कुशल जी, नोयडा के एकटा बहुराष्ट्रीय कंपनी में मैनेजर छलाह।
जहिना नाम कुशल तहिना ओ अपन पेशा आ बेक्तिगत जिनगी के सब कार्य में कुशल छलाह। समाजिकता
सेहो छलैन्ह आ समाज सं जुड়ल रह के शौख सेहो। महानगरिय
जिनगी के एकटा साईड इफ़ेक्ट इ अछि जे एतुका जिनगी के भागाभागी में अहां नहियो चाहैत
समाज से कटि जायत छि!
आधुनिक काल में मनुक्खक जिनगीशैली मे तकनिकि के बड्ड योगदान
अछि। एहि क्रम में तकनिकि, भागादौरी में व्यस्त मनुख के समाज सं जोडै में सेहो मददगार
साबित भऽ रहल अछि । जतय एक तरफ़ नेता से लऽ के अभिनेता सब भरि दिन ट्वीटर पर टिटियाइत
रहै अछि ओतै आनो आन लोक सभ फ़ेसबुक आ व्हाट्सएप के मदैद स अपन बिछुड়ल समाज-समांग आ संगी सब स̐ जुडल रह के नया प्रयोग में लागल
छैथ। एहन लोक में कुशलजी के नाम अग्रणी श्रेणी मे राखल जा सकै अछि कियेक त हुनका फ़ेसबुकिया
कीडा় खुब
कटलकैन अछि। दिन भरि में देखल जाय त २४ घंटा में ओ १८ घंटा त निश्चिते फ़ेसबुक पर ओनलाईन
भेट जेताह। नाना प्रकार के पोस्ट करैत रहताह – राजनीति स ल के समाज तक आ फ़ूल-पत्ति
से ल के जंगल-झाड तक । हुनका अंदर दिनोदिन ई फ़ेसबुकिया कीडा के संक्रमण बढैत जा रहल
छलैन्ह जेकर परिणाम ई भेल छल जे हुनकर कनियाँ के आब ई आदैत से किछु असोकर्ज जेना होमय
लागल छल । दोसर गप्प जे ई किछु समाजिक आ क्षेत्रिय समस्या पर सेहो अपन प्रतिक्रिया
ठांय पर ठांय दैत छलाह, जे किछु गोटे के अनसोहाँत बुझना जाय छल। ऐ बातक शिकायत सेहो
इनबोक्स में खूब भेटय छलैन्ह । चलु जे से मुदा दोसर गप्प के गैण बुझि पहिल गप्प के
प्रमुख मानल जाय।
अहिना एक दिन घर में ऐ फ़ेसबुकिया रोग के ल के खुब महाभारत
मचल। कनियाँ हिनका खुब सुनौली। विवाह स ल के आई धरि के जतेक उपराग छल सभटा मोन पारि
पारि के ओय सभसं कनियाँ हिनका पुन: अलंक्रित केलिह।
उपरागक एहन दमसगर डोज स कुशलजी के मोन अजीर्णता के शिकार
भ गेल। हुनका अतेक रास गप्प पचलैन नै। ओ अपन मोबाईल में से फ़ेसबुक के अनइंस्टल करै
के कठोर फ़ैसला लेलाह। हुनका लेल ई फ़ैसला लेनाई नोटबंदी के फ़ैसला से कम कठोर नै छल मुदा
जेना सरकार के नोटबंदी में देश कऽ हित बुझना गेल छल तहिना हिनको अखुनका परिस्थिति में
फ़ेसबुक बंदी में अपन हित बुझना गेल छल । तथापि फ़ेसबुकिया कीडा় के असर अतेक जल्दि कोना जा सकै छल से ओ फ़टाफ़ट अपन मोबाईल
निकाललाह आ लगलाह अपन फ़ेसबुक स्टेसस अपडेट में – "पब्लिकक भारी डिमांड पर हम काल्हि
सौं फ़ेसबुक छोडि रहल छी, ताहि लेल जिनका जे किछु कहबा-सुनबा के होइन से आई अधरतिया
धरि कहि सकै छी ! "
तकरा बाद त अधरतिया तक पोस्टऽक जेना ’बाढि’ आबि गेल होय।
आ तहिना ’गिदरऽक हुआ-हुआ’ जेना ओय पोस्ट सभ पर कमेंटऽक हुलकार होमय लागल छल। जौं जौं
समय बितल जाय छल कुशल जी के मोन कोना दैन करय लागल छल । मुदा एहि बेर फ़ेसबुक बंद करय
के प्रण ओ कदाचित भीष्म पितामह के साक्षी मानि के लेने छलाह आ कि कनियाँ के शब्द वाण
हुनका तहिना घायल केने छलैन जेना अर्जुन के वाण कुरुक्षेत्र में भीष्म पितामह के ।
परिणाम ई भेल जे अंतत: ओ फ़ेसबुक बंद क देलाह।
मुदा ककरो एने-गेने की जिनगी क चक्र रूकल अछि! एहिना फ़ेसबुको
के चक्र हिनका अनुपस्थितियों में अपन गति से चलिते रहल। यद्यपि किछु निकटवर्ती सर-समांग
सब से वाया व्हाट्सएप विमर्श क सिलसिला चालुए छल।
ऐ घटना के किछु दिन बितल हैत की एक
दिन कुशलजी के एकटा फ़ोन आयल। ’हेल्लो!’
"हें..हें…हें…मनेजर साहब यौ….नमस्कार"
"नमस्कार। अहां के?" प्रतिउत्तर में कुशल जी बजलाह।
" हें..हें…हें…नै चिन्हलौं? आह! चिन्ह्बो कोना के करब,
पहिने कतौ भेंट भेल हैब तखन की ने। हम अहांक फ़ेसबंधु छी। नाम अछि पुष्पेन्द्रनाथ चौधरी।
पुष्पेन्द्रनाथक अर्थ भेल पुष्प क राजा अर्थात कमल आ हुनकर नाथ अर्थात कमलपति भगवान
विष्णु । हें..हें…हें…" अपन साहित्यिक परिचय दैत ओ फ़ेर स̐ बलह̐सी ह̐सय लगलाह ।
कुशलजी
किछु याद करबाक चेष्टा करैत फ़ेर बजलाह "ओह। अच्छा। कहु की समाचार।"
" हें..हें…हें… हमहु अत्तै सोनीपत में रहै छी। अहाँक फ़ेसबुक
पोस्ट सब स̐ बहुत प्रभावित छी। समाज में अहाँ सन लोक सब के बड्ड आवश्यकता अछि। अतएव
अहाँके फ़ेसबुक छोड়ला से हम बहुत दुखित छी।
अहाँ के अंतिम पोस्ट सब हम देखने छलहु । हम जनैत छी जे अहाँक बात सब किछु गोटे के
लोंगिया मिर्चाई सन लगै छलैन । आ एहने लोक सब के धमकी के कारणे अहाँ फ़ेसबुक छोड়लहु अछि। मुदा जहिया तक हमरा सन लोक जीवित अछि अहाँ के डराय
के कोनो आवश्यकता नै अछि। एहि संबंध में हम अहाँ से भेंट क के विमर्श करै चाहै छि।
बड्ड तिकरम से अहाँ के नंबर उपलब्ध भेल अछि। आई हम नोयडा आबि रहल छि आ अहाँ से भेंट
करै के अभिलाषी छी ।"
"मुदा हम आफ़िस क काज में कनि व्यस्त छी" कुशल जी
बजलाह
"आहि आहि आहि। बस किछु मिनट के भेंट चाहै छी। हम बस
एक घंटा में पहुँच रहल छी।" ई बजैत उत्तर के प्रतिक्षा केने बिना ओम्हर से फ़ोन
राखि देल गेल ।
फ़ोन राखि के कुशलजी पुन: अपन कार्य में व्यस्त भ गेलाह। करीब
डेढ घंटा के बाद रिसेप्शन से फ़ोन आयल "सर कोई पुष्पेंद्रनाथ चौधरी आपसे मिलने
आए हैं ।"
"ठीक है भेज दो" कहि कुशलजी फ़ेर अपन काज में व्यस्त
भ गेल छलाह।
दू मिनट बाद अर्दली एकटा थुलथुल काय व्यक्ति के संग नेने
हाजिर भेल। उजरा धोती, ताहि पर से घाम में लभरायल सिल्क के कुर्ता, लंबा टा चानन केने
ई व्यक्तित्व भीडो में आराम स̐ चिन्ह में आबि सकै छैथ से इ कियौ मैथिल थिकाह।
"आउ बैसु" अतिथि के स्वागत करैत कुशलजी बजलाह।
आह मैनेजर साहेब आइ अहाँ स भेट भेने हमर जिनगी धन्य भ गेल।
कहिया से नियारने छलहु, आइ जा के अहा पकड় में एलहु अछि। अच्छा से सब जाय दिय, पहिने ई बताउ जे अहाँ फ़ेसबुक किये छोडलहु अछि? अहाँके भाषा बचाउ आन्दोलन बला किछ कहलक अछि आ कि शिथिला राज्य
बला धमकेलक अछि, आ कि शिथिला हुरदंगिया सेना बला सब घुरकेलक अछि? अहाँ बस एक बेर नाँ लिय बाँकि हम देख लेब। हम सभटा बुझै छि एकर सब के खेल-बेल। यौ महराज हमहु बीस बरख
स एम्हरे रहै छी
आ दिल्ली के गोट-गोट कालोनी सब जै में मैथिल-बिहारी सब बसल अछि,में पैठ बनौने छि। इलाका के छा̐टल बदमाश सब हमरा ना̐ से धोती…धोती त खैर पहिरैत
नै जाय अछी धरि पैजामा में लघी क दैत अछि। एहि प्रकारे चौधरी जी
आधा-पौना घंटा तक खूब हवा-बिहारि देलखिन ।
जखन हवा-बिहारि के क्रम किछु रुकले तखन गप्पक दिशा मोड़ैत
चौधरीजी बजलाह: “हें..हें…हें… अहां भोजन त कैये नेने हैबैक?”
आब चरबजिया बेरा में एहन प्रश्न के की उत्तर देल जाय! अस्तु
कुशलजी एहि प्रश्नक उत्तर एकटा प्रश्ने से देलाह "कि अहां भोजन नै केने छी की?"
"आह। हम त घरे सं भोजन क के विदा भेल रही। आब त जे हतै
से नस्ते-पानी हेतै की। हमर घरनी त जलखै संगे बांन्है छलखिन । मुदा हम मना करैत कहलियैन
जे मनेजर साहेब बिना नस्ता करेने मानथिन्ह थोरेक ने। से अनेरहे हमरा ई सब फ़ेर घुरा
क नेने आबय परत।"
चौधरी जी के आशय बुझ में कुशलजी के कोनो भांगट नै रहैन। तथापि
ओ मोने मोन किछ राहत अनुभव करैत सोचय लगलाह जे हाथ एहिना टाईट अछि, एहन में यदि जलखै
भरि कराक हिनका स̐ पिंड छूटै त सौदा
महरग नै अछि।
एहि निर्णय पर पहुँचैत ओ चौधरीजी से बजलाह। जे चलु तखन किछु
जलपाने क लेल जाय। हुनका संग नेने कुशलजी बगल क एकटा रेस्टोरेंट में पहुँचलाह।
ओतय बैरा के बजाय ओकरा दू टा सिंहारा, दू टा लालमोहन आ दू
टा चाह क आर्डर दैते छलाह आ की चौधरी जी बीच में कूदैत बजलाह " इह! एकटा जमाना
छल जे एक प्लेट सिंहारा माने दू टा सिंहारा बुझल जाय छल। आ ताहि पर से उप्पर से परसन
जतेक लेल जाए तकर हिसाब नै। आ आब त एकटा सिंहारा के फ़ैशल आयल अछि। जे कहु, हमरा सन
लोक के त एकटा सिंहारा से मोन छुछुआएले रहि जाय अछि। आ लालमोहन के की पुछल जाए। बरियाति
सब में त गिनती के कोनो हिसाबे नै रहै छल। खौकार सब के बाजी लागय त सै, डेढ सै, दू
सै टिका दैत छल। मुदा आबक जुग के की कही!"
ई बजैत ओ बैरा के चारि टा सिंहारा, २० टा लालमोहन आ दू कप
चाह क आर्डर क देलखिन, आ व्यापार कुशल बैरा सेहो कुशलजी द्वारा कोनो संशोधन के इंतजार
केने बिना आर्डर ल के निकलि गेल। पाँच मिनट बाद हिनकर सभक मेज पर सिंहारा आ लालमोहन
के पथार लागि गेल छल।
कुशल जी नहु नहु चम्मच काँटा स तोरि तोरि सिन्हारा आ लालमोहन
खाय लगलाह आ ओम्हर चौधरीजी बुलेट क गति से सिन्हारा आ लालमोहन के सद्गति देबय लगलाह।
जा कुशलजी संग दैत २ टा सिन्हारा आ २ टा लालमोहन
खेलथिन्ह टा बचलाहा सबटा माल चौधरीजी के पेट में अपन जगह पाबि गेल छल। चाह क अंतिम
चुस्की लैत चौधरीजी बजलाह "ईह! इ नास्ता की भेल बुझू जे भोजन भ गेल।"
"बेस तखन आज्ञा देल जाउ।" बैरा के बिल के बदला
में पांच सौ के नोट पकराबैत कुशल जी बजलाह।
"हें.. हें ..हें ... हें आब त अपने घरे निकलबै की ने।
हम सोचै छलहुँ जे एतेक दूर आयल छी आ आई संजोग बनल अछि त भौजियो से एकरत्ती भेंट भैये
जैतै त ...हें.. हें ..हें ... हें।" इ बजैत चौधरीजी फेर सं बलहँसी हँसय लगलाह।
आब ऐ ढिठाई पर कुशलजी की कहि सकै छलाह! तिरहुत्ताम के रक्ष रखैत मौन स्वीकृत्ति दैत
चौधरी जी के संग क लेलैथ आ गाड़ी में बैस घरक बाट धेलाह।
घर पहुंचला पर चौधरीजी कुशलजी के कनियाँ 'चँदा दाई' आ बुतरू सब के बीच रैम गेलाह आ तुरत्ते हुनका बीच
में अपन वाक्-कुशलता के धाक जमा देलखिन।
गप्प-सप्प एम्हर
आम्हार से होयत माँछ क गप्प पर पहुँचल। चौधरीजी बजलाह "ईह! अहाँक बगले में त छलेरा गाँव में बड़का मछहट्टा लगै अछि.
बड़का-बड़का जिबैत रहु भेटै छै. चलु घुरि क अबैछि।" ई बजैत ओ कुशल जी के हाथ धेने
बाहर जाय के उपक्रम करय लगलाह।
आब आगाँ के खिस्सा अहाँ अपनहुँ सोची सकै छि। अस्तु रात्रि
पहर दिवगर माँछ-भात-दही-पापड के भोजन भेलै। भोरे कुशलजी के छए बजे से एकटा मीटिंग छल
बिदेशी क्लाइंट संगे वीडियो कांफ्रेंसिंग पर। ओ पँचबज्जी भोरे ऑफिस निकली गेलाह आ एम्हर
चौधरी जी आठ बजे तक चद्दर तानि क फोंफ कटैत रहलाह।
उठला पर चाह-चुक्का संगे फेर सं दमसगर नस्तो भेलै। चलै काल
ओ कुशलजी के कनियाँ के कल जोरि के क्षमायाचना के भांगट पसारैत बजलाह "हें ..हें...हें...
भौजी तखन आब आज्ञा देल जाउ। हमारा कारणे जे अहाँ सब के कष्ट भेल होयत तकरा लेल क्षमाप्रार्थी
छि हें ..हें...हें..."
"नै नै ऐ में कष्ट के कोन गप्प छै। अतिथि सत्कार त हमर
सबहक परम कर्तव्य थीक" ई बाजि चँदा दाई हिनका जेबाक आशा में केबार लग ठाढ़ भ गेल
छलीह मुदा चौधरीजी एक बेर फेर किछु संकोच करैत आ बलहँसी हँसैत बजलाह "हें ..हें...हें...जै
काज से नोयडा आयल रही तै में किछु पाई के खगता भ गेल। मैनेजर साहब अपनहि रहितैथ तखन
त किछु बाते नै रहितै जतेक कहतियन पुराइये दितथिन मुदा ओ त भोरे भोर मीटिंग के लेल
निकली गेल छैथ। से दूओ हजार टका जौं भ जैतै त ...."
चँदा दाई किछु धकमकाइत चौधरी जी के हाथ में एकटा दू हजरिया
के नोट थम्हा देलीह।
सांझ में कुशलजी जखन आफिस से घुरलाह त चँदा दाई हिनका हाथ
से मोबाइल छीन किछ करै लगलीह। कुशलजी के भेलैन जे हौब्बा! आब कोन काण्ड भ गेलै। कनिके
काल में कनियाँ हिनका हाथ में मोबाइल दैत बजलीह "लिय अहाँक मोबाइल में फेसबुक
इंस्टॉल क देलौं अछि ... आब अहि पर करैत रहु सोशल नेटवर्किंग।"
इति श्री !
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