सोमवार, 27 जनवरी 2025

आदित्य एल1 : तिला संक्रान्ति (मैथिली पद्य)

 


आदित्य एल1 : तिला संक्रान्ति

उदित होइत आ डूबैत अहाँके हम नित्य देखलहु अछि

तपिश पाबि क अहाँक हम अमृत नित्य सेंकलहु अछि।

सुनु आदित्य अहाँके देवता मानलहु सदिखन हमसभ

अहाँके लग आबाए के अछि, ई ज़िद ठानलहु सदिखन हमसभ॥

 

नदी, सागर, ई पर्वत, वन अहीं आबाद करय छी

धरा पर सृष्टि के, अहीं त जिंदाबाद करय छी।

हमरा बूझल अछि अहाँक तपस्या, त्याग सेहो अहाँक

प्रलय के आगि समेटने अहाँ दिन राति जरय छी।

 

सुनल अछि रुकि गेल छल रथ, सती के शाप से नभ में

बुझिके फल श्री हनुमान जी राखि नेने छलाह मुख में।

रुकल संसार सेहो अहाँ संग, दिवाकर अहाँ कहाबय छी

कोनो टा सभ्यता होय, पूजय अछि सब अहाँके जग में॥

 

सुनु आदित्य अहाँसे फेर कनिक किछू बात कर के अछि

लगिच आबिकऽ अहाँक अहाँसे भेंट-घांट करऽ के अछि

अहाँके आगिमें लिपटल  किछ-एक और राज खोलब हम

हम भारत भू से एलहु अछि, अहाँके बात करबाक अछि।

 

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें