Wednesday 8 December 2021

#बाल_कविता सूरज दद्दा

 









 

 

बड़ी मनोहर, बड़ी निराली

लगती है सूरज की लाली


कितने तुम अनुपम लगते हो

नदी के तन को जब छूते हो


भोर भये कहती यह नैया

जय दिनकर जय गंगा मैया


चीर अंधेरे की यह माया

उगे हो लेकर अद्भुत काया


सबके आलस तुम हर लेते

नित्य नई ऊर्जा हो देते


आया हूँ मैं गंगा तीरे

तुमसे मिलने सुबह सवेरे


सोने की रथ पर चढ़ते हो

लाल किरणसी कुछ गढ़ते हो


गंगा तेरा पानी अमृत

सूरज की लाली से पुलकित


धन्य हुआ मैं यह सुख पाया

ऐसा पावन सुबह बिताया।