एक कप चाय
एक कप चाय तेरे हाथों
की
जीवन मे एक नई ताजगी
जगा गई
एक कप चाय तेरे हाथों
की
मेरे होठों की पुरानी
प्यास बुझा गई ।
दिल की कोठरी मे फैली
थी जो अँधियाली
तेरे नैनों की जादू
से वो पल मे जगमगा गई
तेरे चेहरे पर दिखी
जो वो प्यारी सी मुस्कान
रक्त कण मे वो बिजली
बन कर समा गई
एक कप चाय तेरे हाथों
की
जीवन मे एक नई ताजगी
जगा गई।
सखी! तेरा मुझसे यूं
नजरें चुराना
शरमा के मुझसे यूं छुपना
रोजाना
दिल मे जाने कितनी छुरियाँ
चला गई
एक कप चाय तेरे हाथों
की
जीवन मे एक नई ताजगी
जगा गई ।
चाय की प्याली में
छुपे तेरे एहसास,
हर घूँट में पिघलते
से हैं मेरे जज़्बात,
सौंधी सी भाप में घुली
तेरी ही मिठास,
बहारों में खिलते
हों जैसे गुलाब खास।
चाय के साथ तू जाने
क्या क्या पिला गई
एक कप चाय तेरे
हाथों की,
जीवन में एक नई
ताजगी जगा गई।
तेरी उँगलियों का
हल्का सा स्पर्श,
हौले से कप को थामे
वो नर्म स्पर्श,
लगता है जैसे मेरे
दिल पर हो अंकित,
एक मधुर सन्देश मुझको
सुना गई ।
एक कप चाय तेरे
हाथों की,
जीवन में एक नई
ताजगी जगा गई।
तेरे होठों पर जब
चाय का कप ठहरे,
वो सिहरन, वो गर्मी,
वो एहसास गहरे,
काश मैं भी उस
कप-सा बन जाऊँ,
तेरे होठों से छू
कर, तुझमें समाऊँ।
नजरें मिली तो तू फिर शरमा गई
एक कप चाय तेरे
हाथों की,
जीवन में एक नई
ताजगी जगा गई।
साँझ के झरोखों में
जब यादें घुलती हैं,
तेरी मुस्कान से
फिर रातें महकती हैं,
एक कप चाय और एक मीठी सी बात,
जैसे प्रेम में
घुलती हो मधुर सौगात।
हकीकत से होकर ख्वाबों
मे आ गई
एक कप चाय तेरे
हाथों की,
जीवन में एक नई
ताजगी जगा गई।
मेरी वफा पर अब तो ऐतबार
कर लो
चाल तो पिला दी, अब प्यार कर लो
माना तुम्हारे हैं, कुछ अरमान कुछ आरज़ू
पूरी करूँ तेरे अरमान, बात दिल मे आ गई
एक कप चाय तेरे हाथों
की
जीवन मे एक नई ताजगी
जगा गई ।
- 07.09.2009 [प्रणव झा]