मंगलवार, 23 जनवरी 2024

विरह की चिता

 

मणिकर्णिका के हृदय मे जल रही विरह की चिता,

मैं समंदर दूर बैठा किससे कहूँ अपनी व्यथा।

मेरे उर के स्पंदन मे उठती हैं निशि-दिन हिलोरें,

और माँझी की नज़र मे है अलग ही यह कथा ।।


मनुज तुम समझ न पाए वेदना मेरी कभी,

ले लिया सबकुछ मेरा पर सुध कभी मेरी न ली।

अनवरत लहरों के नीचे उठ रहा है धुंआ,

विरह की चिता में जल रहे, हैं समंदर आसमाँ।।


मिलन होना है कभी रात का दिन से नहीं,

पूर्ण होगा चक्र कैसे किन्तु इक दूजे के बिन!

विरह भी है सृष्टि के पूर्ण होने की कथा,

मणिकर्णिका के हृदय मे जल रही विरह की चिता॥

  - 23.01.2024 

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