मंगलवार, 11 फ़रवरी 2025

लोकतंत्रक रंगमंच

 


लोकतंत्रक रंगमंच

 

लोकतंत्रक रंगमंच पर, खेल अजगुत होइत अछि,

नेता लोकनि वादा करैत, जनता लहालोट होइत अछि।

कखनो पार्टी गलबहिया करत, कखनो बैर विरोधक राग,

जनता बीच भ्रमक जाल, केकरो पर करी कोना विश्वास?

 

चुनावी रैली, भाषण भारी, आश्वासनक बौछारि,

वोटक लेल सब किछु संभव, बाद में देत नकारि।

भाषण मे नै रहल मिठास, सबहक बोल भेल कड़वा

कि केलहु, कि करब बात नै, बस लड़बैत रहत सरबा।

 

मीडिया मुद्दाक बात उठाओत नै, करत टीआरपीक खोज

बिना बात के मुद्दा पर मुर्गा, लड़बईत रहत  रोज ।

कोना समाज समृद्ध सुखी होय, किए करत विचार

टीवी न्यूज मे जनता खोजय पापड़, घी, आचार ।

 

जनता भेल अछि साधन मात्र, वोटक गिनतीक खेल,
सेवा शब्दक अर्थ विलुप्त भेल, पैसाक राजक मेल।
चुनावक संग फूटल सपना, आशाक बुझाइत अछि अंत,
लोकतंत्रक दीप जरबाक लेल, कतय अछि सत्यक पंथ?

 

सोमवार, 27 जनवरी 2025

आदित्य एल1 : तिला संक्रान्ति (मैथिली पद्य)

 


आदित्य एल1 : तिला संक्रान्ति

उदित होइत आ डूबैत अहाँके हम नित्य देखलहु अछि

तपिश पाबि क अहाँक हम अमृत नित्य सेंकलहु अछि।

सुनु आदित्य अहाँके देवता मानलहु सदिखन हमसभ

अहाँके लग आबाए के अछि, ई ज़िद ठानलहु सदिखन हमसभ॥

 

नदी, सागर, ई पर्वत, वन अहीं आबाद करय छी

धरा पर सृष्टि के, अहीं त जिंदाबाद करय छी।

हमरा बूझल अछि अहाँक तपस्या, त्याग सेहो अहाँक

प्रलय के आगि समेटने अहाँ दिन राति जरय छी।

 

सुनल अछि रुकि गेल छल रथ, सती के शाप से नभ में

बुझिके फल श्री हनुमान जी राखि नेने छलाह मुख में।

रुकल संसार सेहो अहाँ संग, दिवाकर अहाँ कहाबय छी

कोनो टा सभ्यता होय, पूजय अछि सब अहाँके जग में॥

 

सुनु आदित्य अहाँसे फेर कनिक किछू बात कर के अछि

लगिच आबिकऽ अहाँक अहाँसे भेंट-घांट करऽ के अछि

अहाँके आगिमें लिपटल  किछ-एक और राज खोलब हम

हम भारत भू से एलहु अछि, अहाँके बात करबाक अछि।