Wednesday 17 April 2024

रामनवमी - कुछ मुक्तक

 


मनुज होकर हमारा आचरण और काम कैसा हो
बहुत ना हो ना सही किंतु थोड़े राम जैसा हो।
मनुज होने की मर्यादा भी थोड़ी तुम अता कर लो
न जाने मृत्यु शैय्या पर तेरा अंजाम कैसा हो।

बहुत तुम जप लिए हो नाम जरासा काम भी कर लो
भरत सा भाई बनकर के मन में त्याग भी भर लो।
तपस्या हो तो लक्ष्मण सी, शत्रुघ्न सा तेज तुममे हो
कि अपने देश की माटी को तू धनधान्य से भर दो ।

मिले हर पेट को रोटी और हर हाथ को हो काम
हरएक नागरिक में हो एक दूजे के लिए सम्मान।
मिले इतना की हर कोई ख़ुशी से जी सके जग में
भरा हो प्रेम, निष्ठा, त्याग, का जोश रग रग में।


हरेक नारी का हो घर में सम्मान सीता सा
हमारे तंत्र का सीपी बदल दे धूल रीता सा।
बने सागर निकल कर के यहाँ पर ज्ञान गंगोत्री
बसे हर आत्मा के केंद्र में आध्यात्म गीता सा।



बना दो तुम फलक पर अब राष्ट्र का वो चित्र
हो चेला राम लक्ष्मण सा गुरू जैसे हो विश्वामित्र।
बनाएं मित्र तो सुग्रीव, रक्षक हो जटायु सा
जहाँ राजा को समझे हर प्रजा जैसे की अपना मित्र।


था वो दिन चैत्र नवरात्रा जब भगवान जन्मे थे
संग अपने तीन भाई के प्रभु श्रीराम जन्मे थे।
रचाया ब्याह भी संग में जनकपुर बांध कर सेहरा
किए जितनी भी लीलाएं सदा वो साथ संग में थे।

(17.04.2024 रामनवमी )




1 comment:

  1. बहुत अच्छा कविता लिखे हैं। उपदेशात्मक शैली में सम्यक वस्तु और बिम्ब का प्रयोग।

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