शनिवार, 22 फ़रवरी 2025

हमारा प्राण भारत का

 


हमारा प्राण भारत का

 

हमारा मन समर्पित है, हमारा तन समर्पित है

ओ मेरे देश की माटी, तुम्हें जीवन समर्पित है

लिया आकार तुमसे ही तुम्ही मे है फ़ना होना

सदा तुम वत्सला होना यही बस भाव अर्पित है ।

 

हमारे कंठ में गूँजे सदा वेदों की वाणी हो,

बढ़े विज्ञान, सृजन, संधान, हमारी जय कहानी हो।

न हो अन्याय, न डर  कोई, यहाँ बस प्रेम पनपेगा,

हर इक संतान भारत का सितारों सा ही चमकेगा।

 

मुकुट जैसे सदा ही शीश पर गिरिराज बसते हैं

चरण धो धो के सिंधुराज सागर खूब गरजते हैं

दिया आश्रय तुम्हारे वन-नदी ने सभ्यताओं को 

भारत भूमि तुमको हम सर आँखों पर रखते हैं।

 

हमारी शान तुमसे है, हमारा मान तुमसे है,

सदा उन्मुक्त लहराता तिरंगा आन तुमसे है।

तपस्वी साधना सिंचित, सजीले स्वर्ण खेतों में,

सदा गूंजे सुमंगल गीत, हरेक घर के अहातों मे।

 

ले हम प्रण सत्यनिष्ठा का, इसे हर क्षण निभाना है

मिले बल उच्च नैतिकता का हमे वो मूल्य पाना है

बता दो तुम जमाने को भूमि है, ये राम, गांधी की

दिए आदर्श उच्च ऐसे कि जिसे दुनियाँ ने माना है।

 

चलो मिलकर प्रतीज्ञा लें, बढ़ाएँ मान भारत का,

न कोई शत्रु छू पाए, रखें सम्मान भारत का।

तेरी माटी की सौंधी गंध, हमारे प्राण में बसती,

तुझे वंदन, तुझे अर्पण, हमारा प्राण भारत का!

 

चलो उस शौर्य की धारा में अपनी रीत गढ़ते हैं,

चलो बलिदानियों के वीरता के गीत पढ़ते हैं।

ये मिट्टी है परमवीरों की, यही माँ भारती प्यारी,

विविधता मे समेटे एकता को धरा है ये बड़ी न्यारी! 

 

शपथ लेकर , हमें नित राष्ट्र को आगे बढ़ाना है, 

तपस्या, त्याग, संकल्पों से भारत को सजाना है। 

बता दो तुम ज़माने को, वतन यह वो निराला है, 

जहाँ हर युग मे देवों ने भी अपने चरण डाला है।

 

- प्रणव झा 22.02.2024

 

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें