शुक्रवार, 18 सितंबर 2020

कलम और कूची











न कैनवास है, न कोई रंग है

फिर कैसे मान लें आप मेरे संग हैं


हम छन्द लाएंगे, आप रंग लाइये

कलम और कूची को फिर संग लाइये


ये कह रहा है आसमान बाँह खोलकर

बना दो कहीं इंद्रधनुष रंग घोलकर


जो आपके एकाध हम दाद पाएंगे

तो मंदबुद्धि हम भी नए गीत गाएंगे


नदियाँ गा रही है अपनी धुनमें आजतक

रंगों में डूबी हुई, शोज़-ओ और साज तक


उम्मीद है ये आपसे, जो मान जाएंगे

कुछ फूल मेरे गमलों में भी मुस्कुराएंगे


आप शक्ल दीजिए, हम अक्ल भी देंगे

हारी हुई बाजी को भी, जीत हम लेंगे।


कोरेसे इस कागज़पे कोई, गुल खिलाइए

अब छोड़िए भी ज़िद, मान जाइए


शेरों को मेरी आप, ग़ज़ल बनाइए

संग मेरे आप भी, कुछ गुनगुनाइए


हम छन्द लाएंगे, आप रंग लाइये

कलम और कूची को फिर संग लाइये


बुधवार, 16 सितंबर 2020

सितंबर 2020 माह के कुछ मुक्तक

  

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

हर एक करवट मे अब गुजरा जमाना याद आता है

लड़कपन तो कभी बचपन हमारा याद आता है।

वो रातें जो कभी काटी थी हमने दोस्तों के संग

वो बिछड़े यार और उनका याराना याद आता है।।

 

वो लोरी याद आती है, वो किस्से याद आते हैं

वो कुछ लम्हे जो जीवन मे, जमाने बाद आते हैं ।

जबभी मिल जाए तुम रखलो, हृदय मे यूं सँजो कर के

कि पतझड़ मे बड़ी मुश्किल से झंझावात आते हैं।।

 

थकन और बेबसी मे साथ देना याद आता है

मुसीबत मे बढ़ाकर हाथ देना याद आता है ।

मैं जो भी हूँ, जहां भी हूँ, तुम्हारी मेहरबानी है

हृदय के हर स्पंदन से यही आवाज आती है।।

 

समर है, द्वंदहै, चेहरे पे सबकेक्यूँ उदासी है

गगन मे इन्द्र बैठे हैं, धरा फिर भी क्यों प्यासी है!

मिला क्यों प्राण उनको जी रहे निष्प्राण होकर जो

यहाँ हर आदमी की जिंदगी मे बदहवासी है ॥

 

सियाही से लिखूँ जो मैं, उसे आकार कर देना

मेरे इक स्वप्न को एक दिन, तुम साकार कर देना।

अमन और समृद्धि मे जी रहे हों देशवाले यूं

विधाता स्वर्गवालों मे धरा से डाह कर देना॥

 

नहीं गम हो जमाने की, जमाने मे न गफलत हो

मोहब्बत से भरा हो दिल, किसी से भी न नफरत हो

वो दिन फिर से कभी आएंगे क्या? बतला मेरे मौला

धरा पर स्वर्ग से हों दिन, लगे जैसे कि सतयुग हो

 

जहां हर राधिका को कृष्ण का सम्मान मिलता है

कृषक से लोग मिलते यूं कि जौं बलराम मिलते हों ।

जहां अन्याय से लड़ने धनंजय, गाँडीव धरते हैं

वही भूमि ये भारत है, हम जिसकी बात करते हैं ॥

तृष्णा Craving

 

हाथ मे था सीप और

मोती को मैं फिरता रहा ।

एक अंजाने सफर पर

रात दिन चलता रहा ॥

 

कुछ तो थी उलझन, जिन्हे

सँवारने की होड़ मे ।

जिंदगी के तृष्णा जाल मे

और भी फँसता रहा ॥

 

कल को मेरी आत्मा ने

फिर से ये दोहरा दिया ।

वृक्ष की छाया मे न ठहरे!

क्यूँ धूप मे तू तपता रहा!!

 

आदमी ही हूँ, मैं कैसे

छोड़ दूँ फितरत भला!

पाखंड, तृष्णा, मोह से

बच सकूँ कैसे भला!!


पथडिगा हूँ मैं भले

मुझको शरण मे स्थान दे।

पार पाउ माया से तेरी

प्रभु मुझे वह ज्ञान दे ॥

मंगलवार, 15 सितंबर 2020

नया मोटर वाहन कानून (New Motor Vehicle Act 2019)

 


जग्गू जी बता रहे थे, नया मोटर वाहन कानून है आया

हुल्लरों मे डर, और जन-जन में नई चेतना है लाया


 

पीयूसी केंद्र के बाहर, वाहन की लंबी कतार नजर आया

एक दूजे से सब पूछ रहे थे, इतने दिन कहां थे भाया,


 

जग्गू जी भी घर से निकले, पहन के हेलमेट अबकी बार

खड़े हो सलामी दे रहे सब, कोई न करता सिग्नल पार


 
डुग्गू जी जब भगा रहे थे, आरी तिरछी हौंडा कार

लगा जुर्माना, कटा चालान, बोले हाय यह कैसी सरकार!

 


अब छुटकू जो कार चलाया, मम्मी पापा जाएंगे जेल

एंबुलेंस का रास्ता रोकने वाले भी होंगे डिटेन


 
दारू पीकर गाड़ी चलाने वाले की तब उतरेगी

चालान की राशि वाहन की कीमत तक जब पहुंचेगी


 
हालांकि चालान की राशि हुई बड़ी और अकान

नहीं फिर भी कुछ कीमत इसकी, जितनी कीमती अपनी जान


 

यातायात नियम पालन की, ली है हमने मन में ठान

नियमों का पालन करने पर नहीं कटेगा कोई चलान


1.   हेलमेट से है...चालान और जान दोनों सुरक्षित


2.   ट्रेफिक नियम का जो रखे ध्यान


    आओ करें उनका सम्मान


 - 28 सितंबर 2019

बुधवार, 3 जून 2020

भगवान हमरा गरीब किए बनेलौं ! (मैथिली खिस्सा)



एकटा गाम मे दू टा ब्राह्मण रहई छलाह; दुखमुख झा आ सुखमुख झा। दुनू दियाद छलाह मुदा एकटा गरीब त दोसार सुखी सम्पन्न। गरीब ब्राह्मण अपन सुखी-सम्पन्न दियाद के देख के सदिखन जरइत रहई छलाह आ भगवान के कोसइत रहई छलाह जे “हे भगवान हमरा गरीब किएक बनेलौं आ एकरा एत्तेक धन-संपईत देलियइ !” 
एकदिन भगवान हुनकर बात सुनि लेलखिन आ सम्पन्न ब्राह्मण के संपईत पर बज्र खसा देलखिन। आब दुनू दियाद गरीब भ गेल छलाह। बराबर के औकात बला। भगवान दुनू के दस टा पठरू(बकरी के बच्चा) द क दुखमुख झा से कहलखिन जे देखह आब हम तोहर गोहार मानि लेलीयह आ आब तोहर दियादो गरीब भ गेल छथुन। हम दुनू के 10-10 टा पठरू द रहल छिय जीवन यापन लेल। एकदम बराबर-बराबर। तखन आब हमरा से फेर शिकायत नई करिह जे हम देब मे दूनैति केलहु अछि। 

सम्पन्न ब्राह्मण जे आब गरीब भ गेल छल बहुत दुखी भेल। मुदा नियति मानि के भगवान के देल 10 टा पठरू ल क सोचय लागल जे आब आगा की कैल जाय। ओ 10 टा मे से 2 टा पठरू दू हजार रुपे के भाव से बेच देलक ओय से जे पाई भेटल ओकरा से परिवार के न्यूनतम जरूरत पूरा करय के प्रयत्न करय लागल आ आठ टा पठरू के पोसय लागल। ओकर धिया-पूता जे प्राइवेट स्कूल मे पढ़ई छल तकर नाम कटि गेलई मुदा ओ धियापुता के पढ़ेनाई नै छोड़ौलक अपितु सरकारी स्कूल मे ओकरा सब के नाम लिखा पढ़ेनाई चालू राखलक।
एमहर गरीब ब्राह्मण मनोरथ पूर्ण भेलो पर (दियाद्क संपईत खाक भ जाय के) खुश नै छल। ओ भगवान के फेर कोसय लगलाह: “ईह! भगवानों बड्ड घाघ छईथ ओकर संपईत पर बज्र भले खसा देलाह मुदा हमरा धनिक बनेनाइ नै भेलइन। देबहे के छलइन त ई नै जे सोना-असर्फी दितथिन, देलाह की त 10 टा पठरू। बुझु त, एकर हम की करब! हुंह।“

लाल बौआ त पठरू पोसता, किए ने अपनो सब पोसी ब्राह्मण के कनियाँ बजली।
“धुर जाउ ओ त पतीत अछि, किछु क सकई ये, ब्राह्मण भ क कहीं छगर-पाठी पोसी! राम राम राम”
अस्तु, ई विप्र सभटा पाठा दू हजार टाका के दर से बीस हजार टाका मे बेच देलाह, आ ओई पाई से किछ दिन छहर-महर केलाह। 

किछु मास बितला पर बाजार मे खस्सी के मांग बढ़ल, रेट चढ़ल। सुखमुख झा के पाठा सब बढि के दनदना रहल छल। ओ आठो खस्सी के दस हजार के भाव से अस्सी हजार टाका मे बेचलाह। आब हिनका लग किछु पाई आबि गेल छल। मुदा ओ ई पाई मे से चालीस हजार टाका के चालीस टा पठरू कीनि लेलाह। दस हजार टाका खर्च क के पठरू सब के राखs लेल एकटा ढंगक बथान बनेलाह। दस हजार टाका बकरी-पालन के लेल भविष्य मे होबय बला खर्च लेल राखलाह। आ बचल बीस हजार टाका घरक आवश्यक खर्च लेल राखलाह।
ई देख पहिल विप्र के कनियाँ के सेहनता भेलइन जे एह अपनो सब एहिना करितौ! 

विप्र बजला जे भगवान एहन अवसरो दितथीन तखने ने। खाय लेल त आब पाई ने भ रहल अछि। कहुना पूजा-पाठ आ भोज-भात के बले जिनगी घिचा रहल अछि। छोड़ू ई सब बात। मुदा हुनकर कनिया भगवान के नेहउरा केलीह त भगवान प्रसन्न भ क एक बेर फेर ओकरा 10 टा पठरू देलखिन। 

दुखमुख झा ऐ बेर मोन मारि ओकरा सबके पोसय लगलाह। मुदा हुनका घर मे सब आलसी लोक। आ माल-जाल पोसय मे त पचीस तरहक झंझट रहिते छैक। जा समय से घास-पात दाना-पानी नै हेतई ता माल-जाल कोना के पोसेतई! पठरू सब के देख-रेख मे दिक्कत होबय लागल आ एकरे ल क छोट-छोट बात पर घर मे महाभारत सेहो होबय लागल। एक दिन विप्र खौझा के बजलाह जे “हम पहिनेहे कहने रही जे ई सब अधलाह काज कहीं ब्राह्मण करई! जहिया से ई छगर-पाठी पोसय के काज शुरू भेल घर मे अशांति आ कलह आबि गेल अछि। आब बहुत भ गेल। बेस आब हम एकरा सब के उपटाए देब।“ बस विप्र दसू पाठा के चालीस हजार टाका मे बेच एलखिन। आ जे टाका भेटल तै से फेर परिवार चलाब लगलखिन। 


एमहर सीजन आबई तक सुखमुख झा के खस्सी सब पईघ आ खूब गुदगर भ गेल छल, यद्यपि हुनकर दू टा पठरू बीमार भ के खराब भ गेल छल। समय एला पर ओ चारि लाख टाका मे एकर सौदा केलाह। ऐ बेर सुखमुख झा सवा लाख टाका खर्च क के सौ टा पाठा आ चारि टा बकरी किनला। पचास हजार टाका खर्च क के दू टा आरो बथान बनेला आ काज मे सहयोग के लेल दू टा छौरा काज पर राखि लेलाह। एक लाख टाका छौरा सब के दरमाहा आ छागर-पाठी के पोसय मे भविष्य मे आबय बला खर्च के लेल राखि लेलखिन। पचीस हजार टाका से कनियाँ लेल किछ गहना किनला आ धिया-पूता लेल नव कपड़ा। बाँकि के डेढ़ लाख परिवार के खर्च आ बेर-कुबेर के लेल उपयोग केलाह। ओ एखनो आपण धिया-पूता के पढ़ाई चालू रखने छलाह।

एहिना समय बीतय लागल। ऐ बेर छौरा सब के लापरवाही आ प्रतिकूल मौसम के कारण  सुखमुख झा के दस टा पाठा खराब भ गेल छलई। मुदा तखनो सुखमुख झा ऐ साल नौ लाख टाका के कारोबार केलाह आ तीन सीजन से बकरी पालन करैत-करैत अपन अनुभव से ऐ काज के लेल बहुत किछ कौशल सीखि नेने छलाह। आब छौरो सब के ठीक-ठाक ट्रेन क रहल छलाह। ऐ बेरक टर्न ओवर मे से ओ चारि लाख टाका बिजनेस कैपिटल के मद मे द देने छलखिन आ पाँच लाख टाका परिवार के मद मे। अपन घर के ठीक ठाक करेलाह। रंग-ढ़ोर करेलाह। धियापुता के सोनपुर मेला आ काबर झील सेहो घूमेलखिन। ऐ तरहे सुख एकबेर फेर सुखमुख झा के दुआरि पर घूरि आयल छल। 

किछुए साल मे सुखमुख झा फेर से सुखी-सम्पन्न भ गेल छलाह। आब हुनका लग बड़का टा बकरी फार्म छल जै मे कईएक टा लोक नौकरी क रहल छल। फेर से नीक घर, गाड़ी सब भ गेलइन।

एमहर दुखमुख झा के एखानो गरीबी घेरने छलइन। धिया-पूता के सेहो ईस्कूल छोड़ा के अपना संगे जजमानी करय आ भोज खाय मे लगेने छलाह। अपने आ की बच्चे सब के कमसेकम ढंग से संस्कृत आ कर्म-कांड सब आबितईन तखन ने यजमानियों ढंग से चलतइन, आ नै कहियो एकरा खातिर प्रयास केलाह, नै धिये-पूता के निक शिक्षा देलखिन। कहुना दिन काटि रहल छलाह, आ पुनश्च पुनश्च भगवान के कोसै छलाह जे “भगवान हमरा गरीब किए बनेलौं !”