तेरे मेरे बीच ये शर्म की दीवार खड़ी है
क्या करूँ पर दिल मे बेचैनी बड़ी है
तोड़ना चाहूँ अगर दीवार अकेले मैं
क्या करूँ मुझमे इतनी ताकत नहीं है !
पर जो तेरा सहारा मिल जाए मुझको
हौसले छू लेंगे फिर तो बुलंदीयों को
फिर तो हर दीवार गिरा दूंगा मैं
चाहे होना पड़े कुर्बान मुझको ।
कुमकुम सुशोभित, साँस थमने से पहले
सजा कर मांग दुल्हन बना लूँगा तुमको
इरादा तो है पर तेरे साथ जीने का मेरा
तेरे ख्वाब मे मेरी हसरतों का हो बसेरा।
नहीं तुझको दे सकता चाँद और सितारे
बिछा सकता हूँ पर खुद को राहों मे तुम्हारे
तू इक बार मुझको आजमा कर तो देखो
तेरी हर कसौटी पर खड़ा हो सकता हूँ मैं ।
(26.01.2010)
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