नौ लाख की बातें
लेखक : हरिमोहन झा अनुवादक : प्रणव झा
(केवल स्वांतः सुखाय, अकादमिक एवं शोध कार्य हेतु )
उस दिन संध्याकाल मे चाय पी राहा था कि उसी बीच मे नौकर एक 'विजिटिंग कार्ड' दे गया। उसपर अंग्रेजी अक्षर मे लिखा था - 'जा जारगंडी, प्रोड्युसर, मिथिलेटेड फिल्म कंपनी, बंबई।' नाम देख कर ,मैंने अनुमान लगाया कि कोई अन्य क्षेत्र के सज्जन होंगे। किन्तु जब बुलवा भेजा तो देखा कि दूध जैसे सफ़ेद शेरवानी और चुस्त पैजामे मे एक भद्र युवक आ रहे हैं। सर पर नेतानुमा खादी की सफ़ेद टोपी। हाथ मे अटैची। अत्यन्त शिष्टतापूर्वक कुर्सी पर बैठे। तदुत्तर मैथिली मे ही बातचीत प्रारम्भ किए – मैं सीधे बंबई से आ रहा हूँ। मैथिली मे फिल्म बनाना है। आपका नाम सुना इसीलिए कुछ विचार लेने आया हूँ। किन्तु आपका ‘रंगशाला’ मैंने पढ़ा है। मुझे 'बमबाबू' मत समझना।
मुझे कौतूहल पूर्वक अपने नाम की ओर देखते देख वो बोले – इस नाम की एक कहानी है वो बाद मे ज्ञात होगा।
मैंने पूछा – आप कौन सा चलचित्र बनाना चाहते हैं?
वो बोले – फिल्म का नाम होगा 'विधकरी' । उस मे मिथिला के रीति-नीति, विधि-व्यवहार, उपनयन-विवाह, पूजा-पाठ, भोजन-भात, गीत-नाद, वन-खेत – सभी के दृश्य रहेंगे। अब इस उद्देश्य मे दस लाख, बीस लाख जितना भी लगे।
मैंने पूछा - - सूटिंग कहाँ पर होगी ?
वो बोले - 'इनडोर सूटिंग' बंबई मे होगी, किन्तु 'आउट डोर शूटिंग' मिथिला की मिट्टी पर होगी। कुछ हड़ाही तालाब पर , कुछ सौराथ के सभागाछी मे , कुछ सिमरिया घाट पर, कुछ दरभंगा जिला के मुख्य-मुख्य गावों मे .......
मैंने पूछा – कलाकार कौन लोग रहेंगे?
उन्होने उत्साहपूर्वक बोला - नामी-नामी अभिनेता-अभिनेत्रीयों का सहयोग मुझे मिल रहा है। यदि मेरी योजना सफल हो गई तो श्यामा से सामा-चकेबा पुजवाऊंगा । चित्रा से चिनबार लिपवाऊंगा। नरगिस नेहरा मे आकर नचारी गाएगी । मधुबाला मंगरौनी मे मिट्टी का महादेव बनाएगी । कामिनी कौशल कर्णपुर मे कोठी बनाएगी । नूतन नव वधू बनेगी । वैजन्तीमाला विधिकरी बनेगी ।
मेरे मुँह पर विस्मय का भाव देख वो बोले - अभिनेत्री मे कोई ऐसी नहीं जिसके संग मेरी आत्मीयता न हो। निरुपा राय नारंगी का रस बनाकर देती है। कक्कू कॉफी पिलाती है। निम्मी मुझे देखते ही नींबू का अचार बनाने लगती है। सुरैया अब गुलथुल हो गई है , फिर भी मुझे देखते ही दौड़ कर रोटी बेलने लग जाती है।
मैं – आपकी इतनी घनिष्ठता कैसे हुई?
वो – घनिष्ठता तो इससे कहीं ज्यादा दूर तक है । एक बार बीमार पर गया था तो नलिनी जयवंत नायलन फाड़ कर सर पर पट्टी दी थी। वीणा राय पंखा झेलने लगी। कुलदीप कौर अपने हाथों से कौर बना कर खिलाई। निगार सुल्ताना सिगार जला कर मुँह मे लगा दी थी ।
मैंने पुनः प्रश्न दोहराया – इतनी घनिष्ठता कैसे हुई ?
वो दंभ करते हुए बोले – कला घनिष्ठता करा देती है। एक बार लता मंगेशकर का एक लय बह रहा था, मैंने ठीक कर दिया, उस दिन से वो मेरी शिष्या बन गई। वैसे ही एक बार पद्मिनी को नृत्य करते समय ताल शुद्ध कर दिया, उस दिन से तीनों बहनें मेरी पुजारिन हो गई है।
मैंने अर्द्ध विश्वास के स्वर मे पूछा-ओंकारनाथ से तो आपका परिचय होगा?
वो बोले – कई बार झगड़ा हो चुका है। मैं उनको गबैया मे मान्यता नहीं देता हूँ। केवल हाव भाव दिखाते हैं।
मैं – उदयशंकर के विषय मे आपकी क्या राय है?
वो – उनका 'टेकनीक' अब बहुत पुराना हो गया है। नृत्यकला के नवीन शैली पर मेरा एक ग्रन्थ शिकागो विश्वविद्यालय से प्रकाशित होने वाला है। आठ खंडों का मूल्य 75 रु० रहेगा। मैं छपते ही सम्पूर्ण सेट आपकी सेवा मे भिजवा दूंगा।
मेरे मुख पर कुछ अविश्वास का भाव देख वो बोले – उसका 'फोरवर्ड' सर्वपल्ली राधाकृष्णन लिख रहे हैं।
मैंने विषयान्तर करते हुए पूछा – आपके तो अभिनेता लोगों से भी बहुत निकट संबंध होंगे?
वो बोले – निकट भी क्या निकट जैसे? राज कपूर से लंगोटिया जैसे अनबन होता रहता है। कितने ही बार दिलीप कुमार से उठापटक हो गया है। एक बार देवानंद ने मेरा स्वेटर देखकर विनती किया कि ऐसा ही मेरे लिए भी बुनवा देना। किन्तु मीना कुमारी सभी के लिए थोड़े ही ना स्वेटर बुनेगी? माला सिन्हा सभी के लिए थोड़े ही ना माला गुंथेगी? इसी सब के कारण तो वो लोग मेरे से अंदर ही अंदर ईर्ष्या रखते हैं। साढ़ू संबंध जैसे।
मैंने पूछा - 'हीरो' की भूमिका किसे देंगे?
वो बोला – वैसे तो अशोक कुमार से लेकर सुनील दत्त पर्यंत सभी लोग मुँह खोले हुए हैं। किन्तु नायक की भूमिका मैं स्वयं करना चाहता हूँ। कारण की हीरोइन नूतन हैं, वो मेरे ही साथ भूमिका करना चाहती है।
तब तक नौकर चाय-पकौड़ी लाकर उनके आगे रख दिया। वो प्याली को जरा सा होठों पे लगाकर नीचे रख दिए। मैंने पूछा – क्या? कम मीठा है? वो मुँह बनाते हुए बोले – नहीं, चीनी ज्यादा है। मैं केवल आधा चम्मच लेता हूँ। बंबई मे यह बात सभी को पता है। जब मोरारजी चाचा के साथ बैठकर चाय पीता हूँ तो वो अपने हाथों से ठीक आधा चम्मच चीनी मेरे प्याली मे रख देते हैं।
मैंने नौकर को कहा – यह ले जाओ। दूसरी चाय लेकर आओ।
तब तक वो आलू के चिप्स खाने लगे। खाते खाते जैसे स्मरण हो आया हो वैसे ही बोले – ऐसी ही चिप्स दिल्ली मे तारकेश्वरी बहन तल कर खिलाई थी।
मैंने पूछा - अच्छा! आपका उनसे भी परिचय है?
वो बोले - वो सहोदर बहन से भी ज्यादा प्यार करती है। राखी बांधने के लिए सदा खोज करती है। एक बार कार्तिक मे गया तो भ्रातृद्वितीया के दिन बिना पूजे नहीं छोड़ी। पान और फूल लेकर।
मैंने कहा – तब तो आप बहुत भाग्यवान हैं।
वो बोले – जी, वो तो आपकी कृपा से बड़े-बड़े लोगों से लगा रहता है । उस दिन नेहरू चाचा के साथ बैठ कर जलपान कर रहा था । नेहरू चाचा ने कहा – ‘ अरे, तुम शादी क्यूँ नहीं करते हो? आज शादी करो, कल कहीं पर राजदूत बना कर भिजवा दूंगा।‘ इंदिरा बहन भी वहीं पर थी। बोली – हाँ, भैया! अब भाभी को देखने की इच्छा होती है।
मेरे मुख पर अविश्वास का झलक देख वो बोले – आपको आश्चर्य होता होगा । किन्तु आपसे एक गुप्त बात कह देता हूँ। एक दिन स्वयं राष्ट्रपति ने मुझे बुलाकर पूछा –'अरे, तुम्हें 'पद्मभूषण' बना दूँ?' मैंने हाथ जोड़ कर कहा – ‘चाचा जी मैं नाम का भूखा नहीं हूँ। ऐसे ही कला की सेवा करने दीजिए।‘
तब तक दूसरी चाय आ गई। वो एक घूंट पीकर बोले – हाँ अब ठीक है। ठीक ऐसी ही चाय मुझे पद्मजा बुआ बना कर देती है!
मैंने पूछा -'नायडू गवर्नर के बारे मे कह रहे हैं? वो गर्व से मुस्कुराते हुए बोले – जी। उन्होने मुझे शपथ दे रखी हैं कि कलकत्ता आओ तो तो गवर्नमेंट हाउस मे ही ठहरो। मैं माँगुर मछली का विशेष प्रेमी हूँ। इसलिए वो बारहों महीने हौज मे पाल रखी है। कौन ठिकाना कब पहुँच जाऊँ।
मैंने कहा – मुझे जानकारी होती तो मैं भी माँगुर मछली मंगाए रहता ।
वो बोले – नहीं, आज रात मुझे मुख्य मंत्री के यहाँ दावत है। उन्होने साढ़े आठ बजे बुलाया है। क्या? आपकी आज्ञा लेकर सिगार पी सकता हूँ?
मैंने कहा - अवश्य, अवश्य ।
उन्होने जेब से सिगरेट और लाइटर बाहर किया। उसके साथ एक रुपए का नोट निकल कर गिर पड़ा। वो हवा मे उड़ने लगा। किन्तु उन्होने देखकर उपेक्षा कर दिया और सिगरेट का धुँआ उड़ाने लगे ।
मैंने नौकर को कहा – ‘ अरे नोट उड़ा जा रहा है।‘
वो बोले – कोई बात नहीं, छोड़ दीजिए। ऐसे ही कितने ही उड़ते रहते हैं।
तब तक नौकर दौड़ कर ले आया। वो घृणापूर्वक उसकी ओर देख कर बोले – मैं गिरे हुए नोट नहीं छूता हूँ। तुम ही ले जाओ।
मैंने पूछा – तब आपकी क्या योजना है?
वो बोले – यहाँ से मैं दरभंगा जाऊंगा। महाराज बहादुर का एक स्कीम है । उसमे राय लेने हेतु मुझे बुलाए हैं।
मैं – आप किस ट्रेन से जाएंगे ?
वो – ट्रेन से नहीं , प्लेन से जाऊंगा। सिंचाइ मंत्री कल सहरसा जाने वाले हैं । वो मुझे दरभंगा मे उतारते हुए जाएंगे ।
मैं - महाराज बहादुर का क्या स्कीम है?
वो - महाराज बीस करोड़ लगा कर एक स्टूडियो खोलना चाहते हैं । उसी सम्बन्ध मे मेरे से विचार लेना है।
मैं – तब आप उसी मे अपने चलचित्र का निर्माण कर सकते हैं?
वो बोले – नहीं। उस मे अभी देरी है और मैं जल्द से जल्द 'विधिकरी' रिलीज कर देना चाहता हूँ। पाँच करोड़ मैथिल मे कोई ऐसा नहीं होगा जो यह देखने हेतु एक रुपए खर्च नहीं करेंगे। परन्तु सारा 'लाभ' मैं स्वयं लेना नहीं चाहता हूँ। अधिक से अधिक लोग इसका लाभ उठाएँ इसलिए मैं अपने इष्ट घित्र सभी को शेयर देना चाहता हूँ। किन्तु एक-एक सौ से ज्यादा नहीं। एक सौ एक हजार बनने मे तो कोई देर ही नहीं लगेगी। यदि फिल्म चमक गई तो एक एक शेयर धारक को एक-एक लाख का लाभ हो सकता है।
यह कह कर उन्होने 100 रु० की रसीद मेरे हाथों मे थमा दी।
यह सब बातें अंदर से स्त्रीगण सुन रही थी। वो लोग भी आ गए। मेरी पत्नी, बेटी, बहू इत्यादि सभी लोग अपने अपने नाम से एक एक शेयर ले लिए। इस प्रकार से 900 रु० मेरे घर से मिला। तत्पश्चात वो घड़ी देखते हुए बोले – अब मुझे आज्ञा दीजिए। मुख्य मंत्री इन्तजार मे बैठे होंगे। मैं पुनः बंबई पहुँच कर पत्राचार करूंगा।
उसके बाद हम लोग वैसे ही उत्सुकता पूर्वक प्रतीक्षा करने लगा जैसे लौटरी मे लोग इनाम की राह देखते हैं। नौ लाख का स्वप्न देखने लगे। परन्तु किस लिए कोई समाचार मिलेगा! ना ही 'विधिकरी' निकला, न ही उसका विज्ञापन। कई चिट्ठियाँ उनके नाम से भिजवाया , किन्तु एक का भी उत्तर नहीं मिला। रजिस्ट्री और रिप्लाई तार घूम कर वापस आ गए। तथापि आशा नहीं टूटा। कदाचित पता बदल गया हो?
एक वर्ष के बाद बंबई जाने का अवसर मिला। उनके दिए पते पर गया। सारा 'अंधेरी' छान मारा, कहीं पता नहीं चला। अन्ततोगत्वा एक गली मे एक छोटे से होटल मे ज्ञात हुआ कि उस नाम का व्यक्ति कुछ दिन पहले एक कमरा लेकर रहता था। होटल का एक साल का बकाया रख कर एक रात चुपचाप भाग गए। पानवला, चायवला, मिठाइवला, अखबारवला, धोबी, हजाम सभी उनको ढूंढते फिर रहे हैं। सैकड़ो ऋण-उधारवले उनके नाम पर आहें भर रहे हैं। पूरे 420 थे। कहाँ गए उसका पता नहीं। केवल साईनबोर्ड ही अपना छोड़ गए हैं। उस पर 'जा जारगंडी' अंग्रेजी मे लिखा है, जो 'झारखंडी झा' का बंबईया संस्करण है!
मिथिलेटेड फिल्म की आशा मेथिलेटेड स्पिरिट जैसे उड़ गया। 'विधिकरी' के विधि मे 900 रु० लगाय कर जो मधुर स्वप्न देख रहा था वो भंग हो गया। तब यही समझकर संतोष किया कि नौ लाख मिला नहीं, तो कम से कम बातें तो नौ लाख की सुन ली जिसके बदौलत यह नौलक्खा बता तैयार हो सका!