दिशाहीन
लेखक: शेफालिका वर्मा अनुवादक : प्रणव झा
(केवल अकादमिक एवं शोध कार्य हेतु )
अरे, सुनते हो – हम लोगों को एक प्रस्ताव मिला है – “किस बात का? किस बात का?”
दिनू, रामू, सजल, सुमन चारो उत्सुक हो उठे थे –
बिन्नू नव अंकुरित तिनके के नोक जैसे उग आए मुंछों पर ताव देते हुए बोला – सुनोगे तो खुश हो जाओगे। - दो बोतल दारू – गाँजा और मांस मिलेगा ..... दारू-गाँजा-मांस?
कहाँ रे कहाँ रे ? अरे किसके पैसे गायब किए हो ..... दसवीं....ग्यारहवीं मे पढ़ने वाले स्कूली लड़कों की जमघट चौराहे पर थी... सभी की आँखों मे भोलापन, चेहरा.... निष्पाप चाँद जैसा किन्तु कलंकित।
कोई आचार्य का बेटा था, कोई वकील साहब का, कोई व्यापारी का और कोई दंडाधिकारी साहब का .... पंद्रह से अठारह की आयु सीमा रेखा...मे भटकते.....
किसी की माँ नौकरी कर रही थी, किसी की माँ समाजसेविका, किसी की माँ गृहस्थी की चक्की मे पिसी मूढ़ अज्ञानी देहाती औरत...पैसा...पैसे के पीछे दुनिया भाग रही है। मानव मूल्य कहीं पर नहीं रहा। प्रेम, ममता वात्सल्य, यह सब इतना सस्ता हो गया है कि पैसे पर बिक रहे हैं। मानव अपनी प्रकृति से वंचित होकर कितने दिन टिकेंगे दानव बन। बेईमानी जिंदगी मे मानवता बन चुका है और ईमानदारी मूर्खता के आवरण मे छिप गया है। ईमानदार व्यक्ति को समाज उपेक्षा की नजरों से देखता है...आह...बेचारी सती साध्वी नारी सीता जैसी कलंकित होकर अग्नि परीक्षा देते हुए जिंदगी जीती है और पाश्चात्य सभ्यता से रंगी-पुती सफेदी की ओट मे स्याही का सृजन कर रही है। यह है अपना देश, जो त्याग, तपस्या प्रेम लज्जा से गौरवान्वित था। आज नग्न निर्वासित चौराहे पर देश का अतीत दंडित है...पैरों से रौंदते यांत्रिक मानव बेतहाशा दौड़ रहे हैं।
और पैसे की प्यास रही तो अपने बहन बेटी पत्नी सभी से नौकरी करा रहे हैं... और उस से भी मानव की दानवी भूख नहीं मिटी तो दहेज के नाम पर बेटे को बेचना शुरू कर दिया.... बाप बेटे को बेच रहे हैं। पैसा पैसा.....हाय पैसा.... और सेवा का मन व्यथित था......सजल उसका भाई कभी भी घर मे पढ़ता नहीं है।
माँ तुम एक बार भी क्यूँ ध्यान नहीं देती हो। दंडाधिकारी का बेटा कहीं गली गली घूमे ... गैस चूल्हा पर कच्चे चावल की रोटी बनाती माँ बोली अपने पिताजी को कहो। तुम जानती हो मुझे भाव देता है ......वो रोटी भी पका रही थी और पड़ोसन से बातें भी कर रही थी.....आपकी साड़ी बहुत अच्छी है। मैं भी एक ऐसी ही खरीदूँगी, घर गृहस्थी मे फँसी देहात की औरत सजल की माँ सेवा की बातों को अनदेखा कर दिया....वो बेचारी पढ़ने, लिखने का महत्व इतना समझती थी “बेटा सबका पढ़ रहा है तो मेरा भी पढ़ रहा है और सेवा पढ़ेगी नहीं तो आज के जमाने मे विवाह मे परेशानी होगी। सेवा का मन उदास हो गया.... पिताजी को तो फाइल और टूर से फुर्सत ही नहीं, घर कौन देखेगा...?
माँ-माँ जल्दी से खाने को दो । विद्यालय का समय हो गया है – दिनू अपनी माँ से लिपट गया.... रे अभागल देखते नहीं हो। कहीं से भी आता है और झट से शरीर से लिपट जाता है। अपनी रेशमी साड़ी को तह देते हुए बोली तरला, जाओ रसोई घर मे नौकर है....खाना लगा देगा... मेरे कॉलेज का समय होते जा रहा है ... और बड़बड़ाते हुए तरला वहाँ से चली गई, ड्रेसिंग टेबल मे अपने सौन्दर्य छवि को निहारने हेतु। अप्रतिभ दिनू उदास और खिन्न मन से रसोईघर की ओर चला गया। भोजन अच्छा था किन्तु उसमे उसे स्वाद नहीं आ रहा था.... बैठक मे ताकझाँक किया। पिताजी के हाथों मे कड़क नोट और चेहरे पर व्यंग मिश्रित मुस्कान था .... कितने ही बार उसने चाहा कि पिताजी से पूछे ... महीने मे पिताजी एक ही बार न आपको वेतन मिलता है .... हर रोज कड़क नोट। किन्तु नौकरशाही की मानसिकता को वह दिनू शिशु शावक कैसे समझ सकता?
माँ, क्या है खाने के लिए .... सुमन बस्ता ठीक करते हुए बोला ... खाना तो फ्रिज मे रखा है... रात का खाना फ्रिज मे रख दिया है... क्यूँ....आप कहीं जा रही हैं क्या माँ.... आज महिला समाज की बैठक है। और आपके पिताजी तो हमेशा ही फाइलों मे ही लगे रहते हैं.... तुम भी खा लेना और उनको भी खिला देना।, तब विद्यालय जाना..... मुझे देरी हो रही है.... मैं जा रही हूँ....मेरे तो विद्यालय का समय हो रहा है... और पिताजी को देरी है...किन्तु सुमन के शब्द का दर्द विनीता के हृदय तो दूर उसके कानों तक भी नहीं पहुँच सका....और सुमन विद्यालय मे देर से पहुँचने पर मास्टर जी के बेंत के दर्द की कल्पना मे अपना दर्द भूल गया।
रमूआ रे क्या कर रहे हो । विद्यालय नहीं जाना है। नासपिटा कोई काम का नहीं.... जरा बाजार से सब्जी ला दो – रामू की माँ सरला दहाड़ी... कभी विद्यालय जाने हेतु डांटती है... कभी सब्जी लाने हेतु....रूआँसा होकर रमूआ बोला....अपने कमरे को साफ कर रहा हूँ....लड़का जवाब कितना देता है। अपने बाप पर गया है। दिन भर व्यापार, बिजनेस ठेका ठेकेदारी मे मस्त.... कभी टोको तो घर मे सारा सामान भर दिये , मौज करो।
माँ, हम लोगों की परीक्षाएँ आ गई है॥ पढ़ने का समय नहीं .... पढ़ कर क्या करोगे? पिता के लाखों की संपत्ति और एकलौता बेटा..... और परीक्षा पास करना....एक बार पिताजी पैसे लेकर घूम जाएंगे तो सर्वोच्च स्थान तुम्ही को मिलेगा..... रमूआ का मन खुश हो गया...तब सभी पर मैं रौब जमाऊंगा....किन्तु तुरंत ही उसका मन गिर पड़ा, किन्तु सभी तो पैसे वाले हैं... सभी के पिता तो यही करेंगे.... अच्छा, क्या होगा.....पढ़ने के जंजाल से छुट्टी तो मिलेगी..... क्या सोचते हो रे जाओ चौक पर से दौड़ कर सब्जी खरीद लाओ। आज मैं टीवी खरीदने जा रही हूँ... देर हो रही है.... सभी के घरों मे टीवी और ......टीवी – रामू उछल गया – वाह....... ।
माँ के कठोर बोल, परीक्षा, पैरवी , पैसा सब कुछ भूल गया रामू टीवी का नाम सुनते ही।
चारों लोगों का दादा था बिन्नू, माता पिता विहीन। सभी के घर माता पिता देखकर उसके अंदर मे एक अतृप्त आकांक्षा दम तोड़ रहा था... किन्तु वह नहीं जानता था कि दिनू, रमू , सुमन, सजल माँ बाप रहते हुए भी कितने अनाथ थे। माँ बाप का प्रेम, ममता, वात्सल्य से कितनी दूर – कितनी दूर..... बिन्नू दादा के प्रेम स्नेह मे सभी अपनी उदासी भूल बिन्नू कि बात मानने हेतु तत्पर.....
समाज मे भटके हुए दिशाहीन ये निश्चल शैशव किस प्रकार जीते हैं जिसे लोग ‘सड़क छाप’ कह देते हैं... यह सोचने की फुर्सत माँ बाप को कहाँ -
किन्तु करेंगे क्या हम लोग ..... इस बोतल शराब कबाब के लिए....देखो, हम लोगों को एक स्कूटर की आवश्यकता है । एक स्कूटर देखा है। रास्ते मे घेरना है। रात भर शराब वाला चलाएगा और दिन मे हम लोग? यही बात तय हुआ है। किन्तु पकड़े गए तो कोई बचानेवाल नहीं ....
ओह....हम लोग बिन्नू दादा के चेले हैं... कभी नहीं पकड़े जाएंगे....
तब फिर अग्रिम मे हो जाए और दारू की बोतल खुली, गाँजा का सुट्टा लगा .... बिन्नू दादा जिंदाबाद.....जिंदाबाद....
सजल की माँ परोसी के साथ न्यू मार्केट मे साड़ी पसंद कर रही थी कि चौंक उठी.....
तरला कॉलेज मे लेक्चर दे रही थी .... विद्यार्थी कि हमेशा अनुशासन मे रहना चाहिए, अनुशासन देश को महान बनाता है। किसी बालक के संसकार से उसके परिवार का संस्कार समझ मे आता है। चैरिटी बीगिन्स एट होम। घर ही बालक की प्रथम पाठशाला है। माँ बाप अपने बच्चे को कर्तव्य-प्रेम.....
मैडम, आपका टेलीफोन कहीं से आया है.... बीच मे ही कॉलेज का सपरासी आकर बोला .... तरला भी प्रिंसिपल चैंबर की ओर दाऊदी... हलो...हलो और खबर सुनते ही अचेत जैसी होने लगी.....
विनीता महिला समाज की बैठक मे भाषण दे रही थी.... हम सभी को अपने घर को बनाने हेतु प्रयास करना चाहिए। हम यदि अपने घर को नहीं बना सकेंगे तो समाज और देश को कैसे बनाएँगे? हम सभी पर बड़ा दायित्व है कि इस देश के कर्णधारों को योग्य, उत्साही।
बीच
मे ही विनीता जी का नौकर आकर कान मे कुछ कहा। विनीता हतप्रभ – पाउडर के गहरे परत
पर कालिख रेखा खींच आई।
सरला टीवी पर बैठकर आराम से प्रोग्राम देख रही थी – रात के आठ बजे थे – अभी तक
रामू का पता नहीं था। किन्तु इससे बेखबर सरला टीवी मे मस्त, रामू के पिता भी आकार प्रोग्राम देखने लगे।
अचानक टीवी मे प्रोग्राम रुक गया और एक सुंदरी स्क्रीन पर आकर बोलने लगी.....
हम सभी कामकाजी महिला अपने घर को उपेक्षित कर दिए हैं ! घर के स्वामी को रुपए कमाने के पीछे अपने संतान पर धान देने का फुर्सत नहीं है । जो स्त्री इस देश मे महराना प्रताप, शिवाजी , स्वामी विवेकानंद , महात्मा गांधी, डॉ० राजेंद्र प्रसाद, जवाहर लाल नेहरू आदि बड़े बड़े महापुरुषों को जन्म दी है वो स्त्री आज सड़क छाप हीरो को जन्म दे रही है। रिश्वत के रुपए , पाश्चात्य सभ्यता और महिला जागृति के ओट मे अपने परिवार को स्वयं महिला बर्बाद कर रही है। इसका जीता जागता नमूना है दीनू, रामू, सजल, सुमन और बिन्नू।
पांचों तस्वीरें टीवी पर दिखाई गई। हाथ मे हथकड़ी, चेहरे पर भय आतंक.... निश्छलता ......
एक स्कूटर चोरी कर गाँजा दारू पीते इन स्कूली बच्चे सबको पुलिस ने रंगे हाथों गिरफ्तार किया है ।
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