Tuesday 26 July 2022

बादल आज फ़िर तुम आये थे मेरे आंगन

बादल आज फ़िर तुम आये थे मेरे आंगन,

और बरस कर चले गये;

मै तेरा धन्यवाद भी ना कर सका !

 

शायद तुम बहुत व्यस्त थे सबकि प्यास बुझाने मे।

पर कल तुम फ़िर आना,

बांहें खोल करना है तुम्हारा स्वागत,

और भिंगोना है तेरी बुन्दों से अपना दामन।

बंद कर लेना है तेरी बूंदों को अपने मुट्ठी मे

और झूम कर करना है प्रेम से तेरा अभिवादन।

 

पूछना है यह प्रश्न तेरी काली लटों से

सुन रहे हो ना ऐ बदरी काली ?

कैसे ले आती हो तुम मरुभूमि मे भी हरियाली !

क्या बुझा सकती हो प्यास उन अभागों की भी

सूखे हैं कंठ जिनकी सदियों से, कई जन्मों से। 

 

क्या मिल सकेगा तेरी बूंदों का हिस्सा सबको कभी

पा सकेगा क्या  हर मानव जीवन की खुशहाली!

कौन है जो हर बार चुरा लेता है तेरे मेघों को ?

इन्द्र हैं, या कोई और देवता या कोई दानव

या कि इस पाप के भागी भी हैं हम मानव !

 

सुनो ना, तुम आना, फिर आना मेरे आँगन

अपनी बूंदों से भिगो देना हम सब का दामन।

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