Monday 29 December 2014

माँ वीणापाणी वर दे (लय: इस मोड़ से जाते हैं -फ़िल्म -आंधी)



मां वीणापाणी वर दे, संगीतमई वर दे, मंजूज्ञान वर दे
मां वीणापाणी वर दे
अज्ञान अंधेरे में, विभत्स पशुनर में, अबोध अवचेतन मन तक
नवचेतना तू भर दे . . . मां वीणापाणी वर दे

पीड़ाएं सभी हर कर, उल्लास जो भरती है
वो नैसर्गिक झंकार, तेरी वीणा से निकलती है
मेरी लेखनी में भी मां,वो रौशनी तू भर दे, जन जन तक जो पहूंचती है
मां वीणापाणी वर दे

मां वीणापाणी वर दे, संगीतमई वर दे, मंजूज्ञान वर दे
मां वीणापाणी वर दे
अज्ञान अंधेरे में, विभत्स पशुनर में, अबोध अवचेतन मन तक
नवचेतना तू भर दे . . . मां वीणापाणी वर दे
मां वीणापाणी वर दे

तेरे ज्ञान  की ज्योति से मां इंसान प्रबुद्ध हुए
विज्ञान के बल से मां विकसित और बुद्ध हुए
इंसानी अंतर्मन को अंतर तक शुद्ध करो
ये प्रणव वन्दना माँ अब तो स्वीकार कर लो

मां वीणापाणी वर दे, संगीतमई वर दे, मंजूज्ञान वर दे

आज्ञान अंधेरे में, विभत्स पशुनर में, अबोध अवचेतन मन तक
नवचेतना तू भर दे . . . मां वीणापाणी वर दे
मां वीणापाणी वर दे
२८.१२.२०१४

अतीत के आईने से कुछ मुक्तक

ये शाम भी गुजर जाएगी हवा बनकर
रात की अंधियाली भी छोड़ जाएगी बेवफ़ा बनकर
हमे तो इंतजार है उस सवेरे का
सुबह जो आए मेरे लिए दुआ बनकर
२७/०४/२०१४

दर्द के परछाई से पीछा छुड़Éना है
आशा की किरण तु ऐसी रौशनी कर दे
या कि न देख सकूं खुद को भी मैं
मेरी जिंदगी में ऐसी अंधियाली भर दे
०९/०५/२०१४

तेरे सजदे में गुजारी है ये जिंदगी सारी
मेरी जद से तु परे हुआ, जबसे तु खुदा हो गया
१४.०५.२०१४

कभी मिट्टी की खुशबू में मुझे ढूंढकर देखो
इसके हर कण में सना मैं तुझे मिल जाउंगा
२८.०५.२०१४

तुम क्या हो और मैं तुम्हे क्या कहूं
बस चाहत है की सदा तेरी नजरों में रहूं
२८.०५.१४
मेरा मिट्टी है जो कि हर बार बिखर जाता है
ख्वाब बनकर हवा, हर बार हाथों से निकल जाता है
२८.०५.२०१४

हजारों ख्वाब ऐसे हैं, जो टूटे अब तलक मेरे;
निगाहें फ़िर भी जुट जाती है इक और ख्वाब बुनने मे
३१.०५.२०१४

कुछ इस तरह भरमाया जिंदगी तुने;
अब तो आदत सी हो गई है, भ्रम पालने की मुझको
११.०६.२०१४

कहीं इक राह की साहिल पे बैठा था सदा ले के
खुदाया काश ! की तुम इक बार वहां भी देख तो लेते
२१.१२.२०१४

तसव्वुर में समाए हो कभी तो रूबरू आओ
हमारे रूह में बसकर, वहां पर घर बना जाओ
२१.१२.२०१४

पंछी बनकर उड़ नहीं पाया
पंख कटवाए बैंठा हूं;
अपाहिज सी जिंदगी हो गई
और आप पुछते हो कैसा हूं !!
व्योम का विस्तार देख
मैं डर गया या हार गया !
दुविधा के भंवर में फ़सकर,
इसपार ना उसपार गया !!
जूलाई २०१०

बेबस हैं हम, हमें यूं न आजमाया करो;
दोस्ती की है तो, कभी दोस्ती का फ़र्ज भी निभाया करो !
कभी खुद रोते हो, कभी हमे रूला जाते हो
क्या इसी तरह दोस्ती का फ़र्ज निभाते हो !!
०२.०७.२०११

कुछ लोग साथी की चाहत में फ़ना हुए
कुछ लोग साथी की हिफ़ाजत में फ़ना हुए
तुम बात करते हो अकेले चलने की
हम तो अकेलेपन के इनायत में फ़ना हुए
०२.०७.२०११

तेरे प्रीत से आलोकित है जिंदगी मेरी
तेरे चेहरे का अवलंबन है जिंदगी मेरी
तुम कौन हो और क्या पहचान है तुम्हारी?
जिसके होने के गुमान से है हर खुशी मेरी
०२.०७.२०११

इक बादल है जो मिटकर भी
दो बूंद खुशी के दे जाए
इक हम इंसान हैं,
जो जीकर भी
मानवता के न काम आए
०२.०७.२०११

बादल के गरज से सीखा है
राहत की बूंदे बरसाना
सीखा है हमने मिटकर भी
मानवता के न काम आना
०२.०७.२०११

कुछ तो बात है तुझमें मेरी नजरों के लिए
कि तेरे दीदार को ये मेरे दिल में भी झांक लेती है
होठों पर लग जाते हैं ताले खामोशी के
पर ये उंगलियां सारे जज्बात कह देती है
०२.०७.२०११

न आए तुम मेरी गलियों में और न ये बादल
प्यास बढाती रही मेरे रूह की पल-पल
सजी है हर राह यूं तो बाजारी खुशबूओं से
महक मिट्टी की मिली ना मिली तेरे रूख्सारों की इक पल
जूलाई २०१२

खामोशी से सो गए आज फ़िर ओढकर रात की चादर
सोचा था थाम्होगे तुम मेरा दामन ख्वाबों में आकर
पर हासिल तेरा यहां भी मुकम्मल न रहा
ख्वाब में भी मैं अक्सर तन्हा ही रहा
जूलाई २०१३

बादल आज फ़िर आए थे तुम मेरे आंगन
और बरस कर चले गए
मैं तेरा धन्यवाद भी न कर सका
शायद तुम व्यस्त थे सबकी प्यास बुझाने में
पर कल तुम फ़िर आना
बांहें खोलकर करना है तुम्हारा स्वागत
और भिंगोना है तेरी बूंदों से अपना दामन !
जून २०११