Saturday 18 April 2020

मरबठट्ठी (मैथिली लघुकथा)


रामवृक्ष दिल्ली के एकटा अपार्टमेंट मे गार्ड के काज करई छलय। पीएफ काटि के 10 हजार टाका महिना दरमाहा आ साहेब सब के टहल टिकोरा केने किछ उपरका आमदनी सेहो भ जाय। पढ़ाई त कोनो विशेष केने नई छल, कहुना घीच-तीर के मैट्रिक पास छल। छोटछिन खेत के 4-5 टा खेतक टुकड़ी मे बाबू संगे खेती-बाड़ी करई छल पलिवार के निर्वाह लेल मुदा ओ एकटा ढंग के जीवनयापन लेल बहुत सीमित छल। स्वाइत विवाह के बाद माय ठेल-ठालि के दिल्ली कमाय लेल भेज देने छलखिन। 

पाछा भगवती के आशीष से दु टा धिया-पूता भेलइन त माय कनिया आ बच्चा के सेहो बलजोरी दिल्ली पठा देलिह ई कहि के जे बौआ तू त पढले नई, हम चाहई छी जे कमसेकम पोता-पोती पढ़ि-लिखि के मनुक्ख बनि जाय। 

जै अपार्टमेंट मे रामवृक्ष काज करई छलाह ओहि मे मनमोहन बाबू रहई छलखिन जे एकटा नामी निजी स्कूल के इस्टेट मैनेजर छलाह। बड्ड सहृदय व्यक्ति छलाह आ अपार्टमेंट के सभ छोट-पैघ लोक सभ से हालचाल लईत रहई छलाह। वैह रामवृक्ष के बेटा -बेटी के आरटीई के तहत ईडबल्यूएस कोटा से अपने स्कूल मे नाम लिखवा देने छलाह। दुनु बच्चो पढ़ाई मे बेस होसगर छल। 

पूरा परिवार के आश आब नव पीढ़ी पर छल। परिवार के दिन ठीक-ठाक कटि रहल छल मुदा पोंरका साल जे बाढि के बाद गाँव मे हैजा पसरल छल तै मे रामवृक्ष के बाबू सेहो काल के ग्रास बनी गेल छलाह। बेचारे एक्कहि टा मनोरथ नेने मरला जे पोता के उपनयन भ जैतई। अकसरहे बुरहि से ओ यैह चर्च करैत छलाह। 

श्राद्ध-कर्म के बाद रामवृक्ष एकसर माय के सेहो अपना संगे शहर ल एलाह, आब एकसर गाम पर ककरा भरोसे छोरितथीन! बूरही के आब एक्काहि टा भूकनी रहई छल जे बौआ रे बुरहा त मनोरथ नेनेहे चलि गेलाह, आब एबरि पोता के उपनयन देखा दे, जे मुईला के बाद आत्मा के शांति भेंटत। अस्तु रामवृक्ष एबरि लगन मे बेटा के उपनयन निश्चित केने छलाह। धियापुता के परीक्षा भ गेल छल तै होलिए मे सपरिवार गाम आयल छलाह किएकि उपनयन के लेल कतेको इंतजाम करय के रहई छैक। अपने फेर वापस आबई के छलई मुदा किछ कारण से देरी भ गेलई आ एही बीच देश मे कोविड19 नामक महामारी पसरि गेल छल। जै के बाद समुच्चा देश तालाबंदी मे चलि गेल छल। बड्ड असमंजस के स्थिति ठाढ़ भ गेल छल रामवृक्ष लग। एहेन स्थिति मे सर-कुटुम, भोज-भात, गाम-समाज सभ के जुटानी मुश्किल भ गेल छल। उपनयन कैंसिल केनाइए विकल्प बुझना जाय छल। मुदा घर मे माय घियौना पसारि देलि जे जेनाहि होय मुदा एबरि पोता के उपनयन हेबा के चाहि, तोरा हमरे शप्पत, मुइल बाबू के शप्पत। अस्तु रामवृक्ष के माय के जिद्द मानहे पड़ल। 

आई मरबठट्ठी छैक। आंगनक स्त्री आ अगल-बगल के स्त्रीगन मिलि विधि पूरा क लेलिह। आब अपने रामवृक्ष बालसखा चंद्रमोहन आ ठिठरा संगे मड़बा बांधि रहल छईथ, आ हकार पुरनिहार के नाम पर दू लग्गा दूर कुर्सी पर बैसल छईथ गामक सम्मानित गिरहथ मदन भैया।
एमहर रामवृक्षsक बेटा के मड़बा बंधा रहल छैक आ ओमहर तालाबंदी के मध्य गाम मे ई कुचर्चा शुरू भ गेल छैक जे खर्चा आ भोज-भात से बचय खातिर रामवृक्षा अपन बेटा के उपनयन ई तालाबंदी के बीच क रहल छैक। 

इति।

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