मंगलवार, 23 जनवरी 2024

विरह की चिता पर

 



विरह की चिता पर, धूप रही समा,

आँसुओं की बूंदें, गुलजार हैं वहाँ।

प्रेम की राहों में, बिछी है पाषाणे, 

विरह की चिता पर, खामोश हैं ज़बाँ।


सागर की लहरों में, है उसका गुरूर , 

पलकों पर खड़ा है, स्वयं से ही वो दूर ।

रातें हैं सुनसान, चाँदनी से वंचित, 

विरह की चिता पर, अंधेरा हैं अकिंचित।


जीवन भी है संगीत, बजता है वीरान, 

विरह की चिता पर, गीत रहे आवरान।

नेह की बाती से प्रज्वलित स्वप्न हैं,

विरह की चिता पर, शोकाकुल आसमान।


बातें हैं यादों में, सपनों की तक़दीर, 

कौन समझे विरहन के हृदय की पीड़!

उठ रही लहरें हिय में जैसे सुनामी,

विरह के चिता के जलने की ये कहानी।


धूप के किनारे पर, खड़ी है वीरानी, 

विरह की चिता पर, है सत्य की निशानी।

अब भी रोशन है, उसकी रौशनी का चिराग, 

विरह की चिता पर, है प्रेम की जलती आग।

 

  - 23.01.2024

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