मैं एक अदना सा वोटर
ऐसा नहीं कि कुछ भान नहीं है
बुरा-भला, देश-दुनिया का
मुझको कोई ज्ञान नहीं है
अंतहीन बहसबाजी से
लेकिन मैं कतराता हूँ
एक ही अदना वोट है मेरा
वोटिंग के दिन दे आता हूँ
अपनी उलझन, अपनी दुनियाँ
में ही उलझा रहता हूँ
कौन जाने, कब क्यों बिगड़े
किसी से कुछ नहीं कहता हूं
रह रह कर चुनाव हैं आते
मैं वहीं खड़ा रह जाता हूँ
एक ही अदना वोट है मेरा
वोटिंग के दिन दे आता हूँ
कोई अपने चिकने-चुपड़े
वादों से लुभाता है
कोई पैदा कर कृत्रिम डर
सबको बहुत डराता है
उलजुलूल भाषण से कोई
भ्रम का जाल बिछाता है
ध्यान से सुनता हूँ सबको,
खास बहुत कहलाता हूँ
लेकिन चुनाव के बाद मैं,
फिर अदना बन जाता हूँ।
एक ही अदना वोट है मेरा
वोटिंग के दिन दे आता हूँ
चुनता हूँ पर उसको जो
अंधे मे हो काणा राजा
संविधान हो, लोकतंत्र हो
और जहाँ हो मुद्दे ताज़ा
सबके विकास के भ्रम की
उम्मीद फिर से मैं लगाता हूँ
एक ही अदना वोट है मेरा
वोटिंग के दिन दे आता हूँ
19.05.2024
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