क्षमा शोभती उस भुजंग को जिसके पास गरल हो
उसको क्या जो खुद ही दारु पीकर कहीं परल हो!
क्षमाशील हो रिपु समक्ष तुम हुए विनीत जितना ही
दुष्ट पड़ोसी ने दारू पीके हंगामा किया उतना ही
प्रवीण सोडा राखिए, बोतल के ढक्कन मून
सोडा नहीं तो नीट पिये दारू का हर बूंद
जाति न पूछो बेवड़ो की, पूछ लीजिए ब्रांड
हैप्पी हो या सैड हो मूड, पीना इनका काम
जो प्रणव हो पाचनशक्ति का कर सकत शराब!
पीके होश में रहै बला के कोई न कहत खराब!!
सावन पियो, भादव पियो, आश्विन मास में थोड़ी
चुनावी मौसम में छक के पियो, जनता जी बलजोरी
जो रहीम उत्तम प्रकृति, का कर सकत कुसंग
दारू तो पिबत नहीं, चखना में देत संग
महफ़िल में हम न जाने क्या क्या समझे
वो कहते रहे मुझे साकी, और हम 'दारू पिला समझे'
दारू के साथ चखने का प्रबंध हूँ मैं
कोशी-कमला का टूटा तटबंध हूँ मैं
अफ़सर-नेता जिसके बल पर रास रचाते
कभी प्यासे को पानी पिलाया नहीं
बार मे दारू पिलाने का क्या फायदा !