शुक्रवार, 19 जुलाई 2024

शून्य पथ पर खड़ा मैं

 

कुछ इस तरह खो गया मैं रात की आगोश में

चाँद भी मेरे होश में आने की राह देखता रहा।

जब सितारों की चमक से भरी थी आसमान,

स्वप्न के पंखों  से स्वतन्त्रता की डगर ढूँढता रहा।

हर सितारा जैसे मुझे  कोई कहानी सुनाता रहा,

टिमटिमाती रौशनी से आश की ज्योति जागता रहा ।

आंधियों में, जब तूफानों ने बादलों को उड़ाया,

मैंने खुद को एक नयी उड़ान के सपनों में पाया।

और जब आगे बढ़ा मैं नींद की दामन को थाम्हे

शून्य पथ पर था खड़ा मैं,  जा पहुँचा जाने कहाँ मैं!

- 12.07.2024

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