प्रणय का दे रहा मंत्रण, तुम्हे स्वीकार करना है
भँवर में आ फंसी नैया, तुम्ही को पार करना है
मेरे होने, न् होने का मुकम्मल अब
तुम्ही से है।
बहुत सपने बुने मैंने
तुम्हें साकार करना है।
मुझे जाना बहुत है दूर, तुम्हे भी साथ चलना है
पिघल कर काँच सा मुझको
तेरे साँचे में ढलना है
के संग चल दो मेरे तुम
ओढ़कर चुप्पी के चादर को
तू बोले कुछ नहीं फिर भी
मुझे चुपचाप सुनना है।
हृदय में द्वंद जारी है, मोहब्बत और अदावत में
कहीं दुश्मन न् बन बैठूं, मैं खुद का ही बगावत में
तुम्हारे प्रेम व्यूह में
लो फंसा अभिमन्यु बनकर मैं
विचारो प्राण हरना हैकि, प्रणय का दान करना है।
हुई तक़दीर भी रोशन सितारा
हो तो ऐसा हो
जिधर देखूँ उधर तुम हो
नजारा हो तो ऐसा हो...
कमर भी रश्क करता हो, मुकद्दर हो तो ऐसा हो
भला क्यों चाहिए दौलत, जो रहबर आप जैसा हो।
भरा मुस्कान होठों पर, नज़र में क्यों उदासी है
मुकम्मल है जहां मेरा तो
फिर क्यों रूह प्यासी है
है क्या मंजर बता मुझको
जरा ऐ आसमाँ वालों
घटा चारो तरफ छाई, धरा फिर भी क्यों प्यासी
है।
मोहब्बत चाहता था मैं, अदावत ही मिला तो क्या
मुझे बर्बाद करके राम
जाने किसको मिला है क्या
मेरी हालात पर मुझको नहीं
छोड़ा अकेला क्यों
कुरेदे जख्म और मरहम लगाए
फिर जमाना क्यों।