Tuesday 8 February 2022

जब दारू सर पर चढ़ता है

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

तब कौन मौन हो रहता है

जब दारू सर पर चढ़ता है।


चुप रहना नहीं सुहाता है

बक बक करना ही भाता है

जो झूठ की खेती करता है

तब वह भी  सच उगलता है

जब दारू सर पर चढ़ता है।


जो थे यार झगड़ते हैं

आपस मे ही लड़ पड़ते हैं

गीदड़ भी शेर बनता है

जब दारू सर पर चढ़ता है। 


जो करे हर पल साजो-श्रृंगार

वो भी बनता नाली का यार 

लड़खड़ा कर कहींभी गिरता है 

जब दारू सर पर चढ़ता है।

 

बातें करता  फिर  बड़ी बड़ी 

इंगलिश झाड़े वो खड़ी-खड़ी 

ढक्कन का बोतल लगता है 

जब दारू सर पर चढ़ता है।

 

अपनी पीड़ाओं का प्रहार 

घरवालों से करता दुर्व्यवहार 

बिन बात के भी वो  बिफरता है 

जब दारू सर पे चढ़ता है।

 

अपनी दौलत लुटाता है 

झूठ ही दानी कहलाता है 

पीछे धन को तरसता है 

जब दारू सर पर चढ़ता है। 


तब कौन मौन हो रहता है

जब दारू सर पर चढ़ता है।

No comments:

Post a Comment