शुक्रवार, 4 अक्टूबर 2024

बादल आई फेर तू आयल छलही हमरा आँगन

 

 
 

बादल आई फेर तू आयल छलही हमरा आँगन

 

बादल आई फेर तू आयल छलही हमरा आँगन,

आ बरसि के चलि गेलही ;

हम तोहर आभारो नै जता सकलहु !

तोहर बुन्नी से अपन गमछो नै भिजा सकलहु !

 

तू बड्ड व्यस्त छलहि सबहक प्यास मेटाबऽ मे।

मुदा काइल्खन तू फेर आबिहें।

बाँहि खोलि करबाक अछि तोहर स्वागत,

आ भिजेबाक अछि तोहर बुन्नि से अपन तन मन।

बंद करऽ के अछि तोहर बुन्नि के अपन मुट्ठी मे

आ झूमि के करबाक अछि प्रेम से तोहर आलिंगन।

 

पुछबाक अछि ई प्रश्न तोहर कारी घट से

सुनि रहल छहि न रे करिया बदरी ?

कोना लऽ आबय  छहीं तूँ मरुभूमियो मे हरियरी ?

कि मेटा सकय छहीं पियास ओहो अभागल सभ के

सुखायल अछि कंठ जेकर सदि से, कईएक जनम से।

 

भेंट सकत की सभके कोनो दिन तोहर बुन्नीक हिस्सा

आनंदित हेतईक की सभटा मनुक्खक जीवनक खिस्सा!

के छैक जे चोरा लैत अछि सब बेर तोहर  मेघ के ?

इन्द्र छैक, कोनो दानव आ कि कोनो आन देवता

आ कि ऐ पापक भागी सेहो छी हम मनुक्खे टा !

 

सुनही न, तू आबिहें, फेर आबिहें हमरा आँगन

अपन बुन्नी से भिजाबिहें हमरा  सबहक तन मन।

 

-      , अगस्त 2024


 

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