नजैर (मैथिली कथा)
जोया नाम छल ओकर। तीन भाई बहिन मे सभ सँ पैघ। ओकर माय
हमरा घर मे साफ सफाई के काज करय छल। कोरोना महामारी के हुईल एहन उठलय जे ओकर माय-बाप
दुनु के उठा लेलकई। तीन टा अनाथ धिया-पूता के देखनाहर कियौ नै। गरीब-गुरबा के
संपत्ति के नाम पर कथिए रहय छैक! आ बिनु संपत्ति ककरा के पुछय छैक! अस्तु जे कियौ रिश्ता-नाता
मे छल ओकर, से सब कन्नी काटि नेने छल। अपरिपक्व छल ओ,
मुदा ठिक ठाक होसियारी छलय ओकरा मे। बहुत जल्दीए बुझि गेल छल जे आब अपन आ दुनु छोट
भाई बहिन के जीवन ओकरे चलेबाक छैक। बी-कॉम फर्स्ट ईयर के छात्र छल ओ,
ओपेन से स्नातक कऽ रहल छल। कनिमनी कंप्यूटर के ज्ञान सेहो छलय। ओना त जै परिवेश से
ओ आबाय छल तै मे एखनहु धिया के स्नातक तक पहुंचनाई कम्मे देखऽ लेल भेटय छै। मुदा
महानगरक वातावरण, आ संगत आदि के असर हेतइक जे ओ बी-कॉम कऽ रहल छल।
कतेको ठाम आजीविका लेल किछ काज-धाज के सिफ़ारिश लेल गेले
हेतइक। हमरो लग आयल छल। कहलक, साहेब माय-बाप के गुजरला के बाद तीनु
भाई-बहिन के पेट चलायब हमरे ज़िम्मेदारी अछि। माय जेकन साफ-सफाई के काज मे त दक्षता
नै अछि, मुदा कॉमर्स से बारहमी केने छी। कप्यूटरो चला लय छी।
यदि कतौ कोनो ऑफिस मे छोट मोट काज धरा दितियई त बड्ड उपकार होइत अहांक।
हमर एकटा मित्र छलाह प्रॉपर्टी डीलिंग आ बिल्डिंग
मेटेरियल सप्लाई के काज करय छलाह। बढ़िया काज चलय छलइन। छोट छिन ऑफिस छलईन। पता
लागल जे हुनका ऑफिस मे एकटा कंप्यूटर ऑपरेटर आ हिसाब किताब राखय बला के आवश्यकता
छलइन। हम हुनका से आग्रह केलहु जे ऐ लड़की के राखि लेल जाय,
किए त एकरा काज के बड्ड आवश्यकता छैक, आ एकरा संगे दू टा आर जान केर पेट जुड़ल
छैक। मित्र कनी अनमनेलाह मुदा ओहि काल मे हमर अनुरोध के अंततः मानि ओकरा काज पर
राखि लेलखिन।
किछु समय बाद एक दिन जोया हमर घर पर एलय। हम किछु
लिखाई-पढ़ाई के काज कऽ रहल छलहु। बहुत डेरायल सन, कातर नजैर! ओकर चेहरा पर गहिर उदासी आ डरक
छाप छल। आँखि में नोर ढबरल, जे कखनोक ढब सँ गिर पड़य आ ओकरा कपार पर लटकल केशक संग
मिलि कऽ ओकर पीड़ा के जेना और बेसिए गहिर बना रहल छल। ओकर चेहरा
के भाव से बुझाना जा रहल छल जे ओ अपन भविष्य के लऽ कऽ बहुत
चिन्तित छलिह आ ओकरा जिनगी में कोनो बड़का संग्राम चलि रहल होय।
ओ बहुत कातर स्वर मे मिन्नति करैत बाजल जे मालिक हमरा
नौकरी से निकालि देलाह। हमर कोनो अपराध नई छल। बस एकटा सामान्य सन त्रुटि के लाथे
हमरा निकालि देलाह। फेर ओ सबटा खिस्सा हमरा नाइरेट कऽ के सुनेलक,
आ मिन्नति कर लागल जे हम ऐ मामिला मे ओकर मदद करी। अस्तु हम एकबेर अपन मित्र के
फोन लगेलहु आ ओकरा से सभ बात केलहु। मुदा ओ मित्र छूटिते बजलाह,
“दोस! अहाँ के कहला पर हम ओकरा काज पर रखलीयइ किए त ओहि समय मे ओकर पेट के बात
छलहि तै अहांक बात पर हम राखि लेलियई नै त एकरा हम कदापि काज पर नै राखितहु।“ हम
कहलहु “ओकर कोनो अपराध नै!” मित्र बजलाह - “आब हमरा क्षमा करू” आ फोन कटि गेल।
फोन कटिते हमर नजैर ओकर नजैर सँ टकरा गेल। ओकर नजैर में
एकटा गहिर कातरता छल, जेना ओ बहुत क्षीण सन उम्मीद सँ बँटल होय, दया
आ हारि जएबाक भाव साफ देखा रहल छल। ओई नजरि में एकटा अनकहल व्यथा छल, जे
हमरा हृदय के चीड़ रहल छल। हमर नजैर मे सेहो एकटा असहाय आ उम्मीद तोड़बाक अपराधबोध
सन आबि गेल छल। हम बेसी काल ओकरा से नजैर नै मिला पेलहु। ओकरा भरोस दैत कहलहु,
जे कोनो बात नै छैक जल्दीए कोनो ने कोनो काज भेंट जायत। ता कोनो आवश्यकता होय त
हमरा अवश्य कहब।
बात अइल-गेल भ गेलय। जोया के भी जिनगी कोनो तरहे चलिए
गेल हेतइक। मित्र महोदय के कारोबारो चलिते रहल हेतइक। एहिना कै बरष बित गेल छल ई
बात के। सभक जिंदगी के गाड़ी अपन आपाधापी मे आगा बढि गेल छल। मित्र महोदय से संपर्क
कम, कम की नहिए सन भऽ गेल छल। एक दिन एकटा अन्य मित्र सँ ज्ञात भेल जे ओय मित्र महोदय के थर्ड स्टेज
कैंसर छैन। बहुत दिन से गंभीर रूप से बीमार छईथ। ताहि से कारोबार सेहो सिकुड़ि
गेलैन अछि।
हम एक दिन सांझक बेर मे पुछारि मे मित्र महोदय के घर
पहुंचलहु। देर साँझ के समय छल। घरक वातावरण हलका-अँधियार आ शांत छल। कोठरी में
केवल एकटा मद्धिम प्रकाशक बल्ब जल रहल छल। मित्र पलंग पर लेटल छलाह। ओकर चेहरा पर
थकान आ पीड़ा स्पष्ट आबि रहल छल। अंतिम बेर देखने रही त कत ओ मस्त मौला खाईल-पियल
शरीर, दमकैत चेहरा, आ कत्त आब ई सुखल शरीर!
देह मे सौंसे हड्डीए टा देखाई। गाल चुटुकि गेल छल। चेहरा हा बदन पर झुर्री स्पष्ट
दृष्टिगोचर भ रहल छल। सभटा केस उड़ल (साइत कीमो के चलते)। कोठली मे पहुंचईत देरी हम
पलंग पर बैस गेलहु आ मित्र के हाथ पकड़ईत कहलहु – “की हाल दोस?”
ओ हमर आंखि मे तकैत बाजल – “हाल की रहत देखिये रहल
छहक!”(ओकरा चेहरा पर दर्द आ मुस्कानक मिश्रण छल।)
फेर हम ओकरा से गप्प करैत ओकर बीमारी आ इलाज सभक विस्तृत
हाल खबर लेबय लागलहु आ संगहि विश्वास आ भरोसा के बोल-भरोस सेहो देबय लगलहु।
हम – “दोस अहाँ इलाज आ परहेज करैत रहु,
भगवान पर भरोस राखु। समय जे लागय मुदा अहाँ ठीक भऽ जायब।”
ऐ पर मित्र बाजल दोस,
हमरा जीबय केँ बहुत इच्छा
अछि, मुदा ई शरीर आरो दिन-प्रतिदिन हारि रहल अछि। हमरा डॉक्टर
आ इलाज पर भरोस उठि रहल अछि। तों, कनी ई कागज सब देख लहक ने। की सभ इलाज सही
दिशामे चलि रहल छैक? तों कोनो नीक डॉक्टर के नाम बताबह ने। तोहर त कत्तौ नीक
ठाम पहचान हेतऽ, किछु जोगार लगाबह ने।
आई काइल्ह इन्टरनेट के जमाना मे सभ कियौ सभ किछु के अपने
डॉक्टर बनल फिरई छई। नै जानि ई प्रवृत्ति
कतेक निक आ कि कतेक बेजाय अछि, मुदा हम कहियो एहन एक्सपर्ट बनबाक प्रयास
नै केलहु। हमरा लेखे त ओ कागज पत्तर काला अक्षर भैंस बराबरे छल। मुदा एत्तेक धरि
स्पष्ट छल से ओकर निक हॉस्पिटल मे इलाज चलि रहल छल जै पर भरोसा कैल जा सकय अछि। हम
मित्र के कोनो खास मदद करबाक स्थिति मे नै छलहु। मुदा मित्र हमरा ई बात कदाचित
बहुत आशा से कहने छल।
एक बेर फेर,
हमर नजैर ओकर नजैर सं टकरा
गेल छल। ओकर नजैर मे वैह निराशा आ वैह कातरता देखा रहल छल, जे
ओ दिन जोया के नजैर मे देखने छलहुँ। आई फेर सँ हमर नजैर मे वैह विवशता, वैह
अपराधबोध उठि रहल छल, जेना ओ दिन उठल छल!
[प्रणव
कुमार झा, राष्ट्रीय परीक्षा बोर्ड, नई दिल्ली]