मंगलवार, 11 अप्रैल 2017

अरजल जमीन (मैथिली कथा )

"की भेल यौ, कोनो निदान भेटल कि नै?" लालकाकी लालकक्का के दुआरि पर कपार धऽ कऽ बैसल देख के बजलिह।

कहां कोनो बात बनल, ओ त  अडल अछि जे नै अहांक के त पाई देबैये पड़त नै त ई जमीन हम आन ककरो हाथे बेच देब आ अहां के बेदखल होबय पड़त।

आ पंच सब कि बाजल? 
पंच सभ की बाजत, कहै ये जे अहां लग पाई देबाक कोनो सबूत नै अछि , नै अहां के नाम सं जमीन लिखायल गेल अछि त इ बात कोना मानल जाय जे अहां ई पांच कट्ठा जमीन कीनने छि! बेस त किछ बीच के रस्ता निकालल जा सकै अछि । आब देखियौ जे काइल्ह कि फ़ैसला होई अछि।

बात इ छल जे करीब पच्चीस-तीस बरष पहिने लालकक्का अपन्न मेहनत आ श्रम के कमाई सं पांच कट्ठा घरारी के जमीन गामक जमीनदार ’सेठजी’ से कीनने छलाह । ओइ टाइम में जवान जुआन छलाह, कलकत्ता के एकटा मील में नौकरी करै छलाह, किछु पाई भेलैन त माय कहलखिन जे एकटा घरारी के जमीन कीन ले। बेस त किछु जमा कैल आ किछु ईपीएफ़ के पाई निकाईल के इ सेठजी से पांच कट्ठा घरारी के जमीन कीन नेने छलाह. मुदा भांगट एतबे रहि गेल छल जे ओ जमाना शुद्धा लोक सभ के जमाना छल, लिखा-परही, कागज-पत्तर गाम घर में कहां होई छल ओइ टाईम में ! बस मुंहक आश्वासन चलै छल । से लालकक्का के इ घरारी के दखल त भेंट गेल छल मुदा जमीन के रजिस्ट्री नै भेल छल। इ गप्प सब लालकाकी के बुझलो नै छल। के ओई जमाना में इ गप सब अपन नबकनियां के बतबै छल! बेस लालकक्का धीरे-धीरे ओय बंसबिट्टी के उपटेलाह, आ किछेक साल में एकटा छोट छिन पक्का के घर बना लेलाह. ओई टाईम में गाम में गोटैके घर पक्का के बनल छल, तखन लालकक्का के नाम सेहो बजै छल गाम में । बाद में जुआनी गेलैन आ काजो छुटलैन, आ ओ गाम धेलाह। गाम में कोनो बेसी खेत पथार त छलैन ने जे ओहि में लागल रहितैथ, तखन कोहुना समय कैटिये रहल छल ।ओना लालकक्का के इ व्यक्तिगत विचार छल जे लोक  के जीवन में तीन टा कर्म पूरा करबा के रहै अछि – घर बनेनाई, बेटी बियाह आ बेटा के अपन पैर पर ठारह रहै योग्य बनेनाई । से लाल कक्का इ तीनो काज सं निश्चिंत भ गेल छलाह आ कखनो गाम में त कखनो बेटा लग में जीवन बिताबय लगलाह। 

मुदा किछु दिन पहिने एकटा एहन बम फ़ूटल जै कारणे लालकक्का के अपन अरजल घरारी हाथ सं निकलैत बुझना गेलैन । जेना होमय लगलैन जे जीवन में किछु नै केलहुं। बात इ भेल छल जे अचानके से गाम में बात ई उठल  जे हिनकर घरारी के जमीन त हिनका नाम पर अछिए नै। सेठजी के मुईला उपरांत इ जमीन हुनकर बडका बेटा के नाम पर चढा देल गेल छल आ आई सेठजी के मुईला के कतेक बरष उपरांत जमीनदारजी इ जमीन ककरो आन के बेचय के बात कय रहल छलाह। लालकक्का के जखन ई खबर दलालबौआ द्वारा लगलैन ओ जमीनदारजी लग जाय कहलखिन जे औ जमीनदारजी! ई कि अन्याय करै छि। इ घरारी हम अहांक बाबूजी से किनने छलहुं चारि हजार कट्ठा के भाव से बीस हजार रूपया में से अहुं के बुझल अछि, अहां के सामने पैसा गिन के देने छलहुं। कतेको बरष से एहि घरारी पर घर बना के वास कय रहल छि, से ओय समय में त लीखा परही भेल नै छल, आब अहां करै चाहै छि त इ जमीन हमरा नामे लिखियौ। इ बात पर जमीनदारजी भौं चढा के बजलाह जे देखू अहां दूइए कट्टा के पाई देने रही आ बांकि के तीन कट्टा में एहिना बास क रहल छी, से जौं यदि अहां सभटा जमीन लिखबऽ चाहै छि त लाख रूपए कट्ठा के दर से तीन लाख टाका लागत आ नै जौं अहां लग पांच कट्ठा जमीन कीनय के कोनो सबूत अछि त से बताबु। एतेक घुड़की लालकक्का सन शुद्धा लोक के विचलित करय लेल बहुत छल । तथापि ओ हिम्मत कऽ के बजलाह जे यौ श्रीमान एना कोना अहां बाजि रहल छि अहांके सामनेहे हम अहां बाबू से ई जमीन कीनने छलहुं आ कतेको बरष सं एतय रहै छि, आई सं पहिने त अहां किछु नै बजलहुं । बीच में दलालबौआ बजलाह जे  कक्का अहां लग लेन-देन के कोनो सबूत कोनो कागज ऐछ कि? यदि नै अछि त फ़ेर त पंचैति करा क जे निर्णय होय अछि से स्वीकार करय परत अन्यथा अहां के ओइ जमीन से बेदखल होबय परत ।

काल्हि भेने पंचैति बैसल – पंचैति कि बुझु, दलालबौआ, जमीदारबाबू, आ दू-चारि टा लगुआ-भगुआ । पंचैति में जमीनदारबाबू तीन लाख टका के मांग रखलैथ, लालकक्का सेहो अपन पक्ष रखलैथ। अंतत: ई निर्णय भेल जे लाल कक्का या त दू कट्ठा जमीन जै पर घर बनल अछि से सोझा जमीनदारबाबू से लिखा लियैथ आ नै जौं पांचो कट्ठा के घरारी चाहिएन त डेढ लाख टाका (जमीनदारबाबू द्वारा प्रस्तावित मूल्य के आधा) जमीनदारबाबू के देबय परतैन ।

लालकक्का कहियो सपनो में नै सोचने छलाह जे हुनका संगे एहनो कपट भ सकै अछि । मुदा आब कोनो चारा नै रहि गेल छल । बेटा के जौं इ बात कहलखिन त ओकर रिस्पोंस ठंढा छल. पहिने त अफ़सोच केलक जे बाबूजी अहां आई धरि ई बात नै मां लग बजने छलहु नै हमरा सभ लग। फ़ेर कहलक जे दूइए कट्ठा लिखा ने लिय, घरारी ल के की करब, हमरो सभ के कियौ  गाम में नै रह दै चाहै अछि आ साल में किछुए दिन लेल त गाम जाय छी। मुदा लालकक्का के लेल ओ जमीन कोनो धिया-पुता से कम छल की ! अपन पसीना के कमाय से अरजल घरारी। ओ निर्णय केलाह जे डेढ लाख टाका दऽ के पांचो कट्ठा लिखबा लेब। लिखबाय सेहो पचास-साठि  हजार टाका लगिए जाएत। माने जे आब सवाल छल दू लाख टाका के जोगार के । किछु पाई एम्हर-आम्हर से कर्ज लेलैथ । बांकि के लेल बेटा के कहलखिन त ओ कहलक ठीक छै अहां ओकर अकाउंट नं० भेजु हम दस-पन्द्रहदिन मे कतौ से जोगार क के ट्रांसफ़र क दैत छि। लाल कक्का जखन जमीनदारबाबू लग अकाउंट नं० मांगय गेलाह त एकटा नबे ताल शुरू भ गेल । जमीनदारबाबू कहलाह जे पाई त अहांके सभटा नकदे देबय परत से अहां अपना अकाउंट पर मंगबा लिय आ हमरा बैंक से निकालि क दऽ देब।

लाल कक्का सभटा गप्प बेटा के कहलखिन। बेटा कहलक जे नै ई ठीक नै अछि, ओ कैश में पाई ल के ब्लैकमनी बनबै चाहै अछि से अहां मना क दियौ। आ ओनाहुं जौं आइ अहां से पाई ल लेत आ पहिनेहे जेना मुकैर जायत तखन की करबै? से अहां साफ़ कहि दियौ जे जौं पाई बैंक के मार्फ़त लेताह त ठीक नै त हम नकद नै देब।

लालकक्का के  इ बुरहारी में एहन उपद्रव भेल छल दिमाग अहिना सनकल छल, तै पर से अपन अरजल जमीन हाथ से निकलि जाय के डर। तहि लेल शायद हुनका बेटा के इ आदर्शवादी बात निक नै लागल छल। उल्टा-सीधा सोचय लगलाह । भेलैन जे छौंडा  कहिं टारि त नै रहल अछि।

फ़ेर ध्यान पड़लैन अपन एफ़डी दऽ। करीब डेढ लाख हेतै। बड्ड जतन सं जमा क के रखने छलाह। कोनो मनोरथ लेल। पता नै शायद पोता के उपनयन लेल की अपने श्राद्ध लेल आ कि अपना बाद लालकाकी लेल से हुनकर मोने जनैत हेतैन कि लालेलाकी के।
एकाएक निर्णय केलैथ आ लालकाकी के कहलखिन जे एकटा काज करू – पेटी से हमर एफ़डी के कागज सभ निकालू त । लालकाकी उद्देश्य बुझैत कहलखिन जे धैर्य धरू ने, कंटीर कहलक अछि ने जे जमीनदारबाबू के अकाउंट नं० पठा देब लेल ओ पाई भेज देत, से कहै त ओ सहिए अछि कि ने – ईमानदारी के पैसा कमसेकम ईमानदारी से जमीनदरबा के भेटै ने, एकबार फ़ेर जाउ ओकरा से मांगियौ अकाउंट नं०, जौं पाई के ओकरा बेगरता छै त देबे करत ने।
हं! हम भरोसा कऽ के पछताय छी आ आब बेटा ईमानदारी देखा रहल अछि, ओहो पछतायत बाद में। यै, आब सज्जन आ ईमानदार लोक के जुग रहलै अछि! देखलियै नै कोना जमीन लेल दरिभंगा में एकटा के आगि लगा के मारि देलकै। ई लोभी आ बैमान दुनिया के कोनो ठेकान नै। तैं निकालू झट द कागज सब, आईए बैंक भ आबि।

आब एतेक सुनला के बाद लाल काकी की जवाब दऽ सकै छलिह । हुनका लग एतेक गहनो त नै छ्ल जे आवेश दैत कहितथि जे "त बेस इ गहने बेच दिय"। बस चुपचाप पेटी खोलि क कागज निकालै लगलिह।

मंगलवार, 21 मार्च 2017

रक्षिता (मैथिली लघु कथा)

आई रक्षिता भारतीय सेना के मेडिकल कोर्प में कमिशंड होबय जा छलिह । ऐ समारोह में हुनकर मां – पप्पा अर्थात रिद्धि आ रोहन सेहो आयल छलाह । रिद्धि के आई अपन बेटी के लेल किछु बेसिए दुलार आ फ़क्र बुझना जा रहल छल । समरोह में कुर्सी पर बैसल बैसल ओ पुरना खयाल में डूबि गेल छलिह ।
जखन पीजी - सुपर स्पेशलिटी के एंट्रेंस में रक्षिता नीक रैंक नेने छलिह तखन रोहन हुनका दिल्ली के एकटा जानल-मानल प्राईवेट मेडिकल इंस्टिच्युशन में प्रवेश लेब लेल कहने छलाह । ओ रक्षिता के बुझा रहल छलाह जे देखह बेटी ओ नामी कॉरपोरेट अस्पताल छै, नीक पाई भेटत, संगहि नाम आ शोहरत सेहो बढत त जिनगी ठाठ से कटत, तहि लेल कहै छि जे आर्मी अस्पताल में प्रवेश लेबय के जिद्द जुनि करू। ओतय अहां सं पहिनेहे बॉण्ड भरायल जायत आ पोस्ट डोक्टोरल (सुपर-स्पेशलटी) करय के बाद अहां के कैएक साल धरि सेना में जिवन घस पडत आ नै त लाखक लाख टका बॉन्ड  भरू ! मुदा रक्षिता कहां मानय वला छलिह, छुटिते ओ बजलिह: अहुं ने पप्पा किछु बाजि दैत छी! हमरा जतेक नीक एक्स्पोजर आ लर्निंग के सुविधा आर्मी अस्पताल में भेंटत ओहन सुविधा अहांक ओ कॉरपोरेट  अस्पताल में कतय सं भेटत! आ आर्मी अफ़सर के यूनिफ़ार्म देखने छी पप्पा कतेक चार्मिंग आ मस्त होई अछि ने, आ ओईपर सं आर्मी के रैंक पप्पा – सोचियौ जे डाक्टर के संगहि जौं हमरा कैप्टन , मेजर आ कर्नल रक्षिता रोहन के नाम सं पुकारल जायत त कत्तेक सोंहंतगर लगतै ने । आ अहां! ओना त टीवी डिबेट देख देख क हरदम सेना आ राष्ट्रवाद के जप करैत रहै छी आ आई जखन हम सेना के सेवा करय चाहै छी त अहां हमरा रोकि रहल छी! – इ सब गप्प ओ एक सुर में कहि गेल छलिह।

एत्तेक सब सुनला के बाद कहां रोहन हुनका रोकि सकल छलाह । आ फ़ाईनली ओ आर्मी अस्पताल में डीएनबी-प्लास्टीक सर्जरी प्रोग्राम में प्रवेश ल लेने छलिह। जिद्दीयो त ओ बहुत बडका छलिह । पीजी एडमिशन के टाईम पर सेहो रिद्धि हुनका सं कहने छलिह जे अहां लडकी छी अहि लेल लडकी बला कोनो स्पेशल्टी ल लिय – ओब्स गायनी, रेडियोलोजी या एहने सन कोनो मेडिकल स्पेशिलिटी ल लिय; कत्तौ, कोनो अस्पताल में आराम सं काज भेंट जायत  अ नै त अप्पन क्लिनिक सेहो खोलि सकै छी । फ़ेर विवाह दान भेला के बाद बर संगे एड्जस्ट्मेंट सेहो बनल रहत ।
"बर गेल अंगोर पर । हमरा त प्लास्टिक सर्जन बनै के अछि आ ओकरा लेल हमरा जनरल सर्जरी पढय के हेतै, त हम सर्जरी मे एडमिशन ल रहल छी बस । " – मां के बात के जवाब में ओ इ बात एक सुर में कहि गेल छलिह ।

रक्षिता बाल्यावस्थे सं  होनहार बच्ची छलिह आ एकर श्रेय वास्तव में रोहन के जाइ अछि ।  नेनपने सं ओकरा पढबै के जिम्मेवारी रोहन अपने सम्हारने छलाह ।  १०-१२ घंटा के ड्यूटी के बाद जखन ओ हारल थाकल घर आबै छहाल तखनो ओ  बड्ड लगन सं रक्षिता के बैसा क पढबै छलाह । हुनका पढबै खातिर समय निकालबा के चक्कर में कैएक बेर हुनका ऑफिस  में अपन अधिकारी से सेहो उलझय पडय छल । एहन स्थिति में कै बेर रिद्धि कहने छलिह जे कत्तौ ट्यूशन लगा दियौ, आई-कैल्ह बिना ट्यूशन के कहीं बच्चा पढलकै अछि, मुदा रोहन हुनकर गप्प कहियो नै सुनलाह ।  इंटर में गेला पर इ सब दास सर के संपर्क  में आयल छलाह, जे बड्ड योग्य शिक्षक छलाह, आ दास सर सेहो रक्षिता के पढबै में बहुत मेहनत केने छलाह, जेकर ई परिणाम छल जे रक्षिता एमबीबीएस के लेल सेलेक्ट भ गेल छलिह । जखन ओ दास सर सं गुरूदक्षिणा मांगय कहने छलिह त सर कहने छलाह जे "बेटी चिकित्सा मनुख क सेवा करय वला पेशा अछि, त जतेक भ सकै लोक सभ के सेवा करिह, यैह हमर दक्षिणा होयत । 
याद क पांइख लगा क रिद्धि अतित के गहराई में उतरय लागल छलिह । रोहन के संग हिनकर विवाह क कैएक वर्ष भ गेल छल मुदा हुनका कोनो संतान नै भेल छल । एक दिन अचानके स रोहन एकटा जन्मौटि नेना के कोरा मे नेने आयल छलाह आ ओकरा रिद्धि के कोरा मे राखि देने छलाह आ कहलाह जे "अपन बिटिया रानी"।
"हाय राम! इ केकर बच्चा उठा के नेने एलहु अछि?" रिद्धि रोहन से पुछने छलिह । रोहन उत्तर दैत कहने छलाह जे "हम अनाथालय में एकटा बच्चा लेल आवेदन केने छलहु, आई ओतय स खबर आयल छल जे एकटा जन्मौटी बच्चा के केयौ राइख गेल अछि अनाथालय में यदि आहां देखय चाहै छि त …….।" बस हम ओतय पहुंच गेलहुं आ एत्तेक सुन्नैर नेना के देख क झट हं कहि देलहुं आ सभटा फ़ोर्मलिटि पुरा कय क एकरा अहां लग नेने एलहु अछि।
"मुदा इ ककरो नाजाय बच्चा……"
"हा..हा..हा… बच्चा कोनो नाजायज नै होई अछि, नाजायज त ओकरा समाज बनबै अछि" रिद्धि के बात काटैत रोहन बजने छलाह, आ जवाब बे रिद्धि बस एतबे बजने छलिह जे "अहां एकर रक्षक भेलहु आ इ हमर रक्षिता अछि।"

अतितक गहराई में डूबल रिद्धि के कान में अचानक से रोहन के उ स्वर गूंजय लागल छल, आ हुनकर तन्द्रा तखन टूटल जब हुनका कान में रक्षिता के नाम गूंजल जे रक्षिता के कमिशनिंग आ बैज ओफ़ ओनर के लेल बजाबय लेल पुकारल गेल छल । रिद्धि के आंखि सं मोती जेका नोर टपकय लागल छल, कियेकि आई हुनकर बेटी एकटा आर्मी अफ़सर का एकटा कुशल प्लास्टिक सर्जन जे बनि गेल छलिह।

शनिवार, 18 मार्च 2017

बात बिहार में आधुनिक चिकित्सा शिक्षा-व्यवस्था के स्थिति की:

बिहार में पटना मेडिकल कॉलेज के अलावा दरभंगा  मेडिकल कॉलेज की स्थापना भी आजादी से पहले अर्थात 1946  में की जा चुकी थी । वर्तमान में राज्य में एम्स पटना सहित कुल 14 संस्थान हैं जहां एमबीबीएस पाठ्यक्रम के लगभग 1450 सीट उपलब्ध हैं अर्थात लगभग सत्तर हजार की जनसंख्या पर एक सीट।

इन 14 संस्थानों मे से दो की स्थापना जहां आजादी से पहले हो चुकी थी वहीं 12 मे से 5 (42%) की स्थापना पिछले दस वर्षों में नीतिश कुमार के शासन काल में हुई है। यद्यपि यह संख्या अपने आप मे अपर्याप्त है, और इन पांच में से एक(एम्स), भारत सरकार की संस्था है (जिसे पूर्व प्रधानमंत्री पं० अटल बिहारी बाजपेयी की देन कहा जाए), दो ट्रस्ट के अस्पताल हैं और अन्य दो, राज्य सरकार के अस्पताल । इनमे से बेतिया मेडिकल कालेज में छात्रों के लिए मूलभूत (मशीन और लैब) सुविधाओं के कमी की पोल-पट्टी कुछ माह पूर्व ही रवीश कुमार ने प्राईम टाइम में खोली थी ।

मीडिया के माध्यम से पता चला है कि राज्य सरकार, राज्य के पांच जिलों जिसमें बेगूसराय (मेरा ग̨ह जिला) और मधुबनी(जहां मेरा बचपन बीता है) भी शामिल है, में पांच नये मेडिकल कालेज खोलने वाली है और इसके लिए दो हजार करोड रूपए की मंजूरी दे दी गई है, यद्यपि इस विषय में राज्य सरकार से जानने की कोशिश की तो कोई जवाब नही मिला है ।

अब आते हैं बांकि के सात संस्थान पर, तो आजादी के बाद के 60 वर्षों में मेडिकल शिक्षा में राज्य सरकारों की यही उपलब्धि रही है! और इसमे भी लालू यादव के 15 वर्षॊं के राज को देखें तो उस दौरान एक भी संस्थान की स्थापना नहीं हुई। वैसे वर्तमान में उन्ही के पुत्र राज्य के स्वास्थ्य मंत्री बन के बैठे हैं; अत: उनके पास भी मौका है अपने माता-पिता के कर्महीनता (अथवा कहें की पाप) का प्रायश्चित राज्य में स्वास्थ्य शिक्षा व्यवस्था का विकास कर करें ।

राज्य के 14 संस्थानों में नौ राज्य सरकार के, एक केंद्र सरकार का एवं चार ट्रस्ट के संस्था हैं। मजेदार बात यह है कि राज्य में एक भी पूर्णत: निजी चिकित्सा संस्थान नहीं है (जिसके अपने नफ़ा-नुकसान है, जिसकी विवेचना फ़िर कभी), जैसा कि अन्य राज्यों मे देखने को मिलता है ।

राज्य में केवल पीएमसीएच और एम्स पटना ही ऐसी संस्थान है जहां एमबीबीएस की सौ से ज्यादा सीटें हैं ।

वर्तमान में जहां राज्य में करीब 1450 एमबीबीएस की सीटें है (जो कि स्वयं अपर्याप्त है) वहीं इसके मुकाबले स्नातकोत्तर पाठ्यक्रमों की कुल 525 के लगभग सीटे हैं (डिप्लोमा/एमडी/ एमएस/डीएम/ऎमसीएच/डीएनबी सब मिलाकर के) जो की एमबीबीएस के सीटों के आधी से भी कम हैं । अर्थात राज्य में एमबीबीएस करने वाले आधे से अधिक चिकित्सक या तो स्नातकोत्तर विशेषज्ञता हासिल नहीं कर पाते या फ़िर इसके लिए राज्य से बाहर पलायन कर जाते हैं जो कि राज्य में विशेषज्ञों की कमी का प्रमुख कारण है । यदि आप राज्य के चिकित्सा संस्थानों में कार्यरत शिक्षकों और राज्य के सरकारी अस्पतालों/ निजी क्लिनिक मे कार्यरत चिकित्सकों के अकादमिक रिकार्ड को देखें तो यह स्पष्ट हो जाता है कि ये शिक्षक अपने ही संस्थान या राज्य के किसी अन्य संस्थान से स्नातकोत्तर हैं वहीं सरकारी अस्पतालो/निजी क्लिनिक में कार्यरत अधिकांश चिकित्सक राज्य के किसी संस्थान से एमबीबीएस या डिप्लोमा हैं जिन्हें स्नातकोत्तर विशेषज्ञता हासिल करने का अवसर नही मिल सका। यह एक स्वाभाविक बात है कि जो कोई भी पढाई के लिए कहीं और जाएगा, निश्चित ही बाद में वह कार्य भी उसी क्षेत्र में करने लगेगा। अत: राज्य में चिकित्सा विशेषज्ञों की संख्या बढ़ाने के लिए स्नातकोत्तर सीट बढ़ाना आवसश्यक है। जहां एमबीबीएस के लिए पांच नए संस्थान खोलने की घोषणा की गई है वहीं स्नातकोत्तर के सीटों के बढोतरी के लिए सरकार कुछ खास करती दिख नहीं रही है ।

कुल मिला के देखा जाए तो आधुनिक चिकित्सा शिक्षा के व्यवस्था में फ़िलहाल तो राज्य सरकार काफ़ी पिछडी हुई दिख रही है, और इसे एक ठीक-ठाक स्तर तक पहूंचने के लिए अभी काफ़ी कुछ करने की जरूरत है ।

शनिवार, 4 मार्च 2017

रक्षिता (कहानी)


आज रक्षिता भारतीय सेना के मेडिकल कॉर्प मे कमिशंड होने जा रही थी । इस समारोह में उसके माता-पिता अर्थात रिद्धि और रोहन भी आए हुए थे । रिद्धि को आज अपने बेटी के लिए ज्यादा ही प्यार और फ़क्र महसूस हो रहा था । समारोह में बैठे-बैठे ही वो पुराने खयालों में खो गई थी ।
जब पीजी-सुपर स्पेसियालिटी के एंट्रेंस में रक्षिता अच्छा रैंक लायी थी तो रोहन ने उसे दिल्ली के एक मशहुर प्राइवेट मेडिकल इन्स्टीच्युशन में प्रवेश लेने को कहा था । वो रक्षिता को समझा रहे थे बेटा कोर्पोरेट हॉस्पिटल  है, अच्छे पैसे मिलेंगे, नाम और शोहरत बढेगी तो लाईफ़ ठाठ से कटेंगे, क्यों आर्मी हॉस्पिटल में एडमिशन लेने का जिद्द कर रही हो; वहां वो तुमसे बोंड भरवाएंगे और पोस्ट-डोक्टोरल के बाद तुम्हे सेना में कई साल घीसने पडेंगे! पर वो कहां माननेवाली थी उसने कहा था आप भी न पापा, कुछ भी हां! केवल पैसा ही तो सबकुछ नहीं होता है न पापा। मुझे जितना बढिया एक्स्पोजर और लर्निग फ़ैसिलिटी आर्मी अस्पताल में मिलेगा वैसा आपके उस कोर्पोरेट अस्पताल में कहां मिलेगा, और आर्मी अफ़सर की युनिफ़ार्म देखी है आपने कितनी चार्मिंग और मस्त होती है न; और उसपर से आर्मी का रैंक पापा – सोचो जब मुझे पुकारा जाएगा कैप्टन, मेजर फ़िर कर्नल रक्षिता रोहन। वॉव! इट्स साऊन्ड प्रिटि एक्साईटींग ना । और आप वैसे तो टीवी डिबेट देख-देखकर  हरवक्त सेना और राष्ट्रवाद का राग अलापते रहते हो और जब मैं सेना की सेवा करना चाह रही हूं तो आप रोक रहे हो। इसलिए प्यारे पापा, मैं आर्मी अस्पताल में ही डीएनबी-प्लास्टिक सर्जरी करुँगी |
इतना सब सुनने के बाद कहां रोहन रोक सका था उसे । जिद्दी भी तो बहुत बडी थी । पीजी एडमिशन के वक्त भी रिद्धि ने उसे कहा था कि लडकी हो, लडकियों वाली कोई स्पेशल्टी ले लो – ओब्स गायनी, रेडियोलोजी या कोई मेडिकल सब्जेक्ट ले लो। किसी भी अस्पताल में काम मिल जायेगा या अपना क्लिनिक चला सकती हो, फ़िर शादी के बाद पति के साथ एडजस्ट्मेंट भी बना रहेगा।
"पति गया तेल लेने, मुझे प्लास्टीक सर्जन बनना है जिसके लिए मुझे जर्नल सर्जरी पढना होगा तो मैं सर्जरी में एडमिशन ले रही हूं बस ।" - मां के बात के उत्तर में उसने ये एक सांस में कहा था ।

रक्षिता बचपन से ही होनहार लडकी थी और इसके लिए रोहन को भी क्रेडिट जाता है, बचपन से ही उसको पढाने की जिम्मेवारी उसने ले रखी थी, १०-१२ घंटे की ड्य्टी के बाद वो हारा थका आता फ़िर भी वो रक्षिता को पढाता था। इसके लिए समय निकालने के लिए कई बार उसे ओफ़िस में बोस से उलझना भी   पडता था, रिद्धि तो कहती थी की ट्यूशन लगा दो कहीं, पर रोहन ने उसकी कभी नही सुनी। ग्यारहवीं में वो दास सर के संपर्क में आये थे, दास सर ने भी उसपर काफ़ी मेहनत किया था जिसका परिणाम था कि रक्षिता एमबीबीएस के लिए सेलेक्ट हो गई थी । उसने दास सर से गुरूदक्षिणा मांगने को कहा था तो सर ने कहा था – बेटा चिकित्सा मानव सेवा का पेशा है तो जितना हो सके मानव सेवा करना यही मेरी दक्षिणा होगी ।

यादों के उडान भरते भरते रिद्धि अतित की गहराईयों में उतरती जा रही थी । रोहन के साथ उसकी शादी को कई वर्ष हो गए थे पर उनके कोई संतान नही हुई थी । एकदिन अचानक रोहन एक नन्ही सी बच्ची को गोद में लिए हुए आया था और उसे रिद्धि के गोद में रख दिया था और कहा था "हमारी बिटिया रानी"। हाय राम ये किसका बच्चा उठा लाए हो जवाब में रिद्धि ने रोहन से पूछा था । रोहन ने जवाब दिया था "मैने अनाथालय में एक बच्चे के लिए अवेदन कर रखा था, आज उनका फ़ोन आया था कि एक नवजात बच्ची कोई रख गया है अनाथालय में यदि आप देखना चाहें तो…।" मै वहा गया तो इतनी प्यारी बच्ची देखकर झट हां कह दी और सारी फ़ोर्मालिटी पुरी कर इसे ले आया तुम्हारे पास।
पर ये किसी की नाजायज बच्चा…………
हा..हा..हा..हा.. बच्चा कोई भी  नाजायज नहीं होते हैं, नाजायज तो उसे समाज बना देती है – रिद्धि की बात बीच में ही काटते हुए रोहन ने कहा था और जवाब में रिद्धि ने बस इतना कहा था "आप इसके रक्षक हैं और ये हमारी रक्षिता" ।

अचानक से रोहन के वो शब्द उसके कानों में गूंजने लगे थे, और उसकी तंद्रा तब टूटी जब उसने सुना की कमिशनिंग और बैच ऑफ़ ऑनर के लिए रक्षिता का नाम पुकारा जा रहा था । उसकी आंखों से आंसूओं के मोती छलक पडे थे, क्योंकि आज उसकी बेटी एक आर्मी अफसर और एक कुशल प्लास्टीक सर्जन जो बन गई थी ।

सोमवार, 6 फ़रवरी 2017

जनवरी २०१७ माह में लिखे कुछ मुक्तक

हमारे जख्म पर मलकर वो मिर्ची हम से पूछे हैं
बहुत चिंता तुम्हारी है, बता अब हाल कैसे हैं।
सुनाऊँ उनको भी मैं अब, बयाने हाल अपना ये
ईलाही की नजर में तुमसे मेरी औकात उँची है।।

बहुत तंगदिल तुम्हारा है, यही पहचान देते हो
हरेक संगदिल को दुश्मन, तुम अपना मान लेते हो!
कभी ईश्वर जों मिल जाएं, भला पूछेंगे वो तुमसे
हमारे नेक बन्दों को बता क्यों त्राण देते हो !!

सिसक हर एक मेरा तुमसे, यही फ़रियाद करता है
भंवर के बीच में तेरी खुदाई याद करता हूँ |
बनाया है हमें जब नेक,हमें काबिल बना मौला
अता कर शख्सियत वो, जिनको ज़माना याद करता है ||

चलन हो बेवफाई का, वफ़ा को याद करना क्या
जहाँ अंधेरगर्दी हो वहाँ फ़रियाद करना क्या
सुने किस्से बहुत हमने वफाई, दोस्ती के भी
ये बस किस्से कहानी हैं, हकीकत में भला है क्या।|

हरएक करवट में अब गुजरा जमाना याद आता है
लड़कपन तो कभी बचपन हमारा याद आता है
वो रातें जो कभी काटी थी हमने दोस्तों के संग
वो बिछड़े यार और उनका याराना याद आता है।।

कभी बोए थे कुछ पौधे, हमारे खेत में हमने
उन्ही को काटने उनके ही अब रखवार आए हैं।
जताया हक़ अपना भी, जो हमने उनके दानों पर
तो करने बेदखल हमको, मन के बीमार आए हैं !!

थकन है, पीड़ हैं, आँसू हैं और उदासी है
दिलों में जीतने के फिर भी कुछ उम्मीद बाँकि हैं
वतन के नौजवाँ सुन लो , सदाएं तुम मेरे दिल की
हरएक ख्वाहिश मुकम्मल हो यही जज्बात हैं मेरे।

वो दिल में गोडसे, टी-शर्ट पे भगतसिंह नाम लिखते हैं
कभी आंबेडकर, गांधी को खुद की पहचान लिखते हैं
कभी पूछो यदि उनसे, भला ऐसा किया है क्या
बताते कुछ नहीं उल्टे कई इल्जाम लिखते हैं।

गुरुवार, 26 जनवरी 2017

ठिठुरता गणतंत्र

करने दो उनको मनमानी, कभी नहीं टोको रे
कुछ फिरंगी नस्लों के खातिर तुम, अपनो का पथ रोको रे|
कहते हैं गणतंत्र दिवस आई है बस आई है
कुछ चेहरों पे अट्टहास,बांकी पर मायूसी छाई है|
राजपथ पर लगा हुआ है संगीनों का मेला
चारों ओर भीड़ है किन्तु, गणतंत्र खड़ा है अकेला|
बनता हूँ भीड़ का अंग मैं भी पर, मेरी आवाज कहीं दब जाती है
इस तथाकथित लोकतंत्र में सुकून की, नींद नहीं आती है |
 फिर भी आशावान हूँ एकदिन सही वक्त आएगा
हर शोषित एकदिन इस मुल्क में सही न्याय पायेगा |

रविवार, 8 जनवरी 2017

लप्रेक: गाँव का टूर (Gaon ka tour)

लडकी: हाय!
लडका: हेल्लो!
लडकी: अरे क्या हुआ मूड क्यूं आफ़ है?
लडका: अब क्या बताऊं, मकानमालिक ने रूम खाली करने की धमकी दे रखी है ।
लडकी: लेकिन क्यूं?
लडका: अरे कुछ नहीं बस किराया देने में थोरी देरी हो गई है । वो भी ऐसा नही है कि मेरे पास पैसे नहीं है, मेरे होम ट्यूशन वाले बच्चों के पेरेन्ट्स ने आनलाईन फ़ी ट्रांसफ़र कर दिया है, पर मकानमालिक को तो बस कैश चाहिए।
लडकी: हुंह! तो लगो फ़िर बैंक और एटीएम की लाईन में ।
लडका: २ घंटे एटीएम की लाईन में लगने से मैं दो घंटे बच्चों को पढाना बेहतर समझता हूं । और वैसे भी कुछ दिनो की ही तो बात है थोरा सब्र कर ले या फ़िर डिजिटल ट्रांसफ़र से पेमेंट ले ले। आखिर डिजिटल ट्रांसफ़र में बुराई क्या है ।
लडकी(व्यंगात्मक लहजे में): हां हां तुम जैसे दर्जनो किरायेदार से वो डिजिटल पेमेंट ले ले ताकि उसके आय का खुलासा हो जाए! खैर छोडो यार सब ठीक हो जाएगा ।चिल! दिल्ली दिलवालों का है यार।
लडका: शायद तुम सही कह रही हो, पर यहां के दुषित वातावरण में सबके दिल काले पर चुके हैं ।

लडकी(माहौल को हल्का बनाती हुई): अच्छा छोडो ये सब। ये बताओ कि तुम मुझे अपने गांव का टूर कब करवाओगे?
लडका: फ़िलहाल तो नहीं ।
लडकी: क्यॊं? तुम मुझे ले जाना ही नही चहते या लोग सवाल करेंगे  इस बात से घबरा रहे हो?
लडका: नहीं इनमे से कोई भी बात नहीं है।
लडकी: तो फ़िर क्या बात है ?
लडका: बत यह है कि मेरे घर में टायलेट नहीं है । वह लंबी सांस छोडते हुए बोला ।
लडकी: ओह! आइ एम सारी । मेरा मकसद तुम्हे हर्ट करने का नहीं था ।
लडका: मैं हर्ट नहीं हो रहा हूं । मैं अपनी सच्चाई को बेहतर समझता हूं । घर के सीमित आय में रोजमर्रा के खर्च के बीच कभी इसकी ऐसी जरूरत महसूस ही नहीं की गई । पिछले साल दीदी की शादी हुई, एक छॊटा सा पक्का मकान भी बन गया है । फ़िलहाल इन कामो के लिए लिए गए कर्ज उतारना और मेरी पढाई ही घर की प्राथमिकता है ।
लडकी: हुंह ! लेकिन आर्थिक रूप से कमजोर लोगों के लिए टायलेट बनाने के लिए कई सरकारी योजनाएं भी तो चल रही हैं, तुम इसका लाभ क्यों नहीं उठाते ।
लडका: हा..हा..हा.हा। सरकारी योजनाओं का जितना बडा ऐलान होता है उसका छॊटा सा भाग ही जमीन पर उतरता है, और उसमे से भी बडा हिस्सा सशक्त और पहुंच वाले लोगों को मिल जाती है । हमारे यहां उन लोगो को भी टायलेट बनाने के लिए पैसे मिले हैं जिनके घरों में कारें खडी हैं, बस हम जैसों को ही नहीं मिला ।
लडकी: तो क्या इन योजनाओं का लाभ किसी गरीब को मिलता ही नहीं है!
लडका: नहीं ऐसा नहीं है । आज देश में गरीब होना उतनी बडी समस्या नहीं है जितनी बडी समस्या एक सवर्ण होते हुए गरीब होना होता है। बहुत से अनुसूचित जाति, पिछडी जाति वर्ग के भाई लोगों के घर सरकारी योजनाओं से टायलेट बने हैं ।

खैर जाने दो इन बातों को। मैं तुम्हे छठ में गांव ले चलुंगा ।
लडकी: छठ में क्यों? छठ में तो अभी १० महीने का समय है न!
लडका: वो इसलिए कि मैं हर महीने ढाई तीन हजार रूपए बचा रहा हूं और छठ तक मेरे घर टायलेट बन जाएगा और दूसरी बात कि मेरे गांव में घुमने और लोगों से मिलने के लिए छठ से बडा कोई समय हो ही नहीं सकता ।
वो विस्मय मिश्रित मुस्कान के साथ उसको देखने लगी । 

रविवार, 1 जनवरी 2017

लप्रेक - लाजपत नगर मार्केट (Lajpat nagar market)

हैल्लो! हां कैसे हो?
ठीक हूं ।
अच्छा तुमने कहा था कि इतवार को तुम सेलेक्ट सिटी वोक घुमाने ले जाओगे सो मैं नहीं आ सकती, क्या तुम कल लाजपत नगर मार्केट ले चल सकते हो?
पर तुम्हारा बर्थडे तो इतवार को है न! और मेरी छुट्टी भी। कल तो मेरा आफ़िस रहेगा।
नहीं, इतवार को मेरे घर में कोई मेहमान आ रहे हैं, सो मैं नही अ सकती। तुम्हारा आफ़िस नेहरूप्लेस में ही तो है थोरी देर के लिए छुट्टी ले के भी तो आ सकते हो।
ओके ठीक है।
ठीक है, कल ग्यारह बजे हां । बाय।
(अगले दिन लाजपत नगर बस स्टाप पर)
ओह सारी। ज्यादा इंतजार तो नही करना पडा ना? उफ़्फ़ ! कितनी धूप है, मेरा तो आने का मन भी नही कर रहा था । अच्छा चलो जल्दि से रिक्शा ले लेते हैं ।
ओके।
चलो पहले कहीं बैठकर कुछ खाते हैं ।
अरे नहीं मैं घर से नस्ता कर के आई हूं। चलो पहले मेरा गिफ़्ट दिलाओ ।
ठीक है । चलते हैं ।
उस दूकान में चलते हैं वह लहंगा चुनरी और सूट की स्पेस्लिट दूकान है ।
(दूकान में पहूचते हैं)
भैया एक बढिया सूट दिखाओ ।
ये देखो अनरकली, ये पटियाला सूट, ये हिना सूट, ये चूड़ीदार, ये फ्रॉक सूट .....  
हां, ये बढिया है । तुम्हे कैसा लगा ।
तुम्हे अच्छा लगा तो बढिया ही होगा ।
अरे ये पर्पल वाला भी बहुत बढिया है, लेटेस्ट स्टाईल में ।
क्या मैं ये भी ले लूं ।
ठीक है ले लो ।
देख लो। फ़िर ये मत कहना कि पैसे खर्च करवा दिए ।
अरे भैयाजी का दिल बडा है पैसे की फ़िक्र क्या करना मैडम जी (दूकानदार उत्साहित करते हुए बोला )
कोई बात नही है ले लो । भैया ये कितने का है ? (वो बोला)
ये अनारकली वाला आठ हजार का और ये मोर्डन वाला चार हजार का ।
भैया डिस्काउंट कितना दोगे ? – डिस्काउटं कर के ही बोला है मैडमजी
(इधर ये दुकानदार से तोल-मोल करने लगी और वो मन ही मन पैसों का हिसाब लगाने लगा – जेब में करीब चार हजार हैं और डेबिट कार्ड में तेरह हजार! चलो डेबिट कार्ड से इज्जत तो बच जाएगी । बांकि आगे कैसे गुजारा करना है बाद में सोचेंगे)
पेमेंट कर के और दोनो कपडे पैक करवा के दोनो वहां से निकले ।
आगे बाजार में घूमते हुए वो बोली
सुनो एक बात कहूं ?
हां बोलो ।
अगले महिने मेरे भाई का बर्थडे है, उसके लिए एक शर्ट लेना है ।
ठीक है ले लो । वो बोला ।
दुकान से उसने एक शर्ट पसंद किया और दुकानदार से दाम पुछने लगी।
भैया ये शर्ट कितने की है ।
पांच सौ की ।
ठीक है, पैक कर दो । वो पेमेंट करते हुए बोला ।
एक तुम अपने लिए भी ले लो ना !
अरे नहीं रहने दो, पिछले महिने ही मैने दो शर्ट लिए थे (अपने हिल चुके बजट का अनुमान लगाते हुए उसने बहाना बनाया था )
ठीक है जैसी तुम्हारी इक्षा ।
आगे एक चश्मेवाला धूप चश्मा बेच रहा था ।
भैया ये कितने का है ।
तीन सौ का मैडमजी ।
अरे डेढ सौ का दोगे क्या (वो बोली)
नहीं! दो सौ लगेंगे ।
रहने दो यार (बीच में वो बोला)
अछा ले लो डेढ सौ का ही (चश्मेवाला बोला)
वो जानता था कि इस चश्मे की औकात सौ रूपए की भी नहीं है, पर वो इस वक्त अपनी रुसवाई नही चाहता था इसलिए चुपचाप चश्मेवाले को डेढ सौ रूपए थम्हा दिए ।
(अब उसे जोरों की भूख लग रही थी । आज घर से नास्ता कर के भी नहीं चला था। और खरीदारी के चक्कर में अब तक उससे फ़ुर्सत से कुछ बात भी तो नहीं कर पाया था! इसिलिए फ़िर से वो बोला:)
चलो चलकर कुछ खाते हैं और वहीं बैठकर गप्पे भी मारेंगे ।
अरे नहीं । मम्मी से दो घंटे का बोल के आई थी वो इंतजार कर रही होगी । अब हमें चलना चाहिए ।
अच्छा! ठीक है। वो बुझे मन से अपनी भूख और इच्छाओं को दबाते हुए बोला।
ओटो वाले भैया, गणेश नगर चलोगे क्या? हां हां अक्षर धाम मंदिर के नजदीक ही है ।
ढाई सौ लगेंगे मैडम ।
भैया दो सौ लगते हैं । दो सौ मे चल लो ठीक है । (औटो वाले लगभग धकियाते हुए बोली)
अरे सुनो । तुम्हारे पास दो हजार के छुट्टे हैं क्या मेरे पास दो हजार के ही नोट हैं ।
कोई बात नहीं मैं दे देता हूं , कहते हुए उसने दो सौ रुपए  औटो वाले को थम्हा दिए ।
अच्छा सुनो । अपनी शादी की बात घरवालों से कब करोगी उसने जाते जाते उससे पुछा ।
अरे इस बारे में बाद में बात करते हैं न । यह कहते कहते वो औटो में बैठ गई और औटो आगे बढ गया । वो औटो को जाते हुए देख रहा था जो धीरे-धीरे धुंधला होता हुआ आंखों से औझल हो गया था॥

शुक्रवार, 4 नवंबर 2016

राईत इजोरिया ताइक रहल अछि



राईत इजोरिया ताइक रहल अछि
छौंडा सब भकुआइत रहल अछि
फ़ेसबुक पर टिपिर-टिपिर
किद्देन-कहां सब छाईप रहल अछि


नुनू बाबु एना जुनि करू
बनू नै अहां दिनजरू
वाट्सएप-फ़ेसबुक सं फ़ुरसत लय क 
पोथी-पुस्तक सेहो धरू

बुच्ची दाई के शौख बड्ड भारी
चाहियैन हुनका बडका गाडी
पा̆प, रैप आ डिस्को क चक्कर में
बिसरि गेल ओ गोसाऊनि आ नचारी

बाबू कहथिन पढ गै बुच्ची
नै त भेंटतौ वर खुरलुच्ची
पढि लिखि क जौं लोक बनलैं त 
शौख पुरा हेतौ सच्ची-मुच्ची



वैदेहि बेटी अछि बड्ड होसगर
बैस जाई अछि ओ पढै लेल एकसर
आंगन में आन धिया-पुता सब
खुसुर-फ़ुसुर बतियाइत रहल अछि
राईत इजोरिया ताइक रहल अछि
छौंडा सब भकुआइत रहल अछि

कियौ करैथ इंजिनियरिंग के तैयारी
किनको मेडिकल भेटले चाही
सोशल-मिडीया के भ्रमजाल में,
मुदा सभ कियौ ओझराय रहल अछि
राईत इजोरिया ताइक रहल अछि
छौंडा सब भकुआइत रहल अछि

नेता सब मुस्काइत रहल अछि
जनता सब मुंह ताइक रहल अछि
हरियर-लाल रंग में रंगिक
पुरने भाषण बांचि रहल अछि
राईत इजोरिया ताइक रहल अछि
छौंडा सब भकुआइत रहल अछि

कहै ’प्रणव’ अछि सुन छौंडा सब
काज नै आबय सुख्खल भाषण
जेकरा कर के लक्ष्य हासिल छै
कठीन निशाना साईध रहल अछि
राईत इजोरिया ताइक रहल अछि
छौंडा सब भकुआइत रहल अछि

रविवार, 9 अक्टूबर 2016

नव आशा (मैथिली कथा)

मीरा आई पहिल बेर हवाई जहाज के यात्रा  रहल छलीहपटना सं बैंगलोर वाया दिल्ली  पटना सं   दिल्ली पहूंच गेल छलीह  मुदा दिल्ली से बैंगलुरू  फ़्लाईट दू घंटा बाद छल  मीरा इंदिरा गांधी हवाई अड्डा के प्रतीक्षालय में बैसल इंतजार  रहल छलीह । दरअसल बात  छल जे  अपन एकटा छात्रा आशा  विवाह में शामिल होई खातिर बैंगलुरू जा रहल छलीह  मीरा के विशेष रूप सं आशा न्योत देने छल  हिनका लेल न्योत के संगहि हवाई-जहाजक टिकट पठौने छल   सब सं विशेष गप्प  जेजै फ़्लाईट सं मीरा दिल्ली सं बैंगलोर जाई बला छैथ ओकर पाईलट आर कियौ नै बल्कि आशा  होमय बला वर आकाश कुमार छैथ  बैसल बैसल मीरा  मोन अतीत  यात्रा करय लागलैन। 

मीरा गामक मध्य विद्यालय में शिक्षिका छथिन  एकटा निक शिक्षिकाजे धिया-पुता के खुब मानै वाली  बात किछु १५ – १६ बरष पहिले के आछि  मीरा शिक्षिका के व्यवसाय के अपनौने छलिह   मूल-मंत्र के संगे जे "सब बच्चा भगवतीक संतान थीक  ओकरा लाड-दुलार केनाई मनुक्खक कर्तव्य किन्तु हुनकर कक्षा में एकटा बचिया आबै छल जेकर नाम छल "आशा आन बच्चा सब  ठिक-ठाक सं रहै छल  मुदा आशा नै ढंग सं स्कूलड्रेस पहिरै छलनै ओकर किताब-बस्ता ओरियाईल रहैत छल  नै माथ मे तेल देने नै ठिक सं केस थकरने। मैल-कुचैल में लपटायल सब देख मीरा के ओकरा  घीन आबै छल    चाहितो ओकरा नै ठीक सं पढा पाबै छलिह  नै ओकरा सं दुलार  पाबै छलिहअपितु यदा-कदा ओकरा दुत्काइरियो दै छलखिन  मुदा मीरा के अपन  व्यवहार पर कखनो काल आत्मग्लानियो होई छलैन  एक दिन अपन  समस्या मीरा विद्यालयक हेड-मास्टर साहब सं साझा केलैन  "सर अहां कहै छी जे सब बच्चा भगवतीक संतान थीक  ओकरा लाड-दुलार केनाई मनुक्खक कर्तव्य।हम  विचार के मानै छी  मुदा अही कहु जे औइ बच्ची सं हम कोना  दुलार  सकै छि जे नै ढंग से कपडा पहिरै अछि  नै जेकरा साफ़-सफ़ाई के कोनो लिहाज अछि विद्यालयक हेड-मास्टर श्री शशिभुषण झा बड्ड सौम्य व्यक्तित्वक इंसान छालाह   मीरा  सभटा बात सुनि  कहलैथ : "मीरा अहां ओई बचिया  समस्या देखलौं मुदा की अहां औई समस्या  कारण बुझबा  चेस्टा केलहुंअहां  बुझबा  प्रयत्न केने रहितौं  अहांक  आई  बातक असोकर्ज नै रहत छल जे अहां अपन कर्तव्य  पालन निक सं नै  पाबि रहल छी   बच्ची एकटा दुखियारी बच्ची अछि जेकर बाबू दिहाडी मजदूर अछि  माई कैंसर सं पीडीतआब अहां कहू जे एहन स्थिति में ओकर ठीक सं परिचर्या के करत  सब मे  बच्ची के कोन दोष ? मीरा ! चिक्कन-चुनमुन  सुन्नैर नेना सब के  सभ केयौ दुलार  लै अछि मुदा आशा सन जे इश्वरक संतान अछि ओकरा जे दुलार  पाबै अछि वैह इश्वरक सच्चा सेवक होई अछि  कीअहांक अखनो कोनो आशंका या असोकर्ज अछि? " मीरा  अपन सभटा प्रश्नक जवाब भेट गेल छल    अपन कमीयो के चिन्ह लेलखिन   आब समय छल ओई कमी सं पार पाबैक  मीरा आब अपन सभटा ज्ञान  दुलार आशा पर उझैल देलखिन  ओकर पढाई-लिखाईकपडा-लत्तातेल-कूड सबहक ध्यान  राखय लागलखिन  कालान्तर में आशा  माई  देहांत  गेल छल   आशा सेहो मीरा  छत्रछाया में बरहैत मैट्रीक  नेने छलीह।  मैट्रीक  परीक्षा में सम्म्पूर्ण जिला में टा̆ केने छलीह  डीएम साहब आशा के एहि उपलब्धि लेल अपन हाथ सं सम्मनित केने छलथिन  मुदा   कामयाबी  पहिल सीढी छल। अखन  आगा कामयाबीक अनेको पिहानी लिखेनाई बांकिए छल 

मैट्रीक के बाद आशा के पोस्ट मैट्रीक स्कालरशीप सेहो भेंट लागलमुदा आब हुनक बाबूजी हुनक विवाह  सुर-सार में लागि गेलाह ।  बात कनैत-कनैत आशा मीरा के बतौने छल  मीरा ओकरा ओहि दिन बड्ड मोश्किल सं चुप्प करेने छलीह  " ऐंगे एहि लेल तो एना कनै किएक छैं  हम बुझैबैन ने तोरा बाबू के   बुझियो जेथुन। हम मस्टरनी जे बनलहुं से कथि लेलएं हमर  काजे अछि लोक के निक-बेजाय बुझेनाइ।  हम केह्न-केहन के  बुझा  पटरी पर आनने छी  अहां  बड्ड होशियार नेना छि आहां  आगा बड्ड परहब  पैघ डा̆क्टर बनब।मीरा के द्वारा सान्त्वना के लेल कहल गेल  वाक्य सब आशा  मोन मे घर  गेल छल 

मीरा आशा  बाबूजी के बजौली  हुनका कहल्थिन  जी अहांक भगवत्ती ̨पा केने छैथ जे एत्तेक निक बेटी देलीह जे मैट्रीक परीक्षा में समुचा जिला में प्रथम आबि अहांक संगहि गाम-समाजक सेहो नाम केलक अछि   अहां एकरा पैर में विवाहक सीकडी बान्हय चाहै छी ! आशा  बाबू कहलखिन "देवीजी अहां कहै  ठीके छि मुदा हम गरीब अनपढ लोक छी दिहाडी मजूरी पर जिबय बला  आगा-पाछा कियौ अछियो नै सम्हारै बलामाय एकर पहिनहि छोडि  चल गेल अछि। एना में अहीं कहू जे बेटी  बाप होमय के नाते हम एकर विवाह कय एकर घर बसा देबाक विषय में सोचै छि से कि गलत करै छिमीरा कहलखिन अहां अपन सक भैर  निके सोचै छी मुदा एहि सं आगा बरहु। आशा कोनो साधारण बालिका नै अछि। ओकरा में समाज के आगां बढाबै के सामर्थ अखने सं देखबा में आबि रहल अछि  ताहि लेल अहां  निजी समस्या से आगा सोचबा के प्रयत्न करू  एखन ओकरा पढाई के समर्थन लेल एकटा छात्रव̨त्ति भेलट अछिआगा आर कैयेक टा भेटत जै के बल पर  आगा अपन पढाई  जिनगी में स्वाबलंबी  जेतिह  तहु सं जौं अहां के भरोस नै अछि  अहां के हम वचन दै छि जे आइ सं आशा  सभटा भार हम उठब लेल तैयार छी  एहि प्रकारे येन-केन दलील सं मीरा आशा  बाबू के राजी  नेने छलिह  आब आशा के नाम इंटर में लिखा गेल छल  दरिभंगा में रहि   सी एम साइंस कालेज सं इंटर  पढाई कर लागलीह  संगहि मेडिकल प्रवेश परीक्षा  तैयारी सेहो  अपन खर्च निकाल लेल  ट्यूशन पढेनाई सेहो शुरू  देने छलि  संगही जरूरत पडला पर मीरा  मार्गदर्शन  सहयोग सेहो भेट जाई छलैन  एही प्रकारे मीरा  मार्गदर्शनआशीर्वाद  अपन मेहनत-लगन के फ़ल आशा   भेटलैन जे  इंटर के संग बीसीईसीई परीक्षा सेहो पास  गेल छलिह  दरभंगा मेडिकल कालेज में हुनका एमबीबीएस पाठ्यक्रम में प्रवेश भेंट गेल छल  आब आशा नव पंख लगा  सफ़लता  नव ’आकाश’ में उड लेल तैयार छलिह  

दिन बितैत गेल  क्रमशआशा एमबीबीएस कय  डाक्टरी के प्राथमिक डिग्री प्राप्त  लेलीह संगहि पीजी चिकित्सा प्रवेश परीक्षा में निक रैंक आनि   जीपमर में एमडी मेडीसीन के पाठ्यक्रम में सेहो प्रवेश पाबि गेलीह  एहि प्रकारे पीजी केलीह  आई नरायणा ह्रुदयालया बैंगलुरू में डीएनबी(कार्डियोलोजी) क टैनिंग के संग सिनियर रेसीडेंसी क रहल छैथ  समय के एहि कालक्रम में आशा  संपर्क मीरा सं धीरे धीरे कम होइत चल गेल छल  मुदा आशा अपन मूल्य  संसकार के सम्हारने छलिह  सफ़लता  एहि आकाश पर चढला के बावजूद  अपन वजूद  ओकरा बनब वाली अपन गुरूआई के नै बिसरल छलिह  स्वाईत  बातचित के क्रम में अक्सर आकाशजी से मीरा दीदी के चर्चा केने नै थाकै छलिह   अक्सर कहै छलि जे हमर विवाह में क्यों आबै कि नै आबै मीरा दीदी के  बजेबे करबै   आकाश मजाक में उत्तर दै छलखिन जे अहां चिंता जुनि करू अहांक मीरा दीदी के  हम अपने जहाज पर चढा  नेने चलि आयब नै  अहांक कोन ठेकान जे बियाहे करैसं मना  दी !

 सब सोचैत सोचैत अचानक माईक पर विमानक अनांसमेंट सुनि  मीरा  भक खुजलैन   अपन समान उठा  चेकईन के ले विदा  गेली