चुपके चुपके हम कभी तुमको देखा करते हैं
तेरी चाहत में न जाने क्या-क्या सोचा करते हैं
गंगा तट तेरे अधरो में और नैनों में झील कभी
पूर्णिमा के चांद में कभी तुमको ढूंढा करते हैं
चुपके चुपके हम कभी तुमको देखा करते हैं।
जब भी मिलता हूँ मैं तुमसे
स्पंदन है झनकाती उर में
कुछ भी ना कह पता तुझसे
बात दिल की रह जाती दिल में
अच्छे लगते तेरे सितम भी
अदा तेरी छू जाती दिल को
तेरे बिन लगता सब सुना
तनहाई रहती महफिल में
कुछ भी ना कह पता तुझसे
बात दिल की रह जाती दिल में।
तेरे पायल की छम छम
तेरी चूड़ी की सरगम
सुनकर मैं खो जाता हूं
भूल के अपने सारे गम
गिराती हो बिजली मुझ पर
देकर एक कुटिल मुस्कान
देखना कहीं ले न जाए
एक दिन यह मेरी जान।
जुल्फें तेरी जैसे की अमावस की काली रात हो
खो जाऊं मैं इनमें काश! तो फिर क्या बात हो
तेरी अल्हरता जैसे नदियों की कलकल सी हो
तेरी काया की क्यारी जैसे नंदन वन सी हो
तेरी खुशबू जैसे कोई भालसरी की डाली हो
तेरी चाहत मुझ में जैसे तू चीज कोई निराली हो
तेरा प्रणय पा सका तो धन्य में हो जाऊंगा
तुझे खुशियां दे सका तभी सद्गति में पाऊंगा
(28.11.10 पुरानी गली)
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