सोमवार, 27 जनवरी 2025

मास्क पहिरि क ईस्कूल चल (मैथिली कविता)


मास्क पहिरि क ईस्कूल चल

 

मास्क पहिरि क ईस्कूल चल

युग बदललै तोहूँ बदल

ज़माना बड्ड खराप छैक बुच्ची

सुनि ले माय-बापsक कहल।

 

नै भेंटतौ ओ आम-लताम

छुटलौ तोहर बाप केर गाम

हाड़-तोरि ओ मेहनत करौथ

टाका कमबथु स्वास्थ्य केर दाम।

 

पोखरि मुईन ओ घर बनेलखुन

यमुना कात मे प्लॉट कटेलखुन

माछsक झोरी बिसरी के आब

फास्टफूड ओ फॉइल मे लाबथुन।

 

गाछ-वृक्ष से नै मतलब छै

वायु शोधक खूब बिकई छै

हवा मे जखने ज़हर घुलै छै

किसान सब के नाम अबई छै।

मुदा नै भेंटतौ समाधान

किए के देतई कियौ कान !

 

एखन स्वार्थ मे सब आन्हर छै

पर्यावरण से नई कोनो मतलब छै

जखन जान पर आन पड़य छै

तखन खोजय नेता मंत्री केर काम।


ऐ जेनेरेशन से नई कोनो आस छै

जीवन शैली बनल बकवास छै

तै तोरे सभ पर छै आस

करबह अपन जीवन मे किछु खास।

 

पर्यावरण संरक्षण करबह

प्रकृतिक संग प्रेम से रहबह

तैं  गे  बुच्ची कहल   मान
मुश्किल में छै सबहक जान !

 

[प्रणव कुमार झा, राष्ट्रीय परीक्षा बोर्ड, नई दिल्ली]

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