गुरुवार, 18 जुलाई 2024

दारोगा जी की मूंछ [मूल मैथिली कथा। लेखक : हरिमोहन झा अनुवादक: प्रणव झा]

 

दारोगा जी की मूंछ

लेखक : हरिमोहन झा  अनुवादक: प्रणव झा  (केवल अकादमिक एवं शोध कार्य हेतु)

 मुंशी नौरंगीलाल को शुरू से ही जासूसी उपन्यास पढने का शौक था। चन्द्रकान्ता, भूतनाथ, मायामहल, पढते- पढते उनको भी जासूसी का सनक सवार हो गया था। और संयोग ऐसा कि बी.. का तिलिस्म तोड़ने के पश्चता काम भी वैसा ही मिल गया था। नौरंगीलाल दारोगा हो गए थे।

दरौगा नौरंगीलाल को अपनी होशियारी का हद से ज्यादा दावा था। वो कड़े-कड़े मूंछे रखे हुए थे और बराबर उसपर ताव देते रहते थे। उनका सिद्धान्त था कि स्त्री जाति का कोई विश्वास नहीं, इसीलिए शादी नहीं करनी चाहिए। किन्तु जब चारों ओर से बहुत दवाब पड़ा, तो बहुत ठोक बजाकर एक सुंदरी के साथ पाणिग्रहण कर लिए। दरोगाजी अपने तीस से ऊपर थे  और वधू थी षोडशी। अतएव वो जब भी बाहर जाते थे तो डेरामे बाहर से ताला लगा कर और चाबी  अपने साथ लेकर जाते थे ।

स्त्री-चरित्र का कोई ठिकाना नहीं । इसीलिए अपने परोक्ष मे दाइ भी काम करने आए यह उनको मंजूर नहीं था। क्योंकि 'आदौ वेश्या ततौ दासी पश्चात् भवति कुट्टिनी!'  कौन जाने वो किसकी दूत बनकर आए? अतएव जब दरोगाजी डेरा मे आते तब बैठकर अपने सामने चौका-बर्तन कराते थे।

नववधू का नाम था चंचला। वो हॅंसमुख और विनोदिनी थी। वैसे बन्द घर मे रहना उनको जेल जैसा जान पड़ता था । कुछ दिन हेतु मुंशीजी की बहन सरयू दाइ आ गई थी। तब जाकर चंचला को कहीं से प्राण आया था। ननद संग हँसती-बोलोती। उनके बच्चों के साथ खेलती। आनंद से समय कट जाता था।

परन्तु आङन मे इस तरह के रंग-रभस दरोगाजी को पसंद नहीं पड़ा। उन्होने दस ही दिन के बाद बहन को विदा कर दिया।

पुनः वही सुनसान भूत का डेरा! चंचला देवी को घर काटने लगा। बाहर से ताला बन्द। किसके संग बाते करें ? चुपचाप खिड़की पर बैठ कर अपने कर्म की विवेचना किया करती थी। जब रात मे दरोगाजी आते तब वो मनुष्य की दशा मे आती थी।

एक रात चंचला बोली-ऐसे मन नहि लगता है। छोटकी दाइ को फिर से बुला लीजिए ।

दरोगाजी बोले-हूँ।

चंचला बोली- आप नहीं बुलाएँगे , तो मैं ही लिख देती हूँ ।

दरोगाजी फिर बोले -हूँ।

परन्तु उनके मनमे संदेह हो गया। जरूर इस मे कोई रहस्य होगा। स्त्रियश्चरित्रं पुरुषस्य भाग्यं दैवो जानाति कुतो मनुष्यः।

उस  दिन से वो और भी विशेष रूप से सावधान रहने लगे। चंचला की प्रत्येक गतिविधि का सूक्षम दृष्टि से विश्लेषण करने लगे।

एक रात चंचला बोल उठी- आपकी मूंछे मुझे चुभती है। कटवा क्यूँ नहीं लेते हो?

दरोगाजी ताव फेरते हुए बोले यही मूंछे तो नौरंगीलाल की शान है। यह उसी दिन काटेंगी जिस दिन मेरी जासूसी फेल हो जाएगी।

चंचला करवट फेर कर सो गई। परन्तु नौरंगीलाल को संदेह हो गया इसको यह इच्छा क्यूँ हुआ?

दरोगाजी के मन मे सन्देह का भूत जम गया। उस दिन से वो और चौकस हो गए।  अब अच्छे से जासूसी करना चाहिए। ये मेरे परोक्ष मे किस प्रकार से रहती है? क्या करती है?

दूसरे दिन दरोगाजी बोले मुझे  एक चोरी की खोजबीन करनी है। आज रात डेरा पर नहीं आऊँगा। उस रात चंचला को निन्द नहीं हुआ। डेरा मे कोई दूसरा नहीं , और जेठ की गर्मी। कभी उपन्यास पढती, कभी खिड़की पर जा कर बैठती। किसी प्रकार से कच्छ-मच्छ करते हुए सुबह हो गई।

उधर आधे रात के बाद मुंशी नौरंगीलाल वेष बदल कर अपने डेरा के सामने आए तो देखते हैं कि धर्मपत्नी खिड़की पर बैठी है। किसी की प्रतीक्षा मे ऐसी तल्लीन हुई है कि आँचल की भी सुध  नहीं! आधा देह ऐसे ही नग्न है। सामने तो घूँघट काढती रहती है और अभी कमर से ऊपर साड़ी ही नहीं है!

दरोगाजी का सन्देह विकराल रूप धारण कर लिया था। वो दूसरे दिन गुप्त रूप से  खिड़की का परीक्षा किए! जान पड़ा कि एक छड़ हिल-डुल कर रहा था । कोई चाहे तो उसे उखाड़ कर अंदर आ सकता था और पुनः लगा दे सकता था ।  

दरोगाजी मुंछों पर ताव दिए- अब सूत्र मिल गया। यदि बिना पता लगाए रहा तो मेरा नाम मुंशी नौरंगीलाल नहीं।

उस दिन से दरोगाजी आधा रात बिता कर घर आने लगे। कभी न कभी तो चोर पकड़ा ही जाएगा! और एकदिन सच मे ही मुंशी नौरंगीलाल की जासूसी निशाने पर लग गई। करीब बारह बजे रात को वो  अपने घर के पिछवाड़े मे खड़े थे। चोर की भांति कान लगाए। इधर-उधर तजबीज करते। तब तक एक मुड़े हुए कागज पर उनकीनजर पड़ गई।

वो लपक कर उसे उठाए और टार्च की रोशनी मे उसे पढने लगे। पढते-पढते दरोगाजी मुंछों पर  ताव देते हुए खुशी से उछल पड़े-यह मारा! चोर पकड़ लिया!!

वो पर्ची एक नमडोरिया स्लिप पर लिखा हुआ था और चंचला देवी का हस्ताक्षर था, उसमे तो कोई संदेह ही नहीं था।

पाठक के उत्सुकता को शान्त करने हेतु चिट्ठी का हुबहू नकल नीचे दिया जा रहा है।

                             परम प्रिय

            सप्रेम     आलिंगन    और

            बारंबार       मुख    चुम्बन

            मैं          आपके   आने का

            राह      देख  रही    हूँ।

            बारह   बजे   रात के   बाद

            आप            जाइए 

            मैं      व्याकुल         हूँ।

            रात          दिन     विचित्र

            पागल       हुए         रहते

            हैं         आपको       हृदय

            मे         चिपकाने        हेतु

            कल      से    छटपटा रही

            हूँ आप  से  मिलने  हेतु

            छाती  धरक  रहा   है।

            मैं लाज खोल कर लिख रही हूँ

            आप कर प्राण बचाइए।

            मैं     खिड़की  पर  बैठी

            रहें   विशेष भेंट  होने पर

                                      आपकी

                                      चंचला

                                      14-3

               

दरोगाजी को जैसे तिलिस्म की चाबी हाथ लाग  गई हो। यत्न-पूर्वक जेब मे रख लिए। तारीख देखे तो 14 मार्च! अर्थात अज के ही दिन का वादा है। अब समय नही है। चटपट करना चाहिए। नहीं तो हाथ मे आई चिड़ियाँ उड़ जाएगी। खिड़की के सामने एक जामुन का  घना पेड़ था। दरोगाजी फुर्त्ती से उसपर चढ गए और बन्दूक को दोकठमे अड़ा कर एक मोटे से डाल पर बैठ गए ।

थोड़े देर के बाद दरोगाजी देखते हैं कि चंचला देवी खिड़की पर कर बैठी हैं। दरोगाजी की छाती धड़कने लगता है। तब तक देखते हैं कि एक नौजवान कर खिड़की से चिपक कर खड़ा हो गया। मुंशीजी की छाती जोर-जोर से धड़कने लगा । वो बन्दूक हाथ मे ले लिए। यदि यह भाग गया, तो सारा जासूसी व्यर्थ हो जाएगा। चोर को रंगे हाथ पकड़ी तो बहादुरी। कुछ समय तक चंचला देवी और उस  नवयुवक मे हॅंस-हॅंस कर  बातें होती रही। दरोगाजी के बदन मे आग लग गया था। उन्होने बन्दूक का निशाना ठीक किया। तब तक  नवयुवक आगे बढ कर खिड़की के अंदर हाथ बढ़ा दिया था। अब दरोगा जी नही देख सके। चट से फायर कर दिए। तड़ाक से बन्दूक से गोली छूटी और उधर नवयुवक कटे पेड़ की भांति धम्म से गिर पड़ा।

दरोगाजी मुंछों पर ताव फेरते वहाँ आए तो देखते हैं कि कुहराम मचा है। चंचला देवी खिड़की के छड़ से अपना माथा-कपार फोड़ रही थी।

मुंशीजी को देख वो और जोर से विलाप करने लगी-मेरे भाइ से आपकी कौन सी शत्रुता थी जो  गोली मार दिए?

मुंशीजी डाँट कर बोले-अब यह  त्रियाचरित्र रहने दीजिए। मैं ऎयार तेजसिंह हूँ। यह आपका भाई नहीं , यार है!

चंचला देवी रोते हुए बोली -हे राम! आप पागल तो नहीं हो गए हैं ? आँखें हैं या गोटियाँ! बिरजू भैया को नहीं पहचानते हैं? हाय-हाय! कैसे छटपट कर रहे हैं? मैं तो बन्द हूँ । पानी भी कैसे कर के दूँगी? कहाँ से ऐसी जगह आए भी !

अब मुंशीजी टार्च जलाए तो अपने साले ब्रजनाथ को देख हतबुद्धि रह गए। तब तक मुहल्ला के लोग जमा हो गए। ब्रगनाथ को पानी पिलाकर होश मे लाया गया और तुरन्त डाक्टर को बुलाकर मलहम-पट्टी किया गया। गोली पैर मे लगी थी इसीलिए प्राण बच गया।

दरोगाजी सबको यही बोले कि चोर का धोखा हो गया था। थाना से चला आ रहा था । अंधेरे मे खिड़की के सामने आधी रात तो खड़ा देखा। हुआ कि कोई छड़ काट रहा है, , फायर कर दिया।

सबके चके जाने पर चंचला देवी बोलने लगी-भक्क! आपकी बुद्धि कैसी हो गई? मैं  बिरजू भैया के शब्द सुन दौड़ी, परन्तु बाहर से ताला बन्द। अंदर आते कैसे? तब हमलोग खिड़की पर आ कर बातें करने लगे। उनको प्यास लगी ठी । मैं एक गिलास पानी देने लगी । वो हाथ बढा कर ले ही रहे थे कि आपने गोली मार ई। हाय राम! हम लोगों ने आपका कौन सा कसूर किया था।

मुंशीजी बोले मेरे  आगे ज्यादा सत्यवंती मत बनिए। यह तो संयोग से आपका भाई बीच मे गया, नहीं तो आपके यार की लाश अभी  तड़पती रहती।

स्त्री बोली आप  विशुद्ध पागल हो गए हैं। मेरा यार कौन रहेगा?

मुंशीजी बोले जिसे आपने आज रात को खिड़की पर आने हेतु बुलाया था। चंचला देवी के मुँह का रंग उड़ गया। अचंभित होकर पूछी मैंने बुलाया था?

मुंशीजी-जी, चिट्ठी लिख कर।

चंचला ने पूछा-आप साबित कर सकते हैं?

मुंशीजी ने जेब से वो चिट बाहर किया और उनके आगे मे फेंक दिया! जैसे शिकार फँसने पर शिकारी प्रसन्न होते हैं वैसे ही वो मूंछ पर ताव देने लगे।

एकाएक चंचला देवी के मुँह पर मुस्कान दौड़ गया। उन्होने पूछा -यह चिट्ठी आपको कहाँ मिला?

मुंशीजी अपने मुंछों को मरोड़ते हुए बोले – पिछवाड़े के नाली मे ।

चंचला देवी बोली -यह चिट्ठी मैंने  छोटकी दाइ को लिखा था! पीछे फाड़ कर फेक दिया था। वहीं खोजकर देखिए दूसरा  टुकड़ा भी  प्रायः होगा ही।

जासूस राम पुनः टार्च जला कर गए और एक वैसा ही दूसरा टुकड़ा खोज कर ले आए।

चंचला देवी बोली -अब दोनों टुकड़ा जोड़ कर देखिए तो। दोनों टुकड़ा जोड़ा गया तो संपूर्ण चिट्ठी इस प्रकार से पढ़ा गया -

                               परम प्रिय  छोटकी  दाइ

          सप्रेम     आलिंगन      और  स्नेहमयी         बच्ची को

          बारंबार       मुख     चुम्बन  आप   कब  आएंगे ?

          मैं          आपके     आने का  समाचार सुन  प्रतिदिन

          राह     देख  रही    हूँ   आपके भाई आजकल

          बारह   बजे    रात के   बाद   घर     आते      हैं

          आप              जाइए     तब   सब कुछ  जानिएगा।

          मैं      व्याकुल          हूँ।   आपके   भाई    साहेब

          रात        दिन      विचित्र   संदेह के             फेरमे

          पागल हुए      रहते    हैं।       लिख नहीं सकती हूँ

          मैं     आपको       हृदय  की व्यथा क्या कहू लिफाफ

          मे     चिपकाने       हेतु   टिकट  नहीं  था    इसलिए

          कल    से    छटपटा रही    हूँ।  आज लगा रही

          हूँ आप    से   मिलने हेतु   मैं व्यग्र   हूँ।  चिन्ता से

          छाती  धडक  रहा  है   और कहूँगी ही किसको?

          मैं लाज खोल कर लिख रही हूँ  उनको मुझीपर सन्देह है।

          आप आकर के प्राण  बचाइए।  प्रत्येक   ट्रेन के   समयमे

          मैं     खिड़की  पर   बैठी   रहती हूँ यह स्मरण रखे

          रहें   विशेष भेंट   होनेपर   कहूँगी

                                      आपकी  भाभी

                                      चंचला   देवी

                                      14-3-  48

             

चिट्ठी पढते ही दरोगाजी लज्जा से पानी-पानी हो गए। बोले तब अब क्या होना चाहिए?

चंचला देवी चुपचाप उठ कर गई और शेविंग-सेट (हजामत बनाने का सामान) ले आई। तब साबुन से कुच्ची भिगाकर, उनके मूँछों को बहुत अच्छे से रगड़ , उसपर धीरे-धीरे सेफ्टी रेजर (छुरा) चलाने लगी। देखते - देखते दरोगाजी का मूंछ साफ हो गया।

मूल मैथिली टेक्स्ट अगले पेज पर


 

 

दरोगाजीक मोंछ बीछल कथा

लेखक : हरिमोहन झा  अनुवादक : प्रणव झा

मुंशी नौरंगीलालकें शुरूएसॅं जासूसी उपन्यास पढबाक शौक रहैन्ह। चन्द्रकान्ता, भूतनाथ, मायामहल, पढैत-पढैत हुनको जासूस सनक सवार भऽ गेलैन्ह। और संयोग एहन जे बी.ए. क तिलिस्म तोड़ला उत्तर काजो तेहने भेटि गेलैन्ह। नौरंगीलाल दरोगा भऽ गेलाह।

दरौगा नौरंगीलालकें अपना बुधियारीक हदसॅं बेशी दाबी रहैन्ह। ओ कड़ा-कड़ा मोंछ रखने रहथि और बराबरि ओहिपर ताव फेरैत रहथि। हुनक सिद्धान्त रहैन्ह जे स्त्री- जातिक कोनो विश्वास नहि, तैं विवाह नहि करी। परन्तु जखन चारूकातसॅं बहुत दबाव पड़लैन्ह, त बहुत ठोकि बजा कऽ एकटा सुन्दरीक पाणिग्रहण कैलन्हि। दरोगाजी अपने तीससॅं ऊपर रहथि और वधू रहथिन्ह षोडशी। अतएव ओ जखन बाहर जाथि तखन डेरामे बाहरसॅं ताला लगा कऽ और कुंजी अपना संगे नेने जाथि।

स्त्री-चरित्रक कोनो ठेकान नहि। तैं अपना परोक्षमे दाइयो काज करऽ अबैन्ह से हुनका मंजूर नहि। किऎक त 'आदौ वेश्या ततौ दासी पश्चात् भवति कुट्टिनी!' के जाने ओ ककर दूती बनि कऽ आबय? अतएव जखन दरोगाजी डेरामे आबथि तखन बैसि कऽ अपना सामने चौका-बर्तन कराबथि।

नववधूक नाम रहैन्ह चंचला। ओ हॅंसमुख ओ विनोदिनी रहथि। ओना बन्द घरमे रहब हुनका जेल जकाँ बुझि पड़ैन्ह। किछु दिनक हेतु मुंशीजीक बहिन सरयूदाइ आबि गेलथिन्ह। तखन चंचलाके कतहुसॅं प्राण ऎलैन्ह। ननदि संग हॅंसथि-बाजथि। हुनकर बच्चाक संग खेलाथि। आनन्दसॅं समय कटि जाइन्ह।

परन्तु आङनमे एहि तरहक रंग-रभस दरोगाजीके पसिंद नहि पड़लैन्ह। ओ दसे दिनक बाद बहिनके विदा कऽ देलन्हि।

पुनः वैह सुनसान भूतक डेरा! चंचला देवीकें घर काटय लगलैन्ह। बाहर सॅं ताला बन्द। ककरा संग गप्प करथु? चुपचाप खिड़कीपर बैसलि अपना कर्मक विवेचना कैल करथि। जखन रातिमे दरोगाजी अबथिन्ह तखन ओ मनुष्यक दशामे आबथि।

एक राति चंचला कहलथिन्ह-एना मन नहि लगैत अछि। छोटकी दाइकें फेर बजा लिऔन्ह।

दरोगाजी कहलथिन्ह-हूँ।

चंचला कहलथिन्ह-अहाँ नहि बजैबैन्ह, त हमहीं लीखि दैत छिऎन्ह।

दरोगाजी फेर बजलाह-हूँ।

परन्तु हुनक मनमे संदेह भऽ गेलैन्ह। जरूर एहिमे कोनो रहस्य हैतैक। स्त्रियश्चरित्रं पुरुषस्य भाग्यं दैवो न जानाति कुतो मनुष्यः।

ओहि दिनसॅं ओ और विशेष रूपसॅं सावधान रहय लगलाह। चंचलाक प्रत्येक गतिविधिकें सूक्षम दृष्टिसॅं विश्लेषण करय लगलाह।

एक राति चंचला कहि उठलथिन्ह-अहाँक मोंछ हमरा गरैत अछि। कटा किऎक नहि लैत छी?

दरोगाजी ताव फेरैत कहलथिन्ह-यैह मोंछ त नौरंगीलालक शान छैन्ह। ई ताही दिन कटाएत जाहि दिन हमर जासूसी फेल कऽ जायत।

चंचला करौट फेरि कऽ सूति रहलीह। परन्तु नौरंगीलालकें संदेह भऽ गेलैन्ह-एकरा ई इच्छा किऎक भेलैक?

दरोगाजीक मनमे सन्देहक भूत जमि गेलैन्ह। ताहि दिनसॅं ओ और चौकस भऽ गेलाह। आब नीक जकाँ जासूसी करक चाही। ई हमरा परोक्षमे कोन तरहें रहैत अछि? की करैत अछि?

दोसरा दिन दरोगाजी कहलथिन्ह-हमरा एक चोरीक तहकीकात करक अछि। आइ राति डेरापर नहि आयब। ओहि राति चंचलाके निन्द नहि पड़लैन्ह। डेरामे केओ दोसराइत नहि, आर जेठक गर्मी। कौखन उपन्यास पढथि, कौखन खिड़कीपर जा कऽ बैसथि। कोनहुना कच्छ-मच्छ करैत प्रात कैलन्हि।

ओम्हर आधा रातिक बाद मुंशी नौरंगीलाल वेष बदलि कऽ अपना डेराक सामने ऎलाह त देखैत छथि जे धर्मपत्नी खिड़कीपर बैसलि छथि। ककरो प्रतीक्षामे तेहन तल्लीन भेलि छथि जे आँचरोक सुधि नहि! आधा देह ओहिना उघारे छैन्ह। सामने त मरौत काढैत रहै छथि और एखन डाँड़सॅं ऊपर नूए नहि!

दरोगाजीक सन्देह विकराल रूप धारण कैलकैन्ह। ओ दोसरा दिन गुप्त रूपसॅं खिड़कीक परीक्षा कैलन्हि! बूझि पड़लैन्ह जे एकटा छड़ ढिल-ढिल करैत अछि। केओ चाहय त ओकरा उखाड़ि कऽ भीतर आबि सकैत अछि और पुनः लगा दऽ सकैत अछि।

दरोगाजी मोंछपर ताव देलन्हि-आब सूत्र भेटि गेल। जौ बिना पता लगौने रहिऎन्हि त हमर नाम मुंशी नौरंगीलाल नहि।

तहियासॅं दरोगाजी आधा राति बिता कऽ घर आबय लगलाह। कहियो ने कहियो त चोर पकड़ाइए जायत! और एकदिन सरिपहुँ मुंशी नौरंगीलालक जासूसी सुतरि गेलैन्ह। करीब बारह बजे रातिक अंदाज ओ अपना घरक पछुआड़मे ठाढ भेल रहथि। चोर जकाँ कान पथने। एम्हर-ओम्हर तजबीज करैत। तावत एक मोड़ल कागजपर हुनक नजरि पड़ि गेलैन्ह।

ओ लपकि कऽ ओकरा उठौलन्हि और टार्चक रोशनीमे ओकरा पढय लगलाह। पढैत-पढैत दरोगाजी मोंछपर ताव फेरैत खुशीसॅं उछलि पड़लाह-यह मारा! चोर पकड़ लिया!!

ओ पुर्जी एक नमडोरिया स्लिपपर लिखल छलैक और चंचला देवीक हस्ताक्षर छलैन्ह, ताहिमे त कोनो संदेहे नहि।

पाठकक उत्सुकता शान्त करबाक हेतु चिट्ठीक हुबहू नकल नीचाँ देल जाइत अछि।

                             परम प्रिय

            सप्रेम     आलिंगन    और

            बारंबार       मुख    चुम्बन

            हम          अहाँक   ऎबाक

            बाट      ताकि  रहल    छी।

            बारह   बजे   रातिक   बाद

            अहाँ       आबि     जाउ 

            हम      व्याकुल         छी।

            राति          दिन     विचित्र

            पागल       भेल         रहैत

            छी         अहाँकें       हृदय

            मे         साटबाक        हेतु

            काल्हि      सँ    छटपटाइत

            छी । अहाँ  सँ  मिलक  हेतु

            छाती  धरकि  रहल   अछि।

            हम लाज खोलिकऽलिखै छी

            अहाँ आबि कऽ प्राण बचाउ।

            हम     खिड़की  पर  बैसलि

            रहब ।  विशेष भेंट  भेलापर

                                      अहाँक

                                      चंचला

                                      १४-३

               

दरोगाजी कैं जेना तिलिस्मक कुंजी हाथ लागि गेलैन्ह। यत्न-पूर्वक जेबीमे राखि लेलन्हि। तारीख देखलन्हि त 14 मार्च! अर्थात अजुके वादा थीक। आब समय नहि। चटपट करक चाही। नहि त हाथमे आएल चिड़इ उड़ि जायत। खिड़कीक सामने एक जामुनक झंखार गाछ रहैक। दरोगाजी फुर्त्तीसॅं ओहिपर चढि गेलाह और बन्दूककें दोकठमे अड़ा कऽ एक मोटगर ठाढिपर बैसि गेलाह।

थोड़ेक कालक बाद दरोगाजी देखै छथि जे चंचला देवी खिड़कीपर आबि कऽ बैसल छथि। दरोगाजीक छाती धड़कय लगलैन्ह। तावत देखै छथि जे एक नौजवान आबि कऽ खिड़कीसॅं सटि कऽ ठाढ भऽ गेल। मुंशीजीक छाती जोर-जोरसॅं उधकय लगलैन्ह। ओ बन्दूक हाथमे लय लेलन्हि। जौं ई भागि गेल, त सभ जासूसी व्यर्थ भऽ जायत। चोरकें सेन्हपर पकड़ी तखन बहादुरी। थोड़ेक काल धरि चंचला देवी और ओहि नवयुवकमे हॅंसि-हॅंसि क। बात होइत रहलैन्ह। दरोगाजीक देहमे आगि लागि गेलैन्ह। ओ बन्दूकक निशाना ठीक कैलन्हि। तावत नवयुवक आगाँ बढि कऽ खिड़कीक भीतर हाथ पैसा देलकैन्ह। आब दरोगा जी नहि देखि सकलाह। चट दऽ फायर कऽ देलन्हि। तड़ाक दऽ बन्दूक छूटल और ओम्हर नवयुवक काटल गाछ जकाँ धम्म दऽ खसि पड़लाह।

दरोगाजी मोंछपर ताव फेरैत ओहिठाम ऎलाह त देखै छथि जे कुहराम मचल अछि। चंचला देवी खिड़कीक छड़सॅं अपन माथ-कपार फोड़ि रहल छथि।

मुंशीजीके देखि ओ और जोरसॅं विलाप करय लगलीह-हमरा भाइसॅं अहाँके कोन शत्रुता छल जे गोली मारि देलिऎक?

मुंशीजी डाँटि कऽ कहलथिन्ह-आब ई त्रियाचरित्र रहय दियऽ। हम ऎयार तेजसिंह छी। ई अहाँक भाय नहि, यार थीक!

चंचला देवी कनैत बजलीह-हे राम! अहाँ सनकि त ने गेलहुँ? आँखि अछि कि कपार! बिरजू भैयाकें नहि चिन्हैत छिऎन्ह? हाय-हाय! कोना छटपट कऽ रहल छथि? हम त बन्द छी। पानिओ कोना कऽ दिऔन्ह? कहाँसॅं एहन ठाम ऎबो कैलाह!

आब मुंशीजी टार्च लेसलन्हि त अपन सार ब्रजनाथकें देखि हतबुद्धि भऽ गेलाह। तावत महल्लाक लोक जमा भऽ गेल। ब्रगनाथकें पानि पिया कऽ होश कराओल गेलैन्ह और तुरन्त डाक्टरके बजा कऽ मलहम-पट्टी कैल गेलैन्ह। गोली पैरमे लागल रहैन्ह तैं प्राण बाँचि गेलैन्ह।

दरोगाजी सभकें यैह कहलथिन्ह जे चोरक धोखा भऽ गेल। थानासॅं चल अबैत रही। अन्हारमे खिड़कीक सामने आधा रातिकऽ ठाढ देखलिऎन्ह। भेल जे केओ छड़ काटि रहल अछि, फायर कऽ देलिऎक।

सभक चल गेलापर चंचला देवी कहय लगलथिन्ह-दुर! अहाँक बुद्धि केहन भऽ गेल? हम बिरजू भैयाके शब्द सुनि दौड़लहुँ, परन्तु बाहरसॅं ताला बन्द। भीतर अबितथि कोना? तखन हमरा लोकनि खिड़कीपर आबि कऽ गप्प करय लगलहुँ। हुनका पिआस लागल रहैन्ह। हम एक गिलास पानि देबय लगलिऎन्ह। ओ हाथ बढा कऽ लैते रहथि कि अहाँ गोली मारि देलिऎन्ह। हाय राम! हमरा लोकनि अहाँक कोन कसूर कैने छलहुँ।

मुंशीजी कहलथिन्ह-हमरा आगाँ बेशी सत्यवंती नहि बनू। ई त संयोगसॅं अहाँक भाय बीचमे आबि गेलाह, नहि त अहाँक यारक लाश एखन तड़पैत रहैत।

स्त्री कहलथिन्ह-अहाँ निट्ठाह पागल भऽ गेल छी। हमर यार के रहत?

मुंशीजी कहलथिन्ह-जकरा अहाँ आइ राति खिड़कीपर आबक हेतु बजौने रहिऎक। चंचला देवीक मुँह उड़ि गेलैन्ह। अकचका कऽ पुछलथिन्ह-हम बजौने रहिऎक?

मुंशीजी-हॅं, चिट्ठी लिखि कऽ।

चंचला पुछलन्हि-अहाँ साबित कय सकैत छी?

मुंशीजी जेबीसॅं ओ चिट बहार कऽ हुनका आगाँमे फेकि देलथिन्ह! जेना शिकार फॅंसलापर व्याधा प्रसन्न होइत अछि तहिना ओ मोंछपर ताव फेरय लगलाह।

एकाएक चंचला देवीक मुँहपर मुस्कान दौड़ि गेलैन्ह। ओ पुछलथिन्ह-ई चिट्ठी अहाँकें कतय भेटल?

मुंशीजी अपना मोंछकें मरोड़ैत कहलथिन्ह-पछुआड़क नालीमे।

चंचला देवी कहलथिन्ह-ई चिट्ठी हम छोटकी दाइकें लिखने छलिऎन्ह! पाछाँ फाड़ि कऽ फेकि देलिऎक। ओही ठाम खोजि कऽ देखिऔक, दोसरा टुकड़ा प्रायः हैबे करतैक।

जासूस राम पुनः टार्च लेसि कऽ गेलाह और एक ओहने दोसर टुकड़ा खोजि कऽ नेने ऎलाह।

चंचला देवी कहलथिन्ह-आब दुनू टुकड़ा जोड़ि कऽ देखिऔक त। दुनू टुकड़ा जोड़ल गेल त संपूर्ण चिट्ठी एहि तरहें पढल गेल-

                               परम प्रिय  छोटकी  दाइ

          सप्रेम     आलिंगन      और  स्नेहमयी         बच्चीकें

          बारंबार       मुख     चुम्बन  अहा   कहिया  आयब ?

          हम          अहाँक    ऎबाक  समाचार सुनि  प्रतिदिन

          बाट     ताकि  रहल    छी ।  अहाँक भाय आइकाल्हि

          बारह   बजे    रातिक   बाद   घर     अबैत     छथि ।

          अहाँ       आबि      जाउ     तखन   सभ टा  बूझब।

          हम      व्याकुल          छी।   अहाँक   भाय    साहेब

          राति          दिन      विचित्र   संदेहक             फेरमे

          पागल       भेल          रहैत   छथि।  लिखि नहि सकै

          छी         अहाँकें        हृदय  क व्यथा की कहू लिफाफ

          मे         साटबाक        हेतु   टिकट  नहि  छल ।   तैं

          काल्हि       सँ    छटपटाइत   छलहुँ।  आइ लगा रहल

          छी । अहाँ   सँ   मिलक हेतु   हम व्यग्र   छी।  चिन्तासॅं

          छाती  धरकि  रहल  अछि ।  और कहबे ककरा करियौक?

          हम लाज खोलि कऽलिखै छी  हुनका हमरेपर सन्देह छैन्ह।

          अहाँ आबि कऽ प्राण  बचाउ।  प्रत्येक   ट्रेनक   समयमे

          हम     खिड़की  पर   बैसलि   रहैत छी से स्मरण रखने

          रहब ।  विशेष भेंट   भेलापर   कहब

                                      अहाँक  भौजी

                                      चंचला   देवी

                                      १४-३-  ४८

             

चिट्ठी पढैत देरी दरोगाजी लाजें पानि-पानि भऽ गेलाह। बजलाह-तखन आब की होमक चाही?

चंचला देवी चुपचाप उठि कऽ गेलीह और शेविंग-सेट (हजामत बनैबाक सामान) लऽ ऎलीह। तखन साबुनसॅं कुच्ची भिजा, हुनका मोंछकें खूब नीक जकाँ रगड़ि, ओहि पर नहूँ-नहूँ सेफ्टी रेजर (छुरा) चलाबय लागि गेलीह। देखैत-देखैत दरोगाजीक मोंछ साफ भऽ गेलैन्ह।

 

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