सोमवार, 18 अप्रैल 2022

विभीषण का चरित्र चित्रण:

कुछ चीजें आम लोगों में प्रचलन में होती है जैसे नरेंद्र मोदी को हर बात पर कोसना, राहुल गांधी को बिना सुने समझे पप्पू बोलना, अरविंद केजरीवाल को एविं गाली देना आदि। इसी ट्रेंड में एक है विभीषणजी को गद्दार और देशद्रोही कहना। जो मेरे हिसाब से सर्वथा अनुचित है। जो लोग श्रीराम को ही नहीं मानते उनके लिए तो खैर कुछ नहीं कह सकता, पर जो श्रीराम को मानते हैं(एकाध शिकायतों के साथ भी) वो विभीषण पर किस प्रकार उंगली उठा सकते हैं जिन्हें स्वयं श्रीराम ने अपने मित्र का और बराबरी का दर्जा दिया। और वास्तविकता भी यही है, अन्यथा ये लोग मेघनाद और कुम्भकर्ण के बजाए इनका पुतला जला रहे होते। पर वास्तविकता तो यह है कि रामेश्वरम में विभीषणजी का मंदिर भी है।

 

विभीषण जी हमेशा देश और न्याय के पक्ष में थे, इसे निम्न संदर्भों से समझा जा सकता है:

जब सूर्पनखा अपने निजी प्रतिशोध के लिए रावण के दरबार मे उसे एक गैरजरूरी युद्ध के लिए भड़काने आई और उसके मन मे सीताजी के लिए लालसा भरी तब भी विभीषण ने रावण को मामले को बिना सही सही जाने एक प्रबल योद्धा से अनावश्यक बैर न लेने की सलाह दी जो राज्य हित मे था। क्योंकि श्रीराम का लंका पर चढ़ाई का कोई इरादा न था।

जब रावण सीता माता को हर लाया तब भी विभीषण ने एक सच्चे हितैषी मंत्री के रूप में रावण को चेताया कि परदाराहरण अधर्म है, पाप है, अतः वो सीता को ससम्मान वापस कर दें।

जब श्रीराम की सेना लंका तक पहुंच गई तब भी विभीषण ने रावण से देशहित में कहा कि राजा के व्यक्तिगत हित की पूर्ति के लिए देश को एक अनावश्यक युद्ध मे झोंक देना सर्वथा अनुचित है। अतः देश को नुकसान से बचाने हेतु एवम स्त्री मर्यादा हेतु श्रीराम से संधि कर लें। इसपर रावण उसे तिरस्कृत कर देशनिकाला दे देता है।

 

राजा और बड़े भाई से तिरस्कृत हो और देशनिकाला पाकर भी विभीषणजी अपने देश के विषय मे सोचते हैं, और अपने हितैषियों के सलाह पर श्रीराम से संधि करने पहुंचते हैं कि आपका वैर रावण से है तो कृपया उसी से युद्ध करें और लंकावासियों का अनावश्यक नुकसान न करें। उनके लिए देश से मतलब देश की भूमि, देश के लोग था न कि राजा का निजी स्वार्थ, निजी सोच।

रावण के मृत्यु के बाद वो लंका के राजा भी बनते हैं और वर्षों तक वहां सुशासन के साथ राज भी करते हैं।

 

अतः यह प्रमाणित है कि विभीषणजी एक देशभक्त और मर्यादाप्रिय व्यक्ति थे। हां कलंक से तो कोई बचता नहीं सो उनपर भी देशद्रोह और कुलद्रोह का कलंक लगा।

अब कुलद्रोह पर आते हैं। निश्चित ही वो अपने कुल के लोगों(भाई भतीजे) के नाश के एक कारक बने। पर क्यों? क्योंकि नारी तर्जन करनेवाले अपने रिस्तेदार का भी विरोध करने का सामर्थ्य था उनमे। नारी के प्रति अपराध के विरोध में अपनों के विरुद्ध भी खड़े होने का साहस था उनमे। आज हम देखते हैं कि देश मे नारी के विरुद्ध होनेवाले अपराधों में अपराधी के घरवाले, पार्टीवाले सब उसके अपराध को जानते हुए भी उसके साथ खड़े रहते हैं, जो कि नारियों के प्रति देश मे बढ़ते अपराध का एक कारण है। सेंगर, चिन्मयानंद, आशाराम, रामरहीम आदि ऐसे सैंकड़ो उदाहरण है। इसलिए विभीषण जैसे उदाहरण की तो जरूरत है कि समाज में यदि ऐसे अपराध आपके परिवार के लोग करते हैं तो आपमे उनके विरुद्ध खड़े होने का साहस हो। आप बताएं कि यह सराहनीय है या निंदनीय!

 

वैसे पूर्वानुमान तो यही था कि युद्ध मे श्रीराम की विजय होगी, सो उनसे संधि कर एक तरह से उन्होंने महर्षि पुलत्स्य के कुल को भी नष्ट होने से बचा ही लिया था।

कुछ लोग लांक्षण लगाने के क्रम में कहते हैं कि कोई विभीषण नाम भी नहीं रखता। सो हे आदरणीय लोग तो सुग्रीव और जामवंत भी नाम नहीं रखते। नाम एक चलन है, एक समय मे सबसे ज्यादा चलन में आनेवाला राम नाम ही अब कितने बालकों का रखते हैं!

अंतिम बात मुहावरे पर आते हैं। घर का भेदी लंका डाहे मुहावरे का अर्थ है कि यदि अंदर का आदमी ही भेदी निकल जाए तो लंका जैसा सशक्त राज भी ढह जाता है। इसलिए अंदर के लोगों में इतना असंतोष पैदा न करो कि वो शत्रु को आपका भेद बता दे।

(18.04.2020)

 

मंगलवार, 8 फ़रवरी 2022

जब दारू सर पर चढ़ता है

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

तब कौन मौन हो रहता है

जब दारू सर पर चढ़ता है।


चुप रहना नहीं सुहाता है

बक बक करना ही भाता है

जो झूठ की खेती करता है

तब वह भी  सच उगलता है

जब दारू सर पर चढ़ता है।


जो थे यार झगड़ते हैं

आपस मे ही लड़ पड़ते हैं

गीदड़ भी शेर बनता है

जब दारू सर पर चढ़ता है। 


जो करे हर पल साजो-श्रृंगार

वो भी बनता नाली का यार 

लड़खड़ा कर कहींभी गिरता है 

जब दारू सर पर चढ़ता है।

 

बातें करता  फिर  बड़ी बड़ी 

इंगलिश झाड़े वो खड़ी-खड़ी 

ढक्कन का बोतल लगता है 

जब दारू सर पर चढ़ता है।

 

अपनी पीड़ाओं का प्रहार 

घरवालों से करता दुर्व्यवहार 

बिन बात के भी वो  बिफरता है 

जब दारू सर पे चढ़ता है।

 

अपनी दौलत लुटाता है 

झूठ ही दानी कहलाता है 

पीछे धन को तरसता है 

जब दारू सर पर चढ़ता है। 


तब कौन मौन हो रहता है

जब दारू सर पर चढ़ता है।

व्यसन





बीड़ी पियो, हुक्का पियो, 

या पियो सिगरेट

यमराज जी, फिर जल्दी ही

देंगे तुमको भेंट


व्हिस्की पियो, वोदका पियो

या पियो देसी दारू 

ये सब एक दिन कर देंगे

बेटा तुमको बीमारू 


खैनी खाओ, गुटखा खाओ 

या चबाओ पान मसाला 

एक दिन भारी पड़ जाएगा 

तुमको मुंह का निवाला 


चरस, हेरोइन, अफ़ीम लोगे 

या लोगे तुम ड्रग्स

जीवन व्यर्थ हो जाएगा 

भोगोगे तुम नर्क 


हिन्दू-मुस्लिम, सिख-ईसाई 

करोगे जो धर्म का नशा 

बंदर बनकर रह जाओगे 

देखेंगे लोग  तमाशा 


जीवन को तुम जियो जज्बे से

भूल कर सारी तृषा 

अपने धुन मे लगन से बढ़कर

जग मे कौन सा है नशा ?


 

सोमवार, 24 जनवरी 2022

जनवरी 2022 माह के कुछ मुक्तक

 



प्रणय का दे रहा मंत्रण, तुम्हे स्वीकार करना है
भँवर में आ फंसी नैया, तुम्ही को पार करना है
मेरे होने, न् होने का मुकम्मल अब तुम्ही से है।
बहुत सपने बुने मैंने तुम्हें साकार करना है।

मुझे जाना बहुत है दूर, तुम्हे भी साथ चलना है
पिघल कर काँच सा मुझको तेरे साँचे में ढलना है
के संग चल दो मेरे तुम ओढ़कर चुप्पी के चादर को
तू बोले कुछ नहीं फिर भी मुझे चुपचाप सुनना है। 

 

हृदय में द्वंद जारी है, मोहब्बत और अदावत में
कहीं दुश्मन न् बन बैठूं, मैं खुद का ही बगावत में
तुम्हारे प्रेम व्यूह में लो फंसा अभिमन्यु बनकर मैं
विचारो प्राण हरना हैकि, प्रणय का दान करना है। 

 

हुई तक़दीर भी रोशन सितारा हो तो ऐसा हो
जिधर देखूँ उधर तुम हो नजारा हो तो ऐसा हो...
कमर भी रश्क करता हो, मुकद्दर हो तो ऐसा हो
भला क्यों चाहिए दौलत, जो रहबर आप जैसा हो।

 

भरा मुस्कान होठों पर, नज़र में क्यों उदासी है
मुकम्मल है जहां मेरा तो फिर क्यों रूह प्यासी है
है क्या मंजर बता मुझको जरा ऐ आसमाँ वालों
घटा चारो तरफ छाई, धरा फिर भी क्यों प्यासी है।


मोहब्बत चाहता था मैं, अदावत ही मिला तो क्या
मुझे बर्बाद करके राम जाने किसको मिला है क्या
मेरी हालात पर मुझको नहीं छोड़ा अकेला क्यों
कुरेदे जख्म और मरहम लगाए फिर जमाना क्यों।