नमस्कार मैं प्रणव कुमार। सर्वप्रथम सतर्कता सप्ताह के अवसर पर मैं देश के प्रथम गृह मंत्री लौहपुरुष सरदार बल्लभ भाई पटेल को स्मरण करते हुए नमन करता हूँ, साथ ही संचालक मण्डल को मुझे मंच उपलब्ध कराने के लिए धन्यवाद व्यक्त करता हूँ।
आज मुझे एक महत्वपूर्ण विषय पर अपने विचार रखने का अवसर मिला है – "सत्यनिष्ठा की संस्कृति से राष्ट्र की समृद्धि।"
सत्यनिष्ठा, शब्द सत्य और निष्ठा शब्द से मिल कर बना है अर्थात सच्चाई और ईमानदारी। किन्तु महत्वपूर्ण प्रश जो है वह यह कि सच्चाई और ईमानदारी किसके प्रति? संविधान के प्रति, संस्था के प्रति, समाज के प्रति। यह सत्यनिष्ठा क़ानूनों और किताबों से नहीं आ सकता। यदि आ सकता तो पिछले एक दशक से वैश्विक करप्शन इंडेक्स मे देश की रैंकिंग 80-95 के बीच नहीं झूल रहा होता। यह नैतिक मूल्यों से आता है। किसी ने बहुत अच्छा थीम बनाया है सत्यनिष्ठा की संस्कृति से राष्ट्र की समृद्धि। इसकी बड़ी आवश्यकता है। दरअसल हमारे देश मे सत्यनिष्ठा की संस्कृति बहुत ही छद्म रूप मे है। मुझे कहते हुए खेद है, किन्तु सच यही है कि हमारे यहाँ सत्यनिष्ठ व्यक्तियों की कोई खास प्रतिष्ठा नहीं है…. न संस्थाओं मे न समाज मे। उन्हे अक्सर बेवकूफ, सनकी, और मिसफिट समझा जाता है। आप बताइये की आप कितने उदाहरण दे सकते हैं कि किसी संस्था मे किसी समाज मे सत्यनिष्ठा के उच्च मानक रखने वाले व्यक्ति को बहुत आदर दिया जाता हो, उन्हे रोल मॉडल माना जाता हो, सस्थाएँ उन्हे सम्मानित करती हो ?
मुझे याद आता है कि मुंशी प्रेमचंद के जन्मदिन पर अक्सर सोशल मीडिया मे लोग उनके कहानी पंच परमेश्वर की ये उक्ति लिखते हैं “बिगाड़ के डर से ईमान की बात नहीं करोगे”। पर वास्तव मे होता क्या है? बिगाड़ के डर से ईमान की बात नहीं कहने पर दफ्तर में प्रमोशन आउट ऑफ़ टर्न मिलता है. बिगाड़ के डर से ईमान की बात न कहने पर समाज आपको विनम्र, सुशील, अच्छे और सब से बनाकर चलनेवाले आदमी का तमग़ा देता है जिसे पाकर आप बच्चों को सिखाते हैं कि ईमान की बात व्हाट्सप्प फॉरवर्ड तक में सीमित रखो. लेकिन फ़ेसबुक व्हाट्सप्प पर प्रेमचंद की तस्वीर लगाकर जरूर लिखो कि "बिगाड़ के डर से ईमान की बात नहीं करोगे क्या...।"
ईमान की बात करना नही है क्योंकि दुनिया में सबसे मिला मिला के चलना है. कर्मचारी को बॉस से, बॉस को सुपरबॉस से. स्टूडेंटस को टीचर से. टीचर को वीसी से. वीसी को अपने नियुक्ति करने वाले से.
बस मंच पर और बैठकों में जाके रस्मअदायगी कर लेनी है ईमान का.... वहाँ कोई सुनेगा नहीं क्योंकि सब अपने कान में तेल डालकर ताली पीटने में लगे रहते हैं. ईमान हवा में तैर रहा होता है. बिगाड़ तेल लेने गया होता है.
एक राष्ट्र तभी प्रगति कर सकता है जब उसके नागरिक अपने कार्यों, विचारों, और निर्णयों में सच्चाई और ईमानदारी का प्रण लें। इतिहास गवाह है कि जब भी किसी देश ने सच्चाई और ईमानदारी को अपने जीवन का मूल सिद्धांत माना है, तब वह देश सामाजिक, आर्थिक और सांस्कृतिक रूप से समृद्ध हुआ है। सत्यनिष्ठा की संस्कृति के बिना विकास अधूरा है। यदि देश के नेता, अधिकारी, और नागरिक ईमानदारी का पालन नहीं करते, तो एक सुरक्षित, विकसित और खुशहाल समाज का निर्माण बहुत मुश्किल है। आज हम दुनिया की पाँचवी बड़ी इकोनोमी हैं। किन्तु खुशहली इंडेक्स हो या हंगर इंडेक्स, इन मामलों मे फिसड्डी है। क्यों? एक बड़ा कारण सत्यनिष्ठा की संस्कृति की कमी है। करप्शन इंडेक्स मे हमारी रैंकिंग सुधर जाए तो खुशहली इंडेक्स मे भी सुधार होगा। आप देख सकते हैं कि खुशहली इंडेक्स मे वही देश टॉप पर हैं जो करप्शन इंडेक्स मे बेहतर स्थिति मे हैं।
इसीलिए आवश्यक है कि देश मे सत्यनिष्ठा की संस्कृति को समृद्ध किया जाए। देश में यदि हम शिक्षा, न्याय और प्रशासनिक व्यवस्था में सत्यनिष्ठा की संस्कृति को वास्तविक रूप मे स्थापित करें, तो समाज का हर वर्ग एक खुशहाल और प्रगतिशील जीवन जी सकता है।
ठीक है, समाज और संस्था के अंदर सत्यनिष्ठा की संस्कृति को बढ़ावा देने मे हम सक्षम न हों पर अपने आप के अंदर अपने बच्चों के अंदर तो हम इस संस्कृति को पुष्पित पल्लवित कर ही सकते हैं! दिनकर जी कि इन पंक्तियों के साथ अपनी वाणी को विराम देना चाहूँगा कि
वे पियें शीत, तुम आतप-घाम पियो रे!वे जपें नाम, तुम बनकर राम जियो रे!
जय भारत, जय संविधान।
[सतर्कता जागरूकता सप्ताह 2024]
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