Thursday 13 April 2023

भौकाली मुर्गा (लघु व्यंग)

भौकाली मुर्गा (लघु व्यंग – मैथिली)

मुर्गा के एकटा गाम मे बिलाड़ि के आतंक बढि गेल छल। गामक मुखिया मुर्गा सब के बेर-बेर ऐ समस्या से छुटराकार के आश्वासन दैत छलाह मुदा अक्सरहा पेपर मे बिलाड़ि के आतंक के ख़बरि छपाइत रहई छल।

 

ऐ सब से उबिया चुकल मुर्गा सब अंततः मुखिया बदलबा के निर्णय लेलक आ एकटा भौकाली मुर्गा के अपन मुखिया चुनलक। सब के ई उम्मीद छल जे ई भौकाली मुर्गा बिलाड़ि के आतंक के समाप्त क देत।

 

नबका मुखिया मुर्गा सब के बीच बिलाड़ि के आतंक समाप्त कर लेल अजीब-अजीब निर्णय लेब लागल। मुदा ओकर सुखद परिणाम कम देखाई आ मुर्गा सब के किछ न किछ नया आफैत से साक्षात्कार भ जाय, किएकि निर्णय सब के आधार ज्ञान आ शोध कम, अनुभूति, जिद्द आ लोकलुभावनवाद बेसिआई छल। मुदा तैयो मुर्गा खुश छल, किएकि भौकाली मुर्गा मुर्गा सब के बिलाड़ि के आतंक से बचबाक एकटा गूढ गुरुमंत्र द देने छल।

 

ओ अपन प्रचारतंत्र के माध्यम से सबटा  मुर्गा के ई बता देने छल जे कतौ जे कोनो बिलाड़ि के गंध लागौ त सब अपन आंखि, नाक मुइन लीहें, बिलाड़ि अपने मोने भागि जेतौ। आब सब मुर्गा एहिना कर लागल छल। ऐ बीच बिलाड़ि चुपचाप आबई आ कोनो मुर्गा के अपन शिकार बना लै। किएकि मुर्गा के आबादी एत्तेक छल कि बिलाड़ि के ई गुपचुप खेल के पता ककरो नई लागई। किछ मुर्गा शक करय आ जांच के मांग करई त भौकाली मुर्गा के गुर्गा के द्वारा ओय मुर्गा सब के समाज विरोधी घोषित क के चुप करा देल जाय छल।

ऐ तरहे कालचक्र अनवरत चलि रहल छल। लागय छल जेना बिलाड़ि सब के शिकार होनाई मुर्गा सब के नियति बनि गेल छल।

नोट: मुर्गा – आम नागरिक , बिलाड़ि - भ्रष्टाचार /घोटाला

 

 

 

भौकाली मुर्गा (लघु व्यंग – हिंदी)

मुर्गों के एक कबीले मे बिल्लियों का आतंक बढ़ गया था. कबीले के सरदार नित इस समस्या से निबटने का आश्वासन देते पर आये दिन बिल्लियों के आतंक की खबरें छपती रहती.

 

इन सब से तंग आ चुके मुर्गों ने अंततः सरदार बदलने का फैसला किया और एक ऐसे भौकाली मुर्गे को अपना सरदार चुना जिससे उम्मीद थी कि वो बिल्लियों के आतंक को ख़त्म कर देगा.

 

नया सरदार आते ही मुर्गों के बीच बिल्लियों के आतंक समाप्त करने हेतु अजीबोगरीब निर्णय लेने लगा. पर उसका सकारात्मक असर कम दीखता क्योंकि कदाचित निर्णयों का आधार शोध और ज्ञान कम अनुभूति, जिद और लोकलुभावनवाद ज्यादा था. किंतु फिर भी मुर्गे खुश थे. क्योंकि नए सरदार ने मुर्गों को बिल्लियों के आतंक से बचने का एक गूढ गुरुमन्त्र दे रखा था.

उसने सभी मुर्गों को यह बता दिया था कि कहीं भी यदि किसी को बिल्ली की आहट सुनाई दे तो सब अपनी आँखें मुंद ले. बिल्ली अपने आप चली जाएगी. अब सभी मुर्गे ऐसा ही करने लगे थे. इस बीच बिल्ली आती और किसी मुर्गे को अपना शिकार बना लेती. क्योंकि मुर्गों की आबादी इतनी थी की बिल्ली के इस गुपचुप शिकार के खेल का पता किसी को नहीं लगता. और जो शिकार हो जाता वो बताने के लिए बचते ही नहीं. कुछ मुर्गों को शक़ होता और वो जाँच की बात करते तो उन्हें सरदार के मुर्गों द्वारा मुर्गा समाज विरोधी घोषित कर चुप करा दिया जाता.

 

इसी प्रकार से कालचक्र अनवरत चल रहा था. कदाचित बिल्लियों का शिकार होना मुर्गों की नियति बन गई थी.

 

PS : मुर्गे - आम नागरिक, बिल्लियाँ - भ्रष्टाचार /घोटाला

 

Sunday 9 April 2023

करमनेढ़ (मैथिली कथा)

 

सदर अस्पताल बेगूसराय के दृश्य – नित दिन जेका सौंसे गहमा गहमी पसरल अछि। ओपीडी मे लंबा लाइन लागल, ओपीडी कक्ष मे डॉक्टर सब जल्दी जल्दी अपन मरीज निबटाब मे लागल अछि। डॉक्टर कक्ष के बाहर लाइन मे धक्कम-मुक्की चली रहल अछि। किछू गोटे जोगार से लाइन तोड़ी के डायरेक्ट अपन मरीज के दखाबय मे लागल अछि। वार्ड मे मरीज सब से भेंट करय बला संबंधी सब के एनाय जेनाय लागल अछि। कतौ कोनो मरीज के नर्स इंजेक्शन लगा रहल छथीन कतौ कोनो मरीज कराहि रहल अछि।

 

एहिना एकटा ओपीडी कक्ष मे डॉ० प्रवीण अपन ट्रेनी संगे अपन मरीज सब के निबटा रहल छलाह। डॉ० प्रवीण पोरकें साल सदर अस्पताल मे सीनियर कंसल्टेंट कम पीजी टीचर के रूप मे ज्वाइन केने छलाह। डॉ० प्रवीण शुरुए से कुशाग्र बुद्धि आ  मेहनती छलाह। चंडीगढ़ पीजीआई से एमडी केलाक बाद फ़रीदाबाद के एकटा फाइव स्टार कॉर्पोरेट अस्पताल मे कंसल्टेंट के रूप मे  कार्यरत छलाह। तेसरा साल डॉ० प्रवीण छईठ मे गाम आयल छलाह। भोरका पहर जखन टहलs लेल गाछी दिस बिदा भेल छलाह त रस्ता मे यार कक्का भेंट गेलखिन। “गोर लगई छी यार कक्का – की समाचार – नीके छी की ने” प्रवीण यार कक्का के पैर छू प्रणाम करैत बजलाह।

“खुश रहु बौआ रहु आबाद...... गाम रहु कि फरीदाबाद” यार कक्का आशीर्वाद दैत बजलाह। यार कक्का बिहार सरकार से रिटायर भेल पूर्व कार्मिक छलाह आ आब सामाजिक कार्य सब मे लागल रहई छईथ। पढबा-लिखबाक सेहो बेस शौख छैन आ बात बात पर छंद मिलेनाई मे विशिष्टता राखई छईथ।

आगा  प्रवीण से कुशल क्षेम पुछईथ यार कक्का बजलाह “की हौ भोरे भोर कातिक मास के शीतल बसात के आनंद लेब लेल निकलल छह की?”

“हाँ कक्का गाछी-वृक्षि के शीतल बसात के आनंद त गामे मे ने भेंटत” प्रवीण बजलाह

- हौ प्रवीण भने तू ई बात उठेलह हम तोरा से एहि मैटर मे किछ बात कर चाहई रही। देखह तों जे एकटा प्रस्ताव पर विचार करह त ई गाछी बला शीतल बसात के आनंद बारहो महीना छतीसो दिन ल सकई छह। देखहक एनबीईएमएस राज्य सरकार सबके जिला अस्पताल मे डीएनबी आ पीजी मेडिकल डिप्लोमा कोर्स चलेबाक प्रोग्राम आनने अछि जै से कि देश के जिला जिला मे सस्ता आ निक गुणवत्ता बला मेडिकल केयर आ पीजी मेडिकल प्रशिक्षण उपलब्ध कराओल जा सकई। एहि क्रम मे हमरा सन किछू जागरूक सामाजिक कार्यकर्ता सब बिहार सरकार के कहि-सुनि के बेगूसराय सदर अस्पताल मे सेहो ई प्रोग्राम चलाब लेल राजी केलहू। आवेदन प्रक्रिया मे छैक मुदा अस्पताल मे योग्य  पीजी टीचर के कमी के चलते किछ विभाग के आवेदन अटकल छैक। तों शिशुरोग विशेषज्ञ छहक ने आ तोरा अनुभव सेहो भ गेल छौ। तै हमर प्रस्ताव छल जे यदि तों ऐ पद के ग्रहण कर लेल स्वीकार करह त हम सरकार से बात करी आ कम से कम शिशुरोग विभाग मे डीएनबी शुरू करबाक एकटा बड़का बाधा खतम हेतैक।

 

- प्रवीण के ई प्रस्ताव पर किछु थकमकाइत देख यार कक्का पुनः बजलाह “हौ हम बुझई छी से ई डीसीजन तोरा लेल आसान नई हेत किए कि आदर्शवादी बात कहनाई आ कर मे अंतर होइत छैक। ताहि लेल हम तोहर निर्णय लेब के प्रक्रिया के प्रेक्टिकली किछ आसान क दैत छियह। देखह बिहार सरकार से तोरा ओहन दरमहा त नई भेंटतह जे फ़रीदाबाद के बड़का अस्पताल मे भेंट रहल छ। मुदा एतय तो सदर अस्पताल मे काज के संगे अपन क्लीनिक या अस्पताल सेहो चला सकई छहक। तोरा सन योग्य डॉक्टर के क्लीनिक खूब निक चलत तै मे कोनो शक नई। सक्षम लोक के तोहर चिकित्सा लाभ प्राइवेट प्रेक्टिस से आ गरीब लोक सब के सदर अस्पताल के माध्यम से भेंटई ऐ से निक आर की बात हेतई। आ सब मिला के तोरा आर्थिक रूप से कोनो नोकसान नई हेतौ से हमर गारंटी छैक। तकरा बात तोरा मोन मे होइत हेत लाइफ स्टाइल के ल क त देखह आब सब तरहक दोकान दौरी , मॉल-सिनेमा शॉपिंग, रेस्टोरेन्ट आदि सबटा अपना शहर कस्बा मे सेहो उपलब्ध अछि। बाल-बच्चा लेल निक गुणवत्ता बला प्राइवेट स्कूल सब सेहो उपलब्ध छैक आ दसमा के बाद त ओहुना बच्चा सब आब घर से बाहर कोनो कोचिंग के लेल जाइते छैक। बदला मे तोरा आ बाल-बच्चा के भरि साल गामक हवा, गाम-घरक आनंद, नाँव , इज्जत, प्रतिष्ठा सब भेंटतौ।

 

- कक्का अहांक बात काट बला नै अछि, हम निश्चित ऐ प्रस्ताव पर गंभीर छी। मुदा हमरा ऐ मादे निर्णय तक पहुँच लेल किछ समय चाही, घरक लोक से सेहो विमर्श करय पडत। आ जे जेना होयत हम शीघ्र अहाँ के सूचित करब

ई कहि प्रवीण कक्का से विदा लेलखिन।

 

~सोना शटकुनिया हो दीनानाथ हे घूमय छ संसार........ लाउडस्पीकर पर शारदा सिन्हा के आवाज मे बजईत ई  गीत के स्वर छठि घाट पर ठाढ़ डॉ० प्रवीण के कान मे पहुँच रहल छल आ मोन मे यार कक्का के प्रस्ताव पर तीव्रता से विचार चलि रहल छलइन्ह।

 

करीब एक महिना बाद यार कक्का लग प्रवीण के फोन आयल छल, ई बताब लेल जे हुनका यार कक्का के प्रस्ताव स्वीकार छैन। बस फेर की वातावरण मे साकारात्मकता आ उत्साह के बयार बहि निकलल। आनन फानन मे सबटा प्रक्रिया शुरू भेल, डॉ० प्रवीण आब सदर अस्पताल बेगूसराय के शिशुरोग विभाग मे पीजी टीचर के रूप मे ज्वाइन क नेने छलाह आ ओहि साल से अस्पताल मे डीएनबी पीडियाट्रिक्स कोर्स सेहो शुरू भ गेल छल।

 

चलू आब वर्तमान पर आबी। डॉ० प्रवीण के सामने एकटा अधेर उमरि के आदमी बैसल छल आ डॉक्टर साहब के एकटा डीएनबी ट्रेनी ओकर पोती के देख रहल छल। ओ बैसल छल मुदा सामने राखल स्टूल पर नई अपितु जमीन पर उकड़ू बैसल छल। श्याम वर्णीय आ घनगर मोछ राखने, ललाट पर ललका टिक्का लगौने ओकर चेहरा पर गोटैक बेर बात कर के क्रम मे मुस्कान आबि जाय छल। खास क के जखन ओ अपन पोती के बात करय छल। ओकर चहरा आ आंखि पर परल झुर्री ओकर जीवन संघर्ष के गाथा कहि रहल छल। मुदा शरीर से बलिष्ठ आ फिटफ़ाट छल ओ आदमी। डॉक्टर साहब के बुझना गेल रहैन जे ट्रेनी के मर्ज समझ मे नई आबि रहल अछि ताहि से ओ ओकरा से पुछने छलखिन जे

“ई बचिया अहांक के य ?”

“पोती हइ साहेब “

“की भेलई य एकरा?”

महिना-दु महिना से पेट हहाइत रहई हइ साहेबदरद से छटपटा जाय हइ।

“की करय छि? कत रहय छी?”

चेरिया बरियारपुर गाँव है साहेब, एतई स्टेशन लग चाह-पकौड़ी के खोपचा लगबई छी।“

पहिने अहाँ कुर्सी पर बैस जाऊ – प्रवीण खाली कुर्सी दिस इशारा करैत बजलाह

“नई साहेब हम ठीक छी – जमीन पर उकडु बैसल ओ बाजल

“नै पहिले कुर्सी पर बैसु ऐ बेर प्रवीण कनी तेज आवाज मे बजलाह आ ओ सकुचाईत कुर्सी पर बैस रहल छल।

तदुपरांत अपन ट्रेनी डॉक्टर के केस के विषय मे किछ समझेला के बाद प्रवीण पुनः ओकरा दिस तकैत बजलाह चेरिया बरियारपुर बहुत दूर छैक एत से  त फेर एतेक दूर बेगूसराय काज कर आबै छी? ओतहि कोनो काज किए नै करई छी।

साइकिल से आबय छी साहेब। हमर बाबूए ई खोमचा खोलने रहई। नेनपने से  हुनका जौरे साइकिल पर आबईत रहि, हुनके से ई काज सिखल आ तहिया से यैह ठाम ई काज करई हियइ।

 

ई सब कहईत ओकरा चेहरा पर कोनो दुख या पछतावा के भाव नै छल अपितु अपन पिता के संग बीतेने अपन नेनपन के अनुभूति, पिता के वात्सल्य के स्वाभाविक गौरव अनुभूति ओकरा चेहरा पर और ओकर आंखि के चमक मे पढ़ल जा सकई छल।

 

डॉ० प्रवीण फेर पुछलखिन एनाई-जेनाइ लगा क लगभग 45-50 किलोमीटर त भ जाय हेत, त गामे दिस किए ने किछ करय छह।

 

ओमहर दिस ओहन मजूरी नै भेटई छई साहेब। एत बाबू के जमायल काज है 500-600 के दिन दिहाड़ी बनि जाय है।

 

बच्चा सब की करय ये – “बेटी सब बियाहि देलियइ साहेब बेटा सब दिल्ली मे कमाय है।“ डॉ0 प्रवीण के प्रश्न के जवाब मे ओ बाजल छल।

 

“कुन क्लास मे पढ़य छहक नुनु” एबरी डॉ प्रवीण ओय बचिया से पुछने छलाह

“पंचमा मे” ओ छौड़ी तमइक के बाजल छल

ई सुनि ओ आदमी अपन मोछ पर ताऊ दैत बाजल, बड्ड चंट हय साहेब, सबटा हिसाब किताब फटाफट क लई है।

अच्छा एकटा बात बताब नाती-पोता सब के पढेबहक की नै” डॉ० प्रवीण के साइत ओकरा से बात कर मे निक लागि रहल छल। संजोग से रोगी के भीड़ सेहो कम छलय।

 

“हाँ साहेब पढेबई किए नै

“अपन बच्चा सब के किए नै पढेलहक” तोरा सब के त आरक्षण सेहो भेटई हेत । दसमा तक पढ़ने हय बच्चा सब साहेब, सरकारी इसकुल मे पढ़ाईए कहन होय छय, दुगो-चारगो फारम सेहो भरने रहय लेकिन कुछ भेटले नय त दिल्ली कमाय लेल गेलय। हम्मे आर हरिजन मे नै आबय हियइ।“

 

“तैयो ओबीसी मे आबय हेबहक नै त ईडबल्यूएस कोटा मे त एबे करबहक। तोहर धिया पूता सब निक से फारम नै भरने हेत। तोरा कोनो ने कोनो आरक्षण के लाभ भेटत तोरा पता छह तोहर ई पोती बहुत कम पाई मे सरकारी कॉलेज से पढ़ि-लिखि क हमरा सन डॉक्टर सेहो बनि सकई छह।“

 

“हाँ साहब एकरा और के खूब पढेबै हम्मे”

 

किछू आर गप सप केला के बाद आ पोती के विषय मे दबाय आ सलाह लेला के बाद ओ अपन पोती के ल क गेट पर अपन आ पोती के उतारल चप्पल पहिरि गेट से बाहर गेल।

 

ओकरा गेला के बाद डॉ० प्रवीण अपन पीजी स्टूडेंट से पुछलखिन “बताऊ उ कुर्सी खाली रहईत ओ निच्चा किए बैसल छल”

स्टूडेंट के थकमकाइत देख ओ कहलाह जे हम बस पूछि रहल छी।

ट्रेनी के किछ उत्तर सूझलो होय तथापि ओ चुप्पे रहल।

“अच्छा ई बताउ जे एतेक रास सरकारी योजना सब के बावजूद ई अपन बच्चा सब के पढ़ेनाई- नौकरी दिएनाई किए नै क पेले”

 

“सर आलस...बुद्धि... करमनेढ़ सब छै”

 

“अहाँ के लागे य जे 45-50 किलोमीटर रोज साइकिल चलाबबाला लोक करमनेढ़ हेतय! ककरो टांग टुटल होय आ ओकर शानदार ट्रैक पर कहि देल जाय जे दौरू त कि ओ दौग पेतय? चलु पहिल सवाल पर घुरई छी। किए कोनो शर्ट-पेंट बला निच्चा नै बैसई छै, किए खाली गरीब-गुरबे टा निच्चा मे बैसय छै? किएकि ओकरा सब के बरसो-बरस यैह समझायल गेल छै जे तोहर पहिरन-ओढ़न, रहन-सहन यैह लाइक छौ जे कुर्सी पर नै बैस सकय छहि। ओकरा ऐ बात के डर बनल रहे छै जे कुर्सी पर बैसने कहीं ओकरा दुत्कारल नै जाय जै से ओकर आत्मसम्मान के ठेस लागतई। तै  ओ पहिनेने निच्चा मे बैस रहल छल। हम ओकरा से एत्ती काल गप्प क रहल छलहू जैसे अहाँ सब के बता सकि जे जै मरीज सब के डॉक्टर सब मशीन के जेका देखे छय कनिके काल ओकरा से गप्प केला पर कतेक रास बात बुझना मे आबय छय। ओकरा खोपचा मे चाह पीबईत कतेक लोक के मोन मे ई आबईत हेतय जे ई रोज 50 किलोमीटर साइकिल चला के ओ चाह दुकान चला रहल छै। एहन मरीज के एकटा व्यर्थ जांच लिख देनाइ मतलब भेल जे एक दिन ओकर जांच के व्यर्थ चक्कर मे बर्बाद केनाइ आ ओकर दिहाड़ी मरनाई। डॉक्टर के सदिखन एकटा केयरगिवर बनि के मरीज के इलाज करबा के चाहिए। यदि अहाँ कुर्सी पर बैसल छी आ कियौ आहाँ के सामने अछईत कुर्सी निच्चा मे बैसल अछि त ई बात अहाँ के कचोटबा के चाहिए। जे भी मरीज होय ओकरा पहिने अपना समानता के स्तर पर महसूस करबीयौ फेर ओकर इलाज करियौ आ अफ्नो  अंदर समानता के भाव राखियौ नै छोट नै पइघ। चाहे कलक्टर-नेता होय कि आम गरीब लोक सबके एक भाव से इलाज करबा के चाहिए। अहाँ आ ओकरा मे कोनो विशेष फर्क नै थिक। अहाँ इलाज द्वारा केकरो केयर द रहल छी ओ चाह पिया के । बेसी डॉक्टर सब साहित्य, संवेदना, दर्शन आदि के फालतू आ चिकित्सा प्रैक्टिस के लेल हास्यास्पद मानय छैथ मुदा ई बात के गांठ बाइन्ह लिय जे साहित्य, संवेदना, दर्शन के सबसे बेसी आवश्यकता विज्ञान के कोनो शाखा के सबसे बेसी छैक त ओ चिकित्साशास्त्र छैक। किएकि चिकित्सा खाली शरिरे टा के ठीक करब के नाम नै थिक अपितु मन आ आत्मा के भी आरोग्य क देबाक नाम थिक।“

 

संजोग से डॉ० प्रवीण जाखन अपन पीजी ट्रेनी के ई सब बुझा रहल छलाह तखने यार कक्का सेहो कोनो लाथे प्रवीण के केबिन मे पहुंचल छलाह। डॉ० प्रवीण द्वारा अपन ट्रेनी के देल सलाह सुनि यार कक्का के प्रवीण सन आयुर्विज्ञान पीजी टीचर पर बहुत गर्व के अनुभूति भेलइन आ अपन समाज के डॉ० प्रवीण सन चिकित्सक आ शिक्षक देबाक अपन कृतित्व के लेल अपना मे घोर संतोष आ तृप्ति प्राप्त भेलइन। इति।