शनिवार, 9 जून 2018

जहाज परहक गप्प आ दक्खिन के संस्कृति (संस्मरण:मैथिली)


जहाज परहक गप्प आ दक्षिणक संस्कृति ।

लेखक आ अनुवादक : प्राणव झा

(खाली स्वांतः सुखाय, अकादमिक आ शोध कार्य लेल )

 

एक बेर हम डीएनबी परीक्षा के सिलसिला में बंगलुर जायत रहि।  छैठ के पड़ना के दिन छल।  एयरपोर्ट पर जखन चेकिन के लाइन में छलहुँ त अपना आगा एकटा अधेड़ उमैर के आदमी ठाढ़ भेल देखलौं जे ककरो सं फोन पर भोजपुरी में गपियाइत छल।  ओकर हुलिया कहु त किछु एहन सन छल जे एकटा अंगा फुलपेंट पहिरने, अंगा अंदरसूटिंग नै कैल गेल छल, पैर में एकटा हवाही चप्पल पहिरने आ कन्हा पर एकटा कपड़ा बला झोरा टांगने एक हाथ में मोबाइल आ दोसर हाथ में टिकट नेने।  फोन पर हुनकर गप्प सुनि क ई बुझबा में भांगट नै रहल छल जे ई सज्जन बिहार सं सम्बन्ध राखै छैथ।  ताहि से फोन राखला के बाद अपनैति में हम हुनका से पुछलियै जे की यौ अहाँ बंगलौर जा रहल छी की? 9W-815  फ्लाइट सं जा रहल छी की? ओ उत्तर में बजलाह जे हं, मुदा फ्लाइट के नाम टिकट में लिखल छैक हमरा अंग्रेजी पढ़ नै अबैत अछि अहाँ पढ़ी लिय।  त हम फेर पुछलिये जे ओतय बेटा रहैत अछि की? तै पर ओ बजलाह जे नैं, हमर मालिक के बेटा पुतहु रहैत छैन्ह। ओकरे सब लेल छैठ के प्रसाद ल जा रहल छी।  अगत्या ओ  प्रश्न केलाह जे कहु त बैंगलोर में कोनो टिकरी-पिडुकिया नै बिकायत हेतैक की, जे ई बुढ़वा हमरा एत्तेक पाई खर्च क के बैंगलोर प्रसाद पठायब लेल भेज रहल अछि! दू हजार से कम के त ई टिकट नै हेतैक।  हम कहलियै जे बैंगलोर के टिकट चारि हजार सं कम के नै हैत हमर देखु जे सात हजार के अछि। फेर हुनकर टिकट देखैत कहलियैन जे अहाँ के टिकट साढ़े चारि हजार के अछि।  फेर हम कहलियैन जे बात टिकरी-पिडुकिया के नै छैक बात छठि माई के लेल आस्था आ बेटा-पुतहु लेल स्नेहक छै।

 

फेर ओ आगा बाजय लगलाह जे हम हवाई चप्पल पहिरि के आयल छी, से हमरा हवाई जहाज में बैस देत की नै? हम आश्वासन दैत कहलियै महाराज कोनो दिक्कत नै छैक आ अब त प्रधानमंत्रीजी सेहो कहला अछि जे हवाई चप्पल वाला सब हवाई यात्रा क सकय अछि।  संजोग से हमर नजैर तखने एकटा विदेशी महिला पर पड़ि गेल जे हवाई चप्पल पहिरने छलीह।  हम हुनका दिस तकबैत कहलियैन जे देखु ओहो पहिरने छथिन।  ई सज्जन के नजैर ओ महिला के हाफ पेण्ट पर चली गेलैन।  छैठ के सीजन तक ठंढियो आबिये गेल रहय छै।  ओ पुछलाह जे एकरा सब के ठंढी नै लगै छैक जे ई हाफ पेण्ट पहिरने घुमल घुरैत अछि! हम कहलियैन नै यौ, ई सब ठंढा देश के निवासी अछि की ने तैं एत्तेक तापमान एकरा सब लेल गर्मीए बुझू।  फेर ओ बतबै लागल जे मालिक हमरा जाय लेल रु० 4999 के जूता किन देने छलाह, बजलाह जे बिनु जूता पहिरने जूनि जैहैं नै त एयरपोर्ट से भगा देतौ।  मुदा हमरा जुत्ता पहिर के आदत नै अछि से रिस्क पर चप्पल पहिरि के आबि गेलियै।

 

आगा चेकिन के बाद डेस्क के छौड़ी अंग्रेजी में गिटिर-पिटिर करैत हुनका से बैगेज के लेल पुछलक त हमर मुंह देख लगलाह।  हम ओकरा कहलियैन जे हिनका लग ई झोरा छोड़ि कोनो आन बैगेज नै छैन फेर ओ हिनका जखने आगा जाय लेल कहलकैन बस ई सीधा आगा बढ़ि क बैगेज बला लिफ्ट दिस छरपै लगलाह।    थाम्ह-थइहर केलकै आ हमरा ताकि क ब्यंगात्मक मुस्की छोड़य लागलिह।  हम ओय सज्जन के कहलियैन अब आगा बामा दिस जेबा के छैक आँहा थम्हू हमहू चेकिन करा क संगे चलै छी।  हमरा संगे इक्जाम मटेरियल  के अटायची छल जेकर ओजन लिमिट से किछु बेसी भ गेल।  ओना त ओकर भाड़ा सरकार घर से जएबाके छल मुदा हम आदत सं मजबूर सरकार के पाई बचेबा खातिर कहलियैन जे ई सज्जन हमरे संगे छैथ से एक्स्ट्रा ओजन के भार हिनका टिकट में मैनेज क लिय।  तै के बाद हम अंदर दिस विदा भेलौं।   हमर दुनू के गप्प बुझ में हिनका कोनो भांगट नै रहल छलै।  ओ बजलाह से अहाँ अपन अटैची के भर हमर टिकट में साटल से निक नै। हमरा आगा  पकरत त हम एक्कोटा पाई नै देबै।  हम ओकरा बुझबैत कहलियै - अहाँ चिंता जूनि करू अहाँक एक्कोटा पाई नै लागत आ जौं लागत त हम संगे छी ने हम पाई द देब।  जखन हुनकर मोन शांत भेलै त ओ पुछला जे अहाँ बैंगलोर घुमय लेल जाय रहल छी? हम कहलियैन – नै। डॉक्टर सब के एकटा परीक्षा छैक ताहि सिलसिला में जा रहल छी।  तखन ओ बजलाह – ओह! तखन अहाँ बड़का डॉक्टर छी की? हम चुटकी लैत कहलियैन नै, हम त डॉक्टर बनब बला फैक्ट्री में कार्यरत एकटा मजूर छी।  फेर हम पुछलियैन जे अहाँ अपन मालिक एतय की करै छी? ओ बजलाह जे सत कहु त लोक हमरा ओकर चमचा कहैत अछि। बाद बांकी अहाँ हमरा ओकर ड्राइवर, नौकर, खबास,मित्र जे मोन से कही सकै छि।  बुढ़बा  के  कनियाँ  छै नै, बेटा पुतहु बैंगलोर रहे छै, दस कट्टा में घर बन्हने अछि।  ओत्तेक टा घर में हमहि ओकरा संग रहै छि।

फेर ओ बतबै लागल जे हमर बेटा के ओ अपन पाई से कोचिंग करेलक आ अब बेटा आईआईटी में पढ़ैत अछि।  एकटा बेटी अछि जेकरा रेडियोग्राफी में डिप्लोमा करा रहल अछि आ कहलक अछि जे कोर्स केला पर ओकरा लेल एकटा इमेजिंग सेंटर खोली देत पार्टनरशिप पर।  हम मोने मोन सोचय लागलौं जे एकर मालिक एकरा कत्तेक मानै छै।  आ इहो जे ओकरा बुढ़बा-बुढ़बा कहि के सम्बोधित करै अछि से लगावे से करैत हेतैक!  ओ अपन मालिक के काज-धंधा के आरो बहुत रास सेक्रेट सब बतेलक जेकर चर्चा केनाइ ठीक नै रहत।  जहाज पर हमर सीट विंडो बला छल आ ओ सज्जन संगे एकटा आर लड़का छल दुनू खिड़की से हुलकि हुलकि के देखै के चक्कर में हमरा पीसय लागल।  एहि बीच मे एकटा परिचारिका कॉफी ल क एलीह आ हिनका देलखिन। दूध आ चीनी के पैकेट ख़तम छल से जा ओ आनय गेलीह ता ई कोफ़ी बनाय सडक़ लागलाह।  बस मुँहक स्वाद कड़वा भ गेलैन। ता में ओ परिचारिका दूध चीनी ल एलीह आ हम कॉफी बना पिबय लगलहुँ। हिनका भेलैन जे ओ बूडि बनी गेलाह।  हम पुछलियैन जे चाहि की? ओ हं बजलाह। तखन हम परिचारिका से एकटा आर कॉफी के रिक्वेस्ट केलिये जे ओ मानी गेल।  भोजन केला के उपरांत हाथ पोछैत ओ बजलाह जे भोजन त निक छल, ओहु से निक प्लेट छल मुदा भाते कम देलक से पेट नैं भरल।  अस्तु एही प्रकारे ओ हमर मनोरंजन करैत बंगलोर पहुंचेला।  अब सुनु कहानी के दोसर भाग।

 

अपन कार्य के सिलसिला में हम मेडिकल कॉलेज/अस्पताल के प्रोफ़ेसर, हेड आदि से भेंट करैत रहैत छि।  मुदा दिल्ली में या कहि जे उत्तर भारत के बड़का लोक सब जतेक हाय-फाय में रहैत अछि तेहन हम ओतय नै देखलौं।  सेंट जॉन मेडिकल कॉलेज में जखन हम डीन से भेंट केलौं त ओकर साधारण भेष-भूषा, बोली-व्यवहार हमरा आकर्षित केलक।  दिल्ली में जहां इंविजिलेशन में साधारण नॉन-मेडिकल स्टाफ के लगा देल जाय अछि, ओतय ड्यूटी में रेजिडेंट डॉक्टर सब के लगायल गेल छल।  ई एकटा क्रिश्चिनिटी कॉलेज छल जै में ड्यूटी पर कइएक टा महिला छलीह।  १-२ टा नन छोड़ि हम देखलौं से सभटा महिला बहुत सलीका सं सीटल साड़ी पहिरने छलीह। किछु नवयुवती सलवार सूट पहिरने छलीह ओहो कन्वेंशनल टाइप।  हम सोचै लागलहुँ जे नव-नव मॉडर्न ड्रेस क्रिस्चन समाज से आयल अछि जे देश-विदेश में सभठाम पसरल अछि।  ई सब निश्चिते कन्वर्टेड क्रिश्चन हेति मुदा धर्म परिवर्तनक बादो अपन भेष-भूषा संस्कृति नै त्यागलीह अछि।  अगत्या भोजन काल में जखन भोजन कर गेलहुँ त देखैत छि जे डीन सहित रेजिडेंट डॉक्टर आ सभटा बड़का-छोटका स्टाफ एकहि टेबल पर एक संगे भोजन कर बैसैत गेल जे उत्तर भारत में नै देखल जाय अछि।  एतय अक्सरहा पैघ-छोट पद के भेदभाव करल जाय छै।  भोजन लेल हम जखन चम्मच खोजय लागलौं त चम्मचे ने।  डीन हमर मोनक बात बुझैत बजलाह जे सर, हमरा दिस चम्मच से खाय के परम्परा नै छैक तैं, एम्हर चम्मच नै राखल जाय छै।  फेर ओ एकटा चपरासी के बजा क कतहु सं एकटा चम्मच के व्यवस्था करय कहलखिन।  पांच मिनट बाद ओ कतहु सं एकटा चम्मच के जोगार क के आनलक।  हम फेर सोचै लागलहुँ जे चमच-काँटा से खाय के पद्धति कदाचित क्रिस्चन सब आनलक मुदा ई सब हाथ से खेबा के दक्खिन के परम्परा पर अखनो कायम छैथ।  फेर हम सोचै लगलहुँ जे एकटा ई सब छैथ जे धर्म बदलनेहो अपन संस्कृति नैं बिसरला  आ एकटा हम सभ छि जे अंग्रेजिया बनय के चक्कर में  शनैः-शनैः अपन संस्कृति बिसरल जा रहल छि।

[संस्मरण – अक्तूबर 2017]

 

 

शुक्रवार, 8 जून 2018

दसवीं के बाद जीवविज्ञान पढ़ने वाले छात्रों के लिए करियर विकल्प पर कुछ चर्चा


१०वीं के बाद जब बच्चे ग्यारहवीं में प्रवेश ले रहे होते हैं, तो अपने अपने च्वाईस और दसवीं में प्राप्त अंक के हिसाब से उपलब्ध कोर्स में से चुनाव कर किसी कोर्स में प्रवेश लेते हैं. बायोलॉजी विषय आपने क्यों चुना है? आपने अक्सर इस प्रश्न के जवाब में बच्चों को यह कहते सुना होगा की "डॉक्टर बनना है" और उनमेसे बहुत से बच्चे बिना किसी सटीक योजना और संसाधन के इस रेस में दौड़ भी लगा देते हैं, जबकि इस करियर के लिए अत्यधिक फोकस, सही गाइडेंस, उच्चतम स्तर की प्रतिस्पर्धा, न्यूनतम सफलता दर, और पर्याप्त धन   को ध्यान में रखना होता है. नतीजा यह होता है की अधिकाँश बच्चों का हाल वैसा ही होता है जैसे किसी हाफ मैराथन में केवल भागीदारी दर्ज कराने के लिए दौडनेवाले नागरिकों की. वो कई वर्षों तक कोटा-दिल्ली-पटना इधर उधर तैयारी करने के बाद असफल होने की स्थिति में बिलकुल दिशाहीन हो जाते हैं, उन्हें कोई सटीक मार्ग नहीं दिख रहा होता हैं और इस स्थिति में फिर वो अपनी जिंदगी में कुछ ख़ास नहीं कर पाते हैं. तो ऐसे में फिर प्रश्न उठता है कि तो फिर क्या बायोलॉजी पढ़ें ही ना? ऐसा बिलकुल भी नहीं हैं. बायोलॉजी के विद्यार्थियों के लिए बारहवीं के बाद एमबीबीएस के अलावा करीब ३० और बहुत अच्छे करियर विकल्प हैं. आज हम इन्ही कि चर्चा करेंगे साथ में सफलता के कुछ सूत्र भी:

. एमबीबीएस: एमबीबीएस शुरू से ही एक सदाबहार पाठ्यक्रम रहा है, दसवीं के बाद जीव विज्ञान पढ़ने वाले हर छात्र के मन में कहीं कहीं इस पाठ्यक्रम में प्रवेश का स्वप्न रहता ही है. इस वक्त देश में एमबीबीएस की करीब ६४००० सीट हैं जिनमे आधे से अधिक सीट प्राइवेट मेडिकल कॉलेज में है जिसकी फ़ीस प्रतिवर्ष पांच लाख से ३० लाख तक है. सरकारी सीटों पर १५ प्रतिशत कोटा अखिल भारतीय विद्यार्थियों के लिए होता है जबकि ८५% उन राज्यों के विद्यार्थी के लिए होता है, और इन कोटे के अंतर्गत उर्ध्व रूप से आरक्षण का प्रावधान भी है. अत: एक अखिल भारतीय सामान्य वर्ग के छात्र के लिए जिसके राज्य में एमबीबीएस की सीमित सीटे है, सरकारी कॉलेज में प्रवेश पाना अत्यधिक कठिन है. सनद रहे की बिहार जैसे राज्य जहाँ एमबीबीएस की मात्र १३५० सीट है, छात्रों को इसके लिए अत्यधिक संघर्ष करना पड़ता है. वर्त्तमान में देश में एमबीबीएस सहित कई अन्य पाठ्यक्रमों में प्रवेश नीट-यूजी परीक्षा के माध्यम से होता है. जहाँ सरकारी कालेज में प्रवेश के लिए ७२० में से काम से काम ५००-५५० अंक लाने होते है, जबकि थोड़े सस्ते प्राइवेट कालेज पाने के लिए भी ४०० से अधिक अंक लाने की जरुरत पड़ती है. एमबीबीएस के बाद आपको एक प्राथमिक चिकित्सक के रूप में मान्यता मिल जाती है, पर विशेषज्ञ डॉक्टर बनने के लिए आगे वर्ष की पीजी प्रशिक्षण भी लेना होता है. कर्णाटक, केरल, एमपी, महाराष्ट्र कुछ राज्य है जहाँ कुछ सस्ते, अच्छे और पुराने प्राइवेट मेडिकल कॉलेज हैं.

. विदेश से एमबीबीएस: कई अन्य देशों में एमबीबीएस पाठ्यक्रम में प्रवेश भारत के मुकाबले आसान और सस्ता है. तो जिन छात्रों को नीट के द्वारा अपने पसंद के मेडिकल कॉलेज में प्रवेश नहीं मिलता है पर वो एमबीबीएस के लिए बहुत डेस्पेरेट हैं उनके पास यह एक विकल्प है. इसके लिए आपको बारहवीं में ५०-६०% अंक होने चाहिए, नीट में क्वालिफाइंग स्कोर आना चाहिए जिसके बाद आपको एमसीआई से एक एलिजिबिलिटी सर्टिफिकेट लेना होता है. विदेश से मेडिकल स्नातक छात्र उस देश में प्रेक्टिस कर सकते है पर भारत में प्रैक्टिस करने के लिए उन्हें एनबीई द्वारा आयोजित एफएमजीई स्क्रीनिंग टेस्ट पास करना होता है, जिसका औसतन रिजल्ट २०-२४% है, अत: इसे पास करने में एक से ज्यादा अटेम्ट लग सकता है, और छह वर्ष की पढाई कर लौटे छात्रों के लिए यह समय परीक्षा की तैयारी करते हुए निकालना बहुत कठिन और पीड़ादायक हो सकता है. इसके बाद आपको आगे पीजी करना होता है या अपना क्लिनिक स्थापित करना होता है जिसमे भी कई साल लग सकते हैं. इसलिए कम आय वर्ग के छात्रों को अत्यधिक कर्ज लेकर इस विकल्प को चुनने को मैं ज्यादा रेकमंड नहीं करूंगा. यह विकल्प उन छात्रों के लिए रेकमेंडेड है जिनके घर में पहले से ही डॉक्टर हो या जो आर्थिक रूप से समृद्ध घर से आते हो या जो एमबीबीएस करने के लिए बहुत ही डेस्पेरेट हों. विदेश से चिकित्सा स्नातक के लिए कुछ रेकमेंडेड देश हैं,बंगलादेश, सिंगापूर,फिलीपींस,रूस, जॉर्जिया ,यूक्रेन,नेपाल.

. बीएएमएस/बीएचएमएस/बीयूएमएस: मॉडर्न मेडिसिन के विकल्प के रूप में पारम्परिक मेडिसिन में भी आप प्रवेश ले सकते हैं. इन पाठ्यक्रमों में प्रवेश अपेक्षाकृत नीट में कम स्कोर पर भी हो जाता है.   ये पाठ्यक्रम भी साढ़े पांच साल का होता है और इसके बाद आप अपने नाम के आगे डॉक्टर लगा सकते हैं. तो जिन छात्रों को अपने नाम में डॉक्टर लगाने की बेकरारी है वो विकल्प के रूप में इन पाठ्यक्रमों को चुन सकते हैं. इन तीनो पाठ्यक्रम में मैं बीएएमएस को रेकमेंड करूंगा फिर बीएचएमएस और बीयूएमएस. बीएएमएस के बाद आप आयुर्वेदिक मेडिसिन में प्रैक्टिस कर सकते हैं. कुछ राज्य जैसे एमपी में आप छह महीने की ट्रेनिंग के बाद मॉडर्न मेडिसिन भी प्रैक्टिस कर सकते हैं. बीएएमएस के बाद आपको हॉस्पिटल्स और नर्सिंग होम में ड्यूटी डॉक्टर के रूप में काम मिल जाता है.इसके अलावा आयुर्वेदिक कॉलेज एवं अस्पताल, रिसर्च संस्थान में भी कार्य मिल सकता है.  आजकल क्योंकि लोग आयुर्वेदिक उपचार की तरफ आकर्षित हो रहे हैं इसलिए बीएएमएस एक अच्छा विकल्प है. पर एक अच्छे करियर के लिए बीएएमएस के बाद मैं एमडी करने को रेकमंड करूंगा और हां आप बीएएमएस करते हैं तो आयुर्वेद में ही प्रेक्टिस करने का प्रयत्न करें तो बेहतर  होगा. कुछ अच्छे बीएएमएस संस्थान हैं: दिल्ली विश्वविद्यालय,बीएचयू, आरजीयूएचएस, बंगलोर,नेशनल इंस्टीटच्यूट ऑफ़ आयुर्वेदा, आईपी यूनिवर्सिटी दिल्ली आदि.


. बीडीएस: डेंटिस्ट्री भी साढ़े पांच साल का कोर्स है और एमबीबीएस के विकल्प के रूप में इसका चयन किया जा सकता है. किन्तु मैं इस पाठ्यक्रम को उन्ही लोगों को रेकमंड करूंगा जिनके घर में कोई डेन्टिशियन पहले से हो जिनका स्थापित क्लिनिक हो या जो क्लिनिक स्थापित करने में सक्षम हो. क्योंकि बीडीएस के बाद जॉब कम हैं और उनमे भी सैलरी बहुत अधिक नहीं मिलता हैं. पर यदि अर्बन क्षेत्र में आप क्लिनिक स्थापित करने में सक्षम हैं तो बीडीएस के बाद आप अच्छी कमाई कर सकते हैं. बीडीएस के बाद भी आप डॉक्टर कहलाने लगते हैं. बीडीएस में प्रवेश भी नीट-यूजी के द्वारा ही होता है.

.  बीपीटी: फिजियोथेरपी आज के बदलते जीवनशैली को देखते हुए एक उभरते करियर ऑप्सन के रूप में देखा जा सकता है. आज जबकि सर्वाइकल, अर्थराइटिस जैसे रोगियों की संख्या बढाती जा रही है, साथ ही ट्रॉमा के बाद रिहेबिलिटेशन के लिए भी फिजियोथेरपिस्ट की मदद लेने का चलन बढ़ रहा है, ऐसे में बीपीटी करके आप अपना क्लिनिक खोल कर या किसी ओर्थपेडीक अस्पताल से टाई आप कर अच्छा कमा सकते हैं. यह चार साल का कोर्स है. इसके बाद आप अपने नाम के आगे डॉक्टर नहीं लगा सकते, यद्यपि कुछ लोग लगाते भी हैं.

. बीवीएससी: वेटनरी सायंस भी जीव विज्ञान के छात्रों के लिए एक अच्छा करियर ऑप्शन है, खासकर तब जब देश में पशुपालन आधारित रोजगार बढ़ रहे हैं, साथ ही शहरी क्षेत्रों में पालतू पशु पालने का प्रचलन बह बढ़ रहा है. यद्यपि छात्रों के बीच इसको लेकर एक टैबू है और वो जानवरों का डॉक्टर कहलाना पसंद नहीं करते, पर यकीं मानिये यदि आप एक अच्छा वेटनेरेरियन बनते हैं तो अच्छा इज्जत और पैसा कमा सकते हैं.

. बीएएसएलपी: ऑडियोलॉजिस्ट और स्पीच पैथोलॉजिस्ट को मैं एक अच्छा करियर ऑप्शन के रूप में मानता हूँ, क्योंकि इनकी संख्या देश में बहुत कम है इसीलिए इस पाठ्यक्रम के बाद बेरोजगारी की संभावना बहुत ही कम है. इसके बाद आप एमएएसएलपी और डाक्टरल तथा रिसर्च कोर्स भी कर सकते हैं जिसके बाद आप स्थापित ओडियोलॉजिस्ट के रूप में किसी मेडिकल कॉलेज या अस्पताल में कार्य कर सकते हैं, लेक्चरर/असिस्टेंट प्रोफ़ेसर के रूप में ज्वाइन कर सकते हैं तथा अपना क्लिनिक भी चला सकते हैं. बीएएसएलपी के बाद आप २५००० से लाख तक के जॉब से शुरुआत कर सकते हैं. यह चार साल का कोर्स है. इस कोर्स के बाद आप अपने नाम के आगे डॉक्टर नहीं लगा सकते पर इसी विशेषज्ञता में पीएचडी तक करके आप यह मुकाम भी पा सकते हैं. देश में ऑडियोलॉजी कोर्स के लिए कुछ अच्छे संस्थान हैं: एआईआईएसएच मैसूर, एवायजेएनआईएचएच मुंबई, जिपमर पुड्डुचेरी, पीजीआईएमईआर चंडीगढ़ आदि.

. बीएससी नर्सिंग एवं बीएससी इन एलाइड मेडिकल सायंस: अस्पताल में कार्य करने की इच्छुक लड़कियों के लिए बीएससी नर्सिंग भी एक करियर विकल्प है. इसके बाद सरकारी और प्राइवेट दोनों ही क्षेत्र में  २०-६० हजार तक की सैलरी मिल जाते हैं. विभिन्न एलाइड मेडिकल सायंस जैसे रेडियोग्राफी, कार्डियोग्राफी, मेडिकल लैब टेक्नोलॉजी, एनेस्थेसियोलॉजी, ऑपरेशन थियेटर टेक्नोलोग्य आदि में बीएससी/एमएससी कोर्स भी आपको एक अच्छा करियर विकल्प दे सकता है और आपको मरीजों के बीच अस्पताल में कार्य करने का अवसर उपलब्ध कराता है. एमएलटी पाठ्यक्रम के बाद पैथोलॉजिस्ट से टाई अप कर आप अपना पैथलैब भी चला सकते है, इसी तरह यदि पैसा है तो आप रेडियोग्राफी का कोर्स कर इमेजिंग लैब चला सकते हैं.एम्स,पीजीआई चंडीगढ़, जिपमर, एसजीपीजीआई लखनऊ, डीयू आदि कुछ प्रीमियर संस्थान हैं इन कोर्स के लिए. इनके आलावा बहुत से मेडिकल कॉलेजों में ये कोर्स उपलब्ध हैं.
उपरोक्त पाठ्यक्रम के अलावा बीफार्मा, बैचलर ऑफ़ नेचुरोपैथी एंड योगा, बीएससी/बीटेक इन बायोटेक्नोलॉजी,बायोइन्फोर्मेटिक्स, बायोस्टैटिस्टिक्स, माइक्रोबायोलॉजी, बायोकेमिस्ट्री, लाइफ सायंस बीटेक इन एग्रीकल्चर, डेयरी टेक्नोलॉजी, फ़ूड टेक्नोलॉजी, बीपीएड इत्यादि पाठ्यक्रम भी आप १०+ जीव विज्ञान से पढ़ाई करने के बाद कर सकते हैं जिसके उपरांत आपके पास अच्छे करियर विकल्प उपलब्ध रहेंगे बशर्ते आप ये कोर्स अच्छे से करें और अच्छे संस्थान से करें. इन सब पाठ्यक्रमों पर विस्तृत चर्चा फिर कभी करूंगा.

अब मैं चर्चा करूंगा की आप करियर विकल्प कैसे चुने जिसमे आपको सफलता मिले. इसके लिए तीन महत्वपूर्ण बिंदुओं पर ध्यान देने की जरुरत है:
. आपने  आप को पहचानिये:
आपकी शक्तिया एवं कमजोरिया क्या है? आपका एटीट्यूड और टेम्परामेंट कैसा है? आपका कम्पीटिटिवनेस कैसा है, क्योंकि आपको देश के हजारो छात्रों से प्रतिस्पर्धा करना है जो अपने अपने क्लास के टॉपर हैं. आप ऑड आवर जॉब प्रेफर करेंगे या शेड्यूल्ड जॉब? ऐसे प्रश्नो के उत्तर बहुत ईमानदारी से आपको और आपके पेरेंट को ढूंढना होगा अन्यथा आप गलत राह पर चल सकते हैं. हर किसी का स्वभाव एवं क्षमता एक जैसा नहीं हो सकता इसलिए किसी के देखादेखी या फिर बस दिखने के लिए ऐसे विकल्प की और जाए जो आपके क्षमताओं एवं स्वभाव से मेल खाता हो. यदि आप अभिभावक हैं तो आठवीं नवमी के बाद से बच्चे के क्षमताओं और स्वभाव को पहचानना शुरू कर दीजिये जिससे की आप उन्हें करियर विकल्प चुनने में बेहतर मदद कर पाएंगे.

. उपलब्ध विकल्पों पर विचार कीजिये:
ऊपर अनेको विकल्प की चर्चा की गई है. इनमेसे सभी में प्रवेश के लिए क्रिटेरिया लगभग एक जैसे हैं. अंतर बस प्रतिस्पर्धा एवं प्रवेश परीक्षा के स्तर का है. आप अपने आप को पहचानने के बाद इन विकल्पों पर विचार कीजिये की आप के लिए कौन से विकल्प सबसे उपयुक्त है. निश्चित रूप से हर छात्र का ख़्वाब एमबीबीएस का होता है, आप जरूर इसके लिए प्रयत्न कीजिये पर साथ में एक या दो विकल्प के साथ बैकअप प्लान जरूर रखिये. ध्यान रहे की बैकअप विकल्प आपके व्यक्तित्व से मेल खाता हो और बहुत अधिक बैकअप भी ना रखें नहीं तो यह आपमें भ्रम की स्थिति पैदा कर सकता है.

. आपके पास रिसोर्सेज क्या है: आपके पास उपलब्ध रिसोर्सेज जैसे पढ़ाई की सुविधा, गाइडेंस, समय, धन ये बहुत ही महत्वपूर्ण है. कई बार देखने को मिलता है की किसी विकल्प को चुनने से पहले उसके लिए आवश्यक संसाधन को ध्यान में नहीं रखा जाता है जिसके परिणामस्वरूप अक्सर छात्र असफलता और अन्धकार के गर्त में चले जाते हैं. उदाहरण के लिए किसी छात्र को उनके अभिभावक ने एमबीबीएस प्रवेश के तैयारी को उकसा दिया, वो बच्चा जी तोड़ मेहनत करता है पर दुर्भाग्य से नीट में ४००-५०० स्कोर कर पता है जिस कारन से उसे सरकारी कॉलेज नहीं मिलता पर उसे  अच्छे प्राइवेटकॉलेज में प्रवेश मिल सकता है, पर इस स्थिति में अभिभावक हाथ खड़े कर देते हैं, ऐसे में अक्सर छात्र हतोत्साहित हो जाते हैं. अतः बेहतर है की अभिभावक छात्र को अपने संसाधन के विषय में पहले ही स्पष्ट कर दे और उपलब्ध  संसाधन के अनुसार ही करियर विकल्प चुनने की सलाह दे. साथ ही मेरा सुझाव अभिभावकों के लिए भी रहेगा की वो अपने आय से कुछ कुछ ५००-१०००-२०००-५००० जो भी हो हर महीने बचत करें ताकि उनके बच्चे अपने पसंदीदा करियर चुनने से चुके .

फिलहाल बस इतना ही. आगे चर्चा फिर कभी.