Thursday 10 September 2015

कागज़ को जलते देखा है ।

बस स्टॉप के कोने में
कूड़े की एक ढेर पर
कागज़ को जलते देखा है |

जीवन के आपाधापी में
खबरें बनते हैं खो जाते हैं
ऐसे ही कुछ खबरों को
कागज़ संग जलते देखा हैं
कागज़ को जलते देखा है |

यहाँ कर्ज में डूबे किसान नए हैं
आरक्षण के मांग नए हैं
कार्यकर्ता संग नेताओं को
धरने पर बैठे देखा हैं
कागज़ को जलते देखा है |

यहाँ विज्ञापन के शान नए हैं
थाली में सजे पकवान नए हैं
पर ऐसे भी कुछ बच्चे हैं जिन्हे
रोटी को मचलते देखा हैं
कागज़ को जलते देखा है |

यहां माया भी हैं, आध्यात्म भी हैं
उपहारों की सौगात भी हैं
झूठी दौलत शोहरत के लिए
रिश्तों को मरते देखा हैं
कागज़ को जलते देखा है |

यहां खेल भी हैं, व्यापार भी हैं
पेज-३ के कागज़ चार भी हैं
भावनाहीन बाजार तो हैं
पर शेयर के कुछ भाव भी हैं
सोने-चाँदी के कीमत को
चढ़ाते और गिरते देखा हैं
कागज़ को जलते देखा है |

शहर गाँव गली घुमा
हर ओर नजर को फेर लिया
इनकी तस्वीर नहीं बदली पर
बड़े रंगीन विज्ञापन में, मंत्री के
तस्वीरों को बदलते देखा हैं
कागज़ को जलते देखा है |

यहाँ रिक्तियां हैं, निविदा भी हैं
विज्ञापन की सुविधा भी हैं
महाजनो के साक्षात्कार भी हैं
पाठकों के कुछ सवाल भी हैं
प्रतिदिन कुछ नौनिहालों को
सूरज सा चढ़ता देखा हैं
कागज़ को जलते देखा है |
10.09.2015

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