रविवार, 2 मार्च 2025

जगत के सार हैं मोहन


 जगत के सार हैं मोहन

कभी माता यशोदा के नयन के तार हैं मोहन

वृन्दावन राधिका के हृदय झंकार हैं मोहन।

दिये जो ज्ञान गीता का अभय गाण्डीवधारी को

कराए पार भावसागर, तारणहार है मोहन।।


थिरकते नाग पर यमुनातीर के रखवार हैं मोहन

मधुवन ग्वाल बालों के सखा सरकार हैं मोहन।

किया धारण गोवर्धन को अंगुली पर कभी जिसने

प्रेम धुनमें कभी बंसीवट राधेश्याम हैं मोहन।।


सुदामा के चावल के बदले गए सब हार हैं मोहन

दुर्योधन की मेवा छोड़ खाए विदुर घर साग हैं मोहन।

सिखाया प्रेम दुनियाँ को दिया बस प्रेम को ही भाव

दिया तुलसीको सत्यभामा के धन से अधिक भाव है मोहन।।


वही जो काल के गति का स्वयं आधार रखते हैं

अधर्म का नाश करने को सुदर्शन धार रखते हैं।

रुक्मिणी के मनोहर प्रिय, राधा के प्राणधन हैं

हर युग में धरें अवतार, चिर अविकार हैं मोहन।।


कभी रणछोड़ कहलाए, कभी जग के पालनहार

अधर्मो के विरुद्ध सदा धर्म की ललकार हैं मोहन।

जहाँ भी प्रेम, वहाँ मोहन, जहाँ भी भक्ति, वहीं वो हैं

हरएक कण में समाए हैं, जगत के सार हैं मोहन।।

- प्रणव झा (02.03.2025)


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