शुक्रवार, 18 सितंबर 2020

कलम और कूची











न कैनवास है, न कोई रंग है

फिर कैसे मान लें आप मेरे संग हैं


हम छन्द लाएंगे, आप रंग लाइये

कलम और कूची को फिर संग लाइये


ये कह रहा है आसमान बाँह खोलकर

बना दो कहीं इंद्रधनुष रंग घोलकर


जो आपके एकाध हम दाद पाएंगे

तो मंदबुद्धि हम भी नए गीत गाएंगे


नदियाँ गा रही है अपनी धुनमें आजतक

रंगों में डूबी हुई, शोज़-ओ और साज तक


उम्मीद है ये आपसे, जो मान जाएंगे

कुछ फूल मेरे गमलों में भी मुस्कुराएंगे


आप शक्ल दीजिए, हम अक्ल भी देंगे

हारी हुई बाजी को भी, जीत हम लेंगे।


कोरेसे इस कागज़पे कोई, गुल खिलाइए

अब छोड़िए भी ज़िद, मान जाइए


शेरों को मेरी आप, ग़ज़ल बनाइए

संग मेरे आप भी, कुछ गुनगुनाइए


हम छन्द लाएंगे, आप रंग लाइये

कलम और कूची को फिर संग लाइये


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