बुधवार, 1 जनवरी 2025

जनवरी 2025 के कुछ मुक्तक

 

तुम दोगे आवाज तो मैं आऊंगा।

नए साल में नए नज्म सुनाऊंगा।

तुम प्यार से मुझे देखना शुरू तो करो।

हर बार कुछ और ही ज्यादा भाऊँगा ॥

 

आसमान से प्रदूषण हट जाए तो अच्छा है।

पापीयों के पाप का घड़ा फट जाए तो अच्छा है।

मैं तो यूँ ही अपने नज्म सुनाता रहूँगा आपको ।

आपके दिल में जाकर अटक जाए तो अच्छा है ॥

 

 गिरी जाती है मानवता उठाओगे बताओ क्या

न होगा फिर से कोलकाता वचन दे पाओगे बोलो क्या।

कोई फिर से अतुल सुभाष सा करने का न सोचे

तज विलासिता जीवन जड़ों से जुड़ पाओगे बोलो क्या॥

 

बहुत कुछ जोड़ कर गुजरे वो, रतन थे और मनमोहन

बहुत कुछ छोड़ कर गुजरे वो, रतन थे और मनमोहन।

सिखाकर मूल्य उद्यमिता, परिश्रम सादगी का जो

बड़े ही शान से गुजरे वो रतन थे और मनमोहन॥

 

नए इस साल में खुद से नया सा प्रश्न तो कर लो

समर्पण त्याग मानवता का मन में भाव तो भर लो ।

करो यह याद, सिखाया क्या हमें आध्यात्मवालों ने

तुम्हारे मन को घेरा क्या कभी भी इन सवालों ने ॥

 

नए इस साल में कुछ भी नया है क्या बताओ तो

हवा है स्वच्छ खिड़की से जरा पर्दे हटाओ तो।

मिटा क्या मैल अंदर का हृदय में झाँक कर देखो

कसौटी में खुदी के खुदको जरा तुम आँक कर देखो॥

 

करो तुम माफ़ किसीको आज, बताओ कर सकोगे क्या

करो तुम साफ दिल अपना, बताओ कर सकोगे क्या।

नए इस वर्ष में कुछ तो नया शुरुआत कर देखो

कोई बिगड़ी बनाने को तू फिर से बात कर देखो॥

 

शहर के शोर में गुम है यूँ खामोशियाँ मेरी

अँधेरी रात में जैसे खड़ी पर्छइयाँ तेरी ।

मेरी खामोशियों के शोर पर तुम कान तो देना

कभी उर के स्पंदन में हमारा नाम तो लेना॥ 

 

यही अरदास है रब से ख़ुशी से साल यह गुजरे

तरक्की हो सभी घर में, बड़ा खुशहाल यह गुजरे।

अमन हो प्रेम हो, इज्जत हो सबके लिए सबको

इलाही रूह में सबके  विचार यह गुजरे॥

-       प्रणव झा [31.12.2024]

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