Tuesday 17 October 2023

फेसबुक का चक्कर

 

फेसबुक का चक्कर (मूल कहानी :मैथिली)

लेखक एवं अनुवादन : प्रणव झा

कुशाल जी नोएडा के एक बहुराष्ट्रीय कंपनी में मैनेजर थे।  जैसा नाम कुशल वैसा ही वह अपने पेशे और व्यक्तिगत जिंदगी में सब तरह के कार्य मे कुशल थे। उनमे सामाजिकता भी था और समाज से जुड़े रहने का शौक भी था। महानगरीय जिंदगी का एक साइड इफेक्ट यह है कि यहां की जिंदगी के भागम भाग में आप नहीं चाहते हुए भी समाज से कट जाते हैं। आधुनिक काल में मनुष्य के जीवन शैली में तकनीक का बहुत बड़ा योगदान है। इसी क्रम में तकनीक भागा दौड़ी में व्यस्त मनुष्य को समाज से जोड़ने में भी मददगार साबित हो रही है। जहां एक तरफ नेता से लेकर अभिनेता तक सब दिन भर ट्विटर पर टिपिर टिपिर करते रहते हैं वहीं अन्य अन्य लोग भी फेसबुक और व्हाट्सएप की मदद से अपने बिछड़े समाज समांग और मित्रों से जुड़े रहने के नए प्रयोग में लगे हुए हैं। ऐसे लोगों में कुशल जी का नाम अग्रणी श्रेणी में रखा जा सकता है क्योंकि उनका फेसबुकिया कीड़ा खूब काटा है। दिन भर में देखा जाए तो 24 घंटे में 18 घंटे तो निश्चित ही फेसबुक पर ऑनलाइन मिल जाएंगे। नाना प्रकार के पोस्ट करते रहते हैं राजनीति से लेकर समाज तक और फूल पत्ती से लेकर जंगल झाड़ तक उनके अंदर दिनों दिन इस फेसबुकिया कीड़े का संक्रमण बढ़ता जा रहा था जिसका परिणाम यह हुआ कि उनकी पत्नी को अब इस आदत से कुछ दिक्कत जैसा होने लगा था। दूसरी बात यह की कुछ सामाजिक और क्षेत्रीय समस्याओं पर भी अपनी प्रक्रिया ताल ठोक कर देते थे जो कुछ लोगों को पसंद नहीं आता था। इस बात की शिकायत भी इनबॉक्स में खूब मिलता था। चलो जो भी हो किंतु दूसरी बात को कौन समझकर पहली बात को ही प्रमुख माना जाए।

ऐसे ही एक दिन घर में इस फेसबुकिया रोग को लेकर खूब महाभारत मचा। धर्मपत्नी इनको खूब सुनाई। विवाह से लेकर आज तक के जितने ताने थे तब याद कर करके उन सभी से पत्नी ने इनको अलंकृत किया।

तानो के ऐसे दमदार डोज से कुशल जी का मन अजीर्णता की शिकार हो गई। उनको इतनी सारी बातें पची नहीं। वह अपने मोबाइल में से फेसबुक को अनइंस्टॉल करने का कठोर फैसला किया। उनके लिए यह फैसला लेना नोटबंदी के फैसले से कम कठोर नहीं था। किंतु जैसे सरकार को नोटबंदी में देश का हि समझ में आया वैसे ही इनको वर्तमान स्थिति में फेसबुक बंदी में ही अपना हित समझ में आया। तथापि फेसबुकिया कीड़े का आसार इतनी जल्दी कैसे जा सकता था! वह फटाफट अपने मोबाइल को निकाले और लगे अपने फेसबुक स्टेटस अपडेट में – “पब्लिक के भारी डिमांड पर मैं कल से फेसबुक छोड़ रहा हूं, इसीलिए जिन जिनको जो कुछ कहना सुनना हो वह आज आधी रात तक कह सकते हैं।”

उसके बाद आधी रात तक पोस्टों की जैसे बाढ़ आ गई थी और वैसे ही गीदड़ के हुआ हुआ जैसा उन पोस्टों पर कमेंट का हुलकारा होने लगा था।  ज्यों ज्यों  समय बीतता जा रहा था कुशल जी का मन बेचैन होने लगा था। किंतु इस बार फेसबुक बंद करने का प्रण उन्होंने कदाचित भीष्म पितामह को साक्षी मानकर लिया था और या की पत्नी के शब्द वाण उनको उसी तरह घायल किया था जैसे अर्जुन के वाण कुरुक्षेत्र में भीष्म पितामह को। परिणाम या हुआ कि अतः उन्होंने फेसबुक बंद कर दिया।

किंतु किसी के आने जाने से जिंदगी का चक्र रूकता है क्या!  ऐसे ही फेसबुक का चक्र भी उनकी अनुपस्थिति में अपनी गति से चला रहा। यद्यपि कुछ निकटवर्ती मित्र सबसे वाया व्हाट्सएप विमर्श का सिलसिला चालू ही था।

इस घटना का कुछ ही दिन बीता होगा कि एक दिन कुशल जी को एक फोन आया हेलो!

 “हे हे हे हे... मैनेजर साहब जी नमस्कार। “

 “नमस्कार! आप कौन?” प्रति उत्तर में कुशल जी बोले।

 “हे हे हे हे हे  ...नहीं पहचाने! जी पहचानेंगे कैसे भला। पहले कभी भेंट हुआ होता तब ना! मैं आपका फेसबुक मित्र हूं नाम है पुष्पेंद्र नाथ चौधरी। पुष्पेंद्र नाथ का अर्थ हुआ पुष्प का राजा अर्थात कमल और उनके नाथ अर्थात कमल पति भगवान विष्णु। हे हे हे हे हे ...” अपना साहित्यिक परिचय देते वह फिर से बलहँसी हँसने लगे।

कुशाल जी कुछ याद करने की चेष्टा करते हुए फिर से बोले “ओह अच्छा। कहिए क्या समाचार”

“हे हे हे है मैं भी यही सोनीपत में रहता हूं। आपके फेसबुक पोस्ट से बहुत प्रभावित रहता हूं।  समाज में आप जैसे लोगों की बहुत आवश्यकता है इसलिए आपके फेसबुक छोड़ने से मैं बहुत दुखी हूं।  आपका अंतिम पोस्ट सब मैंने देखा था। मैं जानता हूं कि आपकी बातों कुछ लोगों को लोंगिया मिर्ची की तरह लगती है। और ऐसे ही लोगों की धमकी के कारण पने फेसबुक छोड़ा है। किंतु जब तक मेरे जैसे लोग जीवित हैं आपको डरने की कोई आवश्यकता नहीं है। इसी संबंध में मैं आपसे भेंट करके विमर्श करना चाहता हूं। बहुत तिकड़म से आपका नंबर उपलब्ध हुआ है। आज मैं नोएडा आ रहा हूँ इसलिए आपसे मिलने का अभिलाषी हूं।“

“किन्तु मैं  ऑफिस के काम में थोड़ा व्यस्त हूं” कुशल जी बोले।

अरे अरे अरे! बस कुछ मिनटों की मुलाक़ात चाहता हूँ। मैं बस एक घंटे मे पहुँच रहा हूँ।“ यह बोलते हुए उत्तर की प्रतीक्षा किए बिना उधर से फोन रख दिया गया।

फोन रखकर पुनः कुशल जी अपने कार्य मे व्यस्त हो गए। करीब डेढ़ घंटे बाद स्वागतकक्ष से फोन आया “ सर कोई पुष्पेंद्रनाथ चौधरी आपने मिलने आए हैं।“

“ठीक है भेज दो” बोलकर कुशल जी पुनः अपने कार्य मे व्यस्त हो गए।

दो मिनट बाद अर्दली एक थुलथुल काया वाले व्यक्ति को साथ मे लिए उपस्थित हुआ। सफ़ेद धोती, उसपर से पसीने से भीगा हुआ सिल्क का कुर्ता, लंबा टीका किए हुए इस व्यक्तित्व को भीड़ मे भी आसानी से पहचाना जा सकता है कि यह कोई मैथिल है।

“आइए बैठिए” अतिथि का स्वागत करते हुए कुशल जी बोले।

अहा! मैनेजर साहब आज आपसे मिलकर मेरा जीवन धन्य हो गया। कब से सोच रखा था, आज जाकर आप पकड़ मे आए हैं। अच्छा ये सब जाने दीजिए, पहले यह बताइये कि आपने फेसबुक क्यूँ छोड़ा। आपको भाषा बचाओ आंदोलन वालों ने कुछ कहा है, कि शिथिला राज्य वालों ने धमकाया है, या कि शिथिला हुरदंगी सेना वालों ने घुड़की दी है? आप बस एक बार नाम लीजिए बाँकी मैं देख लूँगा। मैं इन लोगों का सारा खेल-बेल समझता हूँ। अरे महाराज! मैं भी बीस वर्षों से इधर ही रहता हूँ और दिल्ली के एक-एक कालोनी सब जहां मैथिल-बिहारी बसे हैं, मे पैठ बिठाकर रखा हूँ। इलाका के छंटे हुए बदमाश लोग मेरे नाम से धोती ...... धोती तो खैर पहनते नहीं हैं, हाँ पैजामे मे सुसू कर देते हैं। इसी प्रकार से चौधरी जी करीब आधे-पाउने घंटे तक खूब हवाबाजी किए।

जब हवाबाजी का क्रम कुछ रुका तो बातचीत की दिशा मोड़ते हुए चौधरी जी बोले : “हें.. हें... हें.... आपने भोजन तो नहीं किया होगा न ?

अब चार बजे दोपहर के समय मे ऐसे प्रश्न का क्या उत्तर दिया जाए ! अतः कुशल जी इस प्रश्न का जवाब एक प्रश्न से दिए “क्या आपने भोजन नहीं किया है?”

“आह! मैं तो घर से भोजन कर के ही विदा हुआ था। अब तो जो होगा वो नाश्ता-पानी ही होगा। मेरी पत्नी तो जलपान भी साथ मे बांध रही थी। किन्तु मैंने मना करते हुए कहा कि मैनेजर साहब बिना नाश्ता कराए मानेंगे नहीं। इसलिए व्यर्थ ही मुझे यह सब लौटा कर लाना होगा।“

चौधरी जी का आशय समझने मे कुशल जी को कोई दिक्कत नहीं थी। तथापि मन ही मन कुछ राहत का अनुभव करते हुए सोचने लगे कि हाथ ऐसे ही टाइट चल रहा है, ऐसे मे यदि जलपान मात्र कराके इन से पीछा छूट रहा है तो सौदा महंगा नहीं है।

इस निर्णय पर पहुँचते हुए वो चौधरी जी से बोले । चलिए फिर कुछ जलपान कर लिया जाए। उनको साथ लिए कुशल जी बगल के एक रेस्टोरेन्ट मे पहुंचे।

वहाँ बैरा को बुलाकर उसे दो समोसे, तो गुलाबजामुन और दो कप चाय का ऑर्डर दे ही रहे थे कि चौधरी जी बीच मे कूदते हुए बोले “ ओह! एक जमाना था जब एक प्लेट समोसा मतलब दो समोसा समझा जाता था और उपास से अतिरिक्त जितना लिया जाए उसका कोई हिसाब नहीं। और अब तो एक समोसे का फैशन आया है। जो कहिए, किन्तु मेरे जैसे लोगों का तो एक समोसे मे मन असंतुष्ट ही रह जाता है। और गुलाबजामुन का क्या पूछा जाए। बाराती सब मे तो गिनती का कोई हिसाब ही नहीं रहता था। खानेवालों मे शर्त लगता था तो मामलासौ, डेढ़ सौ, दो सौ तक टिका  देते थे। किन्तु अब के युग को क्या कहें !”

यह कहते हुए उन्होने बैरे को चार समोसे 20 गुलाबजामुन और दो कप चाय का ऑर्डर कर दिया और व्यापार कुशल बैरे ने भी कुशल जी के किसी संशोधन का इंतजार किए बिना ऑर्डर लेकर निकल गया। पाँच मिनट बाद इनके मेज पर समोसे और गुलाबजामुन का अंबार लग गया था।

कुशल जी धीरे-धीरे चम्मच-काँटे से तोड़ तोड़ कर समोसा और गुलाबजामुन खाने लगे और उधर चौधरी जी बुलेट की गति से समोसे और गुलाबजामुन को सद्गति देने लगे। जबतक कुशल जी साथ देते हुए दो समोसे और दो गुलाबजामुन खाए तबतक बाँकी का सारा माल चौधरी जी के उदर मे अपना जगह पा चुका था। चाय की अंतिम चुस्की लेते हुए चौधरी जी बोले “ओहो! यह नाश्ता क्या हुआ समझिए भोजन ही हो गया।“

“ठीक है फिर आज्ञा दीजिए।“ बैरा को बिल के बदले मे पाँच सौ का नोट थमहाते हुए कुशल जी बोले।

“हें...हें...हें.... अब तो आप घर ही निकलेंगे न ? मैं सोच रहा था कि इतनी दूर आयाहूँ और आज संयोग बना है तो भाभी से भी एकबार मिलना हो ही जाता तो .... हें...हें...हें.....।” यह कहते हुए चौधरी जी फिर से बलहँसी हँसने लगे। अब इस ढिठाई पर कुशल जी क्या ही कह सकते थे! तिरहुत्ताम का रक्ष रखते हुए मौन स्वीकृति देते हुए चौधरी जी को साथ कर लिए और गाड़ी मे बैठकर घर की राह चल पड़े।

घर पहुँचने पर चौधरी जी कुशल जी की पत्नी “चंदा दाई” और बच्चों के बीच राम गए और तुरंत ही उनके बीच अपने वाक-कुशलता का धाक जमा दिए।

बातचीत इधर उधर की बातों से होते हुए मछली की बात पर पहुँची।  चौधरी जी बोले “ओह! आपके बगल मे तो छलेरा गाँव मे बड़ा मछली बाजार लगता है। बड़ा बड़ा जिंदा रहु मिलता है। चलिए घूम कर आते हैं।“ यह बोलते हुए वो कुशल जी का हाथ पकड़े बाहर जाने का उपक्रम करने लगे।

अब आगे की कहानी आप खुद भी सोच सकते हैं। बहरहाल रात को खूब स्वादिष्ट मछली-चावल-दही-पापड़ का भोजन हुआ। सुबह कुशल जी का छ: बजे से ही एक बैठक थी विदेशी क्लाइंट के साथ वीडियो कान्फ्रेंसिंग पर । वो पाँच बजे सुबह ही कार्यालय के लिए निकल गए और इधर चौधरी जी आठ बजे तक चादर तान कर खर्राटे भरते रहे।

उठने के बाद चाय के साथ पुनः दमदार नाश्ता भी हुआ। चलते समय वो पुनः कुशल जी के पत्नी को हाथ जोड़ कर क्षमायाचना का आडंबर पसारते हुए बोले “हें...हें...हें...भाभी फिर अब आज्ञा दीजिए। मेरे कारण आप सब को जो कष्ट हुआ होगा उसके लिए क्षमाप्रार्थी हूँ ...हें...हें...हें....”

“नहीं नहीं इसमे कष्ट की क्या बात है। अतिथि सत्कार तो हम सब का परम कर्तव्य है।“ यह बोलकर चंदा दाई इनके जाने की आश मे दरवाजे के पास खड़ी हो गई थी, किन्तु चौधरी जी एक बार पुनः कुछ संकोच करते हुए और बलहँसी हँसते हुए बोले “हें...हें...हें...जिस काम से नोएडा आया था उसमे कुछ पैसे की कमी पड़ गई। मैनेजर साहब स्वयं होते तब तो कोई बात ही नहीं थी, जितना बोलता पूरा कर ही देते। किन्तु वो तो सुबह सुबह ही मीटिंग के लिए निकल गए हैं।। इसलिए यदि दो हजार रुपए भी जो हो जाते तो...”

चंदा दाई थोड़ा सा पसोपेश मे चौधरी जी के हाथ मे दो हजार का एक नोट थमहा दी ।

शाम को जब कुशल जी कार्यालय से लौटे तो चंदा दाई इनके हाथ से मोबाइल छीन कर कुछ करने लगी । कुशल जी को हुआ कि हे भगवान! अब कौन सा कांड हो गया? थोड़ी देर मे पत्नी जी इनके हाथ मे मोबाइल देते हुए बोली “लीजिए आपके मोबाइल मे फेसबुक इन्स्टाल कर दिया है .... अब इसी पर करते रहिए सोशल नेटवर्किंग।“

इति श्री!