यह तेरा है, यह मेरा है
यही सबसे बड़ा बखेड़ा है
गृहस्थों का जो घर है,
साधुओं का वह डेरा है।
आज नहीं तो कल,
मरना सबको बेरमबेरा है
पूजे जाते हैं दौलतमंद यहाँ
मुफ़लिसों को कब किसने टेरा है!
समझते हैं लोग गरीब-नवाज़ जिसको
निकलता अक्सर वही बड़ा लुटेरा है
बिकने आए हम भी दौलत की बाजार मे
खरीदार यहाँ भी कोई नहीं मेरा है ।
जिंदगी की जद्दोजहद और आदमी
हर जगह इन्सानों का रेलमपेला है
करता हैं किसी के वास्ते गुस्ताखियाँ कई
पाता है सजा-मुकर्रर मगर अकेला है।
क्यूँ घबराते हो तुम इनसान अँधेरों से इतना
काली रात के बाद फिर से नया सवेरा है ।
सच कहता हूँ सुन लो सियाराम की कसम
दुआओं मे प्रणव की सदा सबका बसेरा है ।
No comments:
Post a Comment