दू बज्जी राति के समय छल। बाहर पूस के दुलकाबय बला ठंढी बसात बहि रहल छल। रोड पर जाड़ से दुलकैत कुकुर के भौंकब आ कानब के डरावना अवाज आबि रहल छल। सहरसा सिटी अस्पताल के आकस्मिक चिकित्सा विभाग अर्थात इमर्जेंसी मे आने दिन जेका चारि-पाँच टा मरीज पड़ल छल। सिरियस पेसेंट सभ के देख सुनि आ कंडीशन के स्थिर क के जूनियर डॉक्टर सभ वार्ड से चलि गेल छल। आब वार्ड मे हरियरका ड्रेस पहिरने एकटा 40-45 वरष उमैर के नर्स छलिह आ 20-22 वर्षक एकटा नवयुवक कंपाउंडर(पुरुष नर्स)। कुर्सी पर बैसल दुनु बतियाइत समय काटि रहल छलाह। जाड़ से बचऽ लेल दुनु वार्ड बॉय से चाह मंगा के चाहक चुस्की लैत पुनः गपियाबऽ लागल छलाह।
हम देवाल पर टांगल डिजाइनर घड़ी छी जे टिक-टिक-टिक-टिक करईत अनवरत चलायमान छी आ आई अहाँ के ई कथा बांचि रहल छी। जहिया से ई विभाग चालू भेल अछि ताहिए से हमरा ऐ देबाल पर टाँगि देल गेल अछि। साइत ऐ अस्पताल के मालिक काली बाबू के च्वाइस से हमरा किनल गेल छल। इमर्जेंसी के हृदयविदारक वातावरण मे जतऽ कतेको के रुकल समय एकबार पुनः चलि पड़य छैक त कतेको के समय सदिखन लेल रुकि जाय छैक, हमरा सन सुंदर मनोरम घड़ी के नै जानि की सोचि कऽ टाँगि देल गेल हेतैक। साइत अनवरत चलबाक लेल। साइत एत्त आब बला के एकटा भरोस देबाक लेल। कतेक समय से देख रहल छी। कतेको नर्स आ मेडिकल स्टाफ आयल कतेको गेल। नित दिन इमर्जेंसी के एक से बढि क एक केस देखय छी, अनवरत टिक टिक क के चलईत। गर्मी मे हहा के चलईत पंखा एखन शांत छल, मुदा हम जेना ओकरा कहि रहल छलियई जे चलनाई के मतलब भेल अनवरत चलनाई, नियत चालि से। ई नै जे कखनो हहा के घूमऽ लागल आ कखनो एक्दम्मे शांत। हम समय के दूत छी, तै अनवरत चलय छी, नै मौसम के लेल रुकय छी आ नै मृत्यु के लेल।
किछु एमहर-आम्हर, गाम-घरक चर्चा करइत करइत खिस्सा अस्पताल के किछ डॉक्टर आ साथी नर्स के गॉसिप पर पहुंचल। कोनो डॉक्टर संग कोनो नर्स के लसफस के चर्चा भेल छल जै पर प्रोढ़ा बिहूँसि उठल छलिह। नहु नहु बजलिह, बौआ तों ऐ सब मे नय पड़ीहऽ। मोन से अपन नौकरी पर ध्यान लगाबऽ। फेर ओ नहुए नहुए आजु राति ड्यूटी पर तैनात डॉक्टर लेल बाजल छलिह “देखिहऽ, आई राइत ई टटीबा ड्यूटी पर छौ, राति बेकारे नै जाय कहीं। “
“किए काकी?” ओ नब युवा कंपाउंडर पुछलकै।
“अरे ओ दारू पी के मातल रहय छै भोरे से। कोनो काज ठीक से नै आबय छय। पता नै के डॉक्टर बना देलकै एकरा। पक्का चोरी चकारी से डॉक्टर बनल हेतैक।“ नहुए नहुए प्रोढ़ा नर्स पुनः बाजल छलिह।
“मुदा आब साइत कोनो इमर्जेंसी नै आबय। तै बौआ तों कनि काल चाहे त सुस्ता ले।“
“नै काकी! ठीक छै। अहिं कनि काल आराम कऽ लिय।“
“अरे ल ले कनि काल टेबुले पर माथ राखि के झपकी। एत्त कोन ठेकान, कखन के मरऽ लेल आबि जाय” – प्रोढ़ा पुनः बाजल छलिह।
आजूक राति मे अजबे मनहूसियत बुझना जा रहल छल। शहरक एकटा छोड़ पर बनल अस्पताल के मनहूस केजुएल्टी मे अपशकुनी कोनो नब बात त छल नै। कन्ना-रोहट, छाती पिटईत लोक, चीखम-चिल्ली, तामस, झगड़ा-लफड़ा, विकलांगता, मृत्यु, कतेको त देखल अछि हमर, डॉक्टर, नर्स आ वार्ड बॉय सभ के संग। स्वाइत डॉक्टर, नर्स आ वार्ड बॉये जेका हमरो आब ई सब मनहूस नै लागे छल। भऽ सकय छैक जे मनुखक मोन मे वेदनाक एकटा कोटा होइत होई, जे चाहे त ककरो धीरे धीरे खर्चा होइत होइक आ की तेजी से। शुरू शुरू मे त हमरो होई छल जे केकरो मुईला के कनिके काल बाद ई सभ चाहक कप के संग गपियाईत आ ठिठियाइत कोना के देखा जाय छैक! मुदा किछु मृत्यु देखला पाछा त हमहू आब ई अपशकुनी भाव से मुक्त भऽ गेल छी आ एकर सबहक ठिठोली पर मुस्किया लैत छी।
मुदा तैयो आजुक ई सर्द राति किछु बेसिए अपशकुनी बुझना जा रहल छल। खिड़की के कोनो फुजल भाग से छनि छनि क अबईत घुप अनहार देखा रहल छल। दूर बाट पर लागल भेपर लाइट के मरकरी भूकभाक क रहल छल। दूर तक कुहेस आ चुप्पी पसरल छल, एहि सबहक बीच मे कुकुरक भूकब आ कानब गजबे भुतिया सीनक पटकथा लिखि छल। प्रोढ़ा नर्स कुर्सी पर बैसल ओङ्घाय लागल छलीह। नवयुवक एक बेर पुनः रोगी सबहक ठाहर लेबऽ लेल वार्ड मे राउंड लेबऽ लागल।
हमर सूईया अनवरत अपन गति से टिक-टिक करइत घुमि रहल छल। छोटकी सूईया आब 3 आ 4 के बीच मे छल आ अपन मंथर गति से 4 दिस बढ़ल जा रहल छल। कनिकबे काल मे दूर से मंदिरक घंटी, मस्जिदक अजान, बस-गाड़ी के पों-पों, रोगी के परिजन सबहक अफ़रातफरी देखबा सुनबा मे आबय बला छल, आने दिन जेका। मुदा एखन त विशुद्ध चुप्पी पसरल छल, जेकरा कुकुरक आवाज बीच बीच मे तोरि रहल छल। विशुद्ध चुप्पी सेहो कखनो काल के बड्ड डेरबऽ बला होइत छईक।
दुनु नर्स आब अनमनायल आ निश्चिंत सन भ गेल छलथि। नवल भोर के आस मे हमर सूइया सेहो अनवरत बढ़ल जा रहल छल। मुदा ई की !! अचानके से देखय छी जे किछ लोक बदहवास सन भेल दौगइत ककरो स्ट्रेचर पर ल क आबि रहल अछि। बड्ड गंभीर एक्सीडेंट के केस छैक साइत। हे दैब! ई त काली बाबू छथीन। ऐ अस्पताल केर मालिक। एकटा टैक्सी ड्राइवर आ संग मे पुलिस ल क आयल छल। पछाति घरऽक लोक सेहो पहुंचइत जाइत गेल छलाह, माय-बाबू-पत्नी। कानईत बिलखइत। “हे भगवती! ई कि भेल! पटना एयरपोर्ट लेल निकलल छलाह कि आधे घंटा बाद ई अनहोनी भऽ गेलय हे माई।“
काली बाबू बेहोश स्ट्रेचर पर पड़ल छलाह। सौंसे देह शोणित से लथपथ भेल छल, सांस ठीक से चलि नई रहल छल।
नवयुवक कंपाउंडर फुर्ती के संग हुनका बेड पर लेटा कऽ ऑक्सीज़न लगा देलकै। माथ पर जत्त से शोणित बहि रहल छल तत्त, टिंचर आयोडिन आ रसायन युक्त कॉटन लगा क दबा के राखने छल।
वार्ड बॉय के भागि के डॉक्टर के बजाबऽ लेल कहने छल।
डॉ रघुवंशी भागल भागल रूम से आयल। युवा कंपाउंडर ओकर मुँह से दारू के महक महसूस केने छल। “काकी सहिए कहय छलिह.... सार ड्यूटियो मे पीबय छैक।“ मोने मोन ओ सोचलक।
मुदा काली बाबू के ई हाल मे देख के ओकरो निशा उतरि गेल छल। मोन आ हाथ दुनु कंपित भऽ रहल छल ओकर।
सीनियर नर्स बाजलिह “सर! हिनका तुरंत इंटूबेट करबाक हेतइक। सांस ठीक से नहि चलि रहल छैक। ब्लड मे ऑक्सीज़न केर स्तर गिरल जा रहल छैक।“
मुदा डॉ रघुवंशी के इंटूबेट केनाइ आबिते नै छल। आ एमहर “गोल्डेन आवर” के एक एक कीमती मिनट जे जान बचाबऽ लेल महत्वपूर्ण होइत छैक से बीतल जा रहल छल।
ऐ क्रिटिकल समय मे ओ ककरो कोना कहितई जे हमरा ई इंटूबेशन नै आबय अछि जे इमरजेंसी मे जान बचेबाक पहिल कदम छैक। ओ सांस नली मे घुसबय बला पाईप लऽ कऽ प्रयत्न शुरू केलक। आ संगे आन सीनियर डॉक्टर एनिस्थीसिया,सर्जरी आ क्रिटिकल केयर के सीनियर डॉक्टर के बजाबऽ लेल कहलक। युवा कंपाउंडर आनन-फानन मे सभटा आवश्यक फोन क देलक। सौंसे अस्पताल मे काली बाबू के एक्सीडेंट के समाचार पसरि गेल छल। 15हे मिनट मे सभटा सीनियर डॉक्टर आबि गेल छल।
ऑक्सीज़न के स्तर 0 पर छल आ धड़कन के ग्राफ सेहो स्ट्रेट लाइन देखा रहल छल।
डॉ० रघुवंशी अंबुबैग से सांस नली मे घुसायल गेल ट्यूब से सांस द रहल छल। एमहर केजुएल्टी मे शुभचिंतक लोक सबहक भीड़ जमल जा रहल छल। अंततः काली बाबू के बचाओल नै जा सकल छल। वार्ड मे कन्नारोहट पसरि गेल छल। जै रंग लोग तै रंग केर खुसुर फुसुर सेहो भऽ रहल छल। मातम के बीच लोक सब काली बाबू के जीवन के अपना अपना तरह से याद कऽ रहल छल। हमहु कनी काल लेल काली बाबू के अतीत मे चलि गेल छलहु।
सहरसा जिला के एकटा गाम में काली कांत के जनम भेल छल । माई-बाप नाम राखने छलाह काली कांत मुदा नेनपन मे गामक लोक हुनका "करिया" कहि सम्बोधित करैत छल। साइत ऐ तरहक सम्बोधन के चयन मे सामाजिक परिस्थिति के सेहो योगदान रहय छैक। हुनकर पिता जी हाई स्कूल में पीउन छलाह। हुनकर एक मात्र सपना छल कि हुनकर बेटा एक दिन डॉक्टर बनि जाए। काली कांत के पिता सब किछु करय लेल तैयार छलाह, जै से हुनकर बेटा डॉक्टर बनि सकय।
काली कांत मैट्रिक पास कएला के बाद एक प्रसिद्ध कोचिंग संस्थान में नामांकन करेलक। करिया एक साधारण छात्र छल। मुदा बाबूजी के इच्छा आ बल भरोसे मेडिकल के तैयारी शुरू केलक। मुदा दू बेर अपना भरि प्रयास केला के बादो सरकारी सीट पर एमबीबीएस में प्रवेश नहि भेंट सकल। पिछड़ा वर्ग के कोटा में सेहो नै। लेकिन करिया के पिता हार माननिहार नहि छलाह। ओ अपना बेटा के डॉक्टर बनय के जिद्द में अंततः एकटा प्राइवेट मेडिकल कॉलेज में नामांकन करा देने छलखिन।
काली कांत आब ओहि प्राइवेट मेडिकल कॉलेज में एमबीबीएस के पढ़ाई शुरू केलक। मुदा ओकर ध्यान मेडिकल पढ़ाई सँ बेसी मार्केटिंग आ एडमिशन प्रोसेस में लागल छल। दोसर साल सँ ओ एडमिशन प्रोसेस में लागि गेल। मेनेजमेंट आ एजेंट संगे मिल विद्यार्थी सबके एडमिशन करा कऽ कमिशन कमाय लागल छल।
समय के संग-संग, काली कांत एकरा अपन व्यवसाय बना नेने छल। अपन व्यवसाय में ओकरा सफलतो भेटलइक। संगहि ओ एमबीबीएस कोर्स सेहो कोनो तरहे पूरा केलक। ओकर पिता बहुत खुश छलाह जे हुनकर बेटा डॉक्टर बनि गेल। ओकर माता जी सेहो खुश छलिह जे हुनकर बेटा पढ़ाईए के समय सँ कमाई करय लागल छल आ खूब कनेक्शन बना लेलक अछि।
काली कांत एडमिशन काउंसिलिंग आ प्लेसमेंट बिजनेस में तेजी सँ बढ़य लागल छल। ओ खूब पाई कामाय लागल। ओ ऐ धंधा में एना क डूबी गेल छल कि नैतिकता के सेहो बिसरि गेल। ओ मेडिकल प्रवेश परीक्षा, काउंसिलिंग आ एडमिशन में अनैतिक आ अनुचित प्रयोग मे सेहो लागि गेल छल।
लोक सभ, जे ओकरा "करिया" कहैत छल, आब ओकरा "काली बाबू" कहै लागल छल। धीरे-धीरे ओ अपन क्षेत्र में बहुत प्रसिद्ध आ गणमान्य व्यक्ति भ गेल छलाह। ओ सहरसा में एकटा मल्टीस्पेशल्टी सिटी अस्पताल बनाओल। जै से हुनक व्यवसाय आ प्रसिद्धि दुनु मे आर बेसि वृद्धि भेल छल। मुदा, हुनक कारोबार में बहुत रास अनैतिकता छल, जेकर कारणेँ कै टा अकुशल डॉक्टर सभ मेडिकल सिस्टम में शामिल भऽ रहल छल।
एक बेर काली बाबू के पिताजी हुनका टोकनेहो छलाह , "बेटा, हम अहाँ के डॉक्टर बनबय चाहैत छलहुँ, मुदा अहाँ अपन राह बदलि लेलहु अछि। ई धन-संपत्ति आ प्रसिद्धि के संग नैतिकता आ इंसानियत सेहो महत्त्वपूर्ण अछि।"
काली बाबू, किछ क्षण लेल अपन पिता के ई शब्द सुनि ठमकि गेल छलाह। ओ सोचय लगल छलाह, कि की ओ सचमुच डॉक्टर बनल अछि या एकटा धंधेबाज? ओकर मन में सवाल उठल। मुदा, काली बाबू के नाम आ कमाई के तृष्णा हुनका अनैतिकता के एहि बाट पर आगू बढ़बैत रहल छल।
वर्तमान मे घूरल त देखय छी जे क्रिटिकल केयर के कंसल्टेंट के नजरि डॉ० रघुवंशी के एक्टिविटी पर गेल। ओ देखला जे इंटूबेशन ट्यूब सांस नली (ट्रेकिआ) के बदला मे खाना के नली (इसोफैगस) मे घुसाओल छैक।
वार्ड मे पसरल कन्नारोहट केर बीच मे क्रिटिकल केयर कंसल्टेंट हमरा नीचा मे राखल कुर्सी पर आबि बैस गेला आ संकेत से डॉ० रघुवंशी के बजेलखिन।
पुछलखिन - “सर के कोन स्थिति मे आनल गेल छल.... की कंडीशन छल ... आदि आदि”
अंत मे कहलखिन – “डॉ० रघुवंशी! ट्यूब सही जगह नै छल आ अहाँ अंबु केने जा रहल छलिए। अहाँ इमरजेंसी मेडिकल ऑफिसर छी आ अहाँ एखन धरि ट्यूब सांस नली मे घुसेनाइ नै सीखने छी! अहांक मुँह से दारू के महक आबि रहल अछि! अहाँ ड्यूटी पर दारू पीबय छी?
आखिर अहाँ एमडी कोना केलहु आ अहां के ऐ महत्वपूर्ण पोस्ट लेल सेलेक्ट कोना कैल गेल?
डॉ० रघुवंशी मुँह लटकौने ठाढ़ छल। ओ किछ नै बाजल। मुदा ओकर माथा मे निश्चिते किछु परिघटना चलचित्र जेका घुमल छल जेकर प्रभाव हम ओकरा चेहरा पर देख नेने छलियई।
डॉ० रघुवंशी के एमबीबीएस आ पीजी एड्मिशन के जोगाड़ कालिए बाबू त लगेने छलखिन बिना कोनो मेरिट के तिकड़म से। आ कालचक्र के प्रभाव एहन जे कालिए बाबू हिनका एहि पद लेल सेहो सेलेक्सन केने छलाह कैएक टा मेरिटोरियस डॉक्टर के ऊपर वरियता द के, किएकि त डॉ० रघुवंशी हुनक एकटा धनाढ्य क्लाइंट के लड़का छलय।
हम आ ई वार्ड के देवाल बहुत रास केस देखने छलियइ आई धरि ऐ केजुएल्टी मे। नाउम्मीद केस के जीबीतो आ बहुत केस मे मरितो। कतेको डॉक्टर, नर्स, परिजन के देखने छी मरीज के जियाबऽ लेल जी जान लगाबइत। मुदा आजुक घटना ऐ सब से अलग छल। ऐ अस्पताल के मालिक अपनहि अस्पताल मे समय पर सही इलाज नै मिलने मृत्यु के प्राप्त भेलाह। कदाचित ऐ कालचक्र के रचना काली बाबू स्वयं केने छलाह।
[नई दिल्ली 20.07.2024]
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