौल अछि |

राजा(भानु प्रताप सकरवार) मंत्रीगण सं : हे हमर मंत्री रत्न गण ! प्रजा बहुत हरबिर्रो मचा रहल अछि जे पूरा चौहद्दी में भ्रष्टाचार पसैर गेल अछि ! मुदा हम त आई धरि ई वस्तु के नै देखलहुँ अछि | यदि अहाँ सब के कतौ देखना में आयल होय त बतायल जाउ |

सूचना प्रसारण मंत्री : महाराज ! भ्रष्टाचार जखन हुजूरे के नजैर में  नै आयल, त हमारा लोकैन के कोना क देखयात ?

राजा(गदगद भाव सं): ईह ! एहन कोनो बात नै अछि, सूचना मंत्रीजी ! कखनो काल जे हमारा नजैर में नै आबैत हेतै ओहो त अहाँ सभ के देखना में आबैत होयत की ने | जेना मानि लिय जे हमरा त खराप सपना कखनो नै देख में आबै अछि , मुदा अहाँ सब त खरापो सपना देखैत हेबै !

वित्त मंत्री : जी देखैत छी महाराज | मुदा ओ त स्वप्न के बात अछि की ने | 

राजा : से बुझलौं, तथापि अहाँ सब सगरो राज्य में खोज पर निकलु आ पता करू जे कतौ भ्रष्टाचार त नै अछि | जौं कतौ भेट जाय त हमरा देख लेल नमूना नेने आयब | हमहुँ त देखी की आखिर ई भ्रष्टाचार होइ केहन अछि !

गृह मंत्री (चाटुकार अंदाज में) : हुजूर ओ हमरा सभ के नै देखा सके अछि | सुनबा  में आयल अछि जे ओ बड्ड महीन होइ अछि | हमरा सब के नजैर के त अहाँक विराटता देख के एतेक अभ्यास भ गेल अछि जे महीन वस्तु हमरा सब के देखाइते नै अछि |

राजा (गंभीर होइत) : तखन फेर की करल जाय ?

महामंत्री : महाराज ! अपनेक राज्य में एकटा जाति रहै अछि जिनका विशेषज्ञ कहल जाइ अछि | एहि जाति वर्ग के लग किछु एहन ऐनक होइ अछि जकरा अपन आइङ्ख पर लगा क ओ सब सूक्ष्म सं सूक्ष्म वस्तु के भी देख लैत अछि | अस्तु, सरकार सं ई निवेदन अछि जे ई विशेषज्ञ जातिए  के कोनो लोक के हुजूर ई भ्रष्टाचार के खोजय के काज सौंपैथ | 

राजा (हुक्म देइत) : बेस त ठीक अछि | विशेषज्ञ जाति के एकटा समिति गठित करल जाय आ हुनका राज दरबार में उपस्थित होय के आज्ञा देल जाय | 



दृश्य - २

द्वारपाल : महाराज के जय होय ! महाराज ! विशेषज्ञ खट्टर झा अपन समिति सदस्य सहित महाराज के दर्शन के अभिलाषी छैथ |

राजा (प्रशन्न होइत) : हुनका सभ के ससम्मान उपस्थित कैल जाय | 

(द्वारपाल चल जाइ अछि | खट्टर झा  के चेला सहित प्रवेश )

खट्टर झा (चेला सहित) : प्रणाम महाराज !

राजा : प्रणाम महोदय ! महोदय, जनता हरबिर्रो मचेने अछि जे राज्य में चौतरफा भ्रष्टाचार पसरल अछि | अस्तु हम जानै चाहै छी जे ई भ्रष्टाचार केहन होइ अछि ? की अहाँ के कतौ भ्रष्टाचार भेंटल अछि? 

खट्टर झा : जी महाराज कतेको रास भेंटल अछि |

राजा (हाथ बढबैत) : अच्छा ! त लाउ देखाबू त | देखी त केहन होइ अछि ई भ्रष्टाचार ?

खट्टर झा : सरकार, ओ हाथ के पकड़ में आब वाला नै अछि | ओ स्थूल नै अछि परंच सूक्ष्म अछि, अगोचर अछि | मुदा ओ सर्वत्र अछि | ओकरा देखल नै जा सकै अछि, बस अनुभवे टा कैल जा सकै अछि | 

राजा (सोच में पड़ैत) : मुदा महोदय ! सूक्ष्म , अगोचर आ सर्वव्यापी भेनाइ त ईश्वरक गुण अछि ! त की भ्रष्टाचार ईश्वर अछि ?

चेला १ : जी हं महाराज ! बेस कहलौँ  आब भ्रष्टाचार बुझू त ईश्वरे भ गेल अछि | 

सूचना एवं प्रसारण मंत्री : मुदा ओ अछि कत ? आ ओकर अनुभव कोना क कैल जाय ?

खट्टर झा (झौंक में) : ओ सर्वत्र अछि | एहि भवन में अछि | महाराज के सिंहासन में अछि ....

राजा (सिंहासन सं उछलैत्त ): सिंहासन में अछि .....!

चेला २ : जी हाँ महाराज, अहाँक सिंहासन में | पिछला महीना में एहि सिंहासन में रंग-रोगन करय के लेल जे बिल के भुगतान कैल गेल छल ओहि में सं आधा त अहाँक मंत्री सभ के ख़ास लोक सब खा गेल अछि |

खट्टर झा (बीचमे चेला के बिगड़ैत) : दूर बूड़ी ! तोरा बीच में बजनाइ जरुरी छौह |

(विशेषज्ञ के बात सुन के बाद राजा बड्ड चिंतित भ गेलाह  आ संगहि मंत्री सब के कान सेहो ठाढ़ भ गेल )

राजा : ई त बड्ड पैघ चिंता के गप्प अछि ! खट्टर महोदय, हम ई भ्रष्टाचार के बिलकुल जैड़ सं मेटाब चाहै छी | की अहाँ सब एकरा मेटाब के कोनो उपाय बता सकै छी जे ई कोना क मेटायत  ? 

खट्टर झा : जी हाँ महाराज | ऐ के लेल अपनेक एकटा योजना तैयार कर के होयत | भ्रष्टाचार मेटाब के लेल महाराज के व्यवस्था में  आमूलचूल परिवर्तन कर के पड़त | कोन कोन एहन कारण सब अछि जै खातिर मनुष्य भ्रष्टाचार में लिप्त रहै अछि ई सब विचार कर पड़त |

राजा : बेस, त ठीक अछि | अहाँ अपन योजना आ विचार सब के एकटा रिपोर्ट बना क अगिला तीस दिन के भीतर प्रस्तुत करू | 

खट्टर झा : जे महाराज के आज्ञा | ((चेला सहित प्रस्थान करै छथि ) 

दृश्य - ३ 

(दरबार में  दरबारी सब बैसल छैथ |)

राजा: महामंत्री जी | की भेल, आई तीस दिन पुरल जा रहल अछि मुदा एखन धरि विशेषज्ञ खट्टर झा समिति अपन रिपोर्ट नै प्रस्तुत केलाह  अछि ?

(तखने खट्टर झा के चेला समेत प्रवेश)

खट्टर झा : बंदा हाजिर अछि सरकार | ई लिय महाराज, ११०१ पृष्ठक ई रिपोर्ट |

राजा (आश्चर्य सं चकित होइत) : एत्तेक मोट रिपोर्ट !

खट्टर झा : जी महाराज | हमर समिति दिन रात्रि मेहनत आ रिसर्च क क ई रिपोर्ट तैयार केलक अछि | महाराज, समिति भ्रष्टाचार के कारण, तरीका आ निवारण के व्रिस्तृत अध्ययन आ शोध क क ई रिपोर्ट तैयार केलक अछि | भ्रष्टाचार के बहुत रास दृश्य आ अगोचर कारण सभ अछि |

राजा : जेना किछु दृष्टान्त दिय | 

खट्टर झा : जेना में की बेसिर पैरक विज्ञापन सब के बाढ़ि आबि गेल अछि जेकरा हम-अहाँ उपभोक्ता संस्कृति के नाम द देने छी मुदा एहि में भ्रष्टाचार के बीज सेहो छुपल अछि |

राजा : उपभोक्ता संस्कृत्ति ! से कोना ?

खट्टर : सरकार, उदहारण के लेल एकटा विज्ञापन लेल जाउ जाहि में देखबै अछि जे अमुक ब्राँडक कपड़ा पहिराला सं मुर्ख आ उदंड टाइप छौंड़ा के छोड़ी सब घेरने ठाढ़ अछि आ बगल में साधारण कपड़ा पहिरने एकटा सीधा-सदा युवक हीन भावना सं ग्रसित भ रहल अछि | कखनो विज्ञापन में ई नै देखना में आयल अछि जे फलाना ब्रांड के कपड़ा पहिरला सं बालक कतेक चरित्रवान बनि गेल अछि | आ की बुधन कक्षा में प्रथम आबै अछि कियेकी ओ फलाना ब्रांड के जूता पहिरै अछि | 

महाराज, एहि तरहक विज्ञापन सब साधारण परिवार के बच्चा सब में कुंठा उत्पन्न क रहल अछि आ ओकरा सभ के भ्रष्टाचार के तरफ आकर्षित कय रहल अछि | 

महाराज, एकटा सज्जन हमरा कहै छलैथ जे की हुनकर बालक गाड़ी के लेल जिद्द केने छैथ | मना केला पर की अपन ओकाइत नै अछि ओ उत्तर देलैथ जे भुटकुन के बाबू ओकरा कोना गाड़ी दिएलखिन | उत्तर में जखन सज्जन कहलखिन जे भुटकुन के बाप त घूसखोर अछि  त बालक पलैट क जवाब देलखिन जे - अहाँक ईमानदारी के फायदे की जखन अहाँ बाइको नै दिया सकै छी !

आई-काल्हि के बालक-बालिका सब के ईमानदार बाप निकम्मा लाग लागल अछि हुजूर |

राजा (गंभीर मुद्रा में) : हूँ | दोसर कारण |

खट्टर झा : एकटा अन्य कारण शिक्षा के व्यवसायीकरण अछि महाराज |

राजा : से कोना ?

खट्टर : महाराज आई काल्हि इंजीनियरिंग, मेडिकल, मैनेजमेंट, लॉ आदि के पढ़ाई के लेल निजी क्षेत्र में जे संस्थान सब खुजि रहल अछि ओहि में स अधिकतर के एकमात्र ध्येय व्यावसायिक लाभ कमेनाइये रहि गेल अछि | एहि संस्थान सब में छात्र सभ सं पैघ रकम डोनेशन के नाम पर ल क प्रवेश देल जाइ अछि | आब घूस के बीया सं त बैमानी आ भ्रष्टाचारे  के फसल ने तैयार हेतै यौ सरकार ! 

राजा : हुंह | बेस कहलौँ तथापि शिक्षा के विकास के लेल त निजी शिक्षा संस्थान आवश्यक सेहो अछि |

खट्टर झा ; अरे सरकार, आशय एत शिक्षा के शुद्ध लाभक व्यवसाय बनाब से अछि | प्राथमिक सं ल क उच्च शिक्षा तक बच्चा सब के केवल लाभ कमब के ट्रेनिंग देल जा रहल अछि | शिक्षा में नैतिक सामाजिक आध्यात्मिक मूल्य के नितांत अभाव प्राथमिक स्तर सं देखना जाइ अछि आ उच्च शिक्षा में त ई विलुप्ते बुझू | 

राजा : हुंह | अन्य कारण ?

खट्टर : एकटा अन्य पैघ कारण अछि भ्रष्टाचारी सभ के सामाजिक स्वीकार्यता आ प्रतिष्ठा सरकार |

राजा (विष्मय से) : अर्थात ?

खट्टर: हुजूर अपने जे राज्य के जनता के भलाई के लेल, ख़ास क क वंचित वर्ग के लेल जे मिड डे  मिल, ए.एन.एम, आशा, आंगनवाड़ी, मनरेगा आदि सामाजिक आ आर्थिक भलाई के योजना सब शुरू केलौ अछि, एहि सब में कार्यरत भ्रष्ट कर्मी सब जे अछि  से सब एहि योजना के राशि सं बड़का कोठा, गाडी आ सम्पइत ठाढ़ क लेलक अछि ओहि सम्पइत के वजह सं हिनकर सब के समाज में इज्जत आ प्रतिष्ठा बैढ़ जाइ अछि  | ईमानदारी से पढ़ाबय बला मास्टर सब के कोनो पूछ नै अछि  मुदा जे मास्टर इस्कूलक मुंह देखने बिना दरमाहा हठबाई अछि  आ पंचायत-प्रखंड में जा क नेतागिरी आ वन टू  का  फॉर करै  छथि हुनकर बड्ड नाम भ  रहल अछि | एतबे नै सरकार कतेको कुप्रथा सब सेहो एहने लोक सब के कारण प्रतिष्ठा के विषय बनि गेल अछि | जे जतेक बेसी तिलक-दहेज़  देइत-लैत अछि  समाज में ओकर ओत्तेक बेसी मान-प्रतिष्ठा होइ अछि | स्वाइत लोक सब विवाह-दान, दहेज़-लेन-देन आदि के लेल भ्रष्ट तरीका सं बेसी सं बेसी धन कमब में प्रवित्त भेल अछि | 

ई सब  सुनैत सुनैत राजा साहब के माथ दुखाय लगलन (ओ माथ पर हाथ धरैत बीच में बात काटैत बजलाह : ठीक अछि  महोदय अहाँ अपन रिपोर्ट देने जाउ । मंत्री मंडल एकर अध्ययन क उचित कार्यवाही करता । 
(खट्टर झा रिपोर्ट सौंप क ओतय सं विदा होयत छैथ )

दृश्य ४

राजा (चिंतित मुद्रा में )

सूचना एवं प्रसारण मंत्री : चिंता के कारण अहाँक स्वास्थ्य दिनोदिन खराब भेल जा रहल अछि महाराज | ओ विशेषज्ञ सरबा सब अहाँके अनेरे झंझट में फंसा देलक |

राजा : हाँ, आइकाल्हि हमरा राति-राति धैर चिंता के मारल निन्न नै आबै अछि | की करी ना करी किछु फुरा नै रहल अछि |

वित्त मंत्री : मार बाढ़ैन ध क | एहन रिपोर्ट के त आइग लगा देब के चाही जेकरा चलते महाराज के नींद में खलल पड़ै |

राजा : लेकिन करी की ? अहों सब त रिपोर्ट के अध्ययन केलहुँ अछि | अहाँ सब के की राय-विचार अछि ? की ऐ रिपोर्ट के अमल में लाब के चाहि ? 

गृह मंत्री : ई योजना की अछि एकटा मुसीबत अछि सरकार | एकरा जों लागू करै के चेष्टा करी त सबटा व्यवस्थे में उलट फेर भ जायत | अपने सब के किछु एहन कर के आवश्यकता अछि जाहि सं व्यवस्था में बिना किछु उलट फेर केनेहे भ्रष्टाचार समाप्त भ जाय |

राजा : हमहुँ त इहे चाहै छी | मुदा से संभव कोना के होय ! हमर परबाबा के त जादूओ टोना आबै छलैन मुदा हमरा त ओहो नै आबै अछि |

(तखने महामंत्री के एकटा साधू समेत प्रवेश )

महामंत्री (हर्षित मुद्रा में) : महाराज अहाँ चिंता जुनि करू | अहाँक समस्या के समाधान हम ल क एलहुँ अछि |

राजा : से की यौ ? जल्दी बाजू | हमारा सब्र नै अछि एही मामिला में |

महामंत्री : सरकार हम अपना संगे ई महान साधक के जोहने एलहुँ अछि जे कइएक वर्ष धरि  खोज आ तपस्या के पश्चात सदाचारक तावीज बनौलैथ अछि जे मन्त्र सं सिद्ध कैल गेल अछि आ जेकरा बांधला सं मनुष्य स्वत: सदाचारी भ जाइ अछि | 

(साधू अपन झोरा  सं तावीज निकालि क राजा के दैत अछि | )


राजा: हे महात्माजी एहि तावीज के विषय में हमरा विस्तार से बुझाउ |

साधू (दार्शनिक अंदाज में ) : हे राजा, भ्रष्टाचार आ सदाचार मनुष्य के आत्मा में वास करै अछि ; विधाता मनुष्य गढ़ई काल में आत्मा में एकटा यंत्र फिट क दैत छैथ जाहि में सं ईमान अथवा बैमानी के स्वर निकलै अछि , जेकरा आत्मा के पुकार कहल जाइ अछि | 

त प्रश्न ई उठै अछि जे जिनका आत्मा सं बैमानी के स्वर उठै अछि ओकरा दबा क ईमान के स्वर कोना निकालल जाय ? एहि विषय पर कइएक वर्ष धरि शोध आ तपस्या के पश्चात हम ई तावीज बनेबा में सफल भेलौ महाराज | जै मनुष्य के बाँहि पर ई बान्हल रहत ओ सदाचारी बैन जायत | 

राजा : मुदा एकर की गारंटी ?

साधू: महाराज ई तावीज टेस्टेड अछि | हम एकर प्रयोग बिलाड़ियो पर क क देखने छी | ई तावीज बन्हला सं बिलाड़ियो रोटी नै चोरबई अछि | येह ई तावीज के खासियत अछि महाराज | 

(दरबारी सब उठी उठी क तावीजक तजबीज कर लागै छैथ )

राजा (प्रसन्न मुद्रा में हाथ जोड़ैत ) : हम अपनेक बड्ड आभारी छी महात्मन | अपने हमरा घोर संकट सं उबारलहुँ अछि | हम सर्वव्यापी भ्रष्टाचार सं बड्ड परेशान छलहुँ आ एकरा रोक में असमर्थ भेल छलहुँ| मुदा हमरा एकटा नै अपितु करोड़ो तावीज चाहि | हम राज्य के तरफ सं तावीजक कारखाना खुलबा दैत छी आ अहाँ के ओकर सी.ई.ओ बना दैत छी | की औ मंत्रीगण ई प्रस्ताव पारित होय की ने ?

वित्त मंत्री : मुदा एकर की आवश्यकता सरकार ! राज्य एतेक झमेला में किये परौ ! किएक नै एकरा लेल टेंडर निकालल जाय आ चुनिंदा एजेंसी सब के एकर ठेका द देल जाय | आ साधू महाराज सं ई फार्मूला के पेटेंट अधिकार राज्य के तरफ स अधिगृहीत क के ओहि कंपनी सब के द देल जाय | एहि सं अतिशीघ्र तावीज उत्पादन के कार्य संभव भ जायत आ राजदरबार एहि झंझट से सेहो उबरल रहत | 

राजा: ठीक अछि | साधू महाराज के उचित सत्कार कय के विदाय कैल जाय | आ हिनकर बौद्धिक सम्पदा ई तावीज  फार्मूला के जनहित में राज्य के तरफ सं अधिगृहीत कैल जाय | आ यथाशीघ्र टेंडर के कार्य पूरा क के तावीज के उत्पादन शुरू कैल जाय |

(अगिला दिनक  अखबार के खबर - "सदाचार क तावीज के खोज | जल्दीये तावीज बनाब के फैक्ट्री खुजत आ जनता के तावीज मुफ्त उपलब्ध करैल जायत तथा नागरीय सुविधा लेब लेल तावीज पहिरनाई अनिवार्य कैल जायत ")

(पटाक्षेप )

दृश्य - ५

राजा अपना आप सं : - सदाचार के तावीज त बनि गेल | आब एकदिन भेष बदैल क देखबाक चाहि जे ई ठीक ढंग सं काज करै अछि की नै |

(फेर राजा भेष बदैल क एकटा कार्यालय पहुँचैत अछि )

ओतय एकटा कर्मचारी सं राजा : नमस्कार बड़ा बाबू |

कर्मचारी : नमस्कार | कहु की सेवा कैल जाय |

राजा : हुजूर हमर एकटा टेंडर पास होबय के अछि अहाँ एत सं | 

कर्मचारी : ठीक छै, टेंडर अखन प्रक्रिया में अछि | अगिला हफ्ता परिणाम आबि जायत | जे सबसँ योग्य उम्मीदवार हेथिन हुनका नाम सं टेंडर खुजत |

राजा (5०० के नोट दैत ) : हे ई लिय हुजूर बच्चा सब के लेल मिठाई खातिर राखि लिय | नाचीज के बनवारी लाल कहल जाइ अछि बस एतेक ख्याल राखब |

कर्मचारी ( डाँटे के मुद्रा में ) : बेशर्म ! लाज नै होय छह  घुस दैत | भागै छह एतय सं की बजाबी पुलिस के |

(राजा लंक ल क पराई छैथ | )

(किछु दिन बाद एक दिन फेर राजा ओहि कर्मचारी लग जाय अछि )

राजा (फेर से ५०० के नोट पकराबैत ) : हुजूर ई बाल-बच्चा के मिठाई खातिर राइख़ लिय | बस हमर टेंडर के ध्यान राखब | 

(एहि बेर कर्मचारी नोट राइख ले अछि )

राजा (क्रोधित होइत ) : हम अहाँक राजा छी | अहाँ घूस लैत रांगल हाथ पकड़ल गेलहुँ अछि | अहाँ घूस कोना क लेलहुँ ? की अहाँ सदाचारक तावीज नै बंधने छी ? 

कर्मचारी (डरे कँपैत स्वर में ) बांधने छी महाराज | ई देख लिय (देखबै अछि ) |

(राजा आश्चर्य सं तावीज में कान लगबै अछि ) 

तावीज सं आवाज आबै अछि : "आई त ३० तारीख छै आई त ल ले नै त फेर आई कनियाँ आ बाल-बच्चा सब अपन अपन मांग ल क  बेज्जत आ गंजन करतौ | 

ई सुनैत राता के तावीज के उत्पादन में गड़बड़ी के भान भ जाइ अछि आ ओ अपन माँथ पीट ले अछि | 

(पटाक्षेप )

(ई नाटिका हरिशंकर परसाई जी क एकटा निबंध सं प्रेरित अछि )