जहाज परहक गप्प आ दक्षिणक संस्कृति ।
लेखक आ अनुवादक : प्राणव झा
(खाली स्वांतः सुखाय, अकादमिक आ शोध कार्य लेल )
एक बेर हम डीएनबी परीक्षा के सिलसिला में बंगलुर जायत रहि। छैठ के पड़ना के दिन छल। एयरपोर्ट पर जखन चेकिन के लाइन में छलहुँ त अपना आगा एकटा अधेड़ उमैर के आदमी ठाढ़ भेल देखलौं जे ककरो सं फोन पर भोजपुरी में गपियाइत छल। ओकर हुलिया कहु त किछु एहन सन छल जे एकटा अंगा फुलपेंट पहिरने, अंगा अंदरसूटिंग नै कैल गेल छल, पैर में एकटा हवाही चप्पल पहिरने आ कन्हा पर एकटा कपड़ा बला झोरा टांगने एक हाथ में मोबाइल आ दोसर हाथ में टिकट नेने। फोन पर हुनकर गप्प सुनि क ई बुझबा में भांगट नै रहल छल जे ई सज्जन बिहार सं सम्बन्ध राखै छैथ। ताहि से फोन राखला के बाद अपनैति में हम हुनका से पुछलियै जे की यौ अहाँ बंगलौर जा रहल छी की? 9W-815 फ्लाइट सं जा रहल छी की? ओ उत्तर में बजलाह जे हं, मुदा फ्लाइट के नाम टिकट में लिखल छैक हमरा अंग्रेजी पढ़ऽ नै अबैत अछि अहाँ पढ़ी लिय। त हम फेर पुछलिये जे ओतय बेटा रहैत अछि की? तै पर ओ बजलाह जे नैं, हमर मालिक के बेटा पुतहु रहैत छैन्ह। ओकरे सब लेल छैठ के प्रसाद लऽ कऽ जा रहल छी। अगत्या ओ प्रश्न केलाह जे कहु त बैंगलोर में कोनो टिकरी-पिडुकिया नै बिकायत हेतैक की, जे ई बुढ़वा हमरा एत्तेक पाई खर्च कऽ के बैंगलोर प्रसाद पठायब लेल भेज रहल अछि! दू हजार से कम के त ई टिकट नै हेतैक। हम कहलियै जे बैंगलोर के टिकट चारि हजार सं कम के नै हैत हमर देखु जे सात हजार के अछि। फेर हुनकर टिकट देखैत कहलियैन जे अहाँ के टिकट साढ़े चारि हजार के अछि। फेर हम कहलियैन जे बात टिकरी-पिडुकिया के नै छैक बात छठि माई के लेल आस्था आ बेटा-पुतहु लेल स्नेहक छै।
फेर ओ आगा बाजय लगलाह जे हम हवाई चप्पल पहिरि के आयल छी, से हमरा हवाई जहाज में बैस देत की नै? हम आश्वासन दैत कहलियै महाराज कोनो दिक्कत नै छैक आ अब त प्रधानमंत्रीजी सेहो कहला अछि जे हवाई चप्पल वाला सब हवाई यात्रा कऽ सकय अछि। संजोग से हमर नजैर तखने एकटा विदेशी महिला पर पड़ि गेल जे हवाई चप्पल पहिरने छलीह। हम हुनका दिस तकबैत कहलियैन जे देखु ओहो पहिरने छथिन। ई सज्जन के नजैर ओ महिला के हाफ पेण्ट पर चली गेलैन। छैठ के सीजन तक ठंढियो आबिये गेल रहय छै। ओ पुछलाह जे एकरा सब के ठंढी नै लगै छैक जे ई हाफ पेण्ट पहिरने घुमल घुरैत अछि! हम कहलियैन नै यौ, ई सब ठंढा देश के निवासी अछि की ने तैं एत्तेक तापमान एकरा सब लेल गर्मीए बुझू। फेर ओ बतबै लागल जे मालिक हमरा जाय लेल रु० 4999 के जूता किन देने छलाह, बजलाह जे बिनु जूता पहिरने जूनि जैहैं नै त एयरपोर्ट से भगा देतौ। मुदा हमरा जुत्ता पहिरऽ के आदत नै अछि से रिस्क पर चप्पल पहिरि के आबि गेलियै।
आगा चेकिन के बाद डेस्क के छौड़ी अंग्रेजी में गिटिर-पिटिर करैत हुनका से बैगेज के लेल पुछलक त हमर मुंह देखऽ लगलाह। हम ओकरा कहलियैन जे हिनका लग ई झोरा छोड़ि कोनो आन बैगेज नै छैन फेर ओ हिनका जखने आगा जाय लेल कहलकैन बस ई सीधा आगा बढ़ि क बैगेज बला लिफ्ट दिस छरपै लगलाह। ओ थाम्ह-थइहर केलकै आ हमरा ताकि क ब्यंगात्मक मुस्की छोड़य लागलिह। हम ओय सज्जन के कहलियैन अब आगा बामा दिस जेबा के छैक आँहा थम्हू हमहू चेकिन करा क संगे चलै छी। हमरा संगे इक्जाम मटेरियल के अटायची छल जेकर ओजन लिमिट से किछु बेसी भ गेल। ओना त ओकर भाड़ा सरकार घर से जएबाके छल मुदा हम आदत सं मजबूर सरकार के पाई बचेबा खातिर कहलियैन जे ई सज्जन हमरे संगे छैथ से एक्स्ट्रा ओजन के भार हिनका टिकट में मैनेज कऽ लिय। तै के बाद हम अंदर दिस विदा भेलौं। हमर दुनू के गप्प बुझऽ में हिनका कोनो भांगट नै रहल छलै। ओ बजलाह से अहाँ अपन अटैची के भर हमर टिकट में साटल से निक नै। हमरा आगा पकरत त हम एक्कोटा पाई नै देबै। हम ओकरा बुझबैत कहलियै - अहाँ चिंता जूनि करू अहाँक एक्कोटा पाई नै लागत आ जौं लागत त हम संगे छी ने हम पाई द देब। जखन हुनकर मोन शांत भेलै त ओ पुछला जे अहाँ बैंगलोर घुमय लेल जाय रहल छी? हम कहलियैन – नै। डॉक्टर सब के एकटा परीक्षा छैक ताहि सिलसिला में जा रहल छी। तखन ओ बजलाह – ओह! तखन अहाँ बड़का डॉक्टर छी की? हम चुटकी लैत कहलियैन नै, हम त डॉक्टर बनबऽ बला फैक्ट्री में कार्यरत एकटा मजूर छी। फेर हम पुछलियैन जे अहाँ अपन मालिक एतय की करै छी? ओ बजलाह जे सत कहु त लोक हमरा ओकर चमचा कहैत अछि। बाद बांकी अहाँ हमरा ओकर ड्राइवर, नौकर, खबास,मित्र जे मोन से कही सकै छि। बुढ़बा के कनियाँ छै नै, बेटा पुतहु बैंगलोर रहे छै, दस कट्टा में घर बन्हने अछि। ओत्तेक टा घर में हमहि ओकरा संग रहै छि।
फेर ओ बतबै लागल जे हमर बेटा के ओ अपन पाई से कोचिंग करेलक आ अब बेटा आईआईटी में पढ़ैत अछि। एकटा बेटी अछि जेकरा रेडियोग्राफी में डिप्लोमा करा रहल अछि आ कहलक अछि जे कोर्स केला पर ओकरा लेल एकटा इमेजिंग सेंटर खोली देत पार्टनरशिप पर। हम मोने मोन सोचय लागलौं जे एकर मालिक एकरा कत्तेक मानै छै। आ इहो जे ओकरा बुढ़बा-बुढ़बा कहि के सम्बोधित करै अछि से लगावे से करैत हेतैक! ओ अपन मालिक के काज-धंधा के आरो बहुत रास सेक्रेट सब बतेलक जेकर चर्चा केनाइ ठीक नै रहत। जहाज पर हमर सीट विंडो बला छल आ ओ सज्जन संगे एकटा आर लड़का छल दुनू खिड़की से हुलकि हुलकि के देखै के चक्कर में हमरा पीसय लागल। एहि बीच मे एकटा परिचारिका कॉफी ल कऽ एलीह आ हिनका देलखिन। दूध आ चीनी के पैकेट ख़तम छल से जा ओ आनय गेलीह ता ई कोफ़ी बनाय सडक़ऽ लागलाह। बस मुँहक स्वाद कड़वा भ गेलैन। ता में ओ परिचारिका दूध चीनी ल एलीह आ हम कॉफी बना पिबय लगलहुँ। हिनका भेलैन जे ओ बूडि बनी गेलाह। हम पुछलियैन जे चाहि की? ओ हं बजलाह। तखन हम परिचारिका से एकटा आर कॉफी के रिक्वेस्ट केलिये जे ओ मानी गेल। भोजन केला के उपरांत हाथ पोछैत ओ बजलाह जे भोजन त निक छल, ओहु से निक प्लेट छल मुदा भाते कम देलक से पेट नैं भरल। अस्तु एही प्रकारे ओ हमर मनोरंजन करैत बंगलोर पहुंचेला। अब सुनु कहानी के दोसर भाग।
अपन कार्य के सिलसिला में हम मेडिकल कॉलेज/अस्पताल के प्रोफ़ेसर, हेड आदि से भेंट करैत रहैत छि। मुदा दिल्ली में या कहि जे उत्तर भारत के बड़का लोक सब जतेक हाय-फाय में रहैत अछि तेहन हम ओतय नै देखलौं। सेंट जॉन मेडिकल कॉलेज में जखन हम डीन से भेंट केलौं त ओकर साधारण भेष-भूषा, बोली-व्यवहार हमरा आकर्षित केलक। दिल्ली में जहां इंविजिलेशन में साधारण नॉन-मेडिकल स्टाफ के लगा देल जाय अछि, ओतय ड्यूटी में रेजिडेंट डॉक्टर सब के लगायल गेल छल। ई एकटा क्रिश्चिनिटी कॉलेज छल जै में ड्यूटी पर कइएक टा महिला छलीह। १-२ टा नन छोड़ि हम देखलौं से सभटा महिला बहुत सलीका सं सीटल साड़ी पहिरने छलीह। किछु नवयुवती सलवार सूट पहिरने छलीह ओहो कन्वेंशनल टाइप। हम सोचै लागलहुँ जे नव-नव मॉडर्न ड्रेस क्रिस्चन समाज से आयल अछि जे देश-विदेश में सभठाम पसरल अछि। ई सब निश्चिते कन्वर्टेड क्रिश्चन हेति मुदा धर्म परिवर्तनक बादो अपन भेष-भूषा संस्कृति नै त्यागलीह अछि। अगत्या भोजन काल में जखन भोजन करऽ गेलहुँ त देखैत छि जे डीन सहित रेजिडेंट डॉक्टर आ सभटा बड़का-छोटका स्टाफ एकहि टेबल पर एक संगे भोजन करऽ बैसैत गेल जे उत्तर भारत में नै देखल जाय अछि। एतय अक्सरहा पैघ-छोट पद के भेदभाव करल जाय छै। भोजन लेल हम जखन चम्मच खोजय लागलौं त चम्मचे ने। डीन हमर मोनक बात बुझैत बजलाह जे सर, हमरा दिस चम्मच से खाय के परम्परा नै छैक तैं, एम्हर चम्मच नै राखल जाय छै। फेर ओ एकटा चपरासी के बजा क कतहु सं एकटा चम्मच के व्यवस्था करय कहलखिन। पांच मिनट बाद ओ कतहु सं एकटा चम्मच के जोगार कऽ के आनलक। हम फेर सोचै लागलहुँ जे चमच-काँटा से खाय के पद्धति कदाचित क्रिस्चन सब आनलक मुदा ई सब हाथ से खेबा के दक्खिन के परम्परा पर अखनो कायम छैथ। फेर हम सोचै लगलहुँ जे एकटा ई सब छैथ जे धर्म बदलनेहो अपन संस्कृति नैं बिसरला आ एकटा हम सभ छि जे अंग्रेजिया बनय के चक्कर में शनैः-शनैः अपन संस्कृति बिसरल जा रहल छि।
[संस्मरण – अक्तूबर 2017]
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