द्वादश निदान
लेखक : हरिमोहन झा अनुवादक: प्रणव झा (केवल अकादमिक एवं शोध कार्य हेतु)
उस दिन जनता के कल्याण पर विचार करने हेतु एक उच्चस्तरीय समिति बैठी थी। दूर-दूर से सदस्यगण आए थे। एक सज्जन बोले - सभी अनर्थ की जड़ है ये महंगाई। मुद्रास्फीति के कारण वस्तु का दाम नित्य प्रतिदिन बढता जा रहा है। जबतक यह मूल्यवृद्धि नहीं रोकी जाएगी तब तक लोगों का कल्याण नहीं। इसीलिए मेरा विचार है कि सर्वप्रथम चोरबाजारी और भ्रष्टाचार का उन्मूलन किया जाए।
दूसरे व्यक्ति ने कहा – कैसे किया जाए? छोटे चोरों को पकड़ने का जिम्मा जिसपर है वह स्वयं बड़ा चोर है। इचना-पोठिया के ऊपर रहु-भाकुड़ बैठे हैं। यह मत्स्य-न्याय समस्त देश मे फैला हुआ है। नीचे से ऊपर तक। ऐसी स्थिति मे भ्रष्टाचार कैसे दूर हो सकता है? इसीलिए मेरा विचार है कि सर्वप्रथम राष्ट्रीय चरित्र का निर्माण होना आवश्यक है।
तीसरे व्यक्ति ने कहा – चरित्र का निर्माण कौन करेगा? 'स्वयासिद्धः कथं परान् साधयति! केवल नैतिकता का उपदेश देने से कोई फल नहीं। जब तक कठोर से कठोर दंड-विधान नहीं होगा तबतक भ्रष्टाचार दूर नहीं होगा। 'बिना भय होहि न प्रीति।'
चौथे व्यक्ति ने कहा -दण्ड-विधान तो है ही। किन्तु वो कार्यान्वित कहाँ होता है? इसके लिए प्रशासन-यंत्र मे दृढता लाना चाहिए। जमाखोरी और मिलावट करनेवलों को ऐसी सजा दी जाए कि फिर किसी को साहस न हो।
पांचवे व्यक्ति ने कहा - केवल कानूनी दण्ड से काम नहीं चलेगा। भ्रष्टाचार का सामाजिक बहिष्कार होना चाहिए। यदि समाज मे ऐसी चेतना जग जाए, तभी भ्रष्टाचार दूर हो सकता है।
छठवे व्यक्ति ने कहा -केवल भ्रष्टाचार ही हटाने से समस्या का समाधान नहीं हो सकता है। जबतक उत्पादन मे वृद्धि नहीं होगा तबतक वस्तु सुलभ नहीं होगा। इसीलिए हमलोगों को चाहिए कि अधिक से अधिक उत्पादन करने मे समस्त शक्ति लगा दें।
सातवें व्यक्ति बोले - केवल उत्पाद ही बढ़ाने से काम नहीं चलेगा। देश की जनसंख्या भयंकर रूप से बढ़ती जा रही है। इतना सारा मुँह भरा कैसे जाए? एक अनार, हजार बीमार। तब ऊंट के मुँह मे जीरा से क्या होगा? इसीलिए मेरा विचार है कि युद्धस्तर पर परिवार-नियोजन का अभियान चलाया जाए।
आठवें व्यक्ति ने कहा - केवल सरकारी ढोल पिटने से गर्भाधान नहि रुक सकता है। स्त्री-पुरुष स्वेच्छा से इन्द्रियसंयम का अभ्यास करें, तब जाकर संतति-निरोध हो सकता है। इसीलिए मेरा विचार है कि ब्रह्मचर्य-शिक्षा पर जोर दिया जाए।
नवम व्यक्ति बोले – देश मे वीर नागरिक हो तब राष्ट्र सबल हो सकता है। जो पौष्टिक आहार के बिना नहीं हो सकता है। इसी लिए मेरा विचार है कि प्रत्येक व्यक्ति के हेतु उचित मात्रा मे शुद्ध दूध की व्यवस्था हो।
दसवें व्यक्ति बोले - जहाँ अन्न ही दुर्लभ हो वहाँ शुद्ध दूध सभी को कैसे मिलेगा? चारा के अभावमे लाचार हो गए लोग गाय पालना छोड़ रहे हैं। गोरस सूखा जा रहा है। इसीलिए मेरा विचार है कि कृषि और पशुपालन पर सब से अधिक ध्यान दिया जाए।
ग्यारहवें व्यक्ति ने बोला - परंतु खाद, बीज, जोताइ और सिंचाइ का साधन इतना कठिन हो गाय है कि खेतिहर सब रो रहे हैं। उसपर से साल दर साल यह भीषण बाढ़ आने से सरकारी रिलीफ बाँटनेवाले अफसर का तोंद और ज्यादा फूलता जा रहा है । एंटिकरप्सन डिपार्टमेण्ट को और अधिक सक्रिय बनाना चाहिए।
बारहवें व्यक्ति ने कहा - किन्तु खैरात पर ही जनता किनते दिन खेपेगी? आत्मनिर्भरता होना बहुत जरूरी है। गरीबी और बेरोजगारी दूर होना चाहिए । शिक्षा मे आमूल परिवर्त्तन होना चाहिए। उद्योग-व्यवसाय की वृद्धि होना चाहिए । 'पर-कैपिटा' आमदनी बढ़ना चाहिए । अभी लाखो लाख ऐसे व्यक्ति हैं जिनको बाजरे की रोटी मिलना कठिन है । इसीलिए सरकारे को चाहिए कि विलासिता और फिजूलखर्ची पर कड़ा रोक लगा दें ।
सभाध्यक्ष के इस भाषण के समर्थन मे जोर से करतल घ्वनि-हुआ ।
तबतक भोजन का समय हो गया था ।
सेक्रेटरी टेबल पर की घंटी बजा दिए । तत्क्षण सभी के आगे मे चाय, कटलेट, करी, पोलाव, केक, फुडिंग, रसमलाइ और आइसक्रीम का ढेर लग गया । सदस्य लोग जनता के असीम कष्ट से करुणार्द्र चित्त होते हुए भोजन मे दत्तचित्त हो गए ।
तदनन्तर रुमाल से हाथ मूँह पोछ कर सभी लोग 'बिल-फार्म' पर अपने-अपने यात्रा-भत्ता का हिसाब जोड़ आफिस के किरानी के हाथ मे थम्हा दिए, जिसकी कुल राशि दो हजार रुपए हुए । सदस्यगण का सम्मिलित विचार हुआ कि एक दिन मे तो सभी समस्या का समाधान होना असंभव है, इसीलिए पुनः अग्रिम बैठक मे सुभ्यस्त होकर विस्तार पूर्वक विचार किया जाए । पन्द्रह दिन के भीतरे दूसरी तिथि निर्धारित किया गया । तदुपरान्त सभी लोग चुरुट पीते हुए अपने-अपने कार मे जा बैठे ।
(एकादशी' से)
मूल टेक्स्ट अगले पृष्ठ पर
द्वादश निदान बीछल कथा
लेखक : हरिमोहन झा अनुवाद : प्रणव झा
ओहि दिन जनताक कल्याणपर विचार करबाक हेतु एक उच्चस्तरीय समिति बैसल छ्ल। दूर-दूरसॅं सदस्यगण आयल छलाह। एक सज्जन बजलाह-सभ अनर्थक जड़ि थिक ई महगी। मुद्रास्फीतिक कारण वस्तुक दाम नित्य प्रति बढल जाइत अछि। जावत धरि ई मूल्यवृद्धि नहि रोकल जायत तावत लोकक कल्याण नहि। तैं हमर विचार जे सर्वप्रथम चोरबजार आ भ्रष्टाचारक उन्मूलन कयल जाय।
दोसर गोटा कहलथिन्ह-कोना कयल जाय? छोटका चोरकें पकड़बाक भार जकरापर छैक से बड़का चोर अछि। इचना-पोठियाक ऊपर रऽहु-भाकुड़ बैसल अछि। ई मत्स्य-न्याय समस्त देशमे पसरल अछि। नीचाँसॅं ऊपर धरि। एहना स्थितिमे भ्रष्टाचार कोना दूर भऽ सकैत अछि? तैं हमर विचार जे सर्वप्रथम राष्ट्रीय चरित्रक निर्माण हैब आवश्यक अछि।
तेसर गोटा बजलाह-चरित्रक निर्माण के करत? 'स्वयासिद्धः कथं परान् साधयति! केवल नैतिकताक उपदेश देने कोनो फल नहि। जावत कठोरसॅं कठोर दंड-विधान नहि हैतैक तावत भ्रष्टाचार दूर नहि हैत। 'बिनू भय होहि न प्रीति।'
चारिम गोटा बजलाह-दण्ड-विधान तॅं छैके। किन्तु ओ कार्यान्वित कहाँ होइत अछि? एहि खातिर प्रशासन-यंत्रमे दृढता अनबाक चाही। जमाखोरी आ मिलावट करऽवला कें तेहन सजाय देल जाइक जे फेर ककरो साहस नहि होइक।
पाँचम गोटा कहलथिन्ह-केवल कानूनी दण्डसॅं काज नहि चलतैक। भ्रष्टाचारीक सामाजिक बहिष्कार हैबाक चाही। यदि समाजमे एहन चेतना जागि जाइक, तैखन भ्रष्टाचार दूर भऽ सकैत अछि।
छठम गोटा कहलथिन्ह-केवल भ्रष्टाचारे हॅंटने समस्याक समाधान नहि भऽ सकत। जावत उत्पादनमे वृद्धि नहि हैत तावत वस्तु सुलभ नहि हैत। तैं हमरा सभकें चाही जे अधिकसॅं अधिक उत्पादन करबामे समस्त शक्ति लगा दी।
सातम गोटा बजलाह-केवल उत्पादने बढौलासॅं काज नहि चलत। देशक जनसंख्या भयंकर रूपसॅं बढल जा रहल अछि। एतेक रास मुँह भरल कोना जायत? एक अनार, हजार बीमार। तखन ऊँटक मुँहमे जीरक फोरनसॅं की हैतैक? तैं हमर विचार जे युद्धस्तर पर परिवार-नियोजनक अभियान चलाओल जाय।
आठम गोटा कहलथिन्ह-केवल सरकारी ढोल पिटने गर्भाधान नहि रुकि सकैत अछि। स्त्री-पुरुष स्वेच्छा इन्द्रियसंयमक अभ्यास करथि, तैखन संतति-निरोध भऽ सकैछ। तैं हमर बिचार जे ब्रह्मचर्य-शिक्षापर जोर देल जाय।
नवम गोटा बजलाह-देशमे वीर नागरिक हो तखन राष्ट्र सबल भऽ सकैत अछि। से पौष्टिक आहार वेत्रेक नहि भऽ सकैत छैक। तैं हमर विचार जे प्रत्येक व्यक्तिक हेतु उचित मात्रामे शुद्ध दूधक व्यवस्था हो।
दसम गोटा बजलाह-जहाँ अन्ने दुर्लभ तहाँ शुद्ध दूध सभकें कहाँसॅं भेटतैक? चाराक अभावमे नचार भऽ लोक गाय पोसनाइ छोड़ि रहल अछि। गोरस सुखायल जा रहल अछि। तैं हमर विचार जे कृषि और पशुपालन पर सभ सॅं अधिक ध्यान देल जाय ।
एगारहम गोटा बजलाह - परंच खाद, बीज, जोताइ और सिंचाइक साधन ततेक कठिन भऽ गेल छैक जे खेतिहर सभ कानि रहल अछि । ताहि पर साले साल ई भीषण बाढ़ि आ सरकारी रिलीफ बाँटऽवला अफसरक धोधि और बेसी फूलल जा रहल छनि । एंटिकरप्सन डिपार्टमेण्ट कैं और अधिक सक्रिय बनैबाक चाही ।
बारहम गोटा कहलथिन्ह - किन्तु खैराते पर जनता कतेक दिन खेपत ? आत्मनिर्भरता हैब बहुत जरूरी छैक । गरीबी आ बेरोजगारी दूर हैबाक चाही । शिक्षा मे आमूल परिवर्त्तन हैबाक चाही । उद्योग-व्यवसायक वृद्धि हैबाक चाही । 'पर-कैपिटा' आमदनी बढ़बाक चाही । एखन लाखक लाख एहन व्यक्ति अछि जेकरा जनेरोक रोटी भेटब कठिन छैक । तैं सरकारे कैं चाही जे विलासिता आ फिजूलखर्ची पर कड़ा रोक लगा देअए ।
सभाध्यक्षक एहि भाषणक समर्थन मे जोर सॅं करतल घ्वनि-भेल ।
तावत लंच टाइम भऽ गेलैक ।
सेक्रेटरी टेबुलपरक घंटी बजा देलथिन । तत्क्षण सभक आगाँ मे चाय, कटलेट, करी, पोलाव, केक, फुडिंग, रसमलाइ आ आइसक्रीमक पथार लागि गेलनि । सदस्य लोकनि जनताक असीम कष्ट सॅं करुणार्द्र चित्त होइत भोजन मे दत्तचित्त भऽ गेलाह ।
तदनन्तर रुमाल सॅं हाथ मूँह पोछि सभ गोटे 'बिल-फार्म' पर अपन-अपन यात्रा-भत्ताक हिसाब जोड़ि आफिसक किरानीक हाथ मे थम्हा देलथिन, जकर कुल राशि दू सहस्र टाका भेलैन्ह । सदस्यगणक सम्मिलित विचार भेलैन्ह जे एक दिन मे त सभ समस्या कें समाधान हैब असंभव, तैं पुनः अग्रिम बैसक मे सुभ्यस्त भऽ विस्तार पूर्वक विचार कैल जाय । पन्द्रह दिनक भीतरे दोसर तिथि निर्धारित कैल गेल । तदुपरान्त सभ गोटे चुरुट पिबैत अपन-अपन कार मे जा बैसलाह ।
(एकादशी' सॅं )
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें