Wednesday 26 June 2019

एनपीएस(NPS) मैथिली लघुकथा

सुनु, जल्दी से हमरा किछ खाय लेल द दिय, हमरा नटवर बौआ लग जेबा के अछि, एनपीएस खाता खोलाबय लेल" दोकान से घुरिते विनोद मिशर अपन कनियाँ अंजलि देवी से कहलखिन.

"एनपीएस! ई की होइत छै यौ?" अंजलि देवी प्रत्युत्तर में पुछलखिन.

ई पेंशन खाता होइत छै जै में लोक अपन कमाई के किछु हिस्सा जमा करैत रहै छै आ साइठ वर्षक भेला मातर ओहि जमा पाई से लोक के पेंशन भेटैत छै. ऐ में आन खाता से बेसी ब्याज सेहो भेटैत छै जै से पैसा तेजी से बढ़ैत छै

"ईह! तखन ऐ में की बुधियारी? जकरा फाजिल पाई होय तकरा लेल ई सब टिटम्भा भेल, हमरा सब के कमाई त सभटा खेनाइ-पिनाई दर-दवाई, धियापुता के पढ़ाई-लिखाई आ सर-कुटमैती में चलि जाय य त ई एनपीएस में पाई कत से देबै! धीया-पूता जे पढ़ि लिखि गेल त फेर बुरहारी में पेंशन के कोन काज पडत. आ फेर सरकारों त कहाँदिन वृद्धा पेंशन दैते छैक." प्रस्तावक प्रतिकार करैत अंजलि बजलीह.

विनोद आ अंजलि मिथिलाक एकटा गाम स पलायित भ क दिल्ली आयल छलैथ. पहिने गाम में विनोद अपन पैतृक जमीन पर खेती-बारी क के गुजर करै छलाह. मुदा दिनानुदिन खेती-बारी के हालत खरापे भेल जा रहल छल, आमदनी घटल जा रहल छल. एही बीच ३ टा धियापुता सेहो नमहर भेल जा रहल छल, जकर पढ़ाई-लिखाई दर-दवाई सेहो आब हिनका जोड़य परै छल. माय-बाबू के मुइला के बाद भैयारी सब सेहो भिन्न भ गेल छलाह. ऐ परिस्थिति में अंजलि हिनका पाछाँ पड़ि गेल छलीह जे ई खेती-बारी से गुजारा केनाइ मुश्किल य आ धियापुता के सेहो ई गामक विद्यालय में पढ़ाई-लिखाई ठीक से नै भ पाबि रहल अछि तैं चलु दिल्ली ओत्तहि मेहनत मजूरी करब आ ओत्तहि रहब, अपना गामक आ हमर नैहरक कतेको लोक ओतय गेलाह य आ आई सुख से रहैत छैथ. खेत-पथार के बटाई लगा दियौक. खेत पथार आब के बटाई लैत छै आ जे लैत छै सेहो किछ ढंगक उपजा बारी कहाँ दैत छै. मुदा खेत-पथार के मोह कहिया तक. भगवान् भरोसे ई सब छोरहे पड़ैत छै अंततोगत्वा अपन स्त्री के बात मानि के एकदिन सपरिवार विनोद मिश्र दिल्ली के बाट धेलाह.

मैथिल ब्राम्हणक लुचपुच देह छल स्वाइत विनोद कोनो फैक्ट्री में काज करय में नै सकलाह. अंततः हुनकर सासुर के एकटा लोक जे द्वारका के एकटा अपार्टमेंट में एकटा छोटछीन किराना दोकान चलबैत छलाह से कहलकैन जे हमर अपार्टमेंट में एकटा धोबी छल जे लोकक कपड़ा आइरन करैत छल ओ कतहु भागि गेलै य, त अहाँ कहि त ओत्तहि अहाँ के काज धरा दी. पहिले त भेलैन जे धोबी के काज कोना करब, मुदा मरता क्या न करता बला हिसाब छल. ओ काज शुरू केलाह. किछुए दिन में हुनकर दोकान चलि पड़ल छल. आब महीना के १५-२० हजार टाका कमा लेत छलाह. अंजलि सेहो एकटा अपार्टमेंट में २टा घर में भानस बनब वाली के काज पकरि नेने छलीह. आ ई सब पालम गाँव के एकटा कालोनी में किराया पर रहै लागल छलैथ. जिनगी ठीक ठाक कटै लगलै मुदा बचत के नाम पर हिनका सब लग ठनठन गोपाल छल. हिनके गाम के एकटा लड़का नटवर सेहो एही बीच में दिल्ली आयल छलाह पढ़ाई करै खातिर. कइएक बेर विनोद से कहने छल जे कक्का किछ बुढ़ारियो लेल बचाउ, एकटा एनपीएस खाता फोलि लिय. मुदा सदिखन विनोद हुनकर गप्प के हवा में उड़ा दैत छलाह.

ओहो! हमहुँ कहाँ खिस्सा के फ्लैशबैक में ल क चलि गेलहु अछि. हं, त अंजलि के प्रतिकार केर उत्तर दैत विनोद बजलाह जे सरकारी पेंशन के आशा लोक कहिया धरि राखत! आ ओहुना ओ एकदम से निदान लोक सब लेल थीक. हम किये मनाबि जे बुढ़ारी धरि हम निदान रही. आ रहल बात धीया-पूता के पढ़ि लिख जेबा के बाद बुढ़ारी के कोन चिंता करबाक, त यै, हमहु पहिने यैह सोचैत छलहुँ, मुदा आई हमरा संगे एकटा घटना जे भेल तकरा बाद हमर ज्ञान फुजि गेल अछि.

"एहेन की भेल अहाँ संगे आई? " अंजलि पुछलि

हे हम जै बाटे दोकान पर जाय छी, ओहि रस्ता में एकटा लालबत्ती पर सबदिन एकटा बुरहा गाड़ीवाला सब से भीख माँगैत रहैत छै. कपड़ा लत्ता आ वेशभूषा से ओ निक परिवारक लागैत छल, तैं हमरा मोन में डेली जिज्ञासा होइत छल जे कोन परिस्थिति भेल हेतै जे ई बूढ़ा के भीख मांग पड़ैत छैक. आई हमरा नै रहल गेल त हम बुरहा से पूछि बैसलहुँ जे कक्का की बात जे अहाँ के भीख मांगे परै ये.

ऐ पर ओ बुरहा कहै लागल जे ओ पहिने एकटा प्राइवेट नौकरी करैत छल. अपन बेटा के खूब मोन से पढ़ेलक -लिखेलक बेटा इंजिनियर बनि गेल. विवाह दान भेलै. फेर बेटा-पुतहु दुनू अमेरिका चलि गेल नौकरी करय लेल. बुरहि पहिनने स्वर्गवासी भ गेल छलीह. तैं बेचारे बुरहा एकसरे एतय रहि गेल छलाह. बाप-बेटा मिली के शुरुआती में द्वारका में एकटा छोट छीन फ़्लैट किनने छलाह ताहि में ओ एकसर रहैत छैथ. अपन सभटा कमाई ओ घर चलाब, बेटा-बेटी के पढाई विवाह आ ई घर में खर्च क देने रहथिन तैं एकाउंट पर कोनो पाई नै. पहिने बेटा बीच बीच में पाई भेज दैत छलैन्ह मुदा किछ मास पहिने कोनो बात पर बेटा संगे कहा-सुनी भ गेलै तकरा बाद बेटा फोन केनाइ छोड़ने छैन्ह आ पाई सेहो नै पठा रहल छैन्ह. अरोसी-पडोसी आब, के ककरा देखैत छै आ कत्तेक दिन! इहो अपन अपन ईड़ छोड़ि बेटा से बात नै केलाह. रहबाक कोनो चिन्ते नै मुदा खैबा लेल जे पाई चाहि ओहि लेल अपन ईड़ में ओ भीख मांगै लागलाह अछि.

हम हुनका कहलियैन जे कक्का अहाँ चाहि त एकटा उपाय क सकैत छी अहाँ ऐ मकान के किराया पर चढ़ा दियौ आ हमर कालोनी में सस्ता  में किराया पर मकान ल के रहु आ जे पाई बचत तै में खेनाइ पिनाई भ जैत. जौ मोन बनै त हमरा कहब, हम मकान खोजि देब.

ई कहि हम आगा बढ़ि गेलहु मुदा हमरा बेर बेर हुनकर स्थिति मोन पड़ै लागल आ स्वाइत हम मोन बना नेने छी जे नटवर बौआ से कहि के ऑनलाइन एनपीएस एकाउंट खोलबा लेब, आ सब महीना में हजार-दू हजार-पांच सौ जैह हेतै से एनपीएस खाता में जमा करब. ई कहि विनोद भूजा के अंतिम कौर मुंह में घोंटि पानि पीबि के घर से बहरा गेलाह.
इति. 

Monday 24 June 2019

नई शिक्षा नीति 2019 के लिए सुझाव

केंद्र सरकार द्वारा चलाई जा रही नई शिक्षा नीति 2019 का मैं स्वागत करता हूं। विदित हो इसके अंतर्गत तीन भाषा सिखाने की व्यवस्था का मैं समर्थन करता हूं । मैथिली भौगोलिक दृष्टिकोण से भारत से लेकर नेपाल तक विस्तृत मिथिला क्षेत्र की भाषा है जो वर्तमान में भारत देश अंतर्गत बिहार और झारखंड प्रदेश समेत देश के विभिन्न भाग में रहने वाले लगभग छह करोड़ आबादी की मातृ भाषा और मुख्य बोलचाल की भाषा है।  भारोपीय भाषा के अंतर्गत मगधी प्राकृत भाषा के बीच मैथिली प्राचीनतम भाषा है तथा आधुनिक भारतीय भाषा के बीच एक समृद्ध भाषा के रूप में स्थापित है एवं संविधान की आठवीं अनुसूची में सूचीबद्ध है।  किंतु अत्यंत दुर्भाग्यपूर्ण है कि विद्यालय शिक्षा व्यवस्था में करोड़ों मैथिली भाषी लोगों के लिए अभी तक किसी भी रूप में मैथिली का समावेश नहीं हुआ है जबकि राष्ट्रीय पाठ्यचर्या की रूपरेखा 2005 भारतीय भाषाओं का शिक्षण राष्ट्रीय समूह का आधार पत्र जो कि भारत सरकार की संस्था एनसीईआरटी द्वारा तैयार की गई है समेत अन्य रिपोर्ट में बार-बार मातृभाषा के माध्यम से प्राथमिक शिक्षा देने की अनुशंसा की गई है। राष्ट्रीय शिक्षा नीति के वर्तमान प्रारूप  में भी इसकी अनुशंसा की गई है जिसका मैं समर्थन करता हूं अब जबकि राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2019 में मातृभाषा के माध्यम से शिक्षा उपलब्ध कराने की संस्तुति की गई है मैथिली भाषा भाषियों के बीच में नए आशा का संचार हुआ है कि इस बार उन लोगों को भी अपनी मातृभाषा में शिक्षा प्राप्त करने का अधिकार मिलेगा। इस आलोक में मेरी मांग एवं सुझाव है कि मिथिला क्षेत्र उत्तर बिहार में प्राथमिक शिक्षा मैथिली भाषा में प्रदान करने की व्यवस्था की जाए दो देश भर में मैथिली छात्र-छात्राओं को त्रिभाषा नीति के अंतर्गत एक भाषा के रूप में मैथिली पढ़ने की सुविधा उपलब्ध कराई जाए।

2. माध्यमिक शिक्षा के अंतर्गत कृषि एवं बागवानी की मौलिक शिक्षा की व्यवस्था:
श्रीमान, कृषि, बागवानी एवं खाद्यान्न जीवन की मौलिक आवश्यकताएँ हैं। मैं महसूस करता हूँ की देश के हर नागरिक को कृषि एवं बागवानी की मौलिक जानकारी होनी चाहिए ताकि वो कृषिकार्य एवं कृषकों के प्रति संवेदनशील बने इसलिए माध्यमिक शिक्षा के अंतर्गत विद्यालयों मे कृषि एवं बागवानी संबंधी प्रायोगिक ज्ञान एवं ग्रामीण क्षेत्रों मे हर जिले मे कम से कम एक आइटीआई हो जिसमे दसवी पास बच्चो को कृषि विज्ञान एवं फूड प्रोसेसिंग की ट्रेनिंग की व्यवस्था हो, ताकि जो बच्चे बहुत आगे तक पढ़ाई नहीं कर सकते और पढ़ाई के बाद कृषि को पेशा बनाना चाहते हैं वो आधुनिक कृषि के तकनीकी से भली भांति अवगत हो और अपने कौशल से बेहतर आमदनी प्रपट करने मे सक्षम बन सकें।

3. स्वच्छता एवं सफाई कर्म को माध्यमिक पाठ्यक्रम मे अनिवार्य रूप से शामिल किया जाए:
श्रीमान, राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2019 के मसौदे मे प्राथमिक बच्चों मे स्वच्छता एवं पोषण को लेकर जागरूकता बढ़ाने की बात कही गई है, जिसका मैं समर्थन करता हूँ । साथ ही मेरा सुझाव है की माध्यमिक शिक्षा के अंतर्गत सफाई कर्म को पाठ्यक्रम का अंग बनाया जाए एवं सप्ताह मे कम से कम एक दिन हर कक्षा के बच्चों को प्रशिक्षित प्रशिक्षक के देखरेख मे सफाई कार्य मे लगाया जाए एवं प्रशिक्षित किया जाए। यदि यह हर महंगे से महंगे विद्यालय मे और हर छात्र पर लागू होता है, तो न सिर्फ बच्चो मे सफाई को लेकर जागरूकता बढ़ेगी, बल्कि सफाई कर्म और सफाई कर्मी के प्रति उनकी संवेदनशीलता भी बढ़ेगी, और जब ये बच्चे बड़े होकर टेक्नोक्रेट,ब्यूरोक्रेट, नेता आदि बनेंगे तो सफाई-कर्म और कचरा प्रबंधन मे नई तकनीकी और मशीन के प्रयोग को बढ़ाने के प्रति संवेदनशील होंगे ऐसा मेरा मानना है। गांधी जी भी ऐसा ही सोचते थे, इसीलिए उन्होने कस्तूरबा गांधी और अपने बच्चों को भी सफाई कर्म मे लगाया था।

4. वित्तीय प्रबंधन के ज्ञान को माध्यमिक पाठ्यक्रम मे अनिवार्य रूप से शामिल किया जाए:
श्रीमान, एक चीज जो जीवन का एक बेहद ही आवश्यक अंग है पर जो विद्यालय मे नहीं सिखाई जाती है वह है वित्तीय प्रबंधन का ज्ञान। मैंने अनुभव किया है की बहुत से किसान,  कामगार, और अन्य व्यवसाय, कार्य करनेवाले लोग ठीक ठाक आमदनी होने के बावजूद जीवन मे उन्नति नहीं कर पाते या फिर विपत्ति के समय बहुत बुरे फंस जाते है जिसका कारण है की वो अपने आमदनी का सही प्रबंधन नहीं करते हैं, क्योंकि उनमे वित्तीय प्रबंधन का ज्ञान बिलकुल नहीं होता। यदि हमे अपने देश के नागरिकों को सक्षम, समृद्ध और विकासशील बनाना है तो इसके लिए वित्तीय प्रबंधन का मौलिक ज्ञान अत्यंत ही आवश्यक है। अतः मेरा निवेदन है की माध्यमिक और उच्च माध्यमिक पाठ्यक्रम मे मौलिक और  व्यावहारिक वित्तीय प्रबंधन को अनिवारी रूप से शामिल किए जाए एवं विद्यालयों मे इसके शिक्षण की व्यवस्था की जाए। एक नए और गूढ विषय के लिए शिक्षक की आपूर्ति के लिए यह किया जा सकता है की विषय के ज्ञानी शिक्षक विभिन्न विद्यालयों मे अतिथि शिक्षक के रूप मे घूम घूम कर शिक्षा दें।

5. नैतिक शिक्षा एवं आध्यात्म को पाठ्यक्रम मे अनिवार्य रूप से शामिल किया जाए:
श्रीमान, विगत दो दशकों मे यदि समाज का अध्ययन करें तो समाज मे नैतिकता का पतन बहुत तेजी से होता जा रहा है। साथ ही बदलते जीवनशैली के कारण लोग भांति भांति के मानसिक रोग और अवसाद से ग्रसित हो रहे हैं। बच्चे भी इससे अछूते नहीं हैं।  बच्चों मे नैतिक मूल्यों का सृजन एवं मानसिक रूप से उन्हे सशक्त और साकारात्मक बनाना भी शिक्षा का अभिन्न अंग है, अतः यदि नैतिक शिक्षा एवं आध्यात्म को विद्यालयों मे बेहतर ढंग से पढ़ाना सुनिश्चित हो तो हम भविष्य मे एक बेहतर समाज के सृजन की परिकल्पना कर सकते हैं। 

6. शिक्षा के बजट मे वृद्धि का प्रस्ताव:
श्रीमान भारत जैसे विशाल देश मे जहा बहुत से राज्य और एक बड़ी आबादी आज भी गरीब हैं और शिक्षा पर पर्याप्त खर्च करने मे असमर्थ हैं, तथा जहां शिक्षा मे उपरोक्त सुधार की आवश्यकता है, ऐसे स्थिति मे,  सभी के लिए गुणवत्तापूर्ण शिक्षा का लक्ष हासिल करने के लिए शिक्षा मे केंद्रीय बजट मे वृद्धि बहुत ही  आवश्यक है। अतः मेरा प्रस्ताव है की कमसे कम अगले 10-15 वर्षों के लिए शिक्षा पर जीडीपी के 6-7% खर्च करने का लक्ष्य हो। इस बढ़े शिक्षा बजट का बड़ा हिस्सा बिहार, झारखंड, ओड़ीसा, छत्तीसगढ़ आदि जैसे गरीब राज्य जो शिक्षा के क्षेत्र मे बहुत पिछड़े हैं मे शिक्षा की सुविधाएं जैसे नए केंद्रीय विद्यालय, नवोदय विद्यालय, कस्तूरबा स्कूल, केंद्रीय विश्वविद्यालय, पोलिटेकनिक, कृषि महाविद्यालय, अभियांत्रिकी संस्थान, चिकित्सा महाविद्यालय आदि खोलने, उनके विस्तार आदि मे खर्च हो। साथ ही इस फंड से इन राज्य सरकारो द्वारा चलाये जाने वाले विद्यालय, महाविद्यालय, विश्वविद्यालय आदि को सहायता देने मे खर्च हो ताकि इन संस्थानो मे एक स्तरीय शिक्षा व्यवस्था सुनिश्चित हो सके, समुचित पुस्तकालय, लैब एवं शिक्षक मुहैया हो सके। शिक्षकों को समुचित वेतन एवं आवश्यक प्रशिक्षण उपलब्ध हो सके।
यही कुछ मेरे सुझाव है, बाँकी राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2019 के मसौदा के अधिकांश प्रावधानों का मैं समर्थन करता हूँ।
धन्यवाद।
जय भारत।

भवदीय
प्रणव कुमार
नई दिल्ली